ऑस्ट्रेलिया हर साल हजारों युवाओं को अपने यहां आकर घूमने, अस्थायी रूप से रहने और काम करने के लिए विशेष वीजा देता है. लेकिन यह वीजा भारतीयों को नहीं दिया जाता, जबकि अन्य वीजा पाने वालों में भारतीय सबसे आगे हैं.
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हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने ऐलान किया कि घूमने के साथ-साथ काम करने के लिए जो लोग उसके यहां जाना चाहते हैं उनकी वीजा फीस माफ कर दी जाएगी. इस ऐलान पर कई देशों के युवा खुश हो सकते हैं लेकिन सबसे ज्यादा ऑस्ट्रेलिया जाने वाले भारत के लोग नहीं.
ऑस्ट्रेलिया का बैकपैकर्स वीजा, जिसे आधिकारिक तौर पर सबक्लास 417 और सबक्लास 462 वीजा कहा जाता है, भारतीयों को नहीं मिल सकता. यह वीजा 18 से 30 वर्ष तक के युवाओं को अस्थायी रूप से ऑस्ट्रेलिया में रहने और काम करने और पढ़ने का अधिकार देता है.
इंडिया की काली पीली टैक्सी सिडनी में
दिल्ली-मुंबई में चलने वाली एक काली पीली कार सिडनी में भी है. भारत से सिडनी पहुंचने की इस काली पीली कार की यात्रा भी बड़ी मजेदार है.
तस्वीर: Jammie Robinson
दिल्ली की कार सिडनी में
सिडनी में अक्सर सड़कों पर यह काली पीली टैक्सी घूमती दिखती है. अंदर से एकदम खांटी देसी अंदाज में सजी हुई. म्यूजिक भी देसी ही बजता है. बस चलाने वाला एक अंग्रेज है.
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जेमी की कार
इस काली पीली कार के मालिक हैं सिडनी में रहने वाले जेमी रॉबिनसन. उन्होंने अपनी इस प्यारी टैक्सी को नाम दिया है ‘बॉलीवुड कार.’
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भारत से प्यार
जेमी रहने वाले तो ब्रिटेन के हैं लेकिन बस गए हैं ऑस्ट्रेलिया में. पर उन्हें भारत से बहुत लगाव है. इसलिए वह कई बार भारत जा चुके हैं.
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काली पीली कार
इंडिया वाली टैक्सी को जेमी रॉबिनसन ने कारों के टीवी शो में देखा था. तभी उनका इस कार पर मन आ गया और वह इसे सिडनी लाने की जुगत में जुट गए.
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लाना तो संभव नहीं
नियम कानूनों के भारत से पुरानी कार को ऑस्ट्रेलिया लाना लगभग असंभव है. तो जेमी ने पुर्जे मंगाए भारत से और ऐम्बैस्डर की बॉडी खोजी ऑस्ट्रेलिया में. फिर उन्होंने कार को ऑस्ट्रेलिया में असेंबल किया, जिसमें तीन साल गए.
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आजा मेरी गाड़ी में बैठ जा
अब जेमी की कार सिडनी में खूब चलती है. लोग, खासकर भारतीय इस कार को अपने अलग अलग इवेंट्स के लिए किराये पर लेते हैं. और इसमें घूमना फिरना भी करते हैं, भारत जैसा आनंद लेने के लिए.
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दीवाने हजारों हैं
जेमी बताते हैं कि इस पुरानी कार के बहुत दीवाने हैं. इसलिए लोग उन्हें कई बार राह चलते भी रोक लेते हैं और इस कार के बारे में पूछते हैं. उन्हें इंडिया की कार सिडनी में देखकर अचंभा होता है. यहां जेमी मशहूर ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर स्टीव वॉ के साथ हैं.
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जेमी का लगाव
जेमी को भारत से गहरा लगाव है. इस कार में उन्होंने अपनी कई भारत यात्राओं की यादें सहेज कर रखी हैं, जिन्हें वह अपनी सवारियों के साथ भी बांटते हैं.
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कोविड के दौरान बंद रहने के बाद यह योजना अब फिर से शुरू कर दी गई है और चूंकि ऑस्ट्रेलिया इस वक्त कामगारों की भयंकर कमी से जूझ रहा है तो उसने ज्यादा से ज्यादा युवाओं को आकर्षित करने के मकसद से इस वीजा को मुफ्त में देने का ऐलान भी किया है.
पिछले हफ्ते वहां के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरीसन ने कहा, "हम बैकपैकर्स के लिए अपनी सीमाएं खोल रहे हैं. और अगर वे तीन महीने के भीतर यहां आएंगे तो उन्हें छूट भी देंगे. यहां आने के बाद उनकी वीजा फीस वापस कर दी जाएगी.”
क्या है बैकपैकर्स वीजा?
