भारत में हर दौर में एक नेता ऐसा होता है जो लोगों के लिए भगवान हो जाता है. लोग उसे इंसान मानने को राजी नहीं होते. लेकिन ऐसा क्यों होता है?
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जयललिता को श्रद्धांजलि देने के लिए लंबी लाइन में खड़े अन्नाद्रमुक के कार्यकर्ता शंकर कहते हैं, "मेरे लिए तो वह भगवान थीं." यह एक वाक्य उस पूरे दर्शन का प्रतीक है जिसके इर्द-गिर्द भारतीय राजनीति दशकों से घूम रही है. नेताओं को गरीब लोग अपना भगवान मानते हैं. और अपने इस कथित भगवान में उनकी श्रद्धा दशकों से उसी तरह बरकरार है, इसका सबूत जयललिता के अंतिम संस्कार में शामिल हुए लोगों की विशाल भीड़ देती है. ऐसी ही भीड़ भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की शवयात्रा में भी थी और महाराष्ट्र के नेता बाला साहेब ठाकरे की शवयात्रा में भी. इसकी तुलना क्यूबा के नेता फिदेल कास्त्रो या ब्रिटेन के प्रिंसेस डायना की शव यात्राओं से की जा सकती है.
तस्वीरों में, खास प्रतिभाओं के धनी भारतीय नेता
खास प्रतिभा के धनी 5 भारतीय नेता
कांग्रेस नेता डॉ. श्रीकांत जिचकर का नाम भारत के "सबसे योग्य व्यक्ति" के रूप में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज है. अनगिनत डिग्रियों के अलावा वे एक पेंटर, पेशेवर फोटोग्राफर और एक्टर भी थे. ऐसे कुछ और प्रतिभाशाली नेता-
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नरसिंहा राव, कांग्रेस
पूर्व प्रधानमंत्री राव को भारतीय साहित्य में गहरी दिलचस्पी के अलावा 17 भारतीय और विदेशी भाषाओं का ज्ञान भी था. इनमें फ्रेंच. स्पैनिश, अरबी, जर्मन, ग्रीक, फारसी और लैटिन भाषाएं शामिल हैं.
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अटल बिहारी वाजपेयी, बीजेपी
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ना केवल एक कुशल वक्ता बल्कि एक उम्दा कवि भी हैं. उनकी कविताओं का संकलन 'मेरी इक्यावन कविताएं" काफी लोकप्रिय हुई.
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बाल ठाकरे, शिव सेना
महाराष्ट्र में शिव सेना की स्थापना करने वाले कद्दावर नेता बाल ठाकरे एक मंझे हुए कार्टूनिस्ट भी थे. लोकसत्ता और दूसरे कई प्रमुख भारतीय अखबारों में ठाकरे के कार्टून प्रकाशित हुआ करते थे. वह अमेरिकी कलाकार और उद्यमी वॉल्ट डिज्नी के प्रशंसक थे.
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एम करुणानिधि, डीएमके सुप्रीमो
जीवन के 92 वसंत देख चुके करुणानिधि स्क्रीनप्ले लेखन से राजनीति में आए. द्रविड़ मुनित्र कड़गम नेता फिलहाल गणितज्ञ रामानुजम के जीवन पर आधारित एक मेगा टेलीविजन धारावाहिक लिख रहे हैं. अपने करीब 75 साल लंबे लेखन में पहले भी कई फिल्मों और नाटकों की कहानी लिखी है.
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राजीव प्रताप रूडी, बीजेपी
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में रूडी का नाम एकलौते भारतीय सांसद के रूप में दर्ज है जिसने एयरबस-320 व्यावसायिक हवाई जहाज उड़ाया है. उनके नाम 1,000 से भी अधिक घंटों की उड़ान भरने का श्रेय है.
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आजाद भारत ने इस तरह की पहली विशाल यात्रा 1948 में देखी थी जब महात्मा गांधी की हत्या हुई थी. उस शव यात्रा में लगभग 20 लाख लोग शामिल हुए थे. 1997 में मदर टेरेसा के जनाजे में भी लाखों लोग थे. 1969 में तमिल नेता सीएन अन्नादुराई की शवयात्रा में करीब 15 लाख लोग आए थे. इन सभी नेताओं में एक बात साझी थी. इन सभी को भारत के गरीबों का समर्थन हासिल था. वरिष्ठ टिप्पणीकार परसा वेंकटेश्वर राव कहते हैं, "जिन लोगों के पास अपनी कोई ताकत नहीं होती, उन लोगों को किसी तरह की उम्मीद चाहिए होती है. इस उम्मीद की खातिर ही वे कोई नेता तलाशते हैं. यह एक तरह का मनोवैज्ञानिक निर्भरता है."
