हर साल सड़क हादसों में मारे जाते हैं 1.68 लाख लोग
२ नवम्बर २०२३दिल्ली में रहने वाले 30 साल के फिल्मकार पीयूष पाल ने एक हादसे के बाद सड़क पर ही तड़प तड़प कर दम तोड़ दिया. हादसा 28 अक्टूबर का है, लेकिन सीसीटीवी फुटेज सामने आने के बाद मामला अब चर्चा में आया है.
पाल की मोटरसाइकिल एक दूसरी मोटरसाइकिल से टकराई और वो सड़क पर गिर गए. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उसके बाद पाल घायल अवस्था में करीब 20 से 30 मिनट तक सड़क पर ही पड़े रहे.
हर साल लाखों हादसे
इस दौरान कई लोग पैदल और वाहनों में वहां से गुजरे. कई लोगों ने तस्वीरें ली लेकिन उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाना किसी ने जरूरी नहीं समझा. कम से कम 20 मिनट बाद कुछ लोगों ने हिम्मत दिखाई और पाल को सड़क से उठा कर अस्पताल पहुंचाया.
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. तीन दिनों बाद अस्पताल में इलाज के दौरान पाल ने दम तोड़ दिया. कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक वो जब सड़क पर घायल पड़े हुए थे, उस दौरान वहां से गुजरने वाले लोगों में से किसी ने उनका कुछ सामान चोरी भी कर लिया.
दो दिन पहले ही केंद्रीय सड़क यातायात मंत्रालय ने भारत में सड़क हादसों पर चिंताजनक आंकड़े जारी किए थे. सड़क हादसों पर मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में देश में 4.61 लाख सड़क हादसे हुए.
इन हादसों में 1.68 लाख लोग मारे गए और 4.43 लाख लोग घायल हो गए. मरने वालों में से 71.2 प्रतिशत लोग ऐसे हादसों में मारे गए जो तेज गति से वाहन चलाने की वजह से हुए. सबसे ज्यादा हादसों में दुपहिया वाहन ही शामिल पाए गए.
इसके अलावा 47.7 प्रतिशत हादसे और 55.1 प्रतिशत मौतें खुले इलाकों में हुए, यानी जहां ज्यादा मानव गतिविधि नहीं थी. इतना ही नहीं, 67 प्रतिशत हादसे सीधी सड़कों पर हुए और सिर्फ 13.8 प्रतिशत हादसे घुमावदार, गड्ढों और ऊंची चढ़ाई वाली सड़कों पर हुए. मरने वालों में 66.5 प्रतिशत लोग 18-45 की उम्र के थे.
हादसों को राज्यवार देखें तो सबसे ज्यादा सड़क हादसे तमिल नाडु में हुए लेकिन हादसों में सबसे ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश में मारे गए. एक दिलचस्प आंकड़ा यह है कि 68 प्रतिशत हादसे ग्रामीण इलाकों में हुए, जबकि शहरों में 32 प्रतिशत हादसे दर्ज हुए.
क्यों नहीं करता कोई मदद
सड़क यातायात मंत्रालय के ही मुताबिक देश में हर चार में से तीन लोग सड़क हादसों के पीड़ितों की मदद करने से झिझकते हैं. उन्हें या तो पुलिस द्वारा परेशान किये जाने का डर होता है या अस्पताल में रोक लिए जाने का या लंबी कानूनी कार्रवाई में फंस जाने का.
विधि आयोग की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सड़क हादसों में मारे गए लोगों को अगर समय से अस्पताल पहुंचा दिया जाए तो उनमें से 50 प्रतिशत की जान बचाई जा सकती है. इसे संभव बनाने के उद्देश्य से 2020 में मंत्रालय ने नए नियम बनाए थे.
"गुड समैरिटन" नियमों के तहत सड़क हादसों के पीड़ितों को बचाने वाला चाहे तो अपनी पहचान भी गुप्त रख सकता है. पुलिस और अस्पताल उसे अपने बारे में जानकारी देने पर मजबूर नहीं कर सकते.
कई राज्य सरकारों ने तो ऐसे लोगों के लिए अलग अलग मूल्य की धनराशि के इनामों का भी प्रावधान बनाया है. लेकिन पाल की मृत्यु ने दिखा दिया है कि इस समस्या का समाधान सिर्फ इनाम से नहीं निकलेगा.