1975 में शुरू किया गया यह वीजा स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद दुनिया को जानने निकलना चाहने वाले युवाओं को ऑस्ट्रेलिया में घूमने के साथ-साथ छोटे-मोटे काम करने के लिए आकर्षित करने के मकसद से शुरू किया गया था.
हमेशा कामगारों की कमी से जूझने वाले देश ऑस्ट्रेलिया के लिए यह दोनों हाथों में लड्डू जैसी योजना साबित हुई. एक तो उसे वीजा फीस और पर्यटकों के रूप में धन मिला और खेतों व अन्य मौसमी उद्योगों में काम करने के लिए कर्मचारी भी मिले.
इस वीजा के तहत ऑस्ट्रेलिया घूमना चाहने वालों को अधिकतम 12 महीने के लिए यह वीजा दिया जाता है. इसी वीजा की फीस 495 डॉलर्स (लगभग 26,000 हजार रुपये) है जिसे फिलहाल लौटाया जा रहा है. आम टूरिस्ट वीजा से यह अलग है क्योंकि इस वीजा पर आने वाले लोग काम करने और पढ़ने के अधिकार रखते हैं.
देश के गृह मंत्रालय के मुताबिक वीजा सबक्लास 417 और सबक्लास 462 वीजा चुनिंदा देशों के 18 से 30 साल के युवाओं को (कनाडा, फ्रांस और आयरलैंड के मामले में यह आयु सीमा 18 से 35 वर्ष है) काम करने और चार महीने तक पढ़ाई करने का अधिकार देता है.
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भारतीयों को नहीं मिलता यह वीजा
ऑस्ट्रेलिया का बैकपैकर्स वीजा सिर्फ 19 देशों के लोगों को मिल सकता है. ये देश हैं बेल्जियम, कनाडा, साइप्रस, डेनमार्क, एस्टोनिया, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, आयरलैंड, इटली, जापान, दक्षिण कोरिया, माल्टा, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, स्वीडन, ताइवान और युनाइटेड किंग्डम.
ऑस्ट्रेलिया की विभिन्न वीजा श्रेणियों के लिए अप्लाई करने वालों में भारतीय सबसे ऊपर हैं. स्टूटेंड वीजा सबसे ज्यादा भारतीय छात्रों को ही मिलता है. इसके अलावा टूरिस्ट वीजा पर भी सबसे ज्यादा भारतीय ही ऑस्ट्रेलिया आते हैं. इसके बावजूद ऑस्ट्रेलिया में बैकपैकर्स वीजा पाने वालों की श्रेणी में भारतीय शामिल नहीं हैं.
ऑस्ट्रेलिया ने लौटाईं चुराई गईं कलाकृतियां
ऑस्ट्रेलिया ने चुराई गईं 14 कलाकृतियां भारत को लौटाने का फैसला किया है. जानिए, क्या है इन कलाकृतियों की कहानी...
तस्वीर: The National Gallery of Australia
गुजराती परिवार
यह है गुरुदास स्टूडियो द्वारा बनाया गया गुजराती परिवार का पोट्रेट. पिछले 12 साल से यह बेशकीमती पेंटिंग ऑस्ट्रेलिया नैशनल गैलरी में थी. इसे भारत से चुराया गया था और गैलरी ने एक डीलर से खरीदा था. अब गैलरी इसे और ऐसी ही 13 और कलाकृतियां भारत को लौटा रही है.
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बाल संत संबन्दार, तमिलनाडु (12वीं सदी)
नैशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया ने इसे 1989 में खरीदा था. कुछ साल पहले गैलरी ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसके तहत चुराई गईं कलाकृतियों के असल स्थान का पता लगाना था. दो मैजिस्ट्रेट के देखरेख में यह जांच शुरू हुई.
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नर्तक बाल संत संबन्दार, तमिलनाडु (12वीं सदी)
यह मूर्ति खरीदी गई थी 2005 में. गैलरी ने ऐसी दर्जनों मूर्तियों, चित्रों और अन्य कलाकृतियों का पता लगाया कि वे कहां से चुराई गई थीं.
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अलम, तेलंगाना (1851)
इस अलम को 2008 में खरीदा गया था. ऑस्ट्रेलिया की गैलरी अब 14 ऐसी कलाकृतियां भारत को लौटा रही है.
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जैन स्वामी, माउंट आबू, राजस्थान (11वीं-12वीं सदी)
2003 में खरीदी गई जैन स्वमी की यह मूर्ति दो अलग अलग हिस्सों में खरीदी गई थी. गैलरी का कहना है कि उसके पास अब एक भी भारतीय कलाकृति नहीं बची है.