जयललिता का राजनीतिक जीवन दागदार ही रहा. उन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे. दो बार जेल जा चुकी थीं. और अपने विशाल साड़ी संग्रह के लिए बदनाम भी थीं. बताया जाता है कि इनकम टैक्स के छापे में उनके यहां से 10,500 साड़ियां मिली थीं. लेकिन इसका असर उनके जनसमर्थन पर जरा भी नहीं था. उन्होंने गरीबों के लिए कई लोकलुभावन योजनाएं शुरू कीं जो काफी सफल रहीं. अम्मा कैंटीन में 3 रुपये में खाना और इलेक्शन के वक्त वोटरों को बकरियों से लेकर लैपटॉप तक जैसे तोहफे देना उनकी चर्चित योजनाएं रहीं. कॉलमनिस्ट शुभा सिंह कहती हैं कि ये योजनाएं लोगों को पसंद आती थीं. वह कहती हैं, "अर्थशास्त्री उनकी लोकलुभावन नीतियों की आलोचना करते हैं लेकिन लोगों के मन पर इन योजनाओं का गहरा असर था. उन्होंने जनता की नब्ज पकड़ ली थी. जनता और उनके बीच सीधा रिश्ता था."
यह भी देखिए, अलविदा कास्त्रो
अलविदा कास्त्रो
क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो ने 90 साल की उम्र में 25 नवंबर 2016 को दुनिया को अलविदा कह दिया. एक नजर उनके जीवन पर.
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महान क्रांतिकारी
फिदेल कास्त्रो का नाम उन बड़े नेताओं में शामिल है, जिनके लिए इतिहास में 20वीं सदी को जाना जाएगा.
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आलोचना
कास्त्रो ने लगभग पचास साल तक क्यूबा पर एकछत्र राज किया. उनके समर्थक जहां समाजवाद को बढ़ावा देने के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं, वहीं विरोधियों का कहना है कि उन्होंने अपने आलोचकों का उत्पीड़न और शोषण किया.
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मौत पर जश्न
अमेरिका के मियामी में रहने वाले क्यूबा मूल के बहुत से लोगों ने फिदेल कास्त्रो की मौत पर जश्न मनाया. मियामी को लिटिल हवाना कहा जाता है.
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अमीर किसान के बेटे
कास्त्रो का पूरा नाम फिदेल अलेयांद्रो कास्त्रो रूज था और उनका जन्म 13 अगस्त 1926 को हुआ था. उनके पिता एंजेल मारिया बाउतिस्ता कास्त्रो ई एरगिज एक अमीर किसान थे जो स्पेन से क्यूबा में जाकर बसे थे.
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नाजायज संतान
फिदेल जन्म के समय अपने पिता की नाजायज संतान थे. उनकी मां लिना रुज गोंजालेज फिदेल कास्त्रो के पिता के फार्म पर नौकरी करती थीं. दोनों की दोस्ती हो गई. फिदेल के जन्म के बाद दोनों ने शादी कर ली.
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शानदार वक्ता
कास्त्रो पढ़ाई में ज्यादा अच्छे नहीं थे, उनका मन खेलकूद में ज्यादा लगता था. हवाना यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए 1940 में कास्त्रो एक राजनीतिक कार्यकर्ता बन गए थे. वह गजब के वक्ता थे.
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सरकार के आलोचक
उनके निशाने पर होती थी क्यूबा की सरकार, जिसका नेतृत्व राष्ट्रपति रोमोन ग्राउ कर रहे थे. उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के बहुत आरोप थे.
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पूंजीवाद से समस्या
फिदेल कास्त्रो मानते थे कि क्यूबा की आर्थिक समस्याओं की वजह बेतहाशा पूंजीवाद है और इसका हल सिर्फ एक जनक्रांति है.
