जानकार मानते हैं कि भारत के बड़े आकार से अलग इस तरह की प्रवृत्ति के पीछे कई तरह की खींचतान और अनोखी काबिलियत है. प्रॉब्लम सॉल्विंग, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और लगातार कड़ी मेहनत करने की क्षमता भी इसमें अहम रोल निभाती है.
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ट्विटर के नए सीईओ पराग अग्रवाल भारत के प्रतिष्ठित आईआईटी संस्थान के भूतपूर्व स्टूडेंट्स के क्रम में नए जुड़ गए हैं, जिन्हें अमेरिका की सबसे बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों में से एक की कमान सौंपी गई है. अब शिवानी नंदगांवकर उन्हीं के पदचिन्हों पर चलना चाहती हैं.
22 साल की शिवानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे की स्टूडेंट हैं जिस संस्थान से पराग अग्रवाल ने भी पढ़ाई की है. शिवानी को भी गूगल में प्लेसमेंट मिल गया है और वे भी उन हजारों आईआईटी ग्रैजुएट्स में शामिल हो चुकी हैं, जो भारतीय संस्थानों से निकलकर बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों में जाते हैं.
वे कहती हैं, "जब मैंने पराग के बारे में सुना तो मुझे बहुत खुशी हुई. एक आईआईटीयन गूगल का भी सीईओ है, सुंदर पिचाई. इसलिए अब मेरे लिए सफलता की सीढ़ियों का यही मतलब था."
बड़ी कंपनियों के सबसे बड़े पदों पर
पराग अग्रवाल, एस ऐंड पी 500 में शामिल किसी कंपनी के सबसे कम उम्र के सीईओ हैं. वे अभी मात्र 37 साल के हैं. गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट के 49 साल के सीईओ सुंदर पिचाई की तरह ही उन्होंने भी भारत को अपनी आईआईटी की पढ़ाई पूरी करने के बाद छोड़ दिया था. फिर उन्होंने अमेरिका से ही पोस्टग्रैजुएशन किया और यहां कई कंपनियों में काम भी किया.
अन्य भारतीय, जो ऊंचे कॉरपोरेट पदों पर रहे हैं, उनमें हैं आईबीएम के अरविंद कृष्णा और पॉलो ऑल्टो नेटवर्क्स के निकेश अरोड़ा. ये दोनों भी आईआईटी के ही स्टूडेंट रहे हैं. माइक्रोसॉफ्ट के सत्या नडेला और अडोबी के शांतनु नारायण का नाम भी इसी क्रम में आता है.
भारतीय सबसे आगे क्यों?
बड़ी कंपनियों के अधिकारी और एक्सपर्ट कहते हैं कि भारत के बड़े आकार से अलग इस तरह की प्रवृत्ति के पीछे कई तरह की खींचतान और अनोखी काबिलियत है. साथ ही प्रॉब्लम सॉल्विंग की संस्कृति, अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और लगातार कड़ी मेहनत कर सकने की क्षमता भी इसमें अहम रोल निभाती है.
ऐसा होगा हमारा गूगल फ्यूचर
इंटरनेट का चेहरा बदलने के बाद अब गूगल हमारी आम जिंदगी भी बदलने जा रहा है. गूगल के सीईओ सुंदर पिचई इसका एलान भी कर चुके हैं. कैसा होगा हमारा गूगल फ्यूचर.
तस्वीर: samhoud media
गूगल एसिस्टेंट
ये फोन में छुपा एक स्मार्ट सहायक होगा. शुरुआत में एप्पल से पिछड़ने के बावजूद गूगल का दावा है उसका एसिस्टेंट एप्पल के सिरी से ज्यादा स्मार्ट होगा. आपके एक निर्देश पर फोन खुद बात करके टैक्सी या एंबुलेंस को बुला लेगा. जटिल से जटिल सवालों का भी ये एसिस्टेंट आपको पढ़कर ऑडियो उत्तर देगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/B. Roessler
हमसाया सा एसिस्टेंट?
आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस की मदद से गूगल एसिस्टेंट आपके व्यवहार पर नजर रखेगा. यह आपकी भाषा और लिखने के तरीके को भी याद करेगा. धीरे धीरे एसिस्टेंट आपको इतना करीब से जानने लगेगा कि वह हर चीज में मदद करने लगेगा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
दुनिया देखने का नया अंदाज
सुंदर पिचई के मुताबिक आप न्यूयॉर्क में कहीं खड़े हो जाइये, एक फोटो लीजिए और गूगल एसिस्टेंट से पूछिये कि यह ईमारत किसने डिजायन की. सहायक तुरंत आपको सटीक जानकारी मुहैया करा देगा. आप फोटो लेकर पेड़ पौधों या अथाह चीजों के नाम खोज सकते हैं और उनकी जानकारी भी पा सकते हैं.
