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भारत: दूसरे धर्म में शादी करना क्यों होता जा रहा है खतरनाक

मुरली कृष्णन
१६ जनवरी २०२३

"लव जिहाद" एक अपमानजनक शब्द है. हिंदू दक्षिणपंथी इसका इस्तेमाल उस कथित अवधारणा को बयान करने में करते हैं, जिसका दावा है कि मुस्लिम पुरुष बहला-फुसलाकर हिंदू महिलाओं से शादी करते हैं और उनसे इस्लाम कबूल करवाते हैं.

भारत का स्पेशल मैरेज ऐक्ट, अंतरधार्मिक और अंतरजातीय शादियों को वैधता देने और इन्हें पंजीकृत करने के लिए बनाया गया था. यह कानून दो युवाओं को एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट के तहत शादी करने का अधिकार देता है.
भारत का स्पेशल मैरेज ऐक्ट, अंतरधार्मिक और अंतरजातीय शादियों को वैधता देने और इन्हें पंजीकृत करने के लिए बनाया गया था. यह कानून दो युवाओं को एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट के तहत शादी करने का अधिकार देता है. तस्वीर: Santarpan Roy/Pacific Press/picture alliance

दो अलग धर्मों के लोगों का एक-दूसरे से शादी करना, भारत में पिछले कई साल से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है. हिंदू दक्षिणपंथी संगठन और प्रशासन भी हिंदू-मुस्लिमों की आपस में शादी के आयोजनों में कथित "धर्मांतरण विरोधी" कानूनों के तहत बाधा डालता रहा है. दो साल पहले की एक घटना में उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक अंतरधार्मिक शादी को रोक दिया, जबकि दोनों परिवारों की शादी के लिए रजामंदी थी. इससे पहले कि शादी का आयोजन शुरू होता, पुलिस की टीम ने एक स्थानीय हिंदू दक्षिणपंथी संगठन की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए हस्तक्षेप कर दिया.

भारत में ज्यादातर शादियां परिजन तय करते हैं. इसके लिए लोकप्रिय टर्म "अरेंज्ड मैरेज" है. दूसरी जाति और दूसरे धर्म में शादी करने को गलत माना जाता है और कई जगहों पर यह वर्जित समझा जाता है. किसी और धर्म को मानने वाले से प्यार करने या ऐसे किसी शख्स से शादी करने की कोशिश पर कई बार ऐसी वारदातें हुई हैं, जब परिवार वालों ने प्रेमी जोड़े पर हमला किया या उनकी हत्या ही कर दी.

भारत का "धर्मांतरण विरोधी" कानून

सत्ताधारी हिंदू राष्ट्रवादी दल- भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शासित छह राज्यों समेत कम-से-कम आठ भारतीय राज्य धर्मांतरण विरोधी कानूनपास कर चुके हैं. यह कानून शादी के इरादे से धर्म परिवर्तन करने पर प्रतिबंध लगाता है. दिसंबर 2022 में महाराष्ट्र की सरकार ने 13 सदस्यों की एक समिति गठित की. यह समिति राज्य में हुई अंतरधार्मिक शादियों की जांच करेगी और ऐसे जोड़ों और उनके परिवारों का ब्योरा दर्ज करेगी.

दिसंबर 2022 में ही कट्टरपंथी हिंदू संगठन, विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने देशभर में एक सार्वजनिक "जागरूकता अभियान" शुरू किया. वीएचपी का दावा है कि हिंदू महिलाओं को "लव जिहाद" में फंसाया जा रहा है और गैरकानूनी तरीके से उनका धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है.

"लव जिहाद" एक अपमानजनक शब्द है. इसका इस्तेमाल करके हिंदू दक्षिणपंथी उस कथित अवधारणा को बयान करते हैं, जिसका दावा है कि मुस्लिम पुरुष बहला-फुसलाकर हिंदू महिलाओं से शादी करते हैं और उनसे इस्लाम कबूल करवाते हैं. बिना किसी सबूत के हिंदू समूह दावा करते हैं कि यह एक सोची-समझी साजिश है. वीएचपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल दावा करते हैं कि यह कथित गतिविधि "धर्मांतरण का घृणित रूप" है. डीडब्ल्यू से बात करते हुए बंसल ने कहा, "लव जिहादऔर गैरकानूनी धर्मांतरणों को रोकने के लिए सख्त केंद्रीय कानून लागू करना बेहद जरूरी है."

वीएचपी का दावा है कि हिंदू महिलाओं को "लव जिहाद" में फंसाया जा रहा है और गैरकानूनी तरीके से उनका धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है.तस्वीर: Saurabh Das/AP/picture alliance

शादी अपराध कैसे बन गया?

आसिफ इकबाल "धनक ऑफ ह्यूमैनिटी" नाम के एक गैर-सरकारी संगठन के सह-संस्थापक हैं. यह संगठन अंतरधार्मिक शादी करने वाले जोड़ों को मदद मुहैया कराता है. आसिफ ने डीडब्ल्यू को बताया कि नया कानून लाने की मौजूदा कोशिशों के कारण कई जोड़े इस डर में जीते हैं कि उनका रिश्ता अपराध बना दिया जाएगा. इकबाल कहते हैं, "मौजूदा कानूनी और सामाजिक स्थितियों की वजह से अंतरधार्मिक शादियों की संख्या में काफी कमी आई है. भारत में अंतरधार्मिक विवाह हमेशा से चुनौतीपूर्ण थे, लेकिन अब हो रहे भेदभाव और हिंसा की धमकियों के कारण ऐसे जोड़ों की मदद करना पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है."

"धनक ऑफ ह्यूमैनिटी" ने पिछले एक दशक में अलग-अलग धर्मों, जातियों और समुदायों के 5,000 से ज्यादा जोड़ों की साथ रहने में मदद की है. इकबाल बताते हैं कि अब मदद मांगने के लिए आने वाले जोड़ों की तादाद काफी घट गई है. इसके अनुमानित कारणों पर बात करते हुए वह कहते हैं, "शादी करने के लिए प्रेमियों को अपना राज्य छोड़कर किसी ऐसे राज्य में जाना पड़ता है, जहां अंतरधार्मिक शादी करना अपराध ना हो. साथ ही, कई राज्यों में पुलिस और न्यायपालिका भी प्रेमी जोड़ों की मदद के लिए तैयार नहीं है. कई बार तो वे उन्हें सुरक्षा भी नहीं देते हैं."

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डर के माहौल में जीना

हालिया बरसों में बढ़े सांप्रदायिक तनाव के बीच भारत में अंतरजातीय और अंतरधार्मिक जोड़ों को डराया-धमकाया जाता है. उन्हें उत्पीड़न, रिश्तेदारों के विरोध और यहां तक कि जान से मारे जाने के जोखिमों का सामना करना पड़ता है. 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ध्रुवीकरण और बंटवारा बढ़ा है. सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लाया जाना हिंदू राष्ट्रवाद में आ रही और तेजी का संकेत है.

मालविया राजकोटिया वकील हैं और पारिवारिक मामलों और संपत्ति से जुड़े कानूनों पर काम करती हैं. वह बताती हैं, "कानून, अल्पसंख्यक समुदायों को डराने का एक तरीका हैं. यहां तक कि अंतरधार्मिक शादियों में स्पेशल मैरेज ऐक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन करवाना भी युवाओं को परेशान करने का आधार बन गया है."

भारत का स्पेशल मैरेज ऐक्ट, अंतरधार्मिक और अंतरजातीय शादियों को वैधता देने और इन्हें पंजीकृत करने के लिए बनाया गया था. यह कानून दो युवाओं को एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट के तहत शादी करने का अधिकार देता है. मगर ऐसे जोड़ों को शादी रजिस्टर करवाने के लिए एक महीने से ज्यादा का इंतजार करना पड़ता है. इस दौरान शादी से असहमति रखने वाले परिवार वालों और प्रशासन को उन्हें तंग करने का वक्त मिल जाता है.

समर हलरंकर और प्रिया रमाणी पति-पत्नी हैं. अंतरधार्मिक शादियों के लिए बनी हुई नफरत और पूर्वाग्रहों के खिलाफ 2020 में उन्होंने इंस्टाग्राम पर "इंडिया लव प्रॉजेक्ट" लॉन्च किया. यह अभियान धार्मिक ध्रुवीकरण का विरोध करता है और अंतरधार्मिक रिश्तों को सराहता है. प्रिया रमाणी ने डीडब्ल्यू को बताया, "ऐसा देश जहां अंतरधार्मिक शादियों का अपराधीकरण लगातार बढ़ता जा रहा है, वहां हमारा यह प्रॉजेक्ट ऐसी जगह बन गया जहां विविधताओं को संजोया और प्रोत्साहित किया जाता है. ईमानदारी से कहूं, तो यह प्यार के किसी बुलबुले जैसा है, नफरतों से भरे जहरीले माहौल में एक सुरक्षित जगह है." 

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भारत में अंतरधार्मिक शादी का अधिकार

इंदिरा जयसिंह, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील हैं और इस दिशा में काफी काम कर चुकी हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि पिछले कुछ साल में भारत ने अंतरधार्मिक शादियों को निशाना बनाते हुए खास कानून लागू किए हैं. इंदिरा कहती हैं, "एक शख्स जब किसी दूसरे धर्म के इंसान से शादी करने का चुनाव करता है, तो वह सक्रिय तौर पर उस धर्म को भी अपनाता है. यह भी संविधान के द्वारा दी गई आजादी की गारंटी का हिस्सा है."

मुस्लिम, ईसाई और हिंदू धार्मिक नेताओं ने 2020 में एक सामूहिक विवाद कार्यक्रम में हिस्सा लिया. तस्वीर: Santarpan Roy/Pacific Press/picture alliance

इंदिरा बताती हैं कि ये कानून भी भारतीय संविधान में दी गई धार्मिक आजादी की गारंटी के प्रति कानूनी तौर पर जवाबदेह हैं. वह कहती हैं, "धर्मांतरण के जरिये शादी को प्रतिबंधित करने वाले कानून भारत के बुनियादी धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का उल्लंघन करते हैं." भारतीय संविधान के मुताबिक, नागरिकों को धर्म "अपनाने, उसपर अमल करने और उसका प्रचार-प्रसार" करने की आजादी है. "प्रॉपेगेट" शब्द का मतलब यह भी है कि नागरिक को कोई और धर्म स्वीकार करने का भी हक है.

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दो जनयाचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई. इन याचिकाओं में कई राज्यों में पास किए गए धर्मांतरण-विरोधी कानूनों को चुनौती दी गई है. संबंधित धर्मांतरण कानूनों के जरिये शादी करके धर्म बदलने को प्रतिबंधित करने की मंशा है और इनके अंतर्गत धर्म-परिवर्तन की जानकारी प्रशासन को देना अनिवार्य होगा.

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