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मानवाधिकारबांग्लादेश

गरीबों के मददगार मोहम्मद यूनुस पर कानूनी कार्रवाई की आलोचना

अराफातुल इस्लाम
८ सितम्बर २०२३

बांग्लादेश में सस्ता कर्ज मुहैया कराने की शुरुआत करने वाले अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस के खिलाफ सरकारी आरोपों और प्रताड़ना की आलोचना हो रही है. दुनिया भर के नेताओं ने कहा है कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा करता है.

Professor Muhammad Yunus
2006 में नोबेल पुरस्कार मिला पाने वाले मोहम्मद यूनुस अपने देश में सालों से कानून दमन झेल रहे हैंतस्वीर: Scott Olson/Getty Images

दुनिया भर के 170 नेताओं ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना से अपील की है कि वह नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मोहम्मद यूनुस के खिलाफ कानूनी कार्रवाई रोक दें. सामाजिक विकास से जुड़े कामों के लिए यूनुस को 2006 में नोबेल पुरस्कार मिला था लेकिन अपने देश में वह सालों से कानून दमन झेल रहे हैं. मोहम्मद यूनुस ने 1983 में ग्रामीण बैंक की शुरुआत की थी. यह दुनिया की पहली आधुनिक माइक्रोक्रेडिट संस्था है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बान की मून समेत 100 नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने 27 अगस्त को लिखे एक खुले पत्र में कहा कि वह बांग्लादेश में लोकतंत्र और मानवाधिकार के लिए पैदा हुए खतरे से चिंतित हैं.

मोहम्मद यूनुस का ग्रामीण बैंक गरीबों को छोटे कर्ज देकर आम लोगों की मदद करता हैतस्वीर: Mortuza Rashed/DW

मानवाधिकारों पर चिंता

पत्र में कहा गया, "मानवाधिकारों पर मंडराते खतरे के संबंध में जो ताजा मामला हमारी चिंता का कारण है, वह है नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस. हम भौचक्के हैं कि उन्हें लगातार चल रही न्यायिक प्रताड़ना के जरिए निशाना बनाया जा रहा है." मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र ने भी दक्षिण एशिया में मानवाधिकारों की बात करने वालों को डराने के लिए कानून का सहारा लेने पर चिंता जताई. हालांकि बांग्लादेश के कानून मंत्री अनीसुल हक ने इस तरह की बातों को खारिज करते हुए डीडब्ल्यू से कहा कि यह बयान देश की न्यायपालिका में बाहरी हस्तक्षेप की कोशिश हैं.

मोहम्मद यूनुस और उनका ग्रामीण बैंक, माइक्रोक्रेडिट यानी छोटे कर्ज देकर गरीबों की मदद करने के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है. माइक्रोक्रेडिट ऐसे छोटे कर्ज हैं जो विकासशील देशों में लोगों को आसान शर्तों पर मुहैया करवाए जाते हैं. इससे उद्यमियों, खासकर महिलाओं को गरीबी के चक्रव्यूह से निकलने में सहायता मिलती है.

शेख हसीना ने 2011 में ग्रामीण बैंक की गतिविधियों की जांच शुरु की तस्वीर: Anupam Nath/AP/picture alliance

शेख हसीना क्यों बना रही हैं यूनुस को निशाना

2009 में सत्ता में संभालने वाली शेख हसीना ने यूनुस को "रक्तपिपासु" बताया. उनका कहना था कि ग्रामीण बैंक के मुखिया के तौर पर वह गरीब महिलाओं से कर्ज वसूली के लिए ताकत का इस्तेमाल करते हैं. हसीना सरकार ने 2011 में ग्रामीण बैंक की गतविधियों का मूल्यांकन शुरू किया और रिटायरमेंट से जुड़ी सरकारी नीतियों का कथित उल्लंघन करने के मामले में प्रबंध निदेशक के पद से हटा दिया. सरकारी अनुमति के बिना पैसा लेने के मामले में 2013 से उन पर मुकदमा चलना शुरू हुआ. इसमें नोबेल प्राइज का पैसा और किताबों से आने वाली रॉयल्टी भी शामिल है. उन पर उनकी बनाई दूसरी कंपनियों जैसे ग्रामीण टेलीकॉम से जुड़े मामलों पर भी आरोप लगे. कंपनी के 18 पूर्व कर्मचारियों ने उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया कि वह उनका पैसा मार रहे हैं.

कुछ जानकार मानते हैं कि दरअसल शेख हसीना इसलिए नाराज हैं कि क्योंकि यूनुस ने 2007 में अपनी राजनैतिक पार्टी बनाने की घोषणा की थी जब देश में सैन्य समर्थन सरकार काबिज थी. हालांकि यूनुस ने बाद में इस फैसले से पीछे हटने की घोषणा कर दी थी. जिसके बाद उन्होंने राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. ढाका विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर आसिफ नजरूल ने डीडब्ल्यू से कहा, "हमारी प्रधानमंत्री को अब भी लगता है कि यूनुस हर उस समस्या की वजह हैं जो वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झेल रही हैं जैसे वर्ल्ड बैंक का देश को मिलने वाले सबसे बड़े ब्रिज लोन को वापस ले लेना या फिर स्वतंत्र चुनाव करने का अंतरराष्ट्रीय दबाव. हमें बिल्कुल नहीं पता कि वह ऐसा क्यों सोचती हैं क्योंकि ऐसा कोई सबूत नहीं है जो सरकार ने पेश किया हो." युनूस के वकील अल मामून को लगता है कि यह सारे मुकदमे यूनुस की वैश्विक छवि को खराब करने के तरीके हैं.

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