तस्वीर: picture alliance/Arco Images
कम होगी टेंशन
फिलहाल गूगल मैप्स मंजिल तक तो पहुंचा देता है, लेकिन खाली पार्किंग की जानकारी नहीं दे पाता. भविष्य में गूगल एसिस्टेंट और मैप साथ में काम करेंगे और गाड़ी पार्क करने की जगह भी बताएंगे. साथ ही फ्लाइट, सिनेमा, स्टेडियम, ट्रेन या किसी इवेंट की बुकिंग का भी ख्याल फोन रखेगा.
एंड्रॉयड एन
स्मार्टफोन के ऑपरेटिंग सिस्टम में फिलहाल गूगल के एंड्रॉयड और एप्पल के आईओएस का ही दबदबा है. इस कड़े मुकाबले में आगे निकलने के लिए गूगल ने एंड्रॉयड एन पेश किया है. इसमें मोबाइल स्क्रीन पर एक साथ दो ऐप चलाए जा सकते हैं. फिलहाल एक बार में एक ही ऐप इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/C. Kerkmann
इनस्टेंट ऐप
अभी नया ऐप इनस्टॉल करने के लिए डाउनलोड पूरा होने का इंतजार किया जाता है. कभी कभार इसमें बहुत समय लगता है. इनस्टेंट ऐप इस झंझट से निजात दिलाएगा. डाउनलोड शुरू होते ही आप ऐप के कई फीचर्स इस्तेमाल करना शुरू कर सकते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Google
डेड्रीम
गूगल ने अपनी आभासी दुनिया को डेड्रीम नाम दिया है. एप्पल, फेसबुक या सैमसंग के उलट गूगल की आभासी दुनिया में किसी भी स्मार्टफोन से दाखिल हुआ जा सकेगा.
तस्वीर: TU Bergakademie Freiberg/Wolfgang Thieme
ऑलओ
ऑलओ के जरिये गूगल फेसबुक की मैसेजिंग सर्विस व्हॉट्सऐप को टक्कर देना चाहता है. ऑलओ गूगल की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर निर्भर होगा. जैसे किसी दोस्त ने मुस्कुराती हुई तस्वीर भेजी तो यह "बहुत सुंदर फोटो" जैसा संदेश तैयार कर लेगा. मैसेजिंग बॉक्स के अहम संदेश भी याद दिलाएगा.
तस्वीर: picture-alliance/HOCH ZWEI
ऑल इन वन
अलग अलग ब्रांड के टीवी, स्मार्टफोन या कंप्यूटर को फिलहाल एक दूसरे से कनेक्ट करना आसान नहीं होता. किसी में कुछ इनस्टॉल करना पड़ता है, किसी में कुछ. सुंदर पिचई ने एलान किया है कि गूगल इस दीवार को गिरा देगा. अलग अलग मशीनों को आपस में कनेक्ट करना आसान कर देगा. गूगल ने अपना होम थिएटर भी लाएगा.
तस्वीर: Fotolia/Matthias Buehner
कब होगा ऐसा
गूगल के मुताबिक 2016 के अंत से यह नई चीजें बाजार में आने लगेंगी. ऑपरेटिंग सिस्टम और गूगल एसिस्टेंस नेक्सस फोन के नए वर्जन के साथ आएंगे.
तस्वीर: Colourbox
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आईआईटी ग्रैजुएट और सन माइक्रोसिस्टम्स के को-फाउंडर विनोद खोसला मानते हैं कि अलग-अलग समुदायों, रिवाजों और भाषाओं के बीच बड़े होने की वजह से भारतीयों में कठिन परिस्थितियों में भी रास्ता निकाल लेने की समझ होती है.
अरबपति वेंचर कैपिटलिस्ट खोसला कहते हैं, "आईआईटी की कठिन भारत में पढ़ाई में प्रतिस्पर्धा और सामाजिक उठापटक उनकी काबिलियत को बढ़ाने में मदद करती हैं."
भारत से निकले बॉस सफल
सिलिकॉन वैली में ऊंचे पदों पर बैठे लोगों में टेक्निकल विशेषज्ञता के साथ ही, अलग-अलग समुदायों को संभालने और अनिश्चितता के बीच आंतरप्रेन्योरशिप जैसी विशेषताओं की जरूरत होती है. अकादमिक जगत से जुड़े भारतीय-अमेरिकी विवेक वाधवा कहते हैं, रचनात्मकता दिखाते हुए आपको हमेशा नियम तोड़ने होते हैं, आपको निडर होना चाहिए. और... आप भारत में हर रोज बिना कोई नियम तोड़े, बिना अक्षम नौकरशाही और भ्रष्टाचार से जूझे बिना रह ही नहीं सकते.
