भारत के कुल कामगारों में से करीब आधे आज भी कृषि क्षेत्र में काम करते हैं. 140 करोड़ की आबादी का भरण-पोषण करने वाली खेती देश की राजनीति को प्रभावित करने में अहम रोल निभाती है.
डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद इसी साल फरवरी में नरेन्द्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर गए थेतस्वीर: Andrew Caballero-Reynolds/AFP/Getty Images
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पिछले हफ्ते अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत से होने वाले आयात पर 25 फीसदी टैरिफ लगा दिया. सामने आया कि भारत और अमेरिका के बीच तय समयसीमा में समझौता ना हो पाने की सबसे अहम वजह रहे, कृषि उत्पाद. अमेरिका के साथ लंबी चली व्यापार बातचीत के अंत में भारत अपने कृषि उत्पादों के बाजार में उसे उतना हिस्सा देने को तैयार नहीं हुआ, जितना अमेरिका चाहता था.
भारत की जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 16 फीसदी है. फिर भी भारत के कुल कामगारों में से करीब आधे आज भी इसी क्षेत्र में काम करते हैं. ऐसे में बहुत कमाई वाला क्षेत्र ना होने के बाद भी कृषि भारत में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देता है और इस वजह से ये राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील भी होता है. केंद्र की मजबूत मोदी सरकार को चार साल पहले जिस तरह से विवादित कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा था, वह इस क्षेत्र की राजनीतिक ताकत को दिखाता है.
डॉनल्ड ट्रंप बहुत सारे कृषि उत्पादों के लिए भारतीय बाजार को खोलने का दबाव बना रहे थे, मसलन अमेरिकी डेयरी उत्पाद, पोल्ट्री, मक्का, सोयाबीन, चावल, गेहूं, इथेनॉल, फल और ड्राई फ्रूट्स. भारत अमेरिकी ड्राई फ्रूट्स और सेबों के लिए अपने बाजार को खोलने को तैयार था लेकिन मक्के, सोयाबीन, गेहूं और डेयरी उत्पादों पर बात अटकी हुई थी और इन पर आखिरी वक्त तक सहमति नहीं बन सकी.
जीएम फसलों पर मतभेद
इस बातचीत में सबसे अहम कड़ी ये थी कि अमेरिका से आने वाला ज्यादातर मक्का और सोयाबीन, जेनेटिकली मोडिफाइड यानी जीएम कैटेगरी का होता है. भारत जीएम फसलों को बेचे जाने की अनुमति नहीं देता है.
चीन अमेरिका से कौन से कृषि उत्पाद खरीदता है
अमेरिका द्वारा चीनी आयातों पर लगाया अतिरिक्त 10 प्रतिशत शुल्क लागू होने वाला है, जिससे कुल शुल्क 20 प्रतिशत हो जाएगा. चीन ने भी पलटवार की धमकी दी है. चीन अमेरिका से कई उत्पाद खरीदता है, जिनकी बिक्री पर असर पड़ सकता है.
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अमेरिकी सामान का चीन में गिरता आयात
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल में ही अमेरिका और चीन का व्यापार युद्ध शुरू हो गया था. तब से चीन द्वारा आयात किए जाने वाले अमेरिकी कृषि उत्पादों में काफी गिरावट आई है. अब ट्रंप द्वारा लगाए गए नए सीमा-शुल्क के जवाब में चीन भी ऐसी ही कार्रवाई कर सकता है. ऐसे में अंदेशा है कि दोनों देशों के बीच व्यापार में और गिरावट आएगी.
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अमेरिकी उत्पादों पर असर
चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि चीन की जवाबी कार्रवाई में सीमा-शुल्क के अलावा अन्य कदम भी होंगे. इसका अमेरिकी कृषि उत्पादों और खाद्य उत्पादों पर काफी असर पड़ सकता है.
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चीन अभी भी सबसे बड़ा बाजार
चीन ने 2024 में 29.25 अरब डॉलर मूल्य के अमेरिकी कृषि उत्पादों का आयात किया. यह 2023 के मुकाबले 14 प्रतिशत की गिरावट थी. चीन में अमेरिकी निर्यात 2018 से गिर रहा है. इसके बावजूद चीन अभी भी अमेरिकी कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है.
