महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग की तीव्रता बढ़ती जा रही है. राजनीतिक रूप से यह महाराष्ट्र का सबसे प्रभावशाली समुदाय रहा है. इसके बावजूद क्यों जरूरत पड़ी आरक्षण के लिए आंदोलन करने की?
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मराठा आरक्षण आंदोलन के बीच सोमवार को कुछ लोगों ने बीड़ जिले के माजलगांव तालुका में एनसीपी के विधायक प्रकाश सोलंके के घर पर पथराव किया और घर के परिसर में आग लगा दी. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कुछ जिलों में राज्य परिवहन की बसों पर भी पथराव किया गया.
कई लोगों ने टायर जला कर धुले-सोलापुर राजमार्ग को बंद भी कर दिया. कई गांवों में गुस्साए हुए मराठा प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने गए सांसदों और विधायकों को घुसने नहीं दिया. मराठा नेता मनोज जरंगे-पाटिल आरक्षण की मांग को ले कर छह दिनों से भूख हड़ताल पर हैं.
यहां अपनी जान की कीमत पर खेती करते हैं किसान
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राज्य सरकार के मंत्रियों ने उनसे बात की है लेकिन उन्होंने कहा है कि जब तक सभी मराठाओं को आरक्षण नहीं मिल जाता, तब तक वो अपनी भूख हड़ताल खत्म नहीं करेंगे. राज्य सरकार ने अभी तक आरक्षण पर अपना फैसला नहीं सुनाया है.
क्या मांग है मराठा समुदाय की
महाराष्ट्र में राजनीतिक रूप से मराठा समुदाय सबसे प्रभावशाली रहा है. राज्य में 20 में से 19 मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं. मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी इसी समुदाय से आते हैं. ऐतिहासिक रूप से मराठा समुदाय के सदस्यों को योद्धाओं के रूप में जाना जाता रहा है.
आज के महाराष्ट्र में यह मुख्य रूप से किसानों का समुदाय है, जिनके पास जमीन भी है. लेकिन कई राज्यों के कृषक समुदायों की ही तरह भूमि जोत के छोटे होने और खेती की कई समस्याओं की वजह से मराठाओं की भी समृद्धि धीरे धीरे कम हुई है.
इस वजह से समुदाय के सदस्य युवा पीढ़ी के भविष्य को लेकर चिंतित हो गए हैं. सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग इसी चिंता से निकली जिसने 1980 के दशक में पहली बार आंदोलन का रूप लिया. 2016 से 2018 तक चले आंदोलन के दौर में तो कई लोगों की जान भी गई.
सुप्रीम कोर्ट से झटका
उसके बाद राज्य सरकार को मजबूर हो कर एक नए कानून के जरिए मराठाओं के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण देना पड़ा. लेकिन इससे राज्य में कुल आरक्षित सीटों का प्रतिशत 50 प्रतिशत की सीमा को पार कर गया, जिसके बाद इस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.
मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की एक संवैधानिक पीठ ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया. इसके बाद मराठा नेताओं ने मांग की कि उनके समुदाय के सदस्यों को 'कुनबी' जाति के प्रमाणपत्र दे दिए जाए. कुनबी जाति महाराष्ट्र की ओबीसी की सूची में आती है जिसकी वजह से उस समुदाय के लोगों को पहले से ओबीसी आरक्षण (19 प्रतिशत) का लाभ मिलता है.
मौजूदा महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय के कुछ लोगों को कुनबी प्रमाणपत्र देने का फैसला कर लिया है लेकिन जरंगे-पाटिल की मांग है कि यह प्रमाणपत्र सभी मराठाओं को दिए जाएं. फिलहाल मामला इसी सवाल पर अटका हुआ है.
जब दो प्रतिद्वंदी पार्टियों ने मिलाए हाथ
शिवसेना पहले समान विचारधारा वाली भाजपा के साथ थी. अब महाराष्ट्र में एकदम विपरीत विचारधारा वाली कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन और शिवसेना के बीच सरकार को लेकर बात चल रही है. जानिए कब-कब विपरीत विचारधारा वाले दलों ने किया गठबंधन.
तस्वीर: picture alliance/AP Photo/Anand
आरजेडी-जेडीयू -कांग्रेस
लालू यादव और नीतीश कुमार एक साथ छात्र आंदोलनों से निकले थे. लेकिन जल्दी ही वो राजनीति में कट्टर विरोधी हो गए. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में ये दोनों विरोधी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े. दोनों नेता कांग्रेस के खिलाफ हुए छात्र आंदोलनों के ही अगुआ थे. 2015 में इस गठबंधन ने सरकार बनाई जो ज्यादा दिन ना चल सकी और गठबंधन टूट गया.
