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पुलिस फोर्स में महिलाओं की संख्या बढ़ाना क्यों है जरूरी?

४ सितम्बर २०२४

उत्तर प्रदेश में कॉन्स्टेबल के 60 हजार पदों के लिए भर्ती परीक्षा आयोजित की गई. इसमें 20 फीसदी पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. हालांकि, केंद्र सरकार के लक्ष्य के हिसाब से यह संख्या पर्याप्त नहीं है.

कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान तैनात पुलिकर्मी. यह तस्वीर सितंबर 2020 की है.
केंद्र सरकार चाहती है कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस बल में 33 फीसदी महिलाएं हों. अभी तक कोई भी राज्य यह लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है.तस्वीर: Aijaz Rahi/AP Photo/picture alliance

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की है कि अगले दो वर्षों में यूपी पुलिस एक लाख युवाओं को भर्ती करेगी. इनमें 20 फीसदी महिलाएं होंगी. वर्तमान में चल रही भर्ती प्रक्रिया में भी करीब 12 हजार पद महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. यह भर्ती पूरी होने के बाद राज्य में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या 45 हजार से ज्यादा हो जाएगी. इसके बाद भी उत्तर प्रदेश, केंद्र सरकार के तय किए लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएगा.

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केंद्र सरकार चाहती है कि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस बल में 33 फीसदी महिलाएं हों. अभी तक कोई भी राज्य यह लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है. दिसंबर 2023 में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में इससे जुड़े आंकड़े दिए थे. उनके अनुसार, 1 जनवरी 2022 तक देश भर की पुलिस फोर्स में सिर्फ 11.75 फीसदी महिलाएं थीं. यूपी में यह भागीदारी 10.75 फीसदी थी, जो राष्ट्रीय औसत से भी कम है. जानकारों का कहना है कि पुलिस फोर्स में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने की जरूरत है.

पुलिस फोर्स में महिलाओं की भागीदारी क्यों जरूरी

अनुकृति शर्मा 2020 बैच की आईपीएस अधिकारी हैं. वह फिलहाल यूपी के संभल जिले में एडिशनल एसपी के पद पर तैनात हैं. अनुकृति शर्मा मानती हैं कि पुलिस फोर्स में महिलाओं का होना, पूरे समाज के लिए बेहद जरूरी है. डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में उन्होंने कहा, "महिलाएं आधी आबादी हैं, इसलिए पुलिस में उनकी हिस्सेदारी जरूरी है ताकि उनकी आवाज सुनी जाए. उनका नजरिया समझा जाए."

अनुकृति शर्मा कहती हैं, "पीड़ित थाने में दर्द और परेशानियां लेकर आते हैं. जैसे किसी के यहां चोरी हो गई, मौत हो गई, दुर्घटना हो गई. ये सभी दर्दनाक स्थितियां होती हैं. इसलिए पुलिस में ऐसे लोगों की जरूरत होती है, जो पीड़ितों की बात धैर्य से सुनें. महिलाएं सामान्य तौर पर संवेदनशील होती हैं. इसलिए पुलिस फोर्स में हर स्तर पर महिलाओं का होना जरूरी है."

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लोकसभा में दिए गए आंकड़े बताते हैं कि 1 जनवरी 2022 तक देश भर में करीब ढाई लाख महिला पुलिसकर्मी थीं. इनमें से करीब 1 लाख 80 हजार कॉन्स्टेबल पद पर थीं. इंस्पेक्टर और इससे ऊपर की रैंक पर तैनात महिला पुलिस अधिकारियों की संख्या 6,000 से भी कम थी. आईपीएस अधिकारी अनुकृति शर्मा का मानना है कि पुलिस बल में काम कर रही महिलाओं के लिए ऊंचे पदों तक पहुंचना मुश्किल होता है क्योंकि विभाग में उनकी नेटवर्किंग उतनी अच्छी नहीं होती.

