भारत के प्रति सख्त, लेकिन चीन के प्रति उदार क्यों हैं ट्रंप?
१८ अगस्त २०२५
कई महीनों तक व्यापारिक तनाव के बाद, अब चीन और अमेरिका के रिश्ते नए मोड़ पर आ गए हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को फिर से सामान्य बनाने की कोशिशों में लगे हुए हैं. इस पहल का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के बीच टैरिफ यानी आयात शुल्क की एक नई जंग को रोकना है.
अप्रैल में, ट्रंप ने चीन को ‘अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा' करार दिया था. उन्होंने कहा था कि उसने दशकों तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को ‘धोखा' दिया है. इसके बाद, चीनी वस्तुओं पर 145 फीसदी तक का शुल्क लगा दिया था.
कुछ ही महीनों बाद माहौल पूरी तरह बदल गया है. ट्रंप ने चीनी सामानों पर लगने वाले आयात शुल्क में छूट की समयसीमा को और आगे बढ़ा दिया है. उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ‘एक मजबूत नेता' कहकर उनकी तारीफ भी की है. इतना ही नहीं, उन्होंने सितंबर से नवंबर के दौरान दोनों देशों के बीच एक शिखर सम्मेलन आयोजित करने का विचार भी रखा है.
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वहीं दूसरी ओर, अमेरिका के हालिया व्यापारिक फैसलों से भारत और ब्राजील जैसे देशों को बड़ा झटका लगा है. इन देशों पर अब 50 फीसदी तक का आयात शुल्क लगाया गया है. जबकि, चीन के लिए यह दर 30 फीसदी पर सीमित कर दी गई है, जिससे उसे कम नुकसान होगा.
ट्रंप के पास चीन को थोड़ी राहत देने के कई कारण हैं. अमेरिका में जल्द ही छुट्टियों का मौसम शुरू होने वाला है. इस दौरान खुदरा व्यापारियों को चीन से भारी मात्रा में वस्तुएं आयात करने की जरूरत होती है. शुल्क में अचानक बढ़ोतरी से बाजार में सामानों की कमी हो सकती है और कीमतें बढ़ सकती हैं.
ट्रंप चीन के साथ एक बड़ा व्यापार समझौता भी करना चाहते हैं. इसमें टेक्नोलॉजी, ऊर्जा और रेयर अर्थ खनिजों जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल हो सकते हैं. शुल्क में ढील देकर ट्रंप इस बातचीत के लिए समय निकाल रहे हैं, ताकि दोनों पक्ष एक स्थायी समाधान पर पहुंच सकें.
इनसिऐड बिजनेस स्कूल में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एंटोनियो फातास का मानना है कि चीन ही एकमात्र ऐसा देश है जो अमेरिका की आक्रामक नीतियों का डटकर सामना कर रहा है. उन्होंने कहा कि चीन की रणनीति ने ट्रंप को अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए इधर-उधर हाथ-पांव मारने और संघर्ष करने पर मजबूर कर दिया है.
फातास ने डीडब्ल्यू को बताया, "शुरू से ही यह साफ था कि चीन एक बड़ा व्यापार युद्ध लड़ने के लिए तैयार था. ऐसा युद्ध जिससे अमेरिका को इतना आर्थिक नुकसान होता कि ट्रंप सरकार को उसे झेलना मुश्किल हो जाता.”
चीन का गुप्त हथियार: रेयर अर्थ
रेयर अर्थ खनिजों पर चीन का दबदबा, शायद उसका सबसे बड़ा हथियार है. इन खनिजों की जरूरत इलेक्ट्रिक वाहनों से लेकर मिसाइल गाइडेंस सिस्टम तक बनाने में पड़ती है. अमेरिकी उद्योग इन खनिजों की चीनी आपूर्ति पर बहुत हद तक निर्भर हैं. इसलिए, ये संसाधन व्यापारिक टकराव में एक निर्णायक कारक बन गए हैं.