तस्वीर: UNI
बीजेपी-टीएमसी
आज की राजनीति में टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी बीजेपी की मुखर विरोधी हैं. लेकिन ममता पहले बीजेपी नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री रह चुकी हैं. 1997 में कांग्रेस से अलग होकर टीएमसी बनाने के बाद 1999 में उन्होंने भाजपा से गठबंधन किया. ममता बनर्जी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री भी रहीं. 2006 में उन्होंने एनडीए गठबंधन छोड़ दिया.
तस्वीर: DW/P. Mani Tiwari
बीजेपी-पीडीपी
जम्मू कश्मीर की पार्टी पीडीपी और बीजेपी के बीच 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद गठबंधन हुआ. पीडीपी को कश्मीर को ज्यादा अधिकार की वकालत करती है जबकि बीजेपी इसके खिलाफ है. तीन साल तक यह गठबंधन चला जो 2018 में खत्म हो गया. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने बाद में इसे बेमेल गठबंधन कहा था.
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आरजेडी-कांग्रेस
लालू यादव जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के सक्रिय चेहरों में से एक थे. उनका पूरा आंदोलन कांग्रेस के खिलाफ था. लेकिन अब लालू की पार्टी आरजेडी कांग्रेस की सबसे करीबी पार्टियों में से है. 1997 में लालू ने जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी आरजेडी बनाई. लेकिन 2004 में लालू गठबंधन में शामिल हो गए. 2009 में ये गठबंधन टूट गया. लेकिन 2014 के बाद से दोनों पार्टियां साथी बने हुए हैं.
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कांग्रेस-डीएमके
तमिलनाडू की पार्टी डीएमके की राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के विरोध से ही हुई. डीएमके नेता अन्नादुरई ने तमिलनाडू से कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया था. कांग्रेस राजीव गांधी की हत्या में डीएमके नेता करुणानिधि की भूमिका पर सवाल उठी थी. 2004 में डीएमके केंद्र में कांग्रेस सरकार का हिस्सा बनी. यह गठबंधन 2013 तक चला. 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर ये पार्टियां साथ आ गईं.
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एनसीपी-कांग्रेस
जब सोनिया गांधी पहली बार कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं तो शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने उनके विदेशी मूल का मुद्दे उठाया और कांग्रेस से अलग हो कर एनसीपी बना ली थी. 2004 से 2014 तक एनसीपी ने केंद्र और महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सरकार में गठबंधन बनाए रखा. 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में यह गठबंधन टूट गया लेकिन चुनाव के बाद ये पार्टियां फिर साथ आ गईं.
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बीजेपी-एलजेपी
राम विलास पासवान को राजनीति का मौसम वैज्ञानिक भी कहा जाता है. वो राजनीति में आने के बाद अधिकतर सरकारों में मंत्री रहे हैं. 2002 में गुजरात दंगों को रोकने में नरेंद्र मोदी के नाकाम रहने का आरोप लगाकर उन्होंने बीजेपी से गठबंधन तोड़ा था. 2014 में उन्होंने नरेंद्र मोदी की बीजेपी से गठबंधन किया और 2014 से वो मोदी सरकार में मंत्री हैं.
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एसपी-बीएसपी
मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने 90 के दशक में गठबंधन सरकार बनाई थी. लेकिन 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद इन दोनों पार्टियों में दुश्मनी हो गई. 2019 के लोकसभा चुनावों में ये दुश्मनी खत्म हुई और दोनों पार्टियों ने साथ चुनाव लड़ा. हालांकि चुनाव के तुरंत बाद यह गठबंधन टूट गया.
तस्वीर: Ians
कांग्रेस-लेफ्ट
भारत की आजादी के बाद कांग्रेस सत्ता में रही और समाजवादी और लेफ्ट पार्टियों का विपक्ष रहा. लेफ्ट पार्टियों ने पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनाई थी. लेकिन 2004 में कांग्रेस और लेफ्ट ने केंद्र में सरकार के लिए गठबंधन किया. 2016 के बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान भी दोनों पार्टियां गठबंधन में चुनाव लड़ीं. हालांकि केरल में दोनों पार्टियां एक दूसरे की विरोधी हैं.
तस्वीर: UNI
आम आदमी पार्टी-कांग्रेस
आम आदमी पार्टी का जन्म ही कांग्रेस पर लगे भ्रष्टाचारों के आरोपों का विरोध करके हुआ था. हालांकि 2013 में जब आम आदमी पार्टी दिल्ली में बहुमत नहीं पा सकी तो कांग्रेस ने उसे बाहर से समर्थन दिया. हालांकि यह सरकार 49 दिन ही चल सकी. 2019 के लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस से गठबंधन की इच्छा जताई थी लेकिन ऐसा हो नहीं सका.
तस्वीर: Reuters/India's Presidential Palace
एसपी-कांग्रेस
समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव की राजनीति कांग्रेस विरोध पर शुरू हुई थी. लेकिन उनकी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया है. 2008 में विश्वास मत प्रस्ताव के दौरान सपा के समर्थन से ही कांग्रेस सरकार बची थी. 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियां साथ चुनाव लड़ी थीं.