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प्रदूषण की 'राजधानी' दिल्ली में पर्यावरण चुनावी मुद्दा नहीं

श्रेया बहुगुणा
२२ जनवरी २०२०

गैस चैंबर बनती दिल्ली में इस बार के विधानसभा चुनाव में पर्यावरण लोगों के बीच प्रमुख मुद्दा है. पर्चे भरे जा चुके हैं, लेकिन अभी तक राजनीतिक पार्टियों ने इस पर इतना ध्यान नहीं दिया है जितना उनसे उम्मीद की जा रही है.

Indien Verschmutzung Protest
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

दिल्ली में सर्दियां आते ही लोग खौफ में आ जाते हैं. वजह है मौसम में बढ़ता प्रदूषण, जो बच्चों से लेकर बुजुर्गों के लिए जानलेवा बनता जा रहा है. हाल ही में ऊर्जा नाम की रेजिडेंट ज्वाइंट एक्शन ने दिल्ली की हवा को साफ रखने के लिए मुहिम छेड़ी है. ऊर्जा ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव में सभी पार्टियों को प्रदूषण को प्रमुख मुद्दा बनाने की अपील की है. साथ ही एक ऐसे सिग्नेचर कैंपेन की शुरूआत की जिसमें 10 हजार से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया. इन लोगों ने सभी पार्टियों से प्रदूषण को मैनिफेस्टो का हिस्सा बनाकर इस पर तुरंत काम करने को कहा है. ग्रीनपीस की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में प्रदूषण का स्तर पिछले तीन साल में सुधरा है लेकिन वैश्विक मानकों के हिसाब से अब भी हालात बदतर हैं. केंद्र और राज्य सरकार प्रदूषण को रोकने के लिए जो कदम उठा रहे हैं, वह नाकाफी हैं.

आठ फरवरी को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं. प्रदूषण से बेहाल दिल्ली में पर्यावरण संरक्षक चाहते हैं कि चुनाव में प्रमुख मुद्दा पर्यावरण होना चाहिए. ऊर्जा दिल्ली में 2500 रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों की प्रमुख संस्था है. इस संस्था का काम है नागरिक सुविधाओं, स्वास्थ्य सेवाओं, पर्यावरण और सुरक्षा के लिए सूचना इकठ्ठा करना, और फिर उनसे जुड़ी मांगों को सरकार के सामने रखना. इसमें मुख्य तौर पर दिल्ली की जनता के लिए साफ हवा और पानी की मांग है.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. Qadri

जनता का मैनिफेस्टो

इस संगठन ने दिल्ली के लोगों के साथ मिलकर प्रदूषण से लड़ने के लिए मैनिफेस्टो तैयार किया है, जिसमें प्रदूषण से लड़ने के लिए दस मांगें हैं. 2025 तक दिल्ली में 65 प्रतिशत प्रदूषण कम करने से लेकर 25 प्रतिशत स्वच्छ उर्जा का इस्तेमाल करने का इरादा है. साथ ही ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल करने की बात कही गई है. दिल्ली में कूड़े को लेकर समय समय पर बहस होती रहती है. इस मैनिफेस्टो में सरकार से कूड़े के इस्तेमाल के लिए कदम उठाने को कहा गया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने गारंटी कार्ड में  छटे नंबर पर पर पर्यावरण की समस्या को रखा है. उन्होंने बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए अगले पांच साल में दो करोड़ पेड़ लगाने का वादा किया है. लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो वायु प्रदूषण पेड़ लगाने भर से कम नहीं हो सकता. इसके लिए इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग बढ़ाने और दिल्ली के औद्योगिक प्रदूषण के अलावा भवन निर्माण से हो रहे प्रदूषण को रोकने की जरूरत है.

भारत की राजधानी दुनिया के उन शहरों में शामिल है जो भयंकर प्रदूषण की चपेट में है, लेकिन राजनैतिक पार्टियां सिर्फ उसे कम करने की बात कर रही हैं. ऊर्जा संस्था के अध्यक्ष अतुल गोयल के मुताबिक, "दिल्ली के 2020 के चुनाव में प्रदूषण एक मुख्य एजेंडा है. अगले पांच सालों में राजधानी में जो भी पार्टी सत्ता में काबिज होगी उसे प्रदूषण के खिलाफ योजना बनाने के लिए प्रतिबद्ध होना ही होगा." लेकिन चुनाव से पहले पार्टियों के अंदर पर्यावरण संरक्षण के कदमों को लेकर स्पष्टता नहीं दिखती. आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार और पार्टी की मैनिफेस्टो कमिटी की अध्यक्ष आतिशी मारलेना कहती हैं, "लोग प्रदूषण के बारे में अब सतर्क हैं. देखकर अच्छा लग रहा है. हम भी दिल्ली में स्वच्छ हवा और हरियाली चाहते हैं." भाजपा की मेनिफेस्टो समिति के सदस्य कपिल मिश्रा का कहना है, "परिवहन प्रबंधन, वायु प्रदूषण, स्वच्छ जल और वृक्षारोपण पर दिल्ली के लोगों की मांगें आ रही हैं. जो भी पार्टी दिल्ली में सरकार बनाती है, अगले पांच सालों में इन मुद्दों पर उन्हें काम करना ही होगा. मैं वादा करता हूं कि भाजपा का मैनिफेस्टो भी हरे रंग का होगा और लोगों की मांगों को इसमें शामिल किया जाएगा."

तस्वीर: Imago-Images/F. Gaertner

प्रदूषण के कारक

दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों के थर्मल पावर प्लांट अपने यहां होने वाले प्रदूषण को कम करने में विफल रहे हैं. आईआईटी कानपुर की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर के वायु प्रदूषण में करीब तीस प्रतिशत योगदान थर्मल पावर प्लांट का है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद डेडलाइन बीत जाने के बाद भी उन्होंने प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए कोई इंतजाम नहीं किया है. ये थर्मल पावर प्लांट लगातार प्रदूषण फैलाने वाले कारक साबित हो रहे हैं. सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने एक सर्वे में पाया कि स्थिति में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. सीएसई जैसी कई संस्थाएं और पर्यावरण कार्यकर्ता इन पर भारी जुर्माना लगाने की सिफारिश कर रहे हैं.

एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर के 300 किलोमीटर के दायरे में मौजूद थर्मल पावर प्लांट से 13.2 गीगावाट बिजली का उत्पादन होता है. इनमें रोजाना 57 टन पार्टिकुलेट मैटर, 686 टन एसओ टू और एनओएक्स 304 टन का उत्सर्जन होता है, जो दिल्ली को गैस चैंबर बनाने के लिए काफी है. लेकिन दिल्ली के चुनाव में किसी भी पार्टी ने इसे अभी तक मुद्दा नहीं बनाया है. ग्रीनपीस के अविनाश चंचल कहते हैं, "अभी तक इस समस्या से निपटने के लिये कोई ठोस नीतिगत कदम नहीं उठाये गए हैं. कई सर्वे यह साबित कर चुके हैं कि दिल्ली चुनाव में वायु प्रदूषण का मुद्दा मतदाताओं के लिए काफी अहम होने जा रहा है." अविनाश चंचल कहते हैं, "राजनीतिक दलों को यह साफ करना चाहिए कि दिल्ली की हवा को साफ करने की उनकी योजना और प्रतिबद्धता कितनी है."

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