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महंगी क्यों पड़ने लगी है सस्ती एटमी ऊर्जा

स्टुअर्ट ब्राउन
१ अक्टूबर २०२१

फुकुशिमा की तबाही के दस साल बाद दुनिया भर में महंगे एटमी ऊर्जा संयंत्र बंद किए जा रहे हैं. और नवीनीकृत ऊर्जा के दाम गिर रहे हैं. क्या एटमी ऊर्जा का जमाना बीत चुका है?

प्रांस का इंटरनैशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टरतस्वीर: picture-alliance/AP Images/. Paris

ब्रिटेन में गैस की कीमतों में उछाल के बीच, कंजरवेटिव पदाधिकारी राजनीतिज्ञ, एटमी ऊर्जा को बतौर रक्षक की तरह पेश करने लगे हैं. उनकी दलील है कि इसमें कार्बन उत्सर्जन कम होता है और नये छोटे रिएक्टर ज्यादा तत्परता से ऑनलाइन मंगाए जा सकते हैं.

लेकिन पिछले दिनो जारी हुई वर्ल्ड न्यूक्लियर इंडस्ट्री स्टेटस रिपोर्ट (डब्लूएनआईएसआर) 2021 ने तस्दीक की है कि यूरेनियम से चलने वाली इस ऊर्जा का हिस्सा विभिन्न ऊर्जा स्रोतों के बीच लगातार कम होता जा रहा है.

एटमी ऊर्जा की घटती हिस्सेदारी

खासकर नवीनीकृत ऊर्जा की तुलना में, एटमी ऊर्जा की बेतहाशा कीमतें फुकुशिमा के नुकसान को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रही हैं. इसके चलते जर्मनी और बेल्जियम जैसे देश क्रमशः 2022 और 2025 तक इस ईंधन को हटाने का इरादा कर चुके हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक, "वैश्विक सकल ऊर्जा उत्पादन में एटमी ऊर्जा की हिस्सा धीरे धीरे कम ही होता जा रहा है. 1996 में ये साढ़े 17 प्रतिशत था तो 2020 में 10.1 प्रतिशत.”

नवीनीकृत ऊर्जा की अपेक्षाकृत सस्ती कीमत, समस्या की जड़ है. डब्लूएनआईएसआर ने ये पुष्टि की है कि 2020 में नवीनीकृत ऊर्जा निवेश 300 अरब डॉलर से अधिक था. एटमी ऊर्जा के वैश्विक निवेश के मुकाबले ये 17 गुना ज्यादा था.

रिपोर्ट के मुख्य लेखक और लंदन स्थित थिंक टैंक चाथम हाउस में पर्यावरण और सामाजिक कार्यक्रम में सीनियर रिसर्च फेलो और उपनिदेशक एंटनी फ्रोगाट कहते हैं, "जलवायु परिवर्तन राजनीतिक एजेंडे में ऊपर आ रहा है, तो ऐसे में एटमी ऊर्जा कई देशों में कार्बन-मुक्त ऊर्जा सेक्टर के रूप में बदलावों का हिस्सा नहीं मानी जाती है.”

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भले ही चीन- जो एटमी ऊर्जा उत्पादक के रूप में फ्रांस को पीछे छोड़, 2020 में अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आ गया था- वैश्विक एटमी क्षमता को स्थिर रख रहा हो, फिर भी एटमी उद्योग अपने निम्न-कार्बन उत्सर्जन जैसे फायदों के लिए जगह बनाने के लिए जूझ रहा है. यहां तक कि आगामी कॉप 26 जलवायु बैठक में वो हाशिए पर ही है.

अपनाएं तो मुश्किल न अपनाएं तो मुश्किल

चीन को छोड़कर, पिछले साल एटमी ऊर्जा उत्पादन 1995 के बाद से सबसे निचले स्तर पर रहा जबकि फ्रांस के विभिन्न बिजली स्रोतों में एटमी ऊर्जा का हिस्सा 1985 से सबसे कम स्तर पर रहा है. ये डब्लूएनआईएसआर की रिपोर्ट में बताया गया है.

