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समाजएशिया

भारतीय कश्मीर को बिजली क्यों नहीं मिलती?

समान लतीफ (श्रीनगर)
३१ दिसम्बर २०२१

कश्मीर के स्थानीय लोग सर्दियों के मौसम में शून्य से नीचे तापमान और बिजली की कमी का दोहरा दर्द झेलते हैं. जलविद्युत उत्पादन की विशाल क्षमता के बावजूद, यह सवाल बड़ा अहम है कि यहां इतनी कम बिजली क्यों उपलब्ध है.

BdTD | Indien | gefrorene Wasserfälle bei Srinagar
18 दिसंबर 2021 को श्रीनगर की तस्वीर में पाइप से लीक होकर निकला पानी इस तरह जमा दिखा. कश्मीर में कई जगहों पर लोग शीतलहर झेल रहे हैं.तस्वीर: Waseem Andrabi/Hindustan Times/imago images

भारतीय कश्मीर में राजनीतिक संघर्ष के बाद, बिजली की समस्या शायद दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है जिस पर वहां के लोग सबसे ज्यादा चर्चा करते हैं. स्थानीय लोगों की शिकायत रहती है कि केंद्र सरकार उनके जलसंसाधनों पर नियंत्रण कर रही है.

कश्मीर में 20,000 मेगावाट पनबिजली का उत्पादन करने की क्षमता है जो इसके आर्थिक विकास के लिए एक प्रमुख प्रेरक शक्ति बन सकता है. लेकिन मौजूदा समय में यहां केवल 3,263 मेगावाट बिजली का ही उत्पादन होता है.

साल 2000 के दशक की शुरुआत में उग्रवाद के खत्म होने के बाद, सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे रहे कश्मीर में राजनीतिक दलों के बीच बिजली की जरूरतें सरकारी नीतियों के केंद्र में रही हैं. क्षेत्रीय राजनीतिक दल इस समय भारत सरकार के उद्यम राष्ट्रीय जल विद्युत निगम यानी एनएचपीसी के नेतृत्व में सात बिजली परियोजनाओं की वापसी की मांग कर रहे हैं.

वर्तमान में कुल 3,263 मेगावाट पनबिजली उत्पादन क्षमता में से, 2009 मेगावाट का उत्पादन एनएचपीसी ही करती है. लेकिन इसका केवल 13 फीसदी हिस्सा वह कश्मीर के साथ साझा करती है जबकि कश्मीर को अपनी जरूरत पूरी करने के लिए भारत के उत्तरी ग्रिड से ऊंची कीमतों पर बिजली खरीदनी पड़ती है.

‘हमें छह घंटे भी बिजली नहीं मिलती'

उत्तरी कश्मीर के बारामूला जिले में वगूरा कस्बे की रहने वाली नसीमा रसूल कहती हैं, इस कड़ाके की सर्दी और शून्य से नीचे के तापमान में, हमें छह घंटे भी बिजली नहीं मिलती है. हम नहाने और कपड़े धोने के लिए पानी गर्म करने के लिए लकड़ी पर निर्भर हैं."

रसूल बताती हैं कि सांस के मरीज और स्कूली बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है. वो कहती हैं, "हमारे बच्चे देर शाम या सुबह जल्दी उठकर पढ़ाई नहीं कर पाते हैं क्योंकि बिजली रहती ही नहीं."

बिजली के लिए लड़ाई

5 अगस्त 2019 को क्षेत्र की विशेष संवैधानिक स्थिति को निरस्त करने के बाद कश्मीर में एक निर्वाचित सरकार की अनुपस्थिति में केंद्र सरकार ने एनएचपीसी को पांच अन्य बिजली परियोजनाओं को सौंपने के लिए तथाकथित कुछ समझौतों यानी तथाकथित एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं. इस बात से स्थानीय लोगों में काफी नाराजगी है.

पिछले हफ्ते, केंद्र सरकार को स्थानीय कर्मचारियों के विरोध का सामना करने के बाद क्षेत्र के बिजली विभाग को पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड में विलय करने के प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप इस क्षेत्र में भीषण शीत लहर के दौरान भारी बिजली कटौती का सामना करना पड़ा.