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सोयाबीन
सोयाबीन चीन में सबसे ज्यादा निर्यात किया जाने वाला अमेरिकी कृषि उत्पाद है. 2024 में करीब आधा अमेरिकी सोयाबीन चीन भेजा गया था, जिससे अमेरिका की 12.8 अरब डॉलर की कमाई हुई थी. लेकिन चीन अब अमेरिका पर अपनी निर्भरता घटाने के लिए ब्राजील से सोयाबीन ले रहा है. इस वजह से चीन में अमेरिकी सोयाबीन की हिस्सेदारी 2016 में 40 प्रतिशत से 2024 में 21 प्रतिशत पर आ गई.
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मक्का
अमेरिका दशकों तक चीन का बड़ा मक्का सप्लायर था, लेकिन 2022 में चीन ने ब्राजील से मक्का लेना शुरू कर दिया. चीन में अमेरिकी मक्के का आयात जहां 2023 में 2.6 अरब डॉलर मूल्य का था, वहीं 2024 में गिर कर 56.10 करोड़ डॉलर पर आ गया. ब्राजील ने तेजी से इस मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है.
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मांस
चीन अमेरिका से चिकन की टांगें, पोर्क के कान और पशुओं के खाए जाने वाले अंदरूनी अंगों (ओफल) के निर्यात का बड़ा बाजार है. इन चीजों की अमेरिका में मांग बहुत कम है. 2021 में चीन ने अमेरिका से 4.11 अरब डॉलर मूल्य का मांस और ओफल खरीदा लेकिन 2024 में यह घट कर 2.54 अरब डॉलर पर आ गया.
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कपास
अमेरिकी कॉटन का करीबी एक चौथाई निर्यात चीन जाता है. 2023 में 1.57 अरब डॉलर मूल्य का कपास अमेरिका से चीन गया, लेकिन 2024 में इसका मूल्य घट कर 1.49 अरब डॉलर पर आ गया.
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ज्वार
अमेरिकी जवार का चीन में आयात थोड़ा बढ़ा है, लेकिन इस मामले में चीन अमेरिका पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहा है. 2014 में चीन ने 1.52 अरब डॉलर मूल्य का ज्वार अमेरिका से आयात किया. 2024 में यह बढ़कर 1.73 अरब डॉलर मूल्य का हो गया.
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गेहूं
चीन ने 2024 में करीब 60 करोड़ डॉलर मूल्य का अमेरिकी गेहूं आयात किया. लेकिन हाल के महीनों में चीन ने गेहूं का आयात कम कर दिया है और अपना उत्पादन बढ़ा दिया है. इससे अमेरिकी उत्पादों पर असर पड़ सकता है. (रॉयटर्स)
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भारत में आमतौर पर जीएम फसलों को इंसानी सेहत और पर्यावरण के लिए खतरनाक माना जाता है. भारत के सत्ताधारी दल बीजेपी से जुड़े कई कृषि संगठन जीएम फसलों का विरोध करते रहे हैं. यहां तक कि खुद भारत में ही विकसित की गई, ज्यादा उपज देने वाली जीएम सरसों की एक किस्म की व्यापारिक खेती की अनुमति नहीं है क्योंकि इस पर अभी कानूनी लड़ाई चल रही है.
जीएम फसलों की तरह ही डेयरी उत्पाद भी भारत में एक बहुत संवेदनशील मसला हैं. दरअसल भारत के लाखों किसानों की आजीविका डेयरी से आती है. डेयरी बिजनेस से जुड़े बहुत से किसान ऐसे भी हैं, जिनके पास पर्याप्त खेती लायक जमीन नहीं है, या ऐसी बहुत कम जमीन है. भारत में कृषि आज भी बहुत हद तक मानसून पर निर्भर रहती है. ऐसे में खराब मानसून वाले वर्षों में, डेयरी उद्योग ही बहुत से किसानों का आखिरी सहारा होता है.
भारत, जहां आबादी का बड़ा हिस्सा मांस नहीं खाता. यहां कुछ सांस्कृतिक और सामाजिक स्थितियां भी अमेरिका के लिए डेयरी उद्योग को खोलने में रोड़ा बनीं. भारतीय उपभोक्ताओं की एक चिंता यह भी रही कि अमेरिका में अक्सर जानवरों को मांस आधारित खाना दिया जाता है. यह बात भारतीयों की खाने की आदतों से अलग है.
