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केरल में हाथी ने घर में घुसकर इंसान को क्यों मारा

साहिबा खान
१५ फ़रवरी २०२४

केरल में हाथी ने घर में घुसकर एक शख्स को मार डाला. राज्य में जंगली जानवरों द्वारा इंसानों पर हमले की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. क्या है इसकी वजह?

इंसानों और वन्य जीवों के बीच संघर्ष लगातार बढ़ रहा है. तस्वीर में: एशियाई हाथी
बढ़ती आबादी, शहरीकरण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कारण जंगल सिमटते जा रहे हैं. जंगलों पर निर्भर जानवरों के लिए भोजन और आवास का संकट गहरा हो रहा है. तस्वीर: WILDLIFE/picture alliance

बीते दिनों केरल के वायनाड जिले में एक बेकाबू जंगली हाथी ने रिहायशी इलाके में हमला कर दिया. घटना में एक स्थानीय निवासी की मौत हो गई. यह मामला मानंतवाड़ी नगर का है. मामला इसलिए संगीन है कि इस हाथी ने किसी जंगल में नहीं, बल्कि मृतक के घर में घुस कर उसे मार डाला. यह एक रेड-कॉलर्ड हाथी का काम था. रेड-कॉलर, जानवरों के गले में बंधा ऐसा पट्टा होता है जो उनकी गतिविधियां और लोकेशन ट्रैक करता है. स्थानीय लोगों की मांग है कि हाथी को पकड़ लिया जाए.

इस घटना के बाद केरल विधानसभा में वन मंत्री ए के शशिंद्रन ने एक प्रस्ताव पेश किया. 14 फरवरी को पेश किए गए इस प्रस्ताव में केंद्र सरकार से आग्रह किया गया है कि केरल में बढ़ते मानव-पशु संघर्ष के कारण वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की संबंधित धाराओं में जरूरी संशोधन किया जाए.

प्रस्ताव में संशोधन की मांग की गई, ताकि मानव जीवन के लिए खतरा बन चुके जंगली जानवर को मारने की अनुमति दी जा सके. इसमें मानव जीवन और फसलों के लिए एक बड़ा खतरा बन चुके जंगली सूअरों को ‘वर्मिन' घोषित करने की भी मांग की गई है. इसका संदर्भ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 62 से जुड़ा है. इसके अनुसार, अगर कृषि भूमि में तबाही मचाने वाले जंगली सूअरों को वर्मिन घोषित किया गया, तो एक निश्चित अवधि के लिए उन्हें मारने की अनुमति दी जा सकेगी.

हालांकि केंद्र का आरोप है कि अन्य मुद्दों की तरह केरल सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए यह मुद्दा केंद्र के सिर पर मढ़ रही है. विधानसभा प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि केरल सरकार अपनी विफलताओं को केंद्र सरकार के कंधों पर डाल रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार अपनी अक्षमताओं से लोगों का ध्यान हटाना चाहती है. 

केरल में बढ़ता मानव-पशु संघर्ष

यह हादसा राज्य में बढ़ रहे मानव-पशु संघर्ष को रेखांकित करता है. संदीप तिवारी, वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया में डेप्युटी चीफ ऑफ कंजर्वेशन के पद पर हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने बताया, "बढ़ती आबादी और शहरीकरण के चलते इंसानों और जानवरों में संघर्ष होना तय है.”

केरल में पिछले कुछ सालों से जंगली जानवरों, मुख्य रूप से हाथी, बाघ, बाइसन और जंगली सूअरों द्वारा इंसानों पर हमले की घटनाएं आम हो गई हैं. वायनाड, कन्नूर, पलक्कड़ और इडुक्की जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.

केरल वन विभाग की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, मानव-पशु संघर्ष की करीब नौ हजार घटनाएं दर्ज हुई हैं. इनमें 4,000 से ज्यादा मामले जंगली हाथियों से जुड़े हैं. जंगली सूअरों द्वारा हमले की 1,500 से ज्यादा वारदातें हुई हैं. इनके अलावा बाघ, तेंदुए और बाइसन द्वारा किए गए हमले भी हैं. रिपोर्ट की गई 98 मौतों में से 27 हाथियों के हमले के कारण हुई हैं.

इंसानों के लिए खतरा पैदा करने के अलावा, इन हमलों ने केरल के कृषि क्षेत्र को भी तबाह कर दिया है. 2017 से 2023 के बीच जंगली जानवरों के हमले के कारण फसल के नुकसान की लगभग 21 हजार घटनाएं हुईं, जिनमें डेढ़ हजार से ज्यादा घरेलू जानवर भी मारे गए. इनमें ज्यादातर  मवेशी थे.

