1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मध्य पूर्व में डॉलर का प्रभुत्व कम क्यों हो रहा है?

कैथरीन शेअर
२६ मई २०२३

इराक ने अमरीकी डॉलर में लेन-देन प्रतिबंधित कर दिया. सऊदी, एमीराती बिना डॉलर के तेल बेचने की योजना बना रहे हैं. डॉलर की जगह एक नई करेंसी लाने की योजना भी बन रही है. इसके पीछे क्या वजह है?

US Dollar im Nahost | Protest gegen die Abwertung der Landeswährung in Irak
तस्वीर: Murtadha Al-Sudani/AA/picture alliance

इराक में इस हफ्ते कार या घर खरीदने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह एक सदमे जैसा था. पिछले रविवार को, इराक की सरकार ने कोई भी निजी या व्यावसायिक सौदा अमरीकी डॉलर में करने पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी.

सामान्य तौर पर इराक के लोग बड़ी खरीददारी में डॉलर का इस्तेमाल करते हैं. इराकी मुद्रा दीनार की कीमत में लगातार हो रही गिरावट के चलते लोगों को कार या घर खरीदने के लिए कागज के दीनार बड़े-बड़े थैलों में इकट्ठा करके रखना होगा. इसकी तुलना में महज कुछ डॉलर्स अपने वॉलेट में रखकर काम चल जाता है.

कई दशक से मध्य पूर्व के देशों में अमरीकी डॉलर सबसे अच्छी करेंसी यानी मुद्रा के तौर पर इस्तेमाल होती रही है, यदि किसी के पास दिरहम, दीनार, रियाल या पाउंड न हों तो.

लेकिन ऐसा लगता है कि अब यह सब बदलने वाला है. पिछले कुछ महीनों में मध्य पूर्व देशों के कई वरिष्ठ नेताओं ने ऐसे बयान दिए हैं जो डॉलर के प्रभुत्व को कम करने संबंधी सुझाव के तौर पर देखे जा सकते हैं.

यूरो के गिरने से किसका फायदा हो रहा है?

03:33

This browser does not support the video element.

इराक में, अमरीकी अधिकारी डॉलर का संकट खड़ा कर रहे थे ताकि लोगों को कम मात्रा में डॉलर मिल सके. उन्हें लगता था कि शायद अमरीकी करेंसी की इराक के जरिए ईरान में तस्करी हो रही हो, जिस पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा रखे हैं, लेकिन इराक के कई नेता उसका छिपे तौर पर समर्थन करते हैं.

डॉलर की इसी कमी के कारण इराकी दीनार की कीमत में काफी उतार-चढ़ाव आया है, जो कि अमेरिकी करेंसी से जुड़ा हुआ है. दीनार की कीमत में इसी उतार-चढ़ाव के कारण पिछले हफ्ते डॉलर को प्रतिबंधित करना पड़ा है. फरवरी में भी इराक ने कहा था कि वह अमेरिकी डॉलर की बजाय चीन की करेंसी युआन में व्यापारिक लेन-देन करेगा.

मध्य पूर्व के देश विकल्प की तलाश में

इस साल की शुरुआत में सऊदी अरब के विदेश मंत्री ने कहा था कि उनके देश ने दूसरे देशों की मुद्राओं में भी तेल की बिक्री के रास्ते खोल दिए हैं, जिनमें यूरो और युआन भी शामिल हैं.

संयुक्त अरब एमीरात ने कहा है कि वो भारत के साथ वहां की मुद्रा रुपये में व्यापार करेगा. पिछले साल, मिस्र ने सरकारी मुद्रा में बढ़ोत्तरी के लिए चीनी मुद्रा युआन में बॉन्ड्स और वित्तीय प्रतिभूतियां जारी करने की घोषणा की थी. यूएई ने जापानी मुद्रा येन में बॉन्ड्स पहले ही जारी किए थे.

इसके अलावा, मिस्र, सऊदी अरब, यूएई, अल्जीरिया, बहरीन जैसे मध्य पूर्व के कई देश कह चुके हैं कि वो भूराजनीतिक ब्लॉक ब्रिक्स से जुड़ना चाहते हैं. रूस पहले ही कह चुका है कि जून में होने वाली बैठक में सहयोगी देशों के साथ सदस्य देशों के बीच व्यापार के लिए एक नई मुद्रा यानी करेंसी बनाने पर चर्चा होगी.

क्या अमेरिका जो बाइडेन को फिर वाइट हाउस भेजेगा?

02:48

This browser does not support the video element.

2021 से, यूएई स्विटजरलैंड स्थित बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स की ओर से चलाए जा रहे एक पायलट प्रोजेक्ट से जुड़ा है. यह सेंट्रल बैंक्स के लिए एक सेंट्रल बैंक की योजना है. यह परियोजना डिजिटल, क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट्स पर जोर देती है जिससे कि डॉलर पर निर्भरता खत्म हो सके. इस परियोजना में अन्य सहयोगी थाईलैंड, हॉन्गकॉन्ग और चीन हैं.

क्या अमेरिकी डॉलर का समय जा चुका है?

अमेरिकी डॉलर के इन विकल्पों ने हाल के दिनों में काफि चिंताजनक सुर्खियां बटोरी हैं. द न्यू यॉर्क टाइम्स ने फरवरी में शीर्षक दिया था- "क्या डॉलर का प्रभुत्व खतरे में है?” मार्च में द फाइनेंसियल टाइम्स ने चेतावनी दी- "एक बहुध्रुवीय मुद्रा दुनिया के लिए तैयार रहें” और पिछले महीने ब्लूमबर्ग ने लिखा था- "डी-डॉलराइजेशन बहुत तेजी से हो रहा है”.

अमेरिकी डॉलर दुनिया भर में आधिकारिक तौर पर विदेशी मुद्रा का करीब 58 फीसद हिस्सा कवर करता है. ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि 2001 में यह हिस्सेदारी 73 फीसद थी जबकि 1970 में ये 85 फीसद हुआ करती थी.

हालांकि ज्यादातर विशेषज्ञ कहते हैं कि डॉलर से दूर जाने की खबरें जिस गति से चल रही हैं, वास्तविकता में डॉलर से दूर जाने की गति उतनी तेज नहीं है. मध्य पूर्व के बारे में तो निश्चित तौर पर ऐसा ही है.

1970 के दशक से, जब से खाड़ी के तेल उत्पादक देशों ने अमेरिका के साथ साझेदारी की है, तब से अमेरिका सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों को सुरक्षा देता है और ये देश अमेरिका को तेल निर्यात करते हैं. कुवैत को छोड़कर ज्यादातर खाड़ी देशों ने अपनी मुद्रा को डॉलर से जोड़ रखा है.

लंदन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटजिक स्टडीज में मिडिल ईस्ट पॉलिसी के रिसर्च फेलो हसन अलहसन कहते हैं, "डॉलर से दूर जाने की गंभीरता का संकेत इसी बात से मिलेगा जब इन देशों की मुद्राएं डॉलर से अलग हो जाएंगी. फिलहाल तो ऐसा नहीं दिख रहा है.”

अब बीस देशों में चलती है यूरो मुद्रा

03:05

This browser does not support the video element.

न्यू यॉर्क स्थित सिरेकूज यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर डेनियल मैकडॉवेल से जब ये पूछा गया कि क्या अरब देशों के नेताओं के बयानों से ये समझा जाए कि अब मध्य पूर्व में डॉलर के दिन लद गए हैं, वो कहते हैं, "यहां मुख्य शब्द हैं ‘बयान' और ‘संभावित'. बयान देना आसान है, उस पर आगे बढ़ना कठिन है. सऊदी अरब जैसे तेल उत्पादक देशों के लिए ऐसे बयान और प्रतिरोध भी महज इसलिए होते हैं ताकि वो अमेरिका का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर सकें. चीनी लोगों के साथ फ्लर्टिंग करने से हो सकता है कि अमेरिकी पॉलिसीमेकर्स खाड़ी देशों के हितों की ओर ज्यादा ध्यान केंद्रित कर सकें.”

हालांकि मैकडॉवेल भी इस बात से इनकार नहीं करते