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खाड़ी जाकर जान जोखिम में क्यों डालते हैं नेपाल के लोग

दिवाकर राय
४ नवम्बर २०२२

नेपाल में लोगों को पता है कि खाड़ी के देशों में मजदूरी करने में कई खतरे छुपे हैं. फिर भी हर साल हजारों नेपाली नागरिक वहां जाते हैं. ये स्थिति बदलती क्यों नहीं है?

Fußball-WM 2022 - Gastarbeiter Nepal
तस्वीर: Hassan Ammar/AP/dpa/picture alliance

41 साल के कुमार थापा, सऊदी अरब में नौ साल काम करने के बाद 2018 में नेपाल लौट आए. सऊदी अरब की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करते हुए वह हर महीने करीब 100 यूरो बचा लेते थे और इस बचत को घर भेजते थे. यह पैसा उनके बच्चों की पढ़ाई और सिंधुपालचौक जिले में एक छोटा घर बनाने में खर्च हो रहा था. हालांकि कुमार थापा की कहानी, मध्य पूर्व में काम करने वाले सारे नेपाली अप्रावसियों से बहुत अलग है.

सुधार की कोशिशों के बावजूद कतर से खाली हाथ लौट रहे मजदूर

कई नेपाली मजदूर खाड़ी के देशों में शोषण का शिकार होते हैं. कई वहां से जिंदा नहीं लौट पाते हैं. नेपाल सरकार की लेबर माइग्रेशन रिपोर्ट के मुताबिक 2008 से अब तक विदेशों में कम से कम 7,467 नेपाली नागरिकों की मौत हुई है. इनमें से 750 मौतें 2018 और 2019 के बीच हुई हैं. इन आंकड़ों में उन नागरिकों का जिक्र नहीं हैं जो अनाधिकृत तरीके से गए या भारत में काम करते हुए मारे गए.

कतर में भीषण गर्मी से मारे गए कई विदेशी मजदूरतस्वीर: Frank Rumpenhorst/dpa/picture alliance

'कफला सिस्टम' शोषण की गारंटी

नौकरी देने वाली एजेंसियां, विदेशी कामगारों को खोजने में आमतौर पर दलालों की मदद लेती हैं. ये दलाल कई झूठे वादे कर नौकरी का झांसा देते हैं. कानूनों के मुताबिक नौकरी देने वाली कंपनी को रिक्रूटमेंट फीस देनी होती हैं. लेकिन दलालों की मदद से यह फीस भी कर्मचारी से ही वसूली जाती है. उनसे कहा जाता है कि नौकरी के बाद यह कर्ज चुकाना होगा.

इस तरह नौकरी के लिए अपना वतन छोड़ने से पहले ही मजदूर कर्ज के भारी बोझ में दब जाते हैं. नौकरी ज्वाइन करने के लिए विदेश पहुंचते ही, बेहद कड़े कानून उन पर लागू हो जाते हैं. उनकी आवाजाही एक शहर तक सीमित हो जाती है. कफला सिस्टम के तहत कंपनी को मजदूर की नौकरी और उसके आप्रवासन स्टेटस का पूरा अधिकार दे दिया जाता है.

एक नेपाली मजदूर ने कतर की कलई खोली

इराक, जॉर्डन और लेबनान के अलावा ये सिस्टम खाड़ी के सारे देशों में हैं. नौकरी देने वाले अक्सर कामगारों का पासपोर्ट, वीजा और फोन जमा कर लेते हैं. कई बार काम के घंटे घटा दिए जाते हैं और कभी तनख्वाह रोक दी जाती है. निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले कई मजदूर लेबर कैंपों के छोटे छोटे हॉस्टलनुमा कमरों में रखे जाते हैं.

घरेलू सहायक की नौकरी करने वाले तो पूरी तरह घरों में ही कैद रह जाते हैं. विदेशी महिला कामगारों की हालत तो और बुरी है. कई शोषण और यौन हिंसा का शिकार होती हैं.

विदेशों से आने वाले पैसै पर निर्भर नेपाली अर्थव्यवस्था

तमाम जोखिमों का पता होने के बावजूद खाड़ी के देश हर साल लाखों नेपाली नागरिकों को अपने यहां बुलाने में सफल होते हैं. 2021 में 620,000 से ज्यादा नेपाली कामगार वहां पहुंचे. इसकी वजह है खाड़ी में मिलने वाली तनख्वाह, जो नेपाल में मिलने वाले वेतन से कहीं ज्यादा होती है.