ज्यादातर खाद्य उत्पादों के मामले में भारत आत्मनिर्भर देश है. बड़े खाद्य उत्पादों में सिर्फ खाद्य तेल है, फिलहाल जिसका बड़ी मात्रा में भारत को आयात करना पड़ता है. तीन दशक पहले खाद्य तेल के आयात में उदारीकरण के बाद, अभी भारत में इस्तेमाल होने वाले कुल खाद्य तेल का दो-तिहाई हिस्सा विदेशों से आयात किया जाता है. भारत ऐसी गलती, अन्य सामान्य कृषि उत्पादों के लिए नहीं करना चाहता है. जबकि भारत के कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स में इन कृषि उत्पादों की हिस्सेदारी करीब आधी है.
अमेरिकी टैरिफ से कैसे प्रभावित होगा भारत
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अप्रैल से "प्रतिस्परधात्मक टैरिफ" लगाने की धमकी दी है. इससे भारत के कौन-कौन से उद्योग-धंधे प्रभावित हो सकते हैं? जानिएः
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ट्रंप की धमकी से भारत में चिंता
ट्रंप की टैरिफ लगाने की धमकी से भारत के ऑटोमोबाइल से लेकर कृषि तक के निर्यात क्षेत्रों में चिंता बढ़ गई है. सिटी रिसर्च के विश्लेषकों के अनुसार, इससे भारत को सालाना लगभग सात अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है.
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टैक्स अभी स्पष्ट नहीं
भारतीय सरकारी अधिकारी अभी यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि इन शुल्कों की गणना कैसे होगी, ताकि उनके प्रभाव का सही आकलन किया जा सके. हालांकि, सरकार इनका मुकाबला करने की योजना बना रही है और अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौते के लिए प्रस्ताव तैयार कर रही है, जिससे टैरिफ कम किए जा सकें और द्विपक्षीय व्यापार बढ़े.
तस्वीर: Kevin Lamarque/REUTERS
किन क्षेत्रों पर असर पड़ेगा?
विश्लेषकों के अनुसार, रसायन, धातु उत्पाद और आभूषण उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं. इनके बाद ऑटोमोबाइल, दवा और खाद्य उत्पादों पर असर पड़ सकता है.
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74 अरब डॉलर का निर्यात
2024 में भारत से अमेरिका को कुल लगभग 74 अरब डॉलर का निर्यात हुआ, जिनमें 8.5 अरब डॉलर के मोती, रत्न और आभूषण, 8 अरब डॉलर की दवाएं और 4 अरब डॉलर के पेट्रोकेमिकल शामिल थे.
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भारत में टैक्स ज्यादा
भारत अपने यहां अमेरिकी आयात पर जितना टैक्स लगाता है, उससे कम अमेरिका उसके उत्पादों पर लगाता है. 2024 में भारत का औसत आयात शुल्क 11 फीसदी था, जो अमेरिकी निर्यात पर लगे शुल्क से 8.2 प्रतिशत अधिक था.
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अमेरिका की चिंता
अमेरिकी सरकार के मुताबिक, अमेरिका के कृषि उत्पादों पर औसत 5 फीसदी टैरिफ लगता है, जबकि भारत में यह 39 फीसदी है. भारत ने अमेरिकी मोटरसाइकिलों पर 100 फीसदी टैरिफ लगाया हुआ है, जबकि अमेरिकी टैरिफ भारतीय मोटरसाइकिलों पर मात्र 2.4 फीसदी है.
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अमेरिका से भारत को निर्यात
2024 में अमेरिका ने भारत को लगभग 42 अरब डॉलर के उत्पाद निर्यात किए. इन पर भारत में 7 फीसदी से लेकर 68 फीसदी तक के ऊंचे टैरिफ लगे. जैसे लकड़ी उत्पाद और मशीनरी पर 7 फीसदी टैरिफ लगा जबकि जूते-चप्पल और परिवहन उपकरणों पर 15-20 फीसदी और खाद्य उत्पादों पर लगभग 68 फीसदी टैक्स लगा.
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कृषि क्षेत्र पर असर
अगर अमेरिका व्यापक स्तर पर कृषि उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाता है, तो भारत के कृषि और खाद्य उत्पादों का निर्यात बुरी तरह प्रभावित होगा. कपड़ा, चमड़ा और लकड़ी से जुड़े उद्योगों पर असर सीमित रहेगा क्योंकि इन पर टैरिफ अंतर कम है और इनका भारत-अमेरिका व्यापार में हिस्सा भी छोटा है.
