प्लांट बेस्ड पेय पदार्थों पर यह फैसला अचानक नहीं आया है. लंबे समय से भारतीय डेयरी उद्योग इसके लिए खाद्य नियामक पर दबाव डाल रहा था. वैसे 'असली दूध' को लेकर ऐसी ही कुछ लड़ाइयां यूरोप और अमेरिका में भी चली हैं.
विज्ञापन
भारतीय फूड रेगुलेटर- फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने प्लांट बेस्ड पेय पदार्थों (बादाम का दूध, सोया मिल्क, अखरोट का दूध आदि) की कंपनियों को अपनी प्रचार सामग्री और लेबल से 'दूध' या 'मिल्क' शब्द हटाने को कहा है. ई-कॉमर्स कंपनियों से भी इन प्रोडक्ट्स को उनके दूध और डेयरी सेक्शन से हटाने के लिए कहा गया है.
इसका यह मतलब हुआ कि अब एमेजॉन इंडिया, फ्लिपकार्ट, बिगबास्केट और ग्रोफर्स जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर डेयरी कैटेगरी में बादाम और सोया दूध जैसे पेय पदार्थ नहीं मिलेंगे. यह फैसला अचानक नहीं आया है, लंबे समय से भारत का डेयरी उद्योग इसके लिए खाद्य नियामक पर दबाव डाल रहा था. वैसे भी यह बहस सिर्फ भारत की न होकर दुनिया के कई देशों की है. यूरोप और अमेरिका में भी ऐसी लड़ाइयां चली हैं.
चमका घोड़ी के दूध का कारोबार
02:38
इनमें एक ओर 'वीगन मिल्क' रहे हैं और दूसरी ओर बड़ी डेयरियां. लड़ाई का केंद्र एक ही होता है- 'असल दूध क्या है?' और भारत में फिलहाल यह लड़ाई डेयरी उद्योग ने जीत ली है.
असल दूध क्या है
हैंडबुक ऑफ फूड केमिस्ट्री के मुताबिक दूध में वसा, प्रोटीन, एंजाइम्स, विटामिन्स और शुगर होते हैं और यह स्तनधारी जीवों में उनके बच्चों के पोषण के लिए पैदा होता है. वहीं भारत के खाद्य नियामक FSSAI का मानना है कि 'दूध' स्वस्थ स्तनधारी जानवरों (दुधारू मवेशियों) को पूर्ण रूप से दुहने से निकलने वाला एक साधारण स्राव है.
अलग-अलग जगहों पर भले ही दूध को अलग तरह से परिभाषित किया गया हो लेकिन एक बात पर सभी सहमत हैं कि दूध का स्तनधारी प्राणियों से सीधा जुड़ाव है. लेकिन पिछले एक दशक में कई सारे ऐसे उत्पाद 'दूध' या 'मिल्क' शब्द का उपयोग करते हुए बाजार में आ गए हैं, जिनका स्तनधारी जीवों से कोई लेना-देना नहीं है. ऐसे उत्पाद हैं- आमंड मिल्क, सोया मिल्क, वॉलनट मिल्क और ओट मिल्क आदि.
मेवों और अनाजों की प्रॉसेसिंग के जरिए बनाए गए ये एक तरह के तरल पदार्थ होते हैं, जो दूध जैसे लगते हैं. इस कड़ी में अब आलू जैसे प्रतिद्वंदी भी जुड़ गए हैं. ये सभी पौधों पर आधारित पेय हैं लेकिन लोग इन्हें गाय-भैंस के आम दूध के संभावित विकल्पों के तौर पर अपना रहे हैं. जाहिर सी बात है भारत का डेयरी उद्योग इससे खुश नहीं है.
देखिएः गाय से नहीं, पौधों से मिलने वाला दूथ
गाय से नहीं, पौधों से बनने वाला दूध
भारत के ज्यादार घरों में गाय के दूध का इस्तेमाल होता है. लेकिन आजकल वीगन डायट का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. साथ ही कई लोगों को पांरपरिक दूध में पाए जाने वाले लैक्टोस से एलर्जी भी होती है. ऐसे लोगों के पास कुछ विकल्प हैं.
