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एटमी ऊर्जा से पीछा क्यों नहीं छुड़ा पाता जर्मनी?

२५ नवम्बर २०२२

जर्मनी ने एटमी ऊर्जा पर कभी हां कभी ना करते हुए 25 साल लगा दिए. यूक्रेन में युद्ध से पैदा हुए ऊर्जा संकट ने उसे फिर से इस पर सोचने को विवश कर दिया है.

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तस्वीर: Martin Meissner/AP Photo/picture alliance

मीलों दूर से भाप की लकीर आसमान में लहराती देखी जा सकती है. लेकिन रिएक्टर को खोज पाना उतना आसान नहीं. पेड़ों के सघन डेरे और एक रसायन फैक्ट्री के बीच एम्सलांड न्यूक्लियर पावर स्टेशन मौजूद है. लोअर सेक्सोनी राज्य के एक छोटे से शहर लिंगेन से 10 किलोमीटर दूर दक्षिण में यहां चुपचाप एटमी ऊर्जा उत्पादन किया जा रहा है.

इलाके में पली बढ़ी 44 साल की क्रिस्टीन ने लिंगेन की लाल ईंट की सड़क पर डीडब्लू से बात करते हुए कहा, "ईमानदारी से कहूं तो आप इसके बारे में भूल जाते हैं. और आपको यकीन है और उम्मीद है कि सब कुछ अच्छा होगा."

एम्सलांड रिएक्टर जर्मनी के आखिरी तीन एटमी पावर स्टेशनों में से एक है. इस साल नये साल की पूर्व संध्या पर ये तीनों बंद किए जाने थे और इस तरह जर्मनी में एटमी ऊर्जा उत्पादन पूरी तरह से बंद हो जाता. लेकिन यूक्रेन पर रूस नेलड़ाई छेड़ दी.

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क्रिस्टीन कहती हैं, "वाकई मैं खुद को एटमी ऊर्जा के खिलाफ पाती हूं. लेकिन मुझे ये स्वीकार करना पड़ेगा कि हालात अभी थोड़ा अलग हो गए हैं."

प्रमुख नीतिगत बदलाव

हाल तक, रूस जर्मनी का एक प्रमुख ऊर्जा सहयोगी रहा था. जर्मनी का अधिकांश तेल और प्राकृतिक गैस आयात रूस से ही होता था. लेकिन यूक्रेन में लड़ाई के तनावों के बीच ये साझेदारी भंग हो गई. जिसकी वजह से जर्मनी वैकल्पिक सप्लाई के लिए परेशान हो उठा क्योंकि यूरोप में सर्दियों की आमद होने लगी थी और ऊर्जा कीमते बुलंदी पर थीं.

अब जर्मनी अपनी एटमी ऊर्जा को फेजआउट करने की रणनीति पर पुनर्विचार कर रहा है. देश के तीनों एटमी रिएक्टर देश का करीब 6 फीसदी बिजली उत्पादन करते हैं. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. 1990 के दशक में, 19 एटमी ऊर्जा संयंत्र जर्मनी की एक तिहाई ऊर्जा का उत्पादन कर रहे थे.

फिर 1998 में, सोशल डेमोक्रेट्स और ग्रीन्स पार्टी वाली मध्य-वाम सरकार ने एटमी ऊर्जा से दूरी बनाने का फैसला किया. ग्रीन्स पार्टी की ये लंबे समय से मांग थी. 1980 के दशक में इसी मुद्दे पर पार्टी का रसूख बनने लगा था.

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उसके नेता शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में एटमी हथियारों और एटमी ऊर्जा के खतरों के खिलाफ आंदोलन करने लगे थे. जर्मनी में नये एटमी संयंत्र का निर्माण2002 में खत्म हो गया.

'दिलचस्प' प्रौद्योगिकी

लेकिन एटमी ऊर्जा का जर्मनी के साथ नाटकीय रिश्ता पूरा होने का नाम ही नहीं लेता था. 2010 में कंजरवेटिव क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स और लिबरल फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी सत्ता में आई और एटमी ऊर्जा का इस्तेमाल 14 साल तक

बढ़ा दिया गया. लेकिन एक साल बाद ही, जापान के फुकुशिमा एटमी ऊर्जा संयंत्र में परमाणु विस्फोटों ने जर्मनी को अपनी नीति पर फिर से गौर करने पर मजबूर कर दिया. 2022 के आखिर तक एटमी ऊर्जा को हटाने की योजना पर जर्मन सरकार लौट आई.

अक्टूबर में जर्मन चांसलर ओलाफ शोल्स ने देश के तीनों एटमी ऊर्जा स्टेशनों को 2023 में मध्य अप्रैल तक जारी रखने का आदेश दिया. उनकी योजनाबद्ध विदाई से तीन महीने से भी कम समय पहले ये आदेश आया था.