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सबसे बुरा असर कब होगा?
अगर अमेरिका भारत से आयात होने वाले सभी उत्पादों और सेवाओं पर समान रूप से 10 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगा देता है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था को 50-60 बेसिस प्वाइंट्स तक का नुकसान हो सकता है. स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के विश्लेषकों के अनुसार, इससे भारत से अमेरिका को निर्यात 11-12 फीसदी तक घट सकता है.
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भारत क्या कर सकता है?
व्यापार तनाव कम करने के लिए भारत ने पहले ही कई टैरिफ घटा दिए हैं. महंगी मोटरसाइकिलों पर टैरिफ 50 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी किया गया है. बर्बन व्हिस्की पर टैरिफ 150 फीसदी से घटाकर 100 फीसदी किया गया है. इसके अलावा, भारत ऊर्जा आयात बढ़ाने और अमेरिका से अधिक रक्षा उपकरण खरीदने जैसे उपायों पर भी विचार कर रहा है. वीके/एए (रॉयटर्स)
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अमेरिकी किसानों के सामने नहीं टिकेंगे भारतीय किसान
कुछ जानकारों को डर है कि अमेरिका की ओर से सस्ते कृषि उत्पादों का आयात, स्थानीय कृषि उत्पादों का दाम गिरा देगा और इसके साथ ही विपक्षी पार्टी को सत्ताधारी दल पर हमला करने का अवसर मिल जाएगा. भारत सरकार को यह डर भी है कि जिस तरह की छूट वो अमेरिका को देगी, शायद भारत के साथ व्यापार कर रहे, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे ब्लॉक भी वैसी ही छूट अपने लिए भी मांगना शुरू कर देंगे.
भारत और अमेरिका में खेती के तरीकों में भी बहुत अंतर है. इसके चलते भी भारतीय किसान, अमेरिकी किसानों के सामने नहीं ठहर सकते. दरअसल भारत में डेयरी किसानों के लिए काम में आने वाली किसी आम जमीन का इलाका 1.08 हेक्टेयर का है. जबकि अमेरिकी किसान के लिए यह 187 हेक्टेयर का है. वहीं एक आम भारतीय डेयरी किसान के पास दो से तीन मवेशी होते हैं, वहीं एक आम अमेरिकी डेयरी किसान के पास सैकड़ों.
इसके अलावा ज्यादातर भारतीय किसान बिना मशीनों वाली पारंपरिक तकनीकों के हिसाब से अपना काम धंधा चलाते हैं. जबकि अमेरिकी किसान टेक्नोलॉजी का बहुत ज्यादा उपयोग करते हैं और उनका डेयरी उद्योग बहुत ज्यादा कुशल है. जानकार मानते हैं कि भारतीय डेयरी किसान उनका मुकाबला नहीं कर पाएंगे.
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राजनीति पर बुरा असर
भारत के अहम लक्ष्यों में से एक है, अपने इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के जरिए ऊर्जा आयात को घटाना. इस कार्यक्रम से भारत के किसानों की मदद भी होती है. दरअसल बायोफ्यूल बनाने के लिए गन्ने और मक्के की जरूरत होती है, जिसे स्थानीय किसान उगाते हैं.
भारतीय कंपनियों ने नई डिस्टिलरियों में भारी निवेश कर रखा है और किसानों ने इथेनॉल की जरूरत को पूरा करने के लिए इन फसलों का उत्पादन भी बढ़ाया है. भारत ने हाल ही में पेट्रोल में 20 फीसदी इथेनॉल मिलाने के अपने महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पूरा किया है.
भारत के पूर्वी राज्य बिहार में जल्द चुनाव हैं, यह मक्के का उत्पादन करने वाला एक अहम राज्य है. अमेरिका से इथेनॉल का आयात, मक्के के स्थानीय दामों को चोट पहुंचाएगा. इससे स्थानीय किसानों का गुस्सा वर्तमान में राज्य की बीजेपी की साझेदारी वाली सरकार के खिलाफ भड़कने का डर है. ऐसे में डिस्टिलरी के बढ़ते उद्योग को भी नुकसान पहुंचेगा और बीजेपी नहीं चाहेगी कि चुनाव से ठीक पहले ऐसा हो.