भारत में आईटी कंपनियों को क्यों भेजे जा रहे हैं टैक्स नोटिस
२ अगस्त २०२४
कर्नाटक सरकार ने इंफोसिस को भेजे गए 32,403 करोड़ रुपयों के टैक्स नोटिस को वापस ले लिया है, लेकिन यह विवाद अभी खत्म नहीं हुआ है. आखिर क्यों भेजे जा रहे हैं ये टैक्स नोटिस?
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आईटी कंपनी इंफोसिस ने जानकारी दी है कि कर्नाटक सरकार ने उसे भेजा जीएसटी से संबंधित टैक्स नोटिस वापस ले लिया है. कंपनी का यह भी कहना है कि उसकी जगह डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस को अपना जवाब भेजने के लिए कहा गया है.
इंफोसिस को भेजे गए 32,403 करोड़ रुपयों के जीएसटी नोटिस के मुताबिक, यह नोटिस उसे उन सेवाओं के लिए भेजा गया था जो उसने पांच सालों तक (2017 से 2022) अपनी विदेशी शाखा से ली थी. कई भारतीय आईटी कंपनियों की विदेशी शाखाएं हैं जो उनके प्रोजेक्ट पर काम करती हैं और उनके अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को भी सेवाएं देती हैं.
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कंपनी का टैक्स भुगतान से इनकार
टैक्स में मांगी गई यह राशि इंफोसिस के सालाना मुनाफे से भी ज्यादा है. बल्कि यह कंपनी के इसी तिमाही की लगभग पूरी कमाई के बराबर है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस साल अप्रैल-जून तिमाही में इंफोसिस की कमाई 39,315 करोड़ रही और कंपनी ने 6,368 करोड़ मुनाफा कमाया.
कंपनी ने गुरुवार एक अगस्त को स्टॉक एक्सचेंज को दी गई जानकारी में कहा कि इन खर्चों पर जीएसटी नहीं लगना चाहिए. कंपनी ने यह भी कहा कि हाल ही में जारी किए गए सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्स एंड कस्टम्स के एक सर्कुलर के मुताबिक इन सेवाओं पर जीएसटी नहीं लगना चाहिए.
हालांकि सरकार ने इस बात को नहीं माना है और फिल्हाल इंफोसिस को अपना जवाब भेजने के लिए कहा है. आईटी कंपनियों के संगठन नैस्कॉम ने भी इंफोसिस का समर्थन किया है और कहा है कि यह टैक्स नोटिस इस उद्योग के ऑपरेटिंग मॉडल के बारे में समझ की कमी को दिखाता है.
नैस्कॉम ने यह भी कहा कि लंबे समय से कई कंपनियां इस तरह के नोटिस का सामना कर रही हैं, जिसकी वजह से उनका समय और संसाधन मुकदमों में जाया हो रहे हैं, अनिश्चितताएं पैदा हो रही हैं और निवेशक और ग्राहक भी चिंता में हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक और भी आईटी कंपनियों को ऐसे टैक्स नोटिस भेजे जा सकते हैं. इस मामले की जानकारी रखने वाले एक वरिष्ठ टैक्स अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि यह "मामला पूरे उद्योग" में फैला हुआ है.
क्या मिसाल बनाना चाहती है सरकार?
इस अधिकारी ने अपना नाम नहीं बताया क्योंकि उन्हें मीडिया से बात करने की इजाजत नहीं है. रॉयटर्स ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय को इस विषय पर एक ईमेल भी भेजी लेकिन मंत्रालय से जवाब नहीं मिला.
जीएसटी के ढांचे की वजह से सरकारी खजाने पर तालाबंदी की मार
तालाबंदी लागू होने के बाद से जीएसटी के तहत होने वाली सरकार की कमाई में गिरावट आई है. जानिए काम-धंधे शुरू हो जाने के बाद भी क्यों गिर रही है जीएसटी वसूली से होनी वाली सरकारी आय.
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वसूली में कमी
जीएसटी वसूली से होने वाली सरकारी कमाई में पिछले साल के मुताबिक लगातार गिरावट आ रही है. जहां पिछले साल अप्रैल के महीने में 1,13,865 करोड़ रुपयों की वसूली हुई थी, इस साल अप्रैल में सिर्फ 32,172 करोड़ रुपए आए.
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तालाबंदी का असर
मई में जीएसटी वसूली लगभग दोगुनी हो कर 62,151 करोड़ तक जरूर पहुंची, लेकिन यह संख्या भी मई 2019 के 1,00,289 करोड़ रुपयों के मुकाबले काफी कम रही. सरकार ने कहा है कि महामारी की वजह से 2020-21 वित्त वर्ष में जीएसटी वसूली से कमाई में 2.35 लाख करोड़ रुपए की कमी आई है.
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करदाताओं की मेहरबानी
जून में इसमें और वृद्धि हुई और वसूली की राशि 90,917 करोड़ रुपयों पर पहुंच गई. लेकिन फिर भी यह एक साल पहले के 99,939 करोड़ रुपयों से कम ही रही. सरकार का कहना है कि जून में बड़ी संख्या में करदाताओं ने फरवरी, मार्च और अप्रैल का टैक्स भी जमा किया क्योंकि उन्हें जून तक कॉविड-19 की वजह से छूट मिली हुई थी.