चीन दुनिया के लगभग 60 फीसदी रेयर अर्थ का उत्पादन और 90 फीसदी की रिफाइनिंग करता है. अप्रैल में ट्रंप की ओर से काफी ज्यादा शुल्क लगाए जाने की घोषणा के बाद चीन ने सात रेयर अर्थ एलिमेंट और परमानेंट मैग्नेट के निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी. इस कदम से अमेरिकी उद्योगों, खासकर ऑटोमोबाइल सेक्टर को बड़ा झटका लगा.
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वहीं अमेरिका भी एडवांस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) चिप्स तक चीन की पहुंच को और सीमित करना चाहता है. साथ ही, वह बीजिंग पर रूस से तेल आयात कम करने के लिए दबाव बना रहा है. अमेरिका उसे यह चेतावनी भी दे रहा है कि अगर आयात बढ़ता रहा तो उस पर अन्य प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जिसमें काफी ज्यादा आयात शुल्क भी शामिल है.
अमेरिका ने व्यापार बातचीत से जुड़ी कई अन्य प्राथमिकताओं की सूची भी तैयार की हुई है. ट्रंप चीन से अमेरिकी सोयाबीन की खरीद को चार गुना बढ़ाने का आग्रह कर रहे हैं. यह कदम अमेरिकी किसानों को फायदा पहुंचाएगा और पिछले साल दोनों वैश्विक ताकतों के बीच 295.5 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को कम करेगा. चीन दुनिया में सोयाबीन का सबसे बड़ा आयातक है. वह वैश्विक मांग का 60 फीसदी से ज्यादा आयात करता है. इसका उपयोग मुख्य रूप से पशुओं के चारे और खाना पकाने के तेल के लिए होता है.
दूसरी ओर, चीन अमेरिका की तरफ से लगाए गए आयात शुल्क में स्थायी कमी चाहता है, खासकर टेक्नोलॉजी और मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में. वह यह भी चाहता है कि चीनी कंपनियों को अमेरिकी प्रतिबंधों से सुरक्षा मिले और उन्हें अत्याधुनिक अमेरिकी चिप्स तक पहुंच की गारंटी दी जाए.
साथ ही, चीनी सरकार अब लोगों को एनवीडिया के एच20 प्रोसेसर का इस्तेमाल न करने के लिए कह रही है. यह सबसे एडवांस अमेरिकी चिप है जिसे फिलहाल चीन में निर्यात करने की अनुमति है. विश्लेषकों का कहना है कि चीन ऐसा यह दिखाने के लिए कर रहा है कि वह अब अच्छी तकनीक के लिए अमेरिका पर कम निर्भर होता जा रहा है.
घरेलू मुद्दों और यूक्रेन पर ट्रंप का ध्यान
ब्रसेल्स स्थित थिंक टैक ‘ब्रूगेल' की सीनियर फेलो और अर्थशास्त्री एलिसिया गार्सिया-हेरेरो ने बताया कि ट्रंप चीन को इसलिए ढील दे रहे हैं, क्योंकि उनके सामने कई चुनौतियां हैं. जैसे, व्यापार, देश के अंदर की समस्याएं और भू-राजनीतिक चुनौतियां. इसमें अलास्का में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से होने वाली शांति वार्ता भी शामिल है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "ट्रंप के पास पहले से ही बहुत काम हैं. उनके पास चीन को दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा समय देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.”
अब नवंबर तक आयात शुल्क पर छूट दे दी गई है. इससे बातचीत करने वालों को मुश्किल मुद्दों पर ध्यान देने का समय मिल गया है. उनका सबसे बड़ा लक्ष्य है कि चीनी सामान पर 145 फीसदी और अमेरिकी सामान पर 125 फीसदी का भारी आयात शुल्क न लगे, क्योंकि दोनों देशों को पता है कि इससे बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान होगा.
चीन पर अमेरिका ने 30 फीसदी का औसत आयात शुल्क लगाया है, जो दूसरे देशों से ज्यादा है. हालांकि, कुछ खास उत्पादों पर यह शुल्क और भी ज्यादा है. चीन से अमेरिका में निर्यात होने वाले तांबे और इस्पात जैसे सामानों पर 50 फीसदी का आयात शुल्क लगाया गया है.
