जापान की रक्षा नीति में एक और बड़ा बदलाव
२६ मार्च २०२४जापान अब दूसरे देशों को लड़ाकू विमान बेचेगा. मंगलवार को देश की केंद्रीय कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को पारित कर दिया. एक साल पहले ही जापान ने ब्रिटेन और इटली के साथ मिलकर लड़ाकू विमान बनाने का समझौता किया था लेकिन दूसरे विश्व युद्ध में विनाश झेलने वाले देश में सेना और हथियार एक विवादित विषय रहा है इसलिए इस फैसले पर संशय बना हुआ था.
जापान की सरकार में शामिल बौद्ध विचारधारा वाली कोमाइतो पार्टी इसका विरोध कर रही थी. मंगलवार को जो प्रस्ताव पारित हुआ है उसके तहत सिर्फ नए लड़ाकू विमानों के निर्यात की इजाजत दी गई है.
सरकार ने कहा है कि अन्य घातक हथियार बनाने या बेचने से जापान की दूरी बनी रहेगी. जिन लड़ाकू विमानों के निर्यात की बात हो रही है वे 2035 तक बनकर तैयार होंगे.
बदल रही है नीति
जापान में बहुत लंबे समय तक हथियारों के निर्यात पर पाबंदी रही है. देश के संविधान में ही युद्ध विरोध का सिद्धांत है और इसके तहत किसी भी तरह के युद्ध से दूरी का नियम है. लेकिन पिछले कुछ सालों में देश की नीतियों में बड़े बदलावकिए गए हैं.
2014 में जापान ने कुछ सैन्य उपकरणों का निर्यात शुरू कर दिया था. हालांकि इनमें घातक हथियार शामिल नहीं थे. लेकिन पिछले साल दिसंबर में फिर कानून में बदलाव किया गया और 80 घातक हथियारों के निर्यात को इजाजत दी गई. हालांकि ये हथियार सिर्फ उन्हीं देशों को बेचे जाने हैं, जिनके साथ उसका हथियार निर्माण का समझौता है.
दिसंबर में हुए बदलाव ने जापान के लिए अमेरिका में डिजाइन की गई पेट्रियट मिसाइलों को अमेरिका को वापस बेचने का रास्ता साफ कर दिया था. इन मिसाइलों को अमेरिका को यूक्रेन को भेजना था. अब हथियारों की उस सूची में आधुनिक लड़ाकू विमान भी जुड़ गए हैं, जो देश के इतिहास में पहली बार होगा.
कैसे हैं लड़ाकू विमान?
जापान ने अत्याधुनिक लड़ाकू विमान बनाने के लिए इटली और ब्रिटेन के साथ एक समझौता किया था. इस समझौते के तहत अमेरिकी एफ-2 और यूरोफाइटर टाइफून्स विमानों की जगह लेने वाले नए विमान विकसित किए जाने हैं. इटली और ब्रिटेन की सेनाएं अपने इन पुराने विमानों को हटाकर उनकी जगह नए विमान लाना चाहती हैं.
इससे पहले जापान अपने यहां एफ-एक्स नाम से एक विमान विकसित कर रहा था. दिसंबर 2022 में हुए तीनों देशों के समझौते के बाद एफ-एक्स प्रोजेक्ट को साझा तौर पर ग्लोबल कॉम्बैट एयर प्रोग्राम नाम दिया गया. हालांकि फिलहाल यह परियोजना ब्रिटेन में आधारित है.
जापान को उम्मीद है कि नए विमान बेहतर तकनीक पर आधारित होंगे. रूस और चीन के साथ जापान के संबंधों में हमेशा तनाव रहा है, इसलिए वह अत्याधुनिक विमानों को लेकर खासा उत्सुक है, ताकि सैन्य शक्ति के मामले में अपने प्रतिद्वन्द्वियों के मुकाबले में आ सके.
आर्थिक और रणनीतिक लाभ
लड़ाकू विमानों के निर्यात से जापान के रक्षा उद्योग को भारी लाभ मिलने की संभावना है. अब तक जापान के पास सिर्फ आत्म रक्षा के लिए सेना होती थी और स्थानीय रक्षा उद्योग उसी के लिए निर्माण करता था. देश के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा जापान के लिए पेशेवर सेना तैयार करने का ऐलान पहले ही कर चुके हैं.
इस फैसले के पीछे एक बड़ी यह भी है कि जापान भू-राजनीतिक मामलों में वैश्विक स्तर पर अपनी ताकत और बढ़ाना चाहता है. अगले महीने ही किशिदा अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले हैं. मंगलवार को हुए फैसले के बाद वह अमेरिका जाकर यह कह सकेंगे कि उनका देश रक्षा क्षेत्र में बड़े सहयोग के लिए तैयार है.
देश के विपक्षी दल और बहुत से आम लोग किशिदा के इस रवैये की आलोचना करते रहे हैं. हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में भी यह बात सामने आई थी कि युद्ध को लेकर अब भी जनता की राय बंटी हुई है. यही वजह है कि सरकार ने वादा किया है कि ऐसा कोई हथियार नहीं बेचा जाएगा, जिसका इस्तेमाल युद्ध में हो सकता है.
यहां तक कि जापानी रक्षा मंत्री मिनोरू किहारा ने कहा कि अगर जापान से खरीदे गए विमानों का इस्तेमाल कोई देश युद्ध में करता है तो वह पुर्जे और अन्य उपकरण उपलब्ध नहीं कराएगा.
वीके/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)