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असलियत
जुलाई में इसी वजह से जीएसटी वसूली की रकम में संशोधन हुआ और वो गिर कर 87,422 करोड़ पर आ गई. यह जुलाई 2019 की वसूली (10,2082 करोड़ रुपए) के मुकाबले 14 प्रतिशत कम है.
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स्वाभाविक कमी
जानकारों का कहना है कि जीएसटी की वसूली में कटौती होना स्वाभाविक है, क्योंकि एक तो कई काम-धंधे और खरीद-बिक्री अभी भी बंद हैं, दूसरे तालाबंदी में ढील के बाद से जो आर्थिक गतिविधि शुरू हुई है वो उन्हीं उत्पादों और सेवाओं में हो रही है जिन पर कम दर से जीएसटी लगता है.
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जीएसटी का ढांचा
जीएसटी का ढांचा ही ऐसा है कि जरूरी सेवाएं और खाने-पीने की चीजों को निचली कर श्रेणी में रखा गया है, विलास यानी लक्जरी सेवाओं और वस्तुओं को ऊंची कर श्रेणी में रखा गया है. तालाबंदी में ढील भी सिर्फ जरूरी सेवाओं और उत्पादों की बिक्री में दी गई है. लक्जरी श्रेणी की सेवाएं तो अब तक बंद हैं.
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जीएसटी से छूट
रोज की खपत के सामान जैसे फल, सब्जियां, दूध, आटा, नमक, किताबें, अखबार और 1,000 रुपए से कम किराए वाले होटलों पर जीएसटी लगता ही नहीं. तालाबंदी में भी इनमें से अधिकतर चीजें बिक ही रही थीं.
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आवश्यक वस्तुएं
दवा, चाय, कॉफी, मसाले, पैकेज्ड खाने-पीने की चीजों, खाद, रेल टिकटों, इकोनॉमी श्रेणी की हवाई टिकटों और छोटे रेस्तरां इत्यादि पर पांच प्रतिशत जीएसटी लगता है. यह भी लगभग आवश्यक वस्तुएं ही हैं और इनकी भी खपत हो रही है.
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12 प्रतिशत जीएसटी
मक्खन, चीज, घी, ड्राई फ्रूट, मोबाइल फोन, ताश, शतरंज और कैरम जैसे खेल, 1,000 रुपये से ज्यादा महंगे कपड़े, बिना एसी वाले रेस्त्रां, बिजनेस श्रेणी के हवाई टिकट, काम के अनुबंधों जैसी चीजों पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगता है. ये चीजें थोड़ी महंगी हैं और जिनके बजट सीमित हैं वो इन पर खर्च नहीं कर रहे हैं.
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लक्जरी की ओर
बिस्किट, कॉर्नफ्लेक्स, केक, पेस्ट्री, जैम, सूप, आइसक्रीम, कैमरा, स्पीकर, प्रिंटर, नोटबुक, स्टील का सामान, शराब परोसने वाले एसी रेस्त्रां, पांच-सितारा और लक्जरी होटलों के अंदर स्थित रेस्त्रां, टेलीकॉम सेवाएं, आईटी सेवाएं, ब्रांडेड कपड़े इत्यादि पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है. होटल, रेस्त्रां हाल तक बंद थे.
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शुद्ध लक्जरी श्रेणी
बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, डिओडरंट, शेविंग क्रीम, शैम्पू, वाटर हीटर, वॉशिंग मशीन, गाड़ियां, मोटरसाइकिलें, पांच-सितारा होटलों के किराए और 100 रुपए से महंगे सिनेमा-घर के टिकट इत्यादि पर 28 प्रतिशत जीएसटी लगता है. सिनेमाघर अभी भी बंद हैं और गाड़ियों की बिक्री पहले से काफी कम हो रही है.
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जानकारों के मुताबिक इसी तरह के कथित उल्लंघन के लिए और भी नोटिस भेजे जा सकते हैं. अकाउंटिंग कंपनी मूर सिंघी में निदेशक रजत मोहन का कहना है, "इस तरह के बड़ी राशि वाले कारण-बताओ नोटिस को जारी कर एक मिसाल पेश की जा सकती है, जिसके बाद दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों (विशेष रूप से आईटी कंपनियों) को इसी तरह के नोटिस भेजे जाने की संभावना है."
कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि इंफोसिस को एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है. लॉ फर्म रस्तोगी चेम्बर्स के संस्थापक अभिषेक रस्तोगी के मुताबिक, "इंफोसिस के लिए व्यावहारिक समाधान यही है कि वो अदालत जाए और इस कार्यवाही पर स्टे आर्डर हासिल करे."
उन्होंने यह भी कहा कि जिन सेवाओं की बात की जा रही है वो भारत से बाहर दी गईं और इस वजह से कंपनी को भारत में कोई टैक्स नहीं देना चाहिए. हालांकि पिछले साल भर में जीएसटी विभाग कंपनियों को 1,000 से ज्यादा नोटिस भेज चुका है. इनमें जीवन बीमा निगम (एलआईसी), डॉक्टर रेड्डीज लैबोरेट्रीज और अल्ट्राटेक सीमेंट जैसे कंपनियां शामिल हैं.
टैक्स अधिकारियों ने ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों को भी नोटिस भेजे हैं और कुल एक लाख करोड़ रुपये टैक्स मांगा है. कंपनियों ने इन टैक्स नोटिसों को अधिकरणों और अदालतों में चुनौती दी हुई है.