कश्मीर में बिजली संकट के केंद्र में सिंधु जल संधि यानी आईडब्ल्यूटी है. यह भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की देख-रेख में हुआ एक जल-साझाकरण समझौता है जो कि सिंधु नदी और उसकी पांच सहायक नदियों के प्रवाह और जल संसाधन को लेकर होने वाले विवाद को नियंत्रित करने के लिए किया गया था.

मुश्किल में श्रीनगर की डल झील

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सिंधु जल संधि के अनुसार, तीन पूर्वी नदियों- ब्यास, रावी और सतलुज पर भारत का बेरोकटोक नियंत्रण है जबकि पाकिस्तान का तीन पश्चिमी नदियों- झेलम, चिनाब और सिंधु पर नियंत्रण है. ये तीनों नदियां भारत प्रशासित कश्मीर और पाकिस्तान में बहती हैं. हालांकि, भारत तीन पश्चिमी नदियों के पानी का 20 फीसदी सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के उद्देश्यों के लिए उपयोग कर सकता है.

बिजली विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू के बताया, "भारत सरकार और कश्मीर स्थित भारत-समर्थक राजनीतिक दल पश्चिमी नदियों के किनारे बिजली परियोजनाओं के निर्माण पर कभी भी एकमत नहीं थे. दोनों पक्ष जल संसाधनों पर अधिकतम नियंत्रण हासिल करना चाहते थे."

वो कहते हैं, "कश्मीर में आम भावना यही रही है कि पनबिजली परियोजनाओं से पाकिस्तान में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए. इसलिए क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने कभी भी जल भंडारण सुविधाओं के निर्माण को प्रोत्साहित नहीं किया."

सिंधु जल संधि पर भारतीय रुख

साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद, भारत ने आईडब्ल्यूटी से पूरी तरह से बाहर निकलने या जल संसाधनों का जितना हो सके दोहन करने के विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया.

यह देखते हुए कि संधि को पूरी तरह से समाप्त करने के अलग परिणाम हो सकते हैं, भारत सरकार ने जल संसाधनों के अधिकतम दोहन का निर्णय लिया. जम्मू कश्मीर के विद्युत विकास निगम के मैनेजिंग डायरेक्टर राजा याकूब फारूक कहते हैं कि जल के अधिकतम दोहन के लिए भारत की तेज होती कोशिशें तब दिखीं जब अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद अधिकारियों ने 4,136 मेगावाट की उत्पादन क्षमता वाली नई बिजली परियोजनाओं को एनएचपीसी को सौंपना शुरू कर दिया.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा कहते हैं, पिछले छह से आठ महीनों में, हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में एनएचपीसी के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जो अगले 4-5 वर्षों में 3,500 मेगावाट अतिरिक्त बिजली पैदा करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे."

आईडब्ल्यूटी के तहत, भारत को डिजाइन और संचालन के लिए विशिष्ट मानदंडों के अधीन, पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ-द-रिवर परियोजनाओं के माध्यम से पनबिजली पैदा करने का अधिकार दिया गया है. यह संधि पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर भारतीय जलविद्युत परियोजनाओं के डिजाइन पर आपत्ति उठाने का अधिकार भी देती है.

अतीत में, पाकिस्तान ने कश्मीर में बगलिहार और किशनगंगा जैसी कई जलविद्युत परियोजनाओं के डिजाइन को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है. इन परियोजनाओं को उनके डिजाइन में सुधार के बाद ही आगे बढ़ने की अनुमति दी गई थी, और इसमें कई साल की देरी भी हुई थी.

अगस्त महीने में, भारत की एक संसदीय समिति ने संसद में अपनी रिपोर्ट पेश की. समिति ने सिंचाई और जलविद्युत क्षमता के उपयोग की जांच करने के लिए पाकिस्तान के साथ आईडब्ल्यूटी पर फिर से बातचीत करने की सिफारिश की. समिति ने सरकार से पाकिस्तान के साथ आईडब्ल्यूटी पर फिर से बातचीत करने के लिए आवश्यक राजनयिक उपाय करने को कहा है.

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