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आटा क्यों बेच रही है भारत सरकार

७ नवम्बर २०२३

भारत सरकार ने सस्ता आटा बेचने की योजना फिर से शुरू की है. सरकार का कहना है कि ऐसा आवश्यक चीजों के दामों को स्थिर करने के लिए किया जा रहा है, लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि अर्थव्यवस्था के लिए इसके क्या मायने हैं.

आटा
आटातस्वीर: PIUS UTOMI EKPEI/AFP via Getty Images

केंद्र सरकार ने नाफेड के जरिए कम दाम पर आटा बेचने की शुरुआत कुछ महीने पहले की थी. जानकारों का कहना है कि उस समय 'भारत आटा' नाम की योजना के पायलट की शुरुआत की गई थी और अब इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू कर दिया गया है.

यह आटा केंद्रीय भंडार, नाफेड और एनसीसीएफ के केंद्रों और मोबाइल वैनों में मिलेगा. धीरे धीरे इसे सहकारी केंद्रों और खुदरा दुकानों तक भी पहुंचाने की योजना है. पायलट के समय इसका दाम 29.50 रुपये प्रति किलो था और अब दाम दो रुपये और कम कर दिया गया है.

महंगाई की चिंता

सरकार इसे 27.50 रुपये प्रति किलो की दर पर बेचेगी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय खुले बाजार में आटा औसत 35.99 प्रति किलो के दाम पर बिक रहा है. यानी अगर सरकार अपने आटे की अच्छी उपलब्धता सुनिश्चित कर सके तो इससे आम लोगों को काफी राहत मिल सकती है.

 

इसके लिए सरकार ने एफसीआई के गोदामों में पड़े गेहूं में से ढाई लाख मेट्रिक टन गेहूं को अलग कर दिया है. उसी को आटा बना कर कम दाम पर बेचा जाएगा. सरकार को उम्मीद है कि इससे महंगाई दर पर थोड़ा नियंत्रण होगा.

हालांकि सरकार ने पायलट के नतीजे साझा नहीं किये हैं जिससे यह पता चलता कि योजना को आम लोगों के बीच कैसी प्रतिक्रिया मिली थी. अब देखना यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर योजना कितनी असरदार साबित हो पाती है.

चुनावों पर नजर

भारत में खाने पीने की चीजों के दाम कई महीनों से बढ़े हुए हैं. सितंबर में कुल मिलाकर खुदरा मुद्रास्फीति 5.02 प्रतिशत थी. आरबीआई का लक्ष्य होता है इसे चार से छह प्रतिशत के बीच रखना. खाद्य मुद्रास्फीति की दर 6.56 रही.

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सरकार चाहेगी कि चार राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों के मौके पर अगर महंगाई दर और नीचे आ जाए. इसी के साथ साथ सरकार ने अनाज पर मिलने वाली सब्सिडी को और पांच सालों तक देने की घोषणा भी की है. चुनावों के बीच में इस योजना को लागू किये जाने को विपक्ष आचार संहिता का उल्लंघन बता रहा है.

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