2022 में केरल ने इस मुद्दे से निपटने के लिए केंद्र से 620 करोड़ रुपये की मांग की. हालांकि, केंद्र ने तब यह रकम देने से इनकार कर दिया था. 2011 से अब तक यहां मानव-पशु संघर्ष के चलते करीब 1,233 लोगों की जानें जा चुकी हैं.

यह तस्वीर मार्च 2016 की है, जब बर्दवान जिले में एक गांव में हाथी ने खेत में एक शख्स पर हमला कर दिया था. इसी दौरान पश्चिम बंगाल में चार और हाथियों के हमले की घटनाएं हुई थीं. प्रशासन ने बताया कि इन घटनाओं में पांच लोग मारे गए. तस्वीर: AFP/Getty Images

जंगलों की घटती गुणवत्ता

देहरादून स्थित वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया और केरल की पेरियार टाइगर कंजरवेटिव फाउंडेशन की एक 2018 की साझा रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में जंगलों की गुणवत्ता में गिरावट आई है. इसका कारण है किसानों का व्यावसायिक उपयोग के लिए स्थानीय प्रजातियों की जगह बबूल, मंगियम और यूकेलिप्टस जैसे बाहरी पौधे लगाना. ये ऐसी प्रजातियां हैं, जिनकी प्राकृतिक तौर पर इलाके में मौजूदगी नहीं रही है.

केरल में 30,000 एकड़ जमीन को इन प्रजातियों की खेती में लगा दिया गया है. इस कारण जानवरों के रहने की जगह भी कम हुई है और उनका खाना भी. इसके अलावा, ये ऐसी प्रजातियां हैं जो जमीन से कोसों दूर तक पानी खींच लेती हैं. यूकेलिप्टस की बात करें, तो वो चंद सेंकंडों में अपनी जड़ों से आठ मीटर नीचे का पानी खींच लेता है.

खेतों की जमीन इस्तेमाल करने के तरीकों में बदलाव

संदीप तिवारी बताते हैं, "जमीन को इस्तेमाल करने के तरीकों में आए बदलाव भी इसका बड़ा कारण हैं. किसान अपनी जमीनों को खाली छोड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें उस पर खेती करने से उतना फायदा नहीं होता, जितना होना चाहिए. लावारिस जमीनें देख कर जानवर वहां आ जाते हैं.”

एमपीआरए की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, केरल में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर में लगातार गिरावट आ रही है. खेती और उत्पादकता में आ रहे उतार-चढ़ाव और अप्रत्याशित मौसमी बदलावों के जोखिमों और नुकसानों के कारण केरल के कई किसान पशुपालन की ओर बढ़ने लगे हैं.

यह तस्वीर अक्टूबर 2013 की है, जब पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी में एक तेज रफ्तार ट्रेन के साथ टक्कर में एक हाथी मारा गया. ऐसी घटनाएं दुर्लभ नहीं हैं. जानकारों का कहना है कि हाथियों की सुरक्षित आवाजाही के लिए पारंपरिक गलियारे बहाल करने पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए. तस्वीर: Lila Sah/Indian Photo Agency/ZUMA Press/IMAGO

इस मसले से कैसे निपट रहा है केरल

संदीप तिवारी सुझाव देते हैं कि केरल में लोगों को चाहिए कि वे हाथियों के पीछे न भागें, ना ही उन्हें परेशान करें. साथ ही, राज्य में हाथियों की आवाजाही के पारंपरिक गलियारे बहाल करने पर भी ध्यान देना चाहिए. लोगों को अपने घरों के बहार बाड़ा लगाना होगा, ताकि जंगली जानवर अंदर न आएं.

प्रदेश सरकार ने जानवरों, खासकर हाथियों को खेतों से दूर रखने के लिए बड़ी दीवारें बनाई हैं. सौर ऊर्जा से चलने वाले बिजली के बाड़े जैसे इंतजाम भी किए हैं. 2022-23 में राज्य ने डेढ़ सौ किलोमीटर से लंबी हाथी-रोधी खाइयों का भी रखरखाव किया.

वन्य जीव जंगल से बाहर ना निकलें, इसके लिए केरल ने पर्यावरण-पुनर्स्थापना कार्यक्रम भी शुरू किए हैं. सरकार किसानों से भूमि अधिग्रहण की योजना भी चला रही है, जिसे बाद में वनभूमि में बदला जाएगा. अब तक 782 परिवारों से खेत लेकर उन्हें स्थानांतरित किया गया है और इसके लिए करीब 95 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया है.

सिर्फ केरल ही नहीं, बल्कि देशभर में ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 2020 के आंकड़ों के अनुसार, देश के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों के तीन राज्य - पश्चिम बंगाल, ओडिशा और असम सबसे ज्यादा समस्या ग्रस्त इलाके हैं. देश में मानव-हाथी संघर्ष में मानव और हाथी दोनों की लगभग आधी मौतों इन राज्यों में हुई हैं.

वन पंचायतों की जमीन पर बहुतों की नजर

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