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आर्थिक विकास में जर्मनी से आगे कैसे निकल गया फ्रांस?

लीसा लुई
१ नवम्बर २०२३

एक ओर जर्मनी की अर्थव्यवस्था सिकुड़ रही है, जबकि फ्रांस में सुधार जोड़ पकड़ रहे हैं. इससे फ्रांस की जीडीपी में वृद्धि जारी है, लेकिन फ्रांस को इसकी कीमत भी चुकानी पड़ सकती है.

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तस्वीर: ROBIN UTRECHT/picture alliance

बहुत वक्त नहीं बीता है, जब फ्रांस को आर्थिक सुधारों की कमी और ऊंची बेरोजगारी दर की वजह से 'यूरोप का बीमार व्यक्ति' बताया जाता था. लेकिन, अब यह ठप्पा दूर की कौड़ी लगेगा. फ्रांस की अर्थव्यवस्था में इस साल की दूसरी तिमाही में 0.6 फीसदी और फिर तीसरी तिमाही में 0.1 फीसदी की वृद्धि हुई है. दूसरी ओर जर्मनी में तीसरी तिमाही में उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई, जिससे मंदी के लंबे समय तक जारी रहने का खतरा बढ़ गया है.

विशेषज्ञ बीते कुछ वर्षों में फ्रांस के तेजी से फैसले लेने की प्रशंसा कर रहे हैं. अर्थशास्त्री और पेरिस स्थित थिंकटैंक सेर्क्ल डि'पार्निया के प्रमुख फिलिप क्रेवेल कहते हैं, "फ्रांस की कंपनियों ने इस साल क्रूज जहाजों और विमानों को बेचकर कई अरब यूरो कमाए हैं. यह वृद्धि हमारे आंकड़ों में भी दिख रही है."

तस्वीर: Hans Lucas/imago images

फ्रांस और जर्मनी के बीच ढांचागत अंतर

डीडब्ल्यू से बातचीत में क्रेवेल ने कहा कि ढांचागत फायदे के साथ-साथ 'एड हॉक इफेक्ट' भी कारगर सिद्ध हुआ. उन्होंने बताया, "फ्रांस के पास बड़ा सर्विस सेक्टर है, जिसने हाल ही में अच्छे नतीजे हासिल किए हैं. खासकर पर्यटन के क्षेत्र में. वर्तमान में स्पेन की अर्थव्यवस्था बढ़ने के पीछे भी यही कारण है."

फ्रांस की वृद्धि की और व्याख्या करते हुए क्रेवेल कहते हैं कि परंपरागत रूप से जर्मनी की अर्थव्यवस्था मजबूत औद्योगिक क्षेत्र और निर्यात पर निर्भर रही है. लेकिन, अब जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विवादों का का असर दिख रहा है. साथ ही, चीन, अमेरिका और यूरोपीय संघ के बीच व्यापारिक होड़ का भी असर पड़ रहा है, क्योंकि सभी पक्ष सीमाएं तय कर रहे हैं.

क्रेवेल बताते हैं कि ऊर्जा कीमतों में बढ़ोतरी का असर भी जर्मनी पर पड़ रहा है, जिसकी वजह से जर्मन उद्योगों के लिए उत्पादन और परिवहन की लागत में वृद्धि हुई है. अभी तक जर्मनी, रूस से पाइपलाइन से होने वाली गैस आपूर्ति पर बहुत ज्यादा निर्भर था. फिर फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया, उसके बाद जर्मनी ने रूस से आयात बंद कर दिया. इससे उलट फ्रांस के पास सस्ती परमाणु ऊर्जा है, जिसकी फ्रांस में बिजली उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सेदारी है.

जलवायु नीतियों और जर्मनी ऑटो उद्योग पर इसका प्रभाव भी बड़ी भूमिका निभा रहा है. क्रेवेल कहते हैं, "यह क्षेत्र अभी तक इलेक्ट्रिक कारों की ओर बदलाव के लिए अनुकूलित नहीं हुआ है. इलेक्ट्रिक कारों में लगने वाली बैटरियां, जो इलेक्ट्रिक कारों का सबसे अहम हिस्सा हैं, उनका उत्पादन चीन में हो रहा है."

तस्वीर: Martin Wagner/IMAGO

फ्रांस ने कई संकटों पर तेजी से दी प्रतिक्रिया

पेरिस स्थित ऑडिटिंग कंसल्टेंसी BDO की मुख्य अर्थशास्त्री आन सोफी आल्सिफ फ्रांस के पक्ष में एक और वजह गिनाती हैं. वह कहती हैं, "फ्रांस का आर्थिक प्रदर्शन काफी हद तक घरेलू खपत पर निर्भर करता है. वैसे तो पिछले कुछ वर्षों में संकटों ने घरेलू मांग को प्रभावित किया है, लेकिन मांग में गिरावट नहीं आई है."

यूक्रेन में जारी जंग के अलावा दुनिया को कोरोनावायरस महामारी का भी सामना करना पड़ा, जिसकी शुरुआत 2020 के साथ हुई थी. स्विट्जरलैंड स्थित पिक्टेट ऐसेट मैनेजमेंट की पेरिस स्थित संस्थान में निवेश सलाहकार क्रिस्टोफर डेमबिक कहते हैं कि फ्रांस ने इन संकटों को तुलनात्मक रूप से अच्छी तरह पार कर लिया है.