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तख्तापलट
1952 में फुलजेंसियो बातिस्ता ने सैन्य तख्तापलट में क्यूबा के राष्ट्रपति कारलोस प्रियो को सत्ता से बाहर कर दिया. लेकिन अमेरिका से उनकी नजदीकी और समाजवादी संगठनों पर कार्रवाई ने कास्त्रो की बुनियादी राजनीतिक सोच पर चोट की.
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द मूवमेंट
कानूनी रूप से लड़ाई में नाकाम रहने के बाद कास्त्रो ने द मूवमेंट नाम से एक संगठन बनाया ताकि भूमिगत रह कर बातिस्ता सरकार को उखाड़ा जा सके.
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हमला नाकाम
कास्त्रो ने जुलाई 1953 में सेंटियागो के पास मोनकाडा आर्मी बैरकों से हथियार लूटने की योजना बनाई. लेकिन हमला नाकाम रहा. बहुत से क्रांतिकारी मारे गए. कास्त्रो को जेल हुई. हालांकि 15 साल की सजा के बावजूद उन्हें सिर्फ 19 महीने ही जेल में काटने पड़े क्योंकि कैदियों को आम माफी के दौरान उन्हें भी रिहा कर दिया गया.
चे से मुलाकात
विरोधियों के खिलाफ बातिस्ता की कार्रवाई से बचने के लिए कास्त्रो मैक्सिको चले गए जहां उनकी मुलाकात एर्नेस्टो चे गुएरा नाम के एक युवा क्रांतिकारी से हुई.
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गुरिल्ला युद्ध
1956 में कास्त्रो 81 सशस्त्र साथियों के साथ क्यूबा लौटे. उन्होंने सिएरा माइस्त्रा की पहाड़ियों में शरण ली और दो साल तक सरकार के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध चलाते रहे.
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मिली सत्ता
2 जनवरी 1959 को विद्रोही सेना क्यूबा की राजधानी में दाखिल हुई और बातिस्ता को भागना पड़ा.
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गरीबों के लिए
नई सरकार में राउल कास्त्रो को प्रधानमंत्री का पद मिला. सरकार ने लोगों को उनकी जमीनें वापस देने और गरीबों के लिए हितों के काम करने का वादा किया.
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एक पार्टी का शासन
लेकिन देश में एक पार्टी वाला शासन लागू किया गया. हजारों लोगों को जेल भेजा गया जबकि कुछ लोग लेबर कैंपों में भेजे गए. मध्य वर्ग के हजारों लोगों ने क्यूबा छोड़ दिया.
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साजिशें
बताते हैं कि अमेरिका ने कई बार कास्त्रो की हत्या की साजिश रची और उनकी सरकार को गिराने की कोशिश भी की गई. लेकिन उन्हें हर बार नाकामी हाथ लगी.
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सत्ता छोड़ी
कास्त्रो 2008 में बिगड़ती तबियत के कारण राष्ट्रपति पद से हट गए. उनके छोटे भाई राउल कास्त्रो ने देश की बागडोर संभाली.
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कास्त्रो मतलब क्यूबा
अब क्यूबा की सरकार के साथ अमेरिका के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं. लेकिन एक पीढ़ी के लिए कास्त्रो का मतलब क्यूबा था और कास्त्रो का मतलब क्यूबा.
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पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर के साथ भी भारतीय जनमानस का रिश्ता देव और भक्त जैसा ही लगता है. जब वह खेल रहे होते थे तो स्टेडियम में "सचिन इज गॉड" जैसे बैनर और पोस्टर खूब दिखते थे. इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थकों को भी लोग भक्त कहते हैं क्योंकि वे मोदी पर अंधश्रद्धा रखते हैं. इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के संपादक प्रंजॉय गुहा ठाकुरता कहते हैं, "ऐसा तो नहीं है कि नेताओं के प्रति श्रद्धा का चलन भारत में अनोखा है, हां भारत में एक बात जरूर अलग है कि इन सभी नेताओं को सुपरह्यूमन समझा जाता है. वे इंसान से कहीं ज्यादा हो जाते हैं. उन्हें लोग मसीहाओं की तरह देखने लगते हैं. लगभग ईश्वर."
वेंकटेश्वर राव कहते हैं कि हमारा देश लोकतंत्र है जो जनता से चलता है. वह कहते हैं, "हम अपनी भावनाओं को जाहिर करते हैं. हम उन्हें रोक कर, छिपाकर नहीं रखते हैं."