एक विमान को मिंस्क में उतारकर पत्रकार रमान प्रतोसेविच को गिरफ्तार किया गया, लेकिन ऐसा क्या हुआ था कि बेलारूस के राष्ट्रपति आलेक्जांडर लुकाशेंको ने खुद एक लड़ाकू विमान को आदेश देकर एक नागरिक विमान को उतारा?
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रविवार को बेलारूस में में रायनएयर के एक विमान को जबरन मिंस्क में उतारा गया. कहा गया कि विमान पर बम होने की सूचना है. जब यह स्पष्ट हो गया कि विमान को मिंस्क की ओर मोड़ा जा रहा है, तो एक यात्री की प्रतिक्रिया सबसे अलग थी. उस युवा यात्री ने घबराहट में अपना सिर पकड़ लिया था. जब विमान हवाई अड्डे पर उतरा तो सभी यात्री विमान से उतरे. उनका सामान जांचा गया. तब सुरक्षाकर्मी उस युवक के पास पहुंचे. वह शांत दिख रहा था पर अब भी कांप रहा था. जब उसे एक अनजान जगह पर ले जाया गया, तब उसने अपने इर्द-गिर्द खड़े लोगों को बताया कि मौत की सजा उसका इंतजार कर रही है.
यह युवक बेलारूस के ब्लॉगर और पत्रकार 26 साल के रमान प्रतोसेविच थे. उन्हें पता था कि यूं औचक उनके मिंस्क में होने का अर्थ उनकी गिरफ्तारी था क्योंकि वह देश की आतंकवादी सूची में हैं. इस सूची को राष्ट्रीय सुरक्षा समिति ने तैयार किया है, जिसे आज भी केजीबी के नाम से जाना जाता है.
सुरक्षा के लिए खतरा
जब यह गिरफ्तारी हुई, तब प्रतोसेविच एथेंस से पोलैंड के विल्नियस जा रहे थे, जहां वह आजकल रहते हैं. बेलारूस के राष्ट्रपति आलेक्जांडर लुकाशेंको ने खुद आदेश दिया कि रायनएयर के नागरिक विमान को मिग-21 लड़ाकू विमान घेरकर मिंस्क में उतारे. एक बयान में रायनएयर ने कहा कि बेलारूस एयर ट्रैफिक कंट्रोल ने विमान के चालक दल को सुरक्षा का खतरा होने की सूचना दी थी और मिंस्क के नजदीकी एयरपोर्ट पर उतरने को कहा था.
2019 में गिरफ्तारी के डर से प्रतोसेविच बेलारूस छोड़ पोलैंड चले गए थे. उन्होंने प्रभावशाली टेलीग्राम चैनलों नेक्स्टा और नेक्स्टा लाइव के मुख्य संपादक के तौर पर काम किया था. अगस्त में विवादित राष्ट्रपति चुनावों के बाद इंटरनेट बंद किए जाने के दौरान यही चैनल प्रदर्शनों के लिए सूचना का मुख्य स्रोत थे.पिछले साल नवंबर से ही प्रतोसेविच और उनके साथी नेक्स्टा के सह-संस्थापक स्टीपान पुतिला बेलारूस की आतंकवादी सूची में शामिल हैं. इस सूची में 700 से ज्यादा लोगों के नाम हैं जिन्हें सरकार आतंकवादी गतिविधियों में शामिल मानती है.
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पोलैंड से नाराजगी
बेलारूस के ज्यादातर विपक्षी नेता देश छोड़ चुके हैं. नेक्स्टा ने सूचनाएं फैलाने, रैलियों का वक्त और जगह बताने और पुलिस की ज्यादतियों को उजागर करने आदि में अहम भूमिका निभाई है. लुकाशेंको 1994 से देश की सत्ता पर काबिज हैं. उन्होंने सोशल मीडिया और निष्पक्ष पत्रकारों पर विरोधी रैलियां आयोजित करने के आरोप लगाए हैं.
जब प्रतोसेविच से पूछा गया कि उन्हें लुकाशेंको के एजेंटों द्वारा पोलैंड में निशाना बनाए जाने का डर तो नहीं, उन्होंने कहा था कि वह शरण लेने की प्रक्रिया में हैं और उन्हें निर्वासित नहीं किया जाएगा. रमान प्रतोसेविच के निर्वासन के लिए बेलारूस एक बार पोलैंड सरकार को अनुरोध भेज चुका है. लेकिन पोलैंड ने इसे नहीं माना था.
पोलिश अल्पसंख्यक समुदाय के चार अहम कार्यकर्ताओं को बेलारूस में गिरफ्तार किया गया था. इनमें आंजेलिका बोरिस और आंद्रेय पोजोबुत शामिल हैं जो वहां के बड़े सामुदायिक नेता हैं. उन पर एक लोक मेले में लोगों के जमा होने के नियमों के उल्लंघन के आरोप लगाए गए थे. साथ ही उन पर धार्मिक और राष्ट्रीय नफरत फैलाने जैसे गंभीर आरोप भी थे जिनमें 12 साल तक की जेल हो सकती है. देश के सरकारी टीवी पर पोलैंड विरोधी प्रोपेगैंडा भी जारी है.