साल 2012 में हुए निर्भया मामले के बाद यह मुद्दा भी प्रमुखता से उठा कि पुलिस में पर्याप्त संख्या में महिलाएं होनी चाहिए. घटना के बाद बनी जस्टिस वर्मा कमेटी ने कहा कि पेट्रोलिंग और थानों में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाना जरूरी है, ताकि महिलाएं बिना डरे यौन शोषण और अन्य खतरों की शिकायत कर सकें.तस्वीर: Adarsh Sharma/DW

महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों पर असर की उम्मीद

यूपी के पूर्व पुलिस महानिदेशक और लेखक विभूति नारायण राय उम्मीद जताते हैं कि महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ने से महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में भी कमी आएगी. डीडब्ल्यू हिंदी से बातचीत में विभूति नारायण राय बताते हैं, "महिलाओं के साथ ज्यादा अपराध होते हैं. उन्हें सड़क पर चलते समय भी शारीरिक या मानसिक हिंसा का सामना करना पड़ सकता है. अगर महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ेगी, तो वे इन अपराधों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होंगी. वे महिलाओं की समस्याओं को पुरुष पुलिसकर्मियों की तुलना में बेहतर ढंग से समझ पाएंगी."

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जमीनी स्तर पर ऐसा होता भी है. महिलाओं से जुड़े अपराधों के केस में महिला पुलिसकर्मी अहम भूमिका निभाती हैं. रचना कुमारी (बदला हुआ नाम) यूपी पुलिस में कॉन्स्टेबल हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "थाने में शिकायत लेकर आने वाली महिलाओं की बात सबसे पहले एक महिला पुलिसकर्मी ही सुनती है. महिला चाहे पीड़ित हो या अभियुक्त, दोनों स्थितियों में महिला पुलिस ही कार्रवाई करती है."

गृह मंत्रालय की ओर से लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, साल 2013 में पूरे देश में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या एक लाख से कम थी, जो 2022 में बढ़कर करीब ढाई लाख हो गई.तस्वीर: Adarsh Sharma/DW

रचना कुमारी चाहती हैं कि यूपी में महिलाओं के लिए 20 की बजाय 30 फीसदी आरक्षण होना चाहिए. वह कहती हैं महिलाओं के साथ हो रहे अपराध बढ़ रहे हैं और थानों में महिला पुलिसकर्मियों की कमी है. केंद्र सरकार भी चाहती है कि हर पुलिस थाने में तीन महिला सब-इंस्पेक्टर और 10 महिला कॉन्स्टेबल हों, जिससे वहां महिला हेल्प डेस्क का ठीक ढंग से संचालन हो सके. 

साल 2012 में हुए निर्भया मामले के बाद भारत में महिला सुरक्षा पर काफी बात हुई. इस विमर्श में यह मुद्दा भी प्रमुखता से उठा कि पुलिस में पर्याप्त संख्या में महिलाएं होनी चाहिए. घटना के बाद बनी जस्टिस वर्मा कमेटी ने कहा कि पेट्रोलिंग और थानों में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाना जरूरी है, ताकि महिलाएं बिना डरे यौन शोषण और अन्य खतरों की शिकायत कर सकें. इसके बाद से महिला पुलिसकर्मियों की संख्या में इजाफा हुआ है. गृह मंत्रालय की ओर से लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, साल 2013 में पूरे देश में महिला पुलिसकर्मियों की संख्या एक लाख से कम थी, जो 2022 में बढ़कर करीब ढाई लाख हो गई.

महिला पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ बुनियादी ढांचे में सुधार की भी जरूरत है, ताकि महिला कर्मियों के काम करने के अनुभव को बेहतर किया जा सके. साफ-सुथरे शौचालय बुनियादी जरूरत हैं. बीते कुछ समय में इसमें सुधार हुआ है, लेकिन अब भी कई जगहों पर महिला कर्मियों के लिए शौचालय की व्यवस्था नहीं है. तस्वीर: Adarsh Sharma/DW

किस तरह बढ़ी महिलाओं की भागीदारी

'नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ विमिन इन पुलिस' के अनुसार, केरल महिलाओं को पुलिस में शामिल करने वाला पहला राज्य था. वहां 1933 में पहली बार त्रावणकोर शाही पुलिस में किसी महिला को शामिल किया गया था. आजादी के बाद कई राज्यों में महिलाओं की छिटपुट भर्तियां हुईं. हालांकि, 1981 में देश की पूरी पुलिस फोर्स में सिर्फ 3,000 महिलाएं थीं. वे पूरी पुलिस फोर्स की सिर्फ 0.4 फीसदी थीं.