डेमबिक ने डीडब्ल्यू को बताया, "फ्रांस ने महामारी के दौरान परिवारों और कंपनियों को उनकी खपत और निवेश को बनाए रखने के लिए बड़े पैमाने पर सब्सिडी दी और कर्ज उपलब्ध कराए. इसके अलावा ऊर्जा संकट पर भी फ्रांस ने अविश्वसनीय रूप से तेज प्रतिक्रिया दी और सरकार के समर्थन के जरिए पूरी अर्थव्यवस्था को बचाया. जर्मनी की तुलना में इसकी शुरुआत सालभर पहले ही हो गई थी. इससे बहुत फर्क पड़ा, भले जर्मनी ने जीडीपी के संदर्भ में ज्यादा पैसे खर्च किए."

पेरिस स्थित एचईसी यूनिवर्सिटी में कानून और अर्थशास्त्र के जर्मन प्रोफेसर और ब्रसेल्स स्थित थिंकटैंक ब्रूगेल के अनिवासी फेलो आरमीन श्टाइनबाख को फैसले लेने में देरी परेशान करती है. वह मानते हैं कि जर्मनी को संकट के समय में फैसले लेने के अपने तंत्र को अधिक कुशल बनाना चाहिए.

डीडब्ल्यू से बातचीत में श्टाइनबाख कहते हैं, "जब जर्मनी अपनी सहमति प्रणाली की वजह से मसलों पर लंबे समय तक विमर्श कर रहा था, तब फ्रांस ने अपने उपाय बहुत पहले ही लागू कर दिए थे. जर्मनी के तंत्र में फैसले लेने में केंद्रीय और स्थानीय, दोनों सरकारों की हिस्सेदारी रहती है."

तस्वीर: Christophe Ena/Pool/REUTERS

रंग ला रहे माक्रों के सुधार

इसके बावजूद श्टाइनबाख मानते हैं कि फ्रांस के मौजूदा आर्थिक प्रदर्शन के और भी गहरे कारण हैं. वह कहते हैं, "राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने 2017 में पहली बार सत्ता में आने के बाद जो महत्वाकांक्षी सुधार लागू किए थे, अब वह उन्हीं की फसल काट रहे हैं. उन्होंने कॉरपोरेट टैक्स घटाया, लेबर मार्केट को उदार बनाया है, बेरोजगारी बीमा में सुधार किया है और उस पेंशन सुधार को आगे बढ़ाया है, जिसके लिए लोग राजी नहीं थे."

वह कहते हैं कि माक्रों के सुधार एजेंडे का असर देश में बेरोजगारी दर भी पड़ रहा है, जो बीते 20 वर्षों में सबसे कम, 7 फीसदी पर है. लेकिन पेरिस स्थित साइंसेस पो यूनिवर्सिटी की इकोनॉमिक ऑब्जरवेटरी में अर्थशास्त्री काथरीन माच्यू मानती हैं कि फ्रांस की अर्थव्यवस्था कोई आदर्श नहीं है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "ऐसा नहीं है कि जर्मनी पिछले तीन वर्षों में खासतौर से खराब प्रदर्शन कर रहा है. 2019 के अंत से यूरोजोन की जीडीपी औसतन 3.1 फीसदी बढ़ी है. फ्रांस 1.7 फीसदी वृद्धि के साथ इस सूची में कहीं बीच में है, जबकि जर्मनी महज 0.2 फीसदी वृद्धि के साथ सबसे निचले स्थान पर है."

फिर भी पांचों विशेषज्ञ इस बात से सहमत है कि ये आंकड़े जर्मनी की उद्योग-उन्मुख आर्थिक ढांचे पर सवालिया निशान नहीं लगा रहे हैं.

तस्वीर: LISI NIESNER/REUTERS

फ्रांस की सफलता के नकारात्मक पहलू

आल्सिफ जोर देकर कहती हैं, "फ्रांस असल में जर्मनी के नक्शेकदम पर चल रहा है और नए सिरे से औद्योगीकरण पर जोर दे रहा है. इसके अलावा यूरोजोन के देशों के लिए अलग-अलग संरचनाओं वाली अर्थव्यवस्थाएं विकसित करना महत्वपूर्ण है, ताकि सारे देश एक साथ ही मंदी में न आ जाएं."

हालांकि, फ्रांस की सफलता की इबारत में कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं. देश का सार्वजनिक ऋण 3 ट्रिलियन यूरो हो गया है. यह जीडीपी की तुलना में 112.5 फीसदी है, जो 2019 में 100 फीसदी था. वार्षिक बजट घाटा भी करीब पांच फीसदी है, जो ब्रसल्स द्वारा घाटे की तय की हुई 3 फीसदी की सीमा से कहीं ज्यादा है.

तमाम अर्थशास्त्री मानते हैं कि इन सुधारों से फ्रांस निकट भविष्य में दीवालिया नहीं होगा, लेकिन आखिरकार इसका असर फ्रांस के कुल कर्ज पर पड़ेगा. श्टाइनबाख रेखांकित करते हैं, "अगर कोई देश अपने कर्ज चुकाने के लिए अपने पैसों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करता है, तो वह उन पैसों को और ज्यादा महत्वपूर्ण उद्देश्यों में नहीं लगा पाएगा. एक बिंदु ऐसा आएगा, जहां मितव्ययिता के उपाय लागू करने होंगे, जिससे राजनीतिक अस्थिरता जन्म ले सकती है. उस मोड़ पर पहुंचने पर उदार सार्वजनिक सब्सिडी के लिए पैसे नहीं बचेंगे."

पेरिस ओलंपिक की तैयारियां ही इतनी खूबसूरत लग रही हैं!

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