मीडिया पर लुकाशेंका का हमला
लुकाशेंको सरकार ने पिछली गर्मियों में हुए चुनावों से कई महीने पहले ही मीडिया और निष्पक्ष पत्रकारों को निशाना बनाना शुरू कर दिया था. जून में रेडियो फ्री यूरोप के सलाहकार इहार लोसिक और एक अन्य टेलीग्राम चैनल बेलारूस ऑफ द ब्रेन के संस्थापक को हिरासत में ले लिया गया था. तब से हालात बेहद गंभीर हो चुके हैं.
18 मई को सुरक्षाकर्मियों ने tut.by के दफ्तरों पर हमला बोला, जो बेलारूस का सबसे बड़ा मीडिया संस्थान है. वेबसाइट के लिए काम करने वाले पत्रकारों के घरों पर भी छापे मारे गए. पोर्टल की संपादक मैरिना जोलतावा और कई अन्य पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया. 20 साल से यह पोर्टल देश में काफी लोकप्रिय रहा है. सत्तापक्ष और विपक्षी सभी के समर्थक इस पोर्टल के पाठक रहे हैं. मई में इस वेबसाइट की पहुंच रिकॉर्ड 33 लाख लोगों तक हो गई थी, जो देश में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का 63 प्रतिशत है. मई में ही वेबसाइट को ब्लॉक कर दिया गया.
देश में दर्जनों निजी समाचार वेबसाइट ब्लॉक की जा चुकी हैं. सैकड़ों पत्रकारों को या तो गिरफ्तार कर लिया गया है या हिरासत में रखा गया है. दर्जनों अखबार बंद किए जा चुके हैं. लेकिन यह काफी नहीं था कि प्रतोसेविच को गिरफ्तार कर लिया गया.
प्रोतासेविच पर आरोप
रमान प्रतोसेविच पर कम से कम तीन आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. उनमें से एक दंगों की साजिश का है, जिसमें 15 साल तक की कैद हो सकती है. हालांकि उनकी कथित आतंकी गतिविधियों के आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन बहुत संभव है कि उन्हें मिंस्क स्थित केजीबी की जेल में रखा गया है. उन्हें वकील से भी नहीं मिलने दिया गया. उनके स्वास्थ्य आदि के बारे में भी कोई सूचना नहीं दी गई है.
रिपोर्ट: हाना लुइबाकोवा
प्रेस को कहां कितनी आजादी है?
नए प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में चार स्कैंडेनेवियाई देशों को पत्रकारों के लिए सबसे अच्छा माना गया है. भारत, पाकिस्तान और अमेरिका में पत्रकारों का काम मुश्किल है. जानिए रिपोर्टस विदाउट बॉर्डर्स के इंडेक्स में कौन कहां है.
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1. नॉर्वे
दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में नॉर्वे पहले स्थान पर कायम है. वैसे दुनिया में जब भी बात लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आती है तो नॉर्वे बरसों से सबसे ऊंचे पायदानों पर रहा है. हाल में नॉर्वे की सरकार ने एक आयोग बनाया है जो देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिस्थितियों की व्यापक समीक्षा करेगा.
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2. फिनलैंड
नॉर्वे का पड़ोसी फिनलैंड पिछले साल की तरह इस बार भी प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में दूसरे स्थान पर है. जब 2018 में हेलसिंकी में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात हुई तो एयरपोर्ट से लेकर शहर तक पूरे रास्ते पर अंग्रेजी और रूसी भाषा में बोर्ड लगे थे, जिन पर लिखा था, "श्रीमान राष्ट्रपति, प्रेस स्वतंत्रता वाले देश में आपका स्वागत है."
डेनमार्क प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में एक साल पहले के मुकाबले दो पायदान की छलांग के साथ पांचवें से तीसरे स्थान पर पहुंचा है. 2015 के इंडेक्स में भी उसे तीसरे स्थान पर रखा गया था. लेकिन राजधानी कोपेनहागेन के करीब 2017 में स्वीडिश पत्रकार किम वाल की हत्या के बाद उसने अपना स्थान खो दिया था.
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4. स्वीडन
1776 में दुनिया का पहला प्रेस स्वतंत्रता कानून बनाने वाला स्वीडन इस इंडेक्स में चौथे स्थान पर है. पिछले साल वह तीसरे स्थान पर था. वहां कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि बड़ी मीडिया कंपनियां छोटे अखबारों को खरीद रही हैं. स्थानीय मीडिया के 50 फीसदी से ज्यादा हिस्से पर सिर्फ पांच मीडिया कंपनियों का कब्जा है.
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5. नीदरलैंड्स
अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से नीदरलैंड्स में मीडिया स्वतंत्र है. हालांकि स्थापित मीडिया पर चरमपंथी पॉपुलिस्ट राजनेताओं के हमले बढ़े हैं. इसके अलावा जब डच पत्रकार दूसरे देशों के बारे में नकारात्मक रिपोर्टिंग करते हैं तो वहां की सरकारें डच राजनेताओं पर दबाव डालकर मीडिया के काम में दखलंदाजी की कोशिश करती हैं.