बॉस से इतना कम है वेतन
इंसानी काम की क्या कीमत है? एक कामगार और मैनेजर के सामान्य वेतन में अंतर का तो सबको अंदाजा था, लेकिन खाई कितनी बड़ी है इसका पता ब्लूमबर्ग इंस्टीच्यूट ने किया है.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
जर्मनी
ब्लूमबर्ग इंस्टीच्यूट के सर्वे के अनुसार जर्मनी में मैनेजरों को कामगारों के मुकाबले औसत 175 गुना ज्यादा तनख्वाह मिलती है.
तस्वीर: picture alliance/dpa/J. Woitas
जर्मनी के पड़ोसी
जर्मनी के पड़ोसी देश नीदरलैंड्स, स्पेन और स्विट्जरलैंड में मैनेजरों की तनख्वाह जर्मनी से थोड़ी ही आगे पीछे हैं. 172 से 179 प्रतिशत.
तस्वीर: Lanxess AG
ब्रिटेन
ब्रिटेन में यह अंतर जर्मनी से कहीं ज्यादा है. वहां मैनेजरों को कामगारों की आय के मुकाबले 228 गुना ज्यादा वेतन मिलता है.
तस्वीर: AP
अमेरिका
अमेरिका सही मायने में पूंजीवाद का गढ़ है. वहां ये अंतर और ज्यादा है. कामगारों के मुकाबले मैनेजरों को 299 गुना मिलता है.
तस्वीर: Getty Images/B. Pugliano
दक्षिण अफ्रीका
ऐसा नहीं है कि अमीर लोग औद्योगिक देशों में रहते हैं. दक्षिण अफ्रीका में मैनेजरों को कामगारों के मुकाबले 541 गुना मिलता है.
तस्वीर: dapd
भारत
और भारत. भारत भी दक्षिण अफ्रीका से ज्यादा पीछे नहीं. यहां के मैनेजर गरीबी की परवाह किये बिना मजदूरों का 483 गुना लेते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Gupta
चीन
चीन में कंपनियों के सीईओ को कामगारों की तुलना में ब्लूमबर्ग के सर्वे के अनुसार 43 गुना ज्यादा वेतन मिलता है.
तस्वीर: Reuters/China Daily
थाइलैंड
सर्वे में 25 देशों की सूची में सबसे अच्छी जगह थाइलैंड के पास है जहां सीईओ को कामगारों का 4 गुना वेतन मिलता है.
तस्वीर: International Labour Organization
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वह कहते हैं, "जब आपको सिलिकॉन वैली में रचनात्मकता दिखानी होती है तब ये काबिलियत काफी काम आती हैं क्योंकि आपको हमेशा सत्ता को चुनौती देनी होती है. और ये चीजें कीमती हैं, टैक्सी सेवाएं देने वाली बड़ी कंपनी उबर ने इस महीने आईआईटी बॉम्बे के स्टूडेंट्स को अमेरिका में प्लेसमेंट के दौरान 2.74 लाख डॉलर यानी 2 करोड़ रुपये से ज्यादा का पैकेज दिया है.
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अच्छे से अच्छा टैलेंट
130 करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले देश में इस तरह के इनामों का कॉम्पटीशन पढ़ाई पर ध्यान दिए जाने के साथ काफी पहले ही शुरु हो गया था. आईआईटी को भारत की सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी के तौर पर देखा जाता है और इसकी 16 हजार सीटों के लिए हर साल 10 लाख से भी ज्यादा स्टूडेंट्स अप्लाई करते हैं.
पिछले डेढ़ साल से नंदगांवकर हफ्ते के सातों दिन 14 घंटों से भी ज्यादा पढ़ाई करती हैं. वे बताती हैं कि कुछ स्टूडेंट्स तो इसके लिए 14-15 साल की उम्र से ही पढ़ाई शुरु कर देते हैं.
विवेक वाधवा कहते हैं, "एक ऐसी प्रवेश परीक्षा के बारे में सोचिए जो एमआईटी और हार्वर्ड से 10 गुना ज्यादा कठिन हो. बस वही आईआईटी है. तो इसमें देश के बेहतर से बेहतर टैलेंट आते हैं."
भारत से बाहर क्यों निकले आईआईटीयन
आईआईटी का नेटवर्क 1950 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्थापित किया गया था, जो 1947 में ब्रिटिश शासन के अंत के बाद नए भारत के निर्माण के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग के ग्रैजुएट्स का एक समूह बनाना चाहते थे.