कतर में कंगाल विदेशी मजदूर

ज्यादातर नेपाली कामगार पैसा घर भेजेते हैं. नेपाल की अर्थव्यवस्था में इस पैसे की हिस्सेदारी 25 फीसदी है. विदेशों से भेजे जाने वाले पैसे पर निर्भर देशों की सूची में नेपाल पांचवें नंबर पर है. परदेस के इस पैसे ने नेपाल में हजारों परिवारों को गरीबी से बाहर निकाला है.

बीते तीन दशकों से राजनीतिक अस्थिरता झेल रहे नेपाल को चलाने में इस रकम की अहम भूमिका है. शोषण के बावजूद दूसरे देशों पर दबाव बनाने की कोशिश का मतलब होगा, इस विदेशी रकम में कमी. नौकरी देने वाली एजेंसियां भी अपनी नेटवर्किंग और लॉबी के जरिए सरकार की नीतियों को प्रभावित करती है.

प्रवासी नेपाली कॉर्डिनेशन कमेटी के प्रमुख कुल प्रसाद कार्की  कहते हैं, "फॉरेन इंप्लॉयमेंट एक्ट कहता है कि नौकरी देने वालों का कारोबार सुरक्षित है. कामगारों के अधिकारों का सम्मान हो या ना हो, या फिर वे अपने कॉन्ट्रैक्ट में कम तनख्वाह का जिक्र हो, कंपनियां इन बातों की परवाह नहीं करती हैं."

कामगारों का अधिकारों की चर्चा

इस महीने कतर में फुटबॉल वर्ल्ड कप शुरू हो रहा है. इस वजह से खाड़ी के देशों में विदेशी कामगारों का मुद्दा फिर सुर्खियों में आ रहा है. कई रिपोर्टों के मुताबिक कतर में होटल, स्टेडियम और ऊंची रिहाइशी इमारतें बनाने में जुटे कई विदेशी मजदूर गर्मी की वजह से मारे गए.

कतर में भी बड़ी संख्या में नेपाली कामगार हैं. 27 लाख की आबादी वाला कतर में नेपाली नागरिकों की संख्या 4,32,000 है, यानी आबादी का 16 फीसदी हिस्सा. ये डाटा जुलाई 2022 में यूएन ने जारी किया. इनमें से ज्यादातर नेपाली मजदूर निर्माण क्षेत्र में काम कर रहे हैं.

कतर में 2022 वर्ल्ड कप से पहले श्रम सुधारों को मंजूरी

बढ़ते वैश्विक दबाव के बीच खाड़ी के कुछ देशों ने श्रम कानूनों में हल्के फुल्के सुधार जरूर किए हैं. इनमें मजदूरों को नौकरी बदलने और घर लौटने के अधिकार भी शामिल हैं. लेकिन मानवाधिकार संगठनों के मुताबिक कहने और करने में अंतर दिखता है. नौकरी बदलने की इच्छा जताने वाले कई मजदूरों को लंबी प्रशासनिक देरी का सामना करना पड़ता है. घरों में काम करने वाले कामगारों के अधिकार तो अब भी कानूनों से दूर हैं.

नेपाल में बढ़ते तलाक के मामलेतस्वीर: PRAKASH MATHEMA/AFP

विदेशी पैसे की असली कीमत

नेपाल के सामने अपने नागरिकों के अधिकार बनाम विदेशी पैसा है. लेकिन अब नेपाली समाज पर इसका असर दिखने लगा है. लंबे समय तक पुरुषों के विदेश में रहने की वजह से तलाक के मामले बढ़ रहे हैं. संयुक्त परिवार टूटकर एकल परिवारों में बदल रहे हैं. बच्चों की पढ़ाई के लिए लोग शहरों में आ रहे हैं और बुजुर्ग पीछे गांवों में छूट रहे हैं.

विदेशों में काम करने वाले लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन पुरखी की सह संस्थापक मंजू गुरंग कहती हैं, "माइग्रेशन एक आम प्रक्रिया है और ये इच्छा भी. लेकिन हर किसी को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए कि निजी जिंदगी पर इसका क्या असर पड़ता है."

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