विभूति नारायण राय इससे जुड़ा अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, "मैं 1975 में आईपीएस बना था. 1978 में मेरी पोस्टिंग बनारस में हुई. वहां पूरे जिले में लगभग 2,000 पुलिसकर्मी थे लेकिन महिला पुलिसकर्मी 8-10 ही थीं. उस समय यह एक सामाजिक रूढ़ि थी कि अच्छे और भले घर की लड़कियां पुलिस फोर्स में नहीं जातीं."

वह आगे बताते हैं, "धीरे-धीरे संवेदनशीलता बढ़ी है. अदालतों ने भी बहुत सारे फैसले दिए, जिनसे महिलाओं की भागीदारी बढ़ी. जैसे, किसी महिला को गिरफ्तार करने या तलाशी लेने के लिए महिला पुलिसकर्मियों का होना जरूरी कर दिया गया." विभूति नारायण राय का मानना है, "पुलिस फोर्स में 30 से 35 फीसदी महिलाएं तो होनी ही चाहिए. मुझे उम्मीद है कि अगले पांच-सात वर्षों में हम इस आंकड़े को हासिल कर लेंगे. महिलाओं की संख्या बढ़ने से पुलिस बल के व्यवहार में भी सुधार आने की उम्मीद भी कर सकते हैं." जानकारों के मुताबिक, महिला अधिकार की दिशा में ऐसे सभी क्षेत्रों में वर्कफोस के भीतर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना बेहद जरूरी है. 

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महिला पुलिसकर्मियों के लिए मुश्किलें

आमतौर पर पुलिस की नौकरी को कठिन माना जाता है. यहां वर्क-लाइफ बैलेंस दूर की कौड़ी है. हालांकि, कुछ परेशानियां बुनियादी ढांचे से जुड़ी हैं. जैसे शौचालय की दिक्कत, जो अब धीरे-धीरे कम हो रही है. कॉन्स्टेबल रचना कुमारी बताती हैं, "ज्यादातर थानों में महिलाओं के लिए शौचालय बन चुके हैं, लेकिन अभी भी कुछ जगहों पर उनकी व्यवस्था नहीं है."

एआई का इस्तेमाल न करने से महिलाओं के करियर पर क्या असर पड़ेगा?

अन्य कामकाजी महिलाओं की ही तरह महिला पुलिसकर्मियों के सामने एक चुनौती नौकरी के साथ-साथ परिवार को संभालने की भी होती है. पेशेवर जिम्मेदारियों के अलावा उनपर अतिरिक्त पारिवारिक दायित्व होते हैं क्योंकि परिवार के भीतर आज भी श्रम का बंटवारा समान नहीं है.    आईपीएस अनुकृति शर्मा कहती हैं, "महिलाएं घर से बाहर निकल चुकी हैं, लेकिन पुरुष अभी तक घरों में नहीं घुसे हैं. यानी घर की देखभाल करना, खाना बनाना और बच्चों की परवरिश करना, से सब जिम्मेदारी महिलाओं पर ही डाल दी जाती है. भले ही वह नौकरी में क्यों ना हों. ऐसा महिला पुलिसकर्मियों के साथ भी होता है."

अनुकृति शर्मा सुझाव देती हैं, "सरकार को अगले कुछ सालों के लिए ऐसी उदार नीतियां बनानी चाहिए, जो पुलिस में आने की इच्छा रखने वाली लड़कियों और महिलाओं का साथ दें. उनके सामने यह स्थिति नहीं आए कि उन्हें अपने परिवार और करियर में से किसी एक को चुनना पड़े."

कॉन्स्टेबल रचना कुमारी मानती हैं कि समस्याएं तो हैं, लेकिन कई पक्ष हैं जिनके कारण उन्हें पुलिस की नौकरी अच्छी लगती है. वह कहती हैं, "हमारे हिसाब से यह अच्छी नौकरी है. इसने हमें आत्मनिर्भर बनाया है. इसमें हमें वर्दी मिलती है, जो अपने आप में एक ताकत और बड़ा दायित्व है. पुलिस में आने के बाद हम काफी गौरवान्वित महसूस करते हैं. यह नौकरी हमें समाज में इज्जत दिलाती है."

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