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लक्ष्मी नारायण, राजस्थान या उत्तर प्रदेश (10वीं-11वीं सदी)
यह मूर्ति राजस्थान या उत्तर प्रदेश से रही होगी. इसे 2006 में खरीदा गया था. नैशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया 2014, 2017 और 2019 में भी भारत से चुराई गईं कई कलाकृतियां लौटा चुकी है.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
दुर्गा महिषासुरमर्दिनी, गुजरात, (12वीं-13वीं सदी)
इस मूर्ति को गैलरी ने 2002 में खरीदा था. गैलरी ने कहा है कि सालों की रिसर्च, सोच-विचार और कानूनी व नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए इन कलाकृतियों को लौटाने का फैसला किया गया है.
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विज्ञप्तिपत्र, राजस्थान (1835)
जैन साधुओं को भेजा जाने वाला यह निमंत्रण पत्र 2009 में गैलरी ने आर्ट डीलर से खरीदा था. गैलरी की रिसर्च में यह देखा जाता है कि कोई कलाकृति वहां तक कैसे पहुंची. अगर उसे चुराया गया, अवैध रूप से खनन करके निकाला गया, तस्करी करके लाया गया या अनैतिक रूप से हासिल किया गया तो गैलरी उसे लौटाने की कोशिश करेगी.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
महाराज सर किशन प्रशाद यमीन, लाला डी. दयाल (1903)
2010 में यह पोर्ट्रेट खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
मनोरथ, उदयपुर
इस पेंटिंग को गैलरी ने 2009 में खरीदा था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
हीरालाल ए गांधी, (1941)
शांति सी शाह द्वारा बनाया गया हीरा लाल गांधी का यह चित्र 2009 से ऑस्ट्रेलिया की गैलरी में था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
अनाम पोट्रेट, 1954
वीनस स्टूडियो द्वारा बना यह पोट्रेट 2009 में खरीदा गया था.
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अनाम पोर्ट्रेट, उदयपुर
एक महिला का यह अनाम पोर्ट्रेट कब बनाया गया, यह पता नहीं चल पाया. इसे 2009 में खरीदा गया था.
तस्वीर: The National Gallery of Australia
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सबसे ताजा उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर 2021 में एक लाख 96 हजार लोगों ने ऑस्ट्रेलिया में प्रवेश किया. इनमें से सबसे ज्यादा लोग सिंगापुर (3,170) से आए. दूसरे नंबर पर यूके (2,790) और तीसरे नंबर पर भारत (2,310) था. लेकिन यह उन परिस्थितियों के आंकड़े हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया की अंतरराष्ट्रीय सीमाएं बंद थीं और चुनिंदा वीजा धारकों को ही देश में प्रवेश की अनुमति थी.
इन आंकड़ों की तुलना अगर कोविड के पहले के हालात से की जाए तो पर्यटन से लेकर ऑस्ट्रेलिया का स्थायी वीजा और नागरिकता लेने वालों में भारतीयों की संख्या हाल के सालों में लगातार सबसे ऊपर रही है. इसलिए विशेषज्ञ हैरत जताते हैं कि भारतीयों को अब तक बैकपैकर वीजा के लिए क्यों योग्य नहीं माना गया है.
बातचीत जारी है
मेलबर्न स्थित ‘एजुकेशन ऐंड माइग्रेशन एक्सपर्ट्स' की डायरेक्टर और माइग्रेशन मामलों की विशेषज्ञ चमनप्रीत कहती हैं कि भारत को इस श्रेणी में शामिल करने के बारे में शामिल करने पर विचार तो लंबे समय से चल रहा है लेकिन उस पर अमल अब तक नहीं हो पाया.
चमन प्रीत बताती हैं, "ऑस्ट्रेलिया बैकपैकर्स वीजा अपने यहां कामगारों की कमी की भरपाई करने के लिए देता है. यूरोप से युवा यहां घूमने आते हैं और खेती के सीजन में खेतों में या अन्य उद्योगों में काम करते हैं, जो ऑस्ट्रेलिया की जरूरत है. इस लिहाज से देखा जाए तो भारत ऑस्ट्रेलिया का बड़ा साझीदार बन सकता है क्योंकि उसके पास विशाल मानव संसाधन हैं.”
जुलाई 2019 में ऑस्ट्रेलिया ने बैकपैकर्स वीजा श्रेणी के देशों की संख्या में विस्तार का ऐलान किया था. तब के इमिग्रेशन मंत्री डेविड कोलमन ने कहा था कि ऑस्ट्रेलिया इस वीजा श्रेणी के विस्तार के लिए 13 देशों से बात कर रहा है. इनमें भारत के अलावा ब्राजील, मेक्सिको, फिलीपीन्स, स्विट्जरलैंड, फिजी, सोलोमन आइलैंड्स, क्रोएशिया, लातविया, लिथुआनिया, ऐंडोरा, मोनाको और मंगोलिया शामिल हैं. लेकिन यह बातचीत अब तक आगे नहीं बढ़ पाई है.