इस बीच एटमी ऊर्जा के समर्थकों की दलील है कि ये एक साफ और शून्य-उत्सर्जन वाला ऊर्जा स्रोत है जिससे पवन या सौर ऊर्जा के मुकाबले ज्यादा भरोसेमंद ढंग से बेसलोड बिजली पैदा की जा सकती है. अगर कार्बन को हटाने के लक्ष्य हासिल करने हैं तो एटमी ऊर्जा को बाहर का रास्ता दिखाने के बजाय मौजूदा क्षमता को बनाए रखा जाना चाहिए.

मिसाल के लिए चीन ने फॉसिल ईधन ऊर्जा से निकलने के लिए एटमी ऊर्जा का दामन थामा है और 2016 से 2020 की अपनी पांचवर्षीय योजना के तहत 20 नये पावर प्लांट लगाए हैं.

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चीन भले ही एटमी उद्योग के लिए सुकून भरी जगह हो, वहां भी उसकी ग्रोथ सुस्त पड़ रही है. नवीनीकृत ऊर्जा सस्ती हो रही है और विभिन्न ऊर्जा स्रोतों में बाजी मार रही है. चीन के राष्ट्रीय ऊर्जा प्रशासन के मुताबिक 2020 में सिर्फ दो गीगावाट नयी एटमी ऊर्जा क्षमता ही ग्रिड में जुड़ पाई. पवन ऊर्जा का हिस्सा 72 गीगावॉट था, फोटोवोल्टेयक का 48 गीगावॉट और जलबिजली का 13 गीगावॉट. 

डब्लूएनआईएसआर के मुताबिक क्षमता में तुलनात्मक बढ़ोतरी में भी ऐसा दिखता है. गैर-जलबिजली नवीनीकृत ऊर्जा का 256 गीगावॉट, 2020 में कुल वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में जुड़ा है जबकि एटमी ऊर्जा का हिस्सा सिर्फ 0.4 गीगावॉट ही था.

फ्रोगाट के मुताबिक कुछ देशों में "टिपिंग पॉइंट” आ चुका है जहां नवीनीकृत ऊर्जा के प्रति स्वीकार इतना तगड़ा है कि नयी नवीनीकृत संरचनाएं बनाना नये एटमी संयंत्र से बहुत अधिक सस्ता पड़ता है.

एटमी ऊर्जा यानी कमरे में हाथी

कमरे में हाथी का मुहावरा यहां लागू होता है. समस्या बहुत बड़ी है लेकिन दिखती नहीं. तेजी से पुराने पड़ते एटमी रिएक्टरों के जखीरे भी ऐसे ही हैं. डब्लूएनआईएसआर की रिपोर्ट दिखाती है कि इन रिएक्टरों की औसत उम्र अभी करीब 31 साल की है. पांच से में से एक यूनिट को 41 साल हो गए हैं या उससे ज्यादा.

कीमतों के दबाव में कुछ एक संयंत्र कैसे बन रहे हैं ऑस्ट्रेलिया में फ्रेंड्स ऑफ द अर्थ के राष्ट्रीय एटमी कैम्पेनकर्ता जिम ग्रीन, ये समझाते हुए कहते हैं, "रिटायरमेंट के मंडराते संकट को थामने के लिए पर्याप्त वेग नहीं है.”   

दुनिया में इस समय 415 न्यूक्लियर रिएक्टर हैं- मध्य 2020 के मुकाबले सात ज्यादा. अधिकांश चीन में हैं. ग्रीन के मुताबिक अगले 30 साल में 10 संयंत्रों के सालाना तौर पर ठप हो जाने की संभावना है. उनका अनुमान है कि ज्यादा से ज्यादा हर साल चार नये प्लांट बनाए जा सकते हैं, ये भी वैसे गिरावट दिखाता है.