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6. जमैका
कैरेबियन इलाके का छोटा सा देश जमैका प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में छठे स्थान पर है. वहां 2009 से प्रेस की स्वतंत्रता को कोई खतरा और फिर पत्रकारों के खिलाफ हिंसा का कोई गंभीर मामला देखने को नहीं मिला है. हालांकि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स कुछ कानूनों को लेकर चिंतित है जिन्हें पत्रकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: imago/Ralph Peters
7. कोस्टा रिका
पूरे लैटिन अमेरिका में मानवाधिकारों और प्रेस स्वतंत्रता का सम्मान करने में कोस्टा रिका का रिकॉर्ड सबसे अच्छा है. यह बात इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरा इलाका भ्रष्टाचार, हिंसक अपराधों और मीडिया के खिलाफ हिंसा के लिए बदनाम है. लेकिन कोस्टा रिका में पत्रकार आजादी से काम कर सकते हैं और सूचना की आजादी की सुरक्षा के लिए वहां कानून हैं.
तस्वीर: picture alliance/maxppp/F. Launette
8. स्विट्जरलैंड
मोटे तौर पर स्विटजरलैंड में राजनीतिक और कानूनी परिदृश्य को पत्रकारों के लिए बहुत सुरक्षित माना जा सकता है, लेकिन 2019 में जिनेवा और लुजान में कई राजनेताओं ने पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे किए. इससे मीडिया को लेकर लोगों में अविश्वास पैदा हो सकता है. पहले वहां मीडिया की आलोचना तो होती थी लेकिन शायद ही कभी मुकदमे होते थे.
तस्वीर: dapd
9. न्यूजीलैंड
न्यूजीलैंड में प्रेस स्वतंत्र है लेकिन कई बार मीडिया ग्रुप मुनाफे के चक्कर में अपनी स्वतंत्रता और बहुलतावाद का ध्यान नहीं रखते हैं जिससे पत्रकारों के लिए खुलकर काम कर पाना संभव नहीं होता. जब मुनाफा अच्छी पत्रकारिता की राह में रोड़ा बनने लगे तो प्रेस की स्वतंत्रता प्रभावित होने लगती है. फिर भी, न्यूजीलैंड का मीडिया बहुत से देशों से बेहतर है.
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10. पुर्तगाल
180 देशों वाले इस इंडेक्स में पुर्तगाल दसवें पायदान पर है. हालांकि वहां पत्रकारों को बहुत कम वेतन मिलता है और नौकरी को लेकर भी अनिश्चित्तता बनी रहती है, लेकिन रिपोर्टिंग का माहौल तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा है. हालांकि कई समस्या बनी हुई हैं. यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय के आदेशों के बावजूद पुर्तगाल में अपमान और मानहानि को अपराध के दायरे में रखा गया है.
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11. जर्मनी
प्रेस की आजादी को जर्मनी में संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है लेकिन दक्षिणपंथी लगातार जर्मन मीडिया को निशाना बना रहे हैं. हाल के समय में पत्रकारों पर ज्यादातर हमले धुर दक्षिणपंथियों के खाते में जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में अति वामपंथियों ने भी पत्रकारों पर हिंसक हमले किए हैं. दूसरी तरफ डाटा सुरक्षा और सर्विलांस को लेकर भी लगातार बहस हो रही है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB
भारत और दक्षिण एशिया
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को बहुत पीछे यानी 142वें स्थान पर रखा गया है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक 2019 में बीजेपी की दोबारा जीत के बाद मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादियों का दबाव बढ़ा है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों में नेपाल को 112वें, श्रीलंका को 127वें, पाकिस्तान को 145वें और बांग्लादेश को 151वें स्थान पर रखा गया है.
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अमेरिका, चीन और रूस
इंडेक्स के मुताबिक अमेरिका 42वें स्थान पर है. वहां प्रेस की आजादी को राष्ट्रपति ट्रंप के कारण लगातार नुकसान हो रहा है. लेकिन दो अन्य ताकतवर देशों चीन और रूस में स्थिति और भी खतरनाक है. रूस की स्थिति में पिछले साल के मुकाबले कोई बदलाव नहीं हुआ और वह 149 वें स्थान पर है जबकि चीन नीचे से चौथे पायदान यानी 177वें स्थान पर है.
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पत्रकारों के लिए सबसे खराब देश
इंडेक्स में उत्तर कोरिया (180), तुर्कमेनिस्तान (179) और इरीट्रिया सबसे नीचे है. किम जोंग उन के शासन वाले उत्तर कोरिया में पूरी तरह से निरंकुश शासन है. वहां सिर्फ सरकारी मीडिया है. जो सरकार कहती है, वही वह कहता है. इरीट्रिया और तुर्कमेनिस्तान में भी मीडिया वहां की सरकारों के नियंत्रण में ही है.