बिहार के मास्टर जी आखिर क्यों परेशान हैं
२९ नवम्बर २०२४मूल रूप से वाराणसी के रहने वाले घनश्याम जायसवाल सासाराम जिले में कैमूर पहाड़ी पर स्थित पीपरडीह स्कूल में शिक्षक थे. पिछले दिनों घनश्याम जायसवाल ने आत्महत्या कर ली. उनकी मां नीलम देवी ने पुलिस को दिए बयान में कहा है कि उनका बेटा ट्रांसफर नहीं होने से परेशान था. उन्होंने पुलिस को बताया कि स्कूल में कोई सुविधा नहीं होने के कारण वह नौकरी छोड़ना चाहता था. बताया गया कि पीपरडीह में मोबाइल नेटवर्क नहीं मिलने के कारण उन्हें हाजिरी बनाने के लिए तीन किलोमीटर दूर पहाड़ी पर जाना पड़ता था.
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स्कूलों में सुधार
बिहार की शिक्षा व्यवस्था में हाल के सुधारों के कारण शिक्षक और बच्चे, दोनों ही स्कूल आने लगे हैं. शिक्षकों की कमी दूर हुई है. स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या घटी है. बुनियादी ढांचे में भी सुधार हुआ है. बच्चों को स्मार्ट क्लासेज समेत तमाम सुविधाएं देने की कोशिश जारी है. कुल मिलाकर प्राइवेट स्कूलों से टक्कर के लिए सरकारी विद्यालयों को तैयार करने की कोशिश है.
इसका एक नतीजा यह हुआ है कि शिक्षक हर दिन समय पर स्कूल पहुंचने के साथ ही पूरे दिन स्कूल में बिता रहे हैं. जो लोग ऐसा नहीं करते उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई होती है. जिन शिक्षकों का आवास स्कूल के नजदीक है उन्हें ज्यादा दिक्कत नहीं. लेकिन जिनके साथ ऐसा नहीं वो खासे परेशान हैं. खासतौर से महिलाओं को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ रही है.
बिहार में करीब साढ़े तीन लाख नियोजित और 5.77 लाख सामान्य शिक्षक हैं. इसके अलावा बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) के जरिए दो चरणों में लगभग 2.5 लाख शिक्षकों की नियुक्ति की गई है. इनमें बहुत से ऐसे शिक्षक हैं, जिनका स्कूल उनके आवास से दूर है.
ऑनलाइन हाजिरी से परेशानी
राज्य में शिक्षकों की मोबाइल के जरिए फेस स्कैन्ड हाजिरी लगाई जा रही है. उन्हें अभी दो बार अपनी उपस्थिति दर्ज करानी पड़ रही है. सूत्रों के अनुसार अब उन्हें यह काम तीन बार करना पड़ेगा. कई जगहों से ऐसी शिकायतें मिल रही थीं कि शिक्षक बीच में ही स्कूल से गायब हो जाते हैं. तीसरी हाजिरी औचक तरीके से लगाने का प्रावधान किया जा रहा है. जल्दी ही बच्चों की हाजिरी भी डिजिटल करने की तैयारी है.
जिलाधिकारी या शिक्षा विभाग के अधिकारी किसी भी स्कूल में शिक्षकों की उपस्थिति देख सकते हैं. भागलपुर जिले के एक प्रखंड में कार्यरत शिक्षिका ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा, "हम सरकार के किसी फैसले के खिलाफ नहीं हैं, किंतु निर्णय व्यावहारिक होना चाहिए. लेट होने पर वेतन कटने से हमलोग पहले से ही परेशान हैं. कभी मोबाइल का नेटवर्क नहीं मिला तो हाजिरी में लेट हो गए. ग्रामीण इलाके में सवारी नहीं मिलने से और शहरी इलाकों में जाम से कभी-कभार लेट तो हो ही जाता है.'' इसी भागमभाग में कई बार दुर्घटनाएं भी हो जाती है. कई मामलों में शिक्षकों की जान भी चली गई है.
एक महीने में 17 हजार लोगों के वेतन कटे
अक्टूबर में वेतन कटने का जो अपुष्ट आंकड़ा मिला है उसके अनुसार 17 हजार शिक्षकों का एक दिन का वेतन कट गया है. अगर इंटरनेट की वजह से एक मिनट भी लेट हुआ तो उसके बारे में हेडमास्टर को सूचित करने और फिर उनके द्वारा बीईओ (प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी) को सूचित करने की प्रक्रिया काफी जटिल है.
हालांकि, शिक्षा विभाग ने इस समस्या पर विचार करते हुए एक नया आदेश जारी किया है. इसके अनुसार एक माह में कोई शिक्षक चार दिन दस मिनट से लेट करते हैं तो उनका वेतन काटने की बजाय उसे एक सीएल (आकस्मिक अवकाश) से एडजस्ट कर दिया जाएगा.
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ट्रांसफर का मसला
नियोजित शिक्षकों की परीक्षा लेकर सफल उम्मीदवारों को राज्यकर्मी बनाया गया है. इन्हें विशिष्ट शिक्षक कहा जा रहा है. शिक्षकों से जुड़ी नई नियमावली के अनुसार विशिष्ट शिक्षकों का ट्रांसफर किया जा सकेगा. शिक्षा विभाग द्वारा ट्रांसफर की नीति और इसकी शर्तों में लगातार नये निर्देश जारी किए जा रहे हैं. यही ट्रांसफर सरकार और शिक्षकों के गले की फांस बन गया है.
बिहार राज्य विद्यालय अध्यापक संघ के प्रदेश अध्यक्ष अमित विक्रम कहते हैं, ‘‘बीपीएससी के दोनों चरणों में परीक्षा परिणाम के प्रकाशन के कुछ दिनों के अंदर ही उत्तीर्ण अभ्यर्थियों की शिक्षक के पद पर नियुक्ति कर दी गई. लेकिन सक्षमता परीक्षा पास करने के बाद भी नियोजित शिक्षकों की पोस्टिंग नहीं हुई. जबकि, बहुत शिक्षकों को तबादले की जरूरत है. उनको उनके च्वाइस का जिला नहीं मिला. अब तो कोर्ट से ही रोक लग गई है.''
स्कूल की टाइमिंग को लेकर भी असंतोष
इस साल गर्मियों की छुट्टी के बाद जब स्कूल खोला गया तो बच्चों के लिए सुबह 6 से 12 बजे तक का समय निर्धारित किया गया. शिक्षकों को डेढ़ बजे तक स्कूल में रुक कर अगले दिन का पाठ तैयार करने का निर्देश दिया गया. यह भी कहा गया कि इस अवधि के बीच स्कूलों का निरीक्षण किया जाएगा और अनुपस्थित शिक्षकों का वेतन काटा जाएगा. इस फैसले से शिक्षकों में असंतोष था. गर्मी के कारण कुछ बच्चों की मौत भी हो गई. बाद में समय में बदलाव किया गया.
शिक्षिका कल्पना सिन्हा कहती हैं, "अब स्कूल का समय 10 से चार बजे तक कर दिया गया. बच्चों को छोड़ने के बाद स्कूल से निकलते साढ़े चार बज जाते हैं. जाड़े में पांच बजे ही अंधेरा हो जाता है. जिन महिलाओं को दूर जाना होता है, उनके लिए तो यह बड़ी समस्या है. शनिवार की आधे दिन की छुट्टी भी सरकार खा गई. ऐसा लगता है कि शिक्षक बंधुआ मजदूर बन कर रह गए हैं."