एटमी उद्योग से अपने रिटायरमेंट के समय डीडब्लू से बात करते हुए लिंगेन के स्थानीय निवासी और बिजलीकर्मी फ्रांत्स-योसेफ थीरिंग इस बात पर हैरान नहीं है कि जर्मनी एटमी ऊर्जा को छोड़ने को लेकर दुविधा में पड़ा है.

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अपने घर पर कॉफी पीते हुए वो यूरेनियम के टुकड़े का मॉडल दिखाते हैं, जो उन्हें यूरेनियम ईंधन की छड़ बनाने वाली कंपनी ने उपहार में दिया था जिसमें वो काम करते थे. एक साफ प्लास्टिक में बंद, सबसे छोटी अंगुली के नाखून के आकार का एक पतला सा टुकड़ा था वो.

थीरिंग कहते हैं कि इस जैसे दो टुकड़े एक साल तक जर्मनी में एक औसत गृहस्थी को बिजली मुहैया करा सकते हैं. उन्होंने डीडब्लू को बताया, "ये मुझे बड़ा दिलचस्प लगता है. ये भौतिकी है."

ऊर्जा की बढ़ती जरूरतें

थीरिंग की दलील है कि हरित ऊर्जा की ओर जाने की कोशिश में लगे जर्मनी में एटमी ऊर्जा संयंत्रों से पैदा होने वाली बिजली की अहमियत को कमतर समझना मूर्खता होगी.

इलेक्ट्रिक कारों और हीट पंपों का जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि "हमें भविष्य में और ज्यादा बिजली की जरूरत होगी. ये तथ्य है. और 6 फीसदी गंवाना भारी पड़ेगा जबकि उसकी जगह या उसके बदले कुछ भी नया नहीं है. हम 6 फीसदी गंवा रहे होंगे जबकि हमें वास्तव में ज्यादा की जरूरत है."

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कई जर्मन इससे सहमत हैं. जर्मन प्रसारण कंपनी एआरडी के मुताबिक फुकुशिमा तबाही के बाद एटमी फेजआउट के पक्ष में जनता का बहुमत था. लेकिन इस साल अगस्त में 80 फीसदी लोग जर्मनी के मौजूदा एटमी रिएक्टरों की उम्र को बढ़ाने के पक्ष में थे.

तबाही का डर

एटमी तबाही का डर और रेडियो एक्टिव एटमी कचरे के निस्तारण का अनसुलझा सवाल फिर भी कई लोगों को ये मानने को मजबूर करता है कि एटमी रिएक्टरों को चलाए रखने का कदम गलत है. बर्लिन मे हर्टी स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में एनर्जी इकोनॉमिक्स की प्रोफेसर क्लाउडिया केमफेर्ट, एटमी ऊर्जा पर बहुत ज्यादा निर्भर, पड़ोसी देश फ्रांस का हवाला देती हैं.

उन्होंने डीडब्लू से कहा, "फ्रांस में आधे नये एटमी ऊर्जा प्लांट ऑफलाइन हैं क्योंकि उनमें सुरक्षा समस्याएं हैं. जर्मनी में हमारी भी वही समस्याएं हैं. सुरक्षा निरीक्षण हुए 15 साल से ज्यादा हो चुके हैं. और इस समय निरीक्षणों की तत्काल जरूरत है जिससे हमें पता चल सके कि फ्रांस जैसी समस्या यहां है या नहीं."

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वो इस बात को भी रेखांकित करती है कि एटमी ऊर्जा प्राकृतिक गैस का एक कमजोर विकल्प है. जिसका इस्तेमाल बिजली पैदा करने के अलावा हीटिंग के लिए भी किया जा सकता है.

छोटा कार्बन फुटप्रिंट

फिर भी कई लोग एटमी ऊर्जा को कोयला जलाने से बेहतर विकल्प के रूप में देख रहे हैं. लेकिन इस ऊर्जा संकट के बीच जर्मनी कोयला ईंधन की ओर भी देख रहा है.

नीदरलैंड्स स्थित एटमी ऊर्जा विरोधी समूह वाइज के मुताबिक, एटमी संयंत्रो से 117 ग्राम सीओटू प्रति किलोवॉट घंटा निकलती है जबकि कोयले की एक किस्म लिग्नाइट को जलाने से प्रति किलोवॉट घंटा एक किलोग्राम सीओटू उत्सर्जन होता है.

बदलती परिस्थितियों के बावजूद, थीरिंग को नहीं लगता कि ये अस्थायी विस्तार, जर्मनी में मुकम्मल स्तर के एटमी पुनर्जागरण मे तब्दील हो पाएगा. वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि ये सिर्फ थोड़े से वक़्त की बात है. एक पुल की तरह."

रिपोर्टः क्रिस्टी प्लेडसन और नाइल किंग

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