भारत पर ट्रंप की रणनीति में बदलाव
एक तरफ अमेरिका ने चीन को आयात शुल्क की समयसीमा पर छूट दिया है, वहीं दूसरी तरफ भारत के साथ उसका रवैया बदल गया है. जो भारत पहले अच्छा व्यापारिक साथी था, वह अब अमेरिका के लिए विलेन जैसा हो गया है.
भारत को अब अमेरिका में सामान निर्यात करने पर 50 फीसदी का शुल्क झेलना पड़ेगा. इसमें से 25 फीसदी तो सामान्य वस्तुओं पर है और बाकी का 25 फीसदी रूस से तेल खरीदने की वजह से है, जो 27 अगस्त से लागू होने की उम्मीद है.
इनसिऐड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर एंटोनियो फातास कहते हैं, "भारत न तो चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था है, न ही वह ऐसे सामानों का निर्यात करता है जो अमेरिकी उद्योग के लिए जरूरी हैं, और न ही उसके पास इतनी शक्ति है कि वह अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचा सके.” उन्होंने कहा कि भारत अपने सहयोगियों के साथ मिलकर सामूहिक ताकत दिखाए और शुल्क कम कराए.
वहीं दूसरी ओर, भले ही बातचीत में चीन का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है, लेकिन स्ट्रैटेजिक एडवाइजरी फर्म ‘द एशिया ग्रुप' के चीन के मैनेजिंग डायरेक्टर हान शेन लिन चीनी पक्ष को आगाह करते हैं कि वह ढीला न पड़े. आखिरकार, ट्रंप का अप्रत्याशित कदम उठाने का अंदाज हालात को कभी भी पलट सकता है.
हान ने न्यूज एजेंसी ‘रॉयटर्स' को बताया, "हम इस बात को नजरअंदाज नहीं कर सकते कि अमेरिका के पास बातचीत के दौरान और ज्यादा चौंकाने वाले कदम उठाने की ताकत है. मेरा मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार होने की वजह से अमेरिका के पास जो ताकत है वह दूसरे देशों को सोच-समझकर कदम उठाने पर मजबूर करेगा.”
तनाव टला, लेकिन आर्थिक दबाव बढ़ा
ट्रंप अपने तेवर नरम करने के बावजूद, चीन पर अन्य तरीकों से दबाव बनाए हुए हैं. चीनी निर्यातक अमेरिका जाने वाले माल को दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, खासकर वियतनाम, मलेशिया और थाईलैंड के रास्ते भेज रहे हैं. इसका मकसद अमेरिकी शुल्कों से बचना और यह छिपाना है कि यह माल मुख्य रूप से किस देश का है. इसके जवाब में, ट्रंप ने उन सभी देशों पर 40 फीसदी ट्रांसशिपमेंट शुल्क लगा दिया है जिन पर चीनी माल भेजने में मदद करने का संदेह है. यह शुल्क पिछले हफ्ते लागू हुआ.
एलिसिया गार्सिया-हेरेरो, फ्रांसीसी बैंक नतिक्सिस की मुख्य अर्थशास्त्री भी हैं. उनका मानना है कि अमेरिका-चीन के बीच व्यापार समझौते को लेकर बातचीत, शुल्क में छूट के लिए तय की गई आखिरी समयसीमा तक जारी रह सकती है. ऐसा लगता है कि इससे दोनों के बीच व्यापारिक तनाव थोड़ा कम होगा. इसका फायदा सिर्फ अमेरिकी कंपनियों को मिलेगा और अमेरिका के सहयोगी देशों को अनदेखा कर दिया जाएगा.
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "हमें अमेरिका की ओर से बेहतर क्वालिटी के चिप और चीन की ओर से रेयर अर्थ खनिजों पर निर्यात के मामले में बदलाव देखने को मिल सकता है. चीन पर शुल्क थोड़ा कम होने की संभावना है. अमेरिकी कंपनियों को चीनी बाजार में बेहतर पहुंच मिलेगी. इससे यूरोपीय संघ, दक्षिण कोरिया और जापान को नुकसान होगा.”