लेकिन इंजीनियर्स की सप्लाई सीमित घरेलू मांग से आगे निकल गई. तो ये ग्रैजुएट्स भारत के बाहर, खासकर अमेरिका में नौकरी के अवसर ढ़ूंढ़ने लगे, जहां डिजिटल क्रांति के शुरु होने के बाद बेहद काबिल कर्मचारियों की जरूरत थी.
आईआईटी बॉम्बे के डिप्टी डायरेक्टर एस सुदर्शन कहते हैं, "60, 70 और 80 ही नहीं बल्कि 90 के दशक में भी भारतीय उद्योग उतने एडवांस नहीं थे और... जो नई टेक्नोलॉजी पर काम करना भी चाहते थे, उन्हें विदेश जाने की जरूरत महसूस हुई."
सिलिकॉन वैली में भारतीय दिग्गजों का डंका
भारतीय मूल के लोग दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियों पर ऊंचे पदों पर काबिज हैं. भारत में पढ़ाई के बाद वे दिग्गज आईटी कंपनियों की कमान संभाल रहे हैं. जानिए वे कितनी सैलरी पाते हैं.
तस्वीर: Twitter/imago images
पराग अग्रवाल, पद- सीईओ, ट्विटर
पढ़ाई- आईआईटी बॉम्बे, वेतन- करीब 8 करोड़ रुपये सालाना (बोनस अलग से)
तस्वीर: Twitter/imago images
सुंदर पिचाई, पद- सीईओ, अल्फाबेट
पढ़ाई- आईआईटी खड़गपुर, वेतन- 751 करोड़ रुपये सालाना
तस्वीर: Fabrice Coffrini/AFP
सत्या नडेला, पद- सीईओ, माइक्रोसॉफ्ट
पढ़ाई- मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, वेतन- 315 करोड़ रुपये सालाना
तस्वीर: Reuters
शांतनु नारायण, पद- सीईओ, एडोब
पढ़ाई- ओस्मानिया यूनिवर्सिटी, वेतन- 345 करोड़ रुपये सालाना
तस्वीर: Getty Images/J. Sullivan
संजय महरोत्रा, पद- सीईओ, माइक्रॉन
पढ़ाई- BITS, पिलानी, वेतन- 150 करोड़ रुपये सालाना
तस्वीर: VCG/imago images
जॉर्ज कूरियन, पद- सीईओ, नेटऐप्प
पढ़ाई- आईआईटी मद्रास, वेतन- 108 करोड़ रुपये सालाना
तस्वीर: Long Wei/Costfoto/picture alliance
निकेश अरोरा, पद- सीईओ, पालो ऑल्टो नेटवर्क्स
पढ़ाई- आईआईटी, बीएचयू, वेतन- 17 करोड़ रुपये सालाना
तस्वीर: AFLO/imago images
दिनेश पालीवाल, पद- निदेशक, हरमन इंटरनेशनल
पढ़ाई- आईआईटी रुड़की, वेतन- 11 करोड़ रुपये सालाना
तस्वीर: picture-alliance/dpa/A. Sokolow
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अग्रवाल, पिचाई और नडेला ने इन बड़ी कंपनियों में अपना रास्ता बनाने में दशकों का समय गुजारा है और अमेरिकियों की बनाई इन कंपनियों का विश्वास हासिल करते हुए अंदरूनी जानकारियां जुटाई हैं. और सालों तक, अमेरिका के कौशल आधारित इमिग्रेंट वीजा एच-1 बी के आधे से ज्यादा एप्लीकेंट्स भारत से रहे और उनमें भी ज्यादातर टेक सेक्टर से रहे.
भारत ही बन गया टेक हब तब क्या होगा?
जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर देवेश कपूर, जो खुद एक आईआईटी ग्रैजुएट हैं, कहते हैं, "इसके उलट भारत से ज्यादा जनसंख्या वाले चीन के इंजीनियरों के पास घर में ही नौकरियां खोजने या अमेरिका में पोस्ट ग्रैजुएशन करने के बाद घर लौटने का ही विकल्प था क्योंकि उनकी घरेलू अर्थव्यवस्था तेजी से फैल रही थी."
यह परिघटना धीरे-धीरे खत्म भी हो सकती है क्योंकि भारत में अब खुद टेक सेक्टर तेजी से तरक्की कर रहा है. जिससे भारत के सबसे अच्छे और होनहार दिमागों को अपने देश में ही अच्छे अवसर मिल जा रहे हैं. लेकिन नंदगांवकर के लिए अग्रवाल या पिचाई जैसा टेक सेक्टर का बॉस बनना कोई बहुत दूर की कौड़ी नहीं है. वे कहती हैं, "क्यों नहीं हो सकता, बड़े सपने देखिए तो."