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क्यों तीव्र हो रही है मराठा आरक्षण की मांग

३० अक्टूबर २०२३

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण की मांग की तीव्रता बढ़ती जा रही है. राजनीतिक रूप से यह महाराष्ट्र का सबसे प्रभावशाली समुदाय रहा है. इसके बावजूद क्यों जरूरत पड़ी आरक्षण के लिए आंदोलन करने की?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे
एकनाथ शिंदेतस्वीर: Ashish Vaishnav/Zumapress/picture alliance

मराठा आरक्षण आंदोलन के बीच सोमवार को कुछ लोगों ने बीड़ जिले के माजलगांव तालुका में एनसीपी के विधायक प्रकाश सोलंके के घर पर पथराव किया और घर के परिसर में आग लगा दी. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कुछ जिलों में राज्य परिवहन की बसों पर भी पथराव किया गया.

कई लोगों ने टायर जला कर धुले-सोलापुर राजमार्ग को बंद भी कर दिया. कई गांवों में गुस्साए हुए मराठा प्रदर्शनकारियों से बातचीत करने गए सांसदों और विधायकों को घुसने नहीं दिया. मराठा नेता मनोज जरंगे-पाटिल आरक्षण की मांग को ले कर छह दिनों से भूख हड़ताल पर हैं.

यहां अपनी जान की कीमत पर खेती करते हैं किसान

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राज्य सरकार के मंत्रियों ने उनसे बात की है लेकिन उन्होंने कहा है कि जब तक सभी मराठाओं को आरक्षण नहीं मिल जाता, तब तक वो अपनी भूख हड़ताल खत्म नहीं करेंगे. राज्य सरकार ने अभी तक आरक्षण पर अपना फैसला नहीं सुनाया है.

क्या मांग है मराठा समुदाय की

महाराष्ट्र में राजनीतिक रूप से मराठा समुदाय सबसे प्रभावशाली रहा है. राज्य में 20 में से 19 मुख्यमंत्री मराठा रहे हैं. मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी इसी समुदाय से आते हैं. ऐतिहासिक रूप से मराठा समुदाय के सदस्यों को योद्धाओं के रूप में जाना जाता रहा है.

आज के महाराष्ट्र में यह मुख्य रूप से किसानों का समुदाय है, जिनके पास जमीन भी है. लेकिन कई राज्यों के कृषक समुदायों की ही तरह भूमि जोत के छोटे होने और खेती की कई समस्याओं की वजह से मराठाओं की भी समृद्धि धीरे धीरे कम हुई है.

एकनाथ शिंदे सरकार के लिए मराठा आरक्षण एक बड़ी चुनौती बना हुआ हैतस्वीर: Hindustan Times/IMAGO

इस वजह से समुदाय के सदस्य युवा पीढ़ी के भविष्य को लेकर चिंतित हो गए हैं. सरकारी नौकरियों में आरक्षण की मांग इसी चिंता से निकली जिसने 1980 के दशक में पहली बार आंदोलन का रूप लिया. 2016 से 2018 तक चले आंदोलन के दौर में तो कई लोगों की जान भी गई.

सुप्रीम कोर्ट से झटका

उसके बाद राज्य सरकार को मजबूर हो कर एक नए कानून के जरिए मराठाओं के लिए 16 प्रतिशत आरक्षण देना पड़ा. लेकिन इससे राज्य में कुल आरक्षित सीटों का प्रतिशत 50 प्रतिशत की सीमा को पार कर गया, जिसके बाद इस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.

मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की एक संवैधानिक पीठ ने मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया. इसके बाद मराठा नेताओं ने मांग की कि उनके समुदाय के सदस्यों को 'कुनबी' जाति के प्रमाणपत्र दे दिए जाए. कुनबी जाति महाराष्ट्र की ओबीसी की सूची में आती है जिसकी वजह से उस समुदाय के लोगों को पहले से ओबीसी आरक्षण (19 प्रतिशत) का लाभ मिलता है.

मौजूदा महाराष्ट्र सरकार ने मराठा समुदाय के कुछ लोगों को कुनबी प्रमाणपत्र देने का फैसला कर लिया है लेकिन जरंगे-पाटिल की मांग है कि यह प्रमाणपत्र सभी मराठाओं को दिए जाएं. फिलहाल मामला इसी सवाल पर अटका हुआ है.

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