तस्वीर: Zacharie Scheuer/dpa/picture alliance
सोया का दूध
सभी प्लांट मिल्क की तुलना में सोया के दूध में सबसे ज्यादा प्रोटीन होता है. एक कप (240 एमएल) सोया के दूध में करीब 6 ग्राम प्रोटीन मिलता है. सोया मिल्क कैल्शियम और विटामिन डी से भी भरपूर होता है.
तस्वीर: kostrez/Zoonar/picture alliance
बादाम का दूध
बादाम के दूध की दुनिया में काफी डिमांड है. यह इसलिए क्योंकि बादाम खुद काफी पोषक है. इसमें प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, विटामिन ई और गुणकारी मोनोअनसैचुरेटेड फैट होता है. एक कप आल्मंड मिल्क में करीब 1 ग्राम प्रोटीन होता है. बादाम का दूध बच्चों और वयस्कों दोनें के लिए अच्छा विक्लप है, जिन्हें गाय या दूसरे जानवरों के दूध से एलर्जी है.
तस्वीर: Barbara Neveu/Zoonar/picture alliance
काजू का दूध
काजू के दूध का स्वाद मलाईदार होता है. यह विटामिन, खनिज, हेल्थी फैट और अन्य लाभकारी तत्वों से भरपूर है. यह इम्यूनिटी, दिल, आंख और त्वचा के लिए भी लाभदायक है.
तस्वीर: Elisabeth Cölfen/Shotshop/imago images
नारियल का दूध
कोकोनट मिल्क आजकल काफी ट्रेंड में है. यह सैचुरेटेड फैट से भरपूर होता है. एक कप नारियल के दूध में करीब 4 ग्राम प्रोटीन होता है. कोकोनट मिल्क का उपयोग अक्सर कई एशियाई व्यंजनों में किया जाता है.
तस्वीर: J. Pfeiffer/imageBROKER/picture alliance
चावल का दूध
सोया, पारंपरिक दूध और नट्स की तुलना में चावल में बहुत कम एलर्जेन होते हैं. इसमें करीब 1 ग्राम (एक कप) प्रोटीन होता है. जिन लोगों को लैक्टोस से एलर्जी है, उनके लिए यह एक अच्छा विकल्प है.
तस्वीर: Eva Gruendemann/Westend61/imago images
कीनूआ का दूध
कीनूआ एक तरह का अनाज है जिसे अक्सर सलाद के रुप में खाया जाता है. यह बाकी अनाजों की तुलना में ज्यादा प्रोटीन और फाइबर प्रदान करता है. यह ग्लूटेन-फ्री होता है और इसमें सभी आवश्यक अमीनो एसिड होते हैं. यह आयरन, मैग्नीशियम और जिंक से भरपूर है.
तस्वीर: Florian Kopp/imageBROKER/picture alliance
ओट/जई का दूध
ओट मिल्क का स्वाद सौम्य और मलाईदार होता है. गाय के दूध की तुलना में ओट मिल्क में अधिक विटामिन बी-2 होता है. ओट/जई के दूध का इस्तेमाल मीठे और नमकीन दोनों प्रकार के व्यंजनों में किया जाता है. एक कप ओट मिल्क में करीब 4 ग्राम प्रोटीन होता है.
तस्वीर: Zacharie Scheuer/dpa/picture alliance
तीसी का दूध
बाजार में कई तरह के दूध के विकल्पों के बीच फ्लैक्स मिल्क भी मिलता है. फ्लैक्स मिल्क में डेयरी मिल्क के मुकाबले कम कैलोरी और कम फैट होता है.
तस्वीर: Peter Himmelhuber/Zoonar/picture alliance
मटर का दूध
सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन चिंता की बात नहीं है क्योंकि इस दूध का स्वाद हरे मटर की तरह नहीं होता. मटर के दूध में एक तिहाई सैचुरेटेड फैट होता है. इसमें गाय के दूध की तुलना में 50 प्रतिशत ज्यादा कैल्शियम होता है.
तस्वीर: Nadezhda Soboleva/Zoonar/picture alliance
9 तस्वीरें1 | 9
ऐसे में नेशनल कॉपरेटिव डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया (NCDFI) और गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) की ओर से भारत के खाद्य नियामक के पास इनकी शिकायत की गई थी. GCMMF ही देशभर में अमूल के उत्पादों की सप्लायर है. ये संस्थाएं पिछले साल से ही यह कदम उठाए जाने की मांग कर रही थीं. डेयरी उद्योग से जुड़े लोगों का आरोप था कि 'दूध' या 'मिल्क' शब्द के प्रयोग से ग्राहकों को गुमराह किया जा रहा है.
विज्ञापन
दोनों ओर से दावे
डेयरी उद्योग से जुड़े लोग यह दावा भी कर रहे हैं कि प्लांट बेस्ड इन पेय पदार्थों में आम दूध जैसे पोषक तत्व नहीं होते. उनका एक आरोप यह भी है कि ये ब्रांड, किसानों की कई पीढ़ियों की मेहनत से बनी डेयरी मिल्क की पहचान का फायदा उठाने की कोशिश भी कर रहे हैं. मदर डेयरी के मैनेजिंग डायरेक्टर रहे संग्राम चौधरी कहते हैं, "मवेशियों और इंसानों के बीच का रिश्ता 10 हजार साल पुराना है. और दूध का मतलब सिर्फ दूध होता है. किसी अन्य उत्पाद को दूध कहकर नहीं बेचा जा सकता."
सफेद दूध का काला सच, तस्वीरों में
सफेद दूध का काला सच
गाय के दूध की भारी मांग के चलते इसका बाजार बहुत बड़ा है. लेकिन ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के लालच में डेयरी उद्योग में कुछ ऐसी क्रूर चीजें चलन में हैं, जिन्हें जान कर आपको दूध में सफेद नहीं, काला नजर आएगा.
तस्वीर: Colourbox
साक्ष्य की कमी
बच्चे हों या बड़े सबको दूध के चमत्कारी गुणों के बारे में शुरू से बताया जाता है. दैनिक पोषण में दूध से मिलने वाले प्रोटीन और कैल्शियम हों या विकास के लिए बेहद जरूरी दूध के गुण, घरवाले कहते हैं कि दूध पियो. लेकिन मेडिकल साइंस को दूध के इतने सारे करामाती गुणों के साक्ष्य नहीं मिले हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दूध से एलर्जी
गाय का दूध इंसान के दूध की तरह उसके अपने बच्चे के लिए निकलने वाला प्राकृतिक द्रव्य है. इसका अर्थ हुआ कि उसमें गाय के बच्चों के विकास के लिए मौजूद जरूरी तत्व इंसान के लिए पूरी तरह सही नहीं होते. जैसे कि गाय के दूध का कैल्शियम जिसे इंसान के शरीर में पचाना बहुत मुश्किल है. गाय के दूध के कई प्रोटीन भी इंसान की त्वचा में कई तरह की एलर्जी पैदा कर सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
घटती उम्र
कुछ भी हो, दूध दुनिया भर में लोकप्रिय है और उसकी मांग बनी हुई है. डेयरी उद्योग को किसी भी तरह दूध का उत्पादन बढ़ाना होता है. वर्तमान उत्पादकता को देखें तो प्रति गाय हर साल औसतन 20,000 लीटर तक दूध निकाला जा रहा है. इससे गायों की उम्र घटती है और वे औसतन 5 साल ही दूध देती हैं. आमतौर पर गाय 20 साल तक दूध दे सकती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कृत्रिम गर्भाधान
इंसानों की ही तरह गायों में भी बच्चे के जन्म के बाद ही दूध पैदा होता है. दूध की सप्लाई लगातार बनी रहे इसके लिए इन गायों को पालने वाले गायों को बार बार गर्भवती करवाते हैं. जमा कर रखे वीर्य से गायों का कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है. हर साल ऐसा कर गायों से तब तक दूध निचोड़ा जाता है जब तक वे ऐसा करने लायक नहीं रह जातीं. बंध्या होने के बाद गायों को बूचड़खानों में कटने भेज दिया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
मानसिक अवसाद
पैदा होने के पांच दिन के भीतर ही गाय के मादा बछड़ों को जबर्दस्ती उनकी मांओं से दूर कर दिया जाता है और उन्हें भी मांस और चमड़े के लिए बूचड़खाने भेज दिया जाता है. ऑस्ट्रेलिया जैसे कुछ देशों में तो यह कानूनन किया जाता है. कई देशों के डेयरी उद्योगों में प्रचलित है यह क्रूर परंपरा. लेकिन अपने बच्चों को खोने के बाद गाय भी दुख और मानसिक अवसाद से गुजरती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
क्रूर तरीका
डेयरी और पशुपालन उद्योग में मां-बच्चे जैसे किसी नैसर्गिक रिश्ते के लिए कोई जगह नहीं. ऑस्ट्रेलिया में बछड़ों को काटने का तरीका भी काफी क्रूर होता है. पांच दिन से कम के बछड़ों को एक जगह इकट्ठा किया जाता है और फिर बारी बारी से मौत के घाट उताया जाता है.
तस्वीर: AP
बछड़ों का कत्ल
इन क्रूर तरीकों के खिलाफ विरोध जताया गया तो यूरोप के पशुपालक और ब्रीडरों ने गाय के बछड़ों को कृत्रिम दूध देकर कैटल के रूप में इस्तेमाल करने का रास्ता निकाला, बच्चे फिर भी मां से तो दूर ही रहे. जब भी दूध की कीमतें गिरती हैं तो उत्पादन का खर्च बचाने के लिए किसान ज्यादा बछड़ों को मारने लगते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Balk
7 तस्वीरें1 | 7
वहीं प्लांट बेस्ड दुग्ध उत्पाद बेचने वाली कंपनियां दावा करती हैं कि दूध का जानवरों से कोई लेना देना नहीं है. सालों से 'कोकोनट मिल्क' नाम का इस्तेमाल होता आ रहा है और आज भी इसे इसी नाम से जाना जाता है. हालांकि ऐसे तर्कों के बावजूद फिलहाल डेयरी इंडस्ट्री को जीत मिल चुकी है. नियामक ने भी दूध को लेकर चली बहस में उनका साथ दिया है.
डेयरी उद्योग का लंबा संघर्ष
ऐसी लड़ाई पहली बार हुई हो, ऐसा भी नहीं है. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जब वनस्पति तेल उत्पादकों ने इसकी मार्केटिंग 'वनस्पति घी' के तौर पर की थी, तब भी डेयरी उद्योग उनके खिलाफ खड़ा हो गया था. उनका दावा था कि घी को सिर्फ दूध में पाई जाने वाली वसा से ही निकाला जा सकता है. इसी तरह जब आइसक्रीम में दुग्ध उत्पादों की जगह वनस्पति तेल का प्रयोग शुरू हुआ, तब भी उन्होंने इस उद्योग पर ग्राहकों को गुमराह करने का आरोप लगाया.
यहां तक कि वे 'पीनट बटर' को भी निशाना बना चुके हैं, उनका तर्क है कि मूंगफली से मक्खन नहीं निकाला जा सकता. मतलब साफ है कि डेयरी उद्योग दुग्ध उत्पादों को बचाने के लिए सब कुछ करने को तैयार है. नियामक के फैसले के बाद GCMMF (अमूल) के मैनेजिंग डायरेक्टर आरएस सोढ़ी कहते हैं, "द फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स का 13वां सुधार कानून 1 जुलाई, 2018 से लागू है जो प्लांट बेस्ड पेय पदार्थों को डेयरी उत्पाद की कसौटी का उल्लंघन करने वाला मानता है. ऐसे में यह एक स्वागत योग्य कदम है."
असर पड़ना तय
आरएस सोढ़ी ने यह भी कहा, "यह कदम 10 करोड़ दूध उत्पादकों और किसानों के हितों की रक्षा करेगा. पौधों पर आधारित पेय पदार्थों का ज्यादातर कच्चा माल आयातित होता है. ऐसे में कड़े कानून न सिर्फ डेयरी किसानों की रक्षा करेंगे बल्कि ऐसे पदार्थों का निशाना बन सकने वाले ग्राहकों की भी."
हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि दूध के विकल्प के तौर पर नए उत्पादों को अपना रहे लोगों को शायद ही नाम बदलने से कोई खास फर्क पड़े. हां यह जरूर होगा कि अब इन पेय पदार्थों को ढूंढने में मुश्किल होगी क्योंकि यह वेबसाइट के डेयरी सेक्शन के बजाए पेय पदार्थों वाले सेक्शन में मिलेंगे. ऐसे में यह भी जाहिर है कि इससे ब्रांड पर लोगों का विश्वास कमजोर होगा, जिसका इनकी बिक्री पर असर होगा. यानी FSSAI का यह कदम फिलहाल प्लांट बेस्ड पेय पदार्थ बनाने और बेचने वालों के लिए बेहद बुरी खबर है.