जिम ग्रीन कहते हैं कि अमेरिका में बाइडेन सरकार ने कोई भी नया रिएक्टर न बनाने की बात कही थी. दक्षिणी कैरोलाइना और जॉर्जिया प्रांतों में प्रोजेक्ट फेल हुए थे और निवेश करने वाली कंपनी वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक ने 2017 में खुद को दिवालिया घोषित करने से पहले अरबों डॉलर गंवा दिए थे.       

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अमेरिका ने मौजूदा संयंत्रों को सब्सिडी देने का वादा किया है, लेकिन एंटनी फ्रोगाट कहते हैं कि रिएक्टर को चालू रखने और उसकी देखरेख की कीमत भी आसमान छूने लगी है. डब्लूएनआईएसआर की 2012 की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दशक में एटमी संयंत्रों को बनाने और देखरेख में, उनकी जीवनपर्यंत कीमत 33 फीसदी बढ़ गई है. उसी के सापेक्ष सौर ऊर्जा के बुनियादी ढांचे की लागत में 90 फीसदी कमी आई है. और पवन ऊर्जा में 70 फीसदी.

डब्लूएनआईएसएआर के मुख्य लेखक कहते हैं कि कार्बन से मुक्ति के लिए एटमी उद्योग रिनेसां की बात अब आर्थिक लिहाज से कुछ मायने नहीं रखती.

वह कहते हैं, "कार्बन कैप्चर, उसके भंडारण और एटमी ऊर्जा की दलील काफी हद तक कमजोर पड़ चुकी है. पिछले पांच से दस साल के दरमियान हमने देखा है कि नवीनीकृत ऊर्जा से जुड़े नये अवसरों- जैसे इलेक्ट्रिक वाहन, ऊर्जा क्षमता – की बदौलत हमें एक रास्ता दिखा है.”

कगार पर खड़ा उद्योग

लचीलेपन की कमी के चलते एटमी ऊर्जा, डीकार्बनाइजेशन लिटमस टेस्ट में भी विफल हो जाती है. "मांग की जरूरतें पूरी करनी होती हैं.” फ्रोगाट कहते हैं, "आपको लचीले ऊर्जा संयंत्रों की जरूरत है जो जरूरत पड़ने पर स्विच ऑन और स्विच ऑफ हो सकें.”

तुलना में देखें तो न्यूक्लियर प्लांट लगातार चलने जरूरी हैं. और अक्सर पूर्ण क्षमता के साथ- एक वजह है निवेश की ऊंची लागतों की भरपाई. संचालन की इन सीमाओं की वजह से एटमी ऊर्जा की यूनिट लागत नवीनीकृत ऊर्जा से कहीं अधिक है और कीमतों का अंतर बढ़ता ही जा रहा है.

जैसी ऊर्जा वैसी कीमत

2010 में दक्षिणी इंग्लैंड के सोमेरसेट में हिन्कले पॉइंट न्यूक्लियर प्लांट प्रोजेक्ट की घोषणा की गई तो उस समय एटमी ऊर्जा की कीमत पवन ऊर्जा से कमोबेश एक तिहाई कम थी. ये अंतर अब उलट चुका है. ब्रिटेन में  में पवन ऊर्जा, हिन्क्ले पॉइंट रिएक्टर की पैदा ऊर्जा की प्रस्तावित कीमतों के मुकाबले 50 प्रतिशत से भी ज्यादा सस्ती पड़ रही है.

फिर भी ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र में दिए अपने भाषण मे कहा कि एटमी ऊर्जा का विस्तार 2030 के कार्बन कटौती लक्ष्यों को हासिल करने का एक अनिवार्य जरिया है.

जिम ग्रीन के लिए एटमी ऊर्जा की आर्थिकी अब किसी काम लायक नहीं. वह कहते हैं, "ये उद्योग अब कगार पर टिका है.”

 

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