‘अडानी पर रिपोर्टिंग’ को लेकर क्यों मचा हंगामा?
१९ सितम्बर २०२५
दिल्ली की एक अदालत ने कुछ मीडिया संस्थानों और स्वतंत्र पत्रकारों को उद्योगपति गौतम अडानी और उनकी कंपनियों को लेकर बनाए गए वीडियो और प्रकाशित लेखों को हटाने का आदेश दिया. दिल्ली की रोहिणी कोर्ट के सिविल जज का ये आदेश अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड की शिकायत पर आया था.
आदेश एक्स पार्टी यानी एकतरफा था क्योंकि आदेश से पहले उन मीडिया चैनलों या पत्रकारों का पक्ष नहीं सुना गया, जिन्हें वीडियो हटाने के निर्देश दिए गए थे. अदालत के आदेश पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने तत्काल कार्रवाई की.
आलोचकों को कैसे चुप कराता है अडानी समूह
लेकिन अब अदालत के उसी आदेश पर रोहिणी कोर्ट के ही जिला जज ने रोक लगा दी है क्योंकि आदेश बिना दूसरे पक्ष को सुने, एकतरफा पारित किया गया था. हालांकि रोहिणी कोर्ट के जिला जज का ये आदेश सिर्फ उन्हीं पत्रकारों के लिए है जिन्होंने इस बारे में ये याचिका दायर की थी.
138 वीडियो हटाने का आदेश
रोहिणी जिला अदालत के न्यायाधीश आशीष अग्रवाल ने चार पत्रकारों- रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, आयुषकांत दास और आयुष जोशी की अपील पर यह आदेश पारित किया. जज आशीष अग्रवाल ने कहा कि ये लेख लंबे समय से सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध थे इसलिए सिविल न्यायाधीश को उनके लेख हटाने का निर्देश देने से पहले पत्रकारों का पक्ष सुनना चाहिए था. इसी अदालत ने गुरुवार को वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता की अपील पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 16 सितंबर को दो मीडिया संस्थानों और कई यूट्यूब चैनलों को नोटिस भेजकर अडानी समूह का जिक्र करने वाले कुल 138 वीडियो और 83 इंस्टाग्राम पोस्ट हटाने के लिए नोटिस जारी किया. यह नोटिस अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) की ओर से दायर मानहानि के उसी मामले में रोहिणी कोर्ट के उस अंतरिम आदेश के आधार पर दिया गया था जो कोर्ट ने बिना दूसरे पक्ष को सुने ही छह सितंबर को दिया था.
क्या है हिंडनबर्ग जिसने अडानी के खरबों डुबो दिए
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सीनियर सिविल जज के आदेश के बाद जिन प्रमुख यूट्यूब चैनलों को अडानी से संबंधित वीडियो हटाने को कहा था, उनमें न्यूज लॉन्ड्री, अभिसार शर्मा, ध्रुव राठी, रवीश कुमार ऑफिशियल, द देशभक्त, दीपक शर्मा, प्रज्ञा का पन्ना, अजीत अंजुम, एचडब्ल्यू न्यूज इंग्लिश और परंजॉय ऑनलाइन प्रमुख रुप से शामिल हैं.
अदालत का एकतरफा आदेश
अदालत के एकपक्षीय अंतरिम आदेश में उन लेखों, सोशल मीडिया पोस्ट और वीडियो से कथित मानहानि करने वाली सामग्री हटाने का आदेश दिया गया था जिन्हें अडानी समूह की प्रतिष्ठा के लिए हानिकारक माना गया था. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने पांच दिनों के भीतर सामग्री हटाने के लिए नोटिस जारी किए थे, लेकिन कई वीडियो और पोस्ट ऑनलाइन मौजूद रहे. जिसके कारण मंत्रालय ने 36 घंटों के भीतर कार्रवाई करने का अल्टीमेटम दिया.
यह आदेश प्रमुख डिजिटल समाचार प्रकाशकों, पत्रकारों, व्यंग्यकारों और बड़े प्लेटफार्मों पर भी लागू होता है, जो सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम, 2021 के तहत अदालती आदेश पर सामग्री हटाने में सरकार की प्रवर्तन भूमिका को दिखाता है.
सिविल जज के अंतरिम आदेश पर मंत्रालय की कार्रवाई को लेकर दूसरे पक्ष के लोगों की शिकायत है कि यह निषेध आदेश बिना यह बताए पारित कर दिया जाता है कि उनके लेखों और वीडियो में ऐसा क्या है जो किसी की मानहानि कर रहा है.
अदालत के फैसले को चुनौती देने की तैयारी
कोर्ट के इस आदेश और फिर मंत्रालय और यूट्यूब के फरमान के बाद अब कई पत्रकार हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा के यूट्यूब चैनल पर नब्बे लाख से ज्यादा सब्स्क्राइबर हैं और उनके वीडियो लाखों की संख्या में देखे जाते हैं. अडानी से संबंधित वीडियो हटाने का निर्देश उन्हें भी मिला है. डीडब्ल्यू से बातचीत में अभिसार शर्मा कहते हैं कि कोर्ट के आदेश पारित करने से पहले उनका पक्ष जानने के लिए कोर्ट का कोई नोटिस नहीं आया था.
अभिसार शर्मा कहते हैं, "कोर्ट का कोई नोटिस नहीं आया था. हमारे पास यूट्यूब का फरमान आया था कि कोर्ट का आदेश है. ये वीडियो या तो आप खुद हटा दें वर्ना हम हटा देंगे. हमने कहा कि अभी आप हटाइए नहीं. कोर्ट का आदेश है तो हम इसे प्राइवेट कर दे रहे हैं और इस आदेश को मैं कोर्ट में चुनौती देने जा रहा हूं. अब कल रोहिणी कोर्ट के फैसले के बाद मैंने यूट्यूब को फिर से ईमेल किया और कहा कि यदि आपने डिलीट किया तो ये कोर्ट के आदेश के साथ खिलवाड़ होगा. फिलहाल यूट्यूब ने वीडियो डिलीट नहीं किए हैं.”
अभिसार शर्मा का यह भी कहना है, "रोहिणी जिला जज के आदेश के बाद ये मामला तो बेहद कमजोर दिख रहा है लेकिन चूंकि ये सिर्फ उन पर लागू होता है जिन्होंने याचिका दायर की थी, इसलिए मैं इसे दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती देने जा रहा हूं."
कोर्ट के इस आदेश और फिर मंत्रालय की तत्परता ने प्रेस की आजादी और मीडिया पर कॉर्पोरेट जगत के प्रभाव को लेकर बहस छेड़ दी है. कोर्ट के एकतरफा आदेश पर भी सवाल उठ रहे हैं. जिन लोगों को नोटिस जारी किए गए हैं उनमें कुछ का कहना है कि उनका कंटेंट या तो जनहित में की गई रिपोर्टिंग से संबंधित है या फिर व्यंग्य से संबंधित है, मानहानि जैसी कोई बात नहीं है. इस तरह के आदेश और कार्रवाई से तो प्रेस पर सेंसरशिप का खतरा बढ़ रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने सोशल मीडिया पर लिखा है, "अडानी का नाम लेना अब गुनाह हो गया? दिल्ली की एक अदालत के आदेश के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय और यूट्यूब की तरफ से मुझे 24 वीडियो को डिलीट करने का फरमान आया है. अडानी के जिन वीडियो को हटाने के मुझे निर्देश मिले हैं, उनमें प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा, सुचेता दलाल और सुब्रमण्यम स्वामी के इंटरव्यू भी शामिल हैं.”
वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इस फैसले और फिर यूट्यूब और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फरमान पर टिप्पणी की है. उन्होंने लिखा है, "क्या अदालत में बिना तलब किए, बिना नोटिस दिए, बिना सुने, आपको कोई फैसला ईमेल भेजकर सुनाया जा सकता है? क्या आपको कुछ ही घंटों के भीतर अडानी पर किए गए सारे वीडियो डिलीट करने के आदेश दिए जा सकते हैं?"
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कार्यकारी शक्तियों के इस तरह के विस्तार पर ‘गहरी चिंता' जताई है जो एक निजी निगम को मानहानिकारक सामग्री का निर्धारण करने की अनुमति देती है और जिससे लोकतांत्रिक जवाबदेही के लिए महत्वपूर्ण आलोचनात्मक आवाजों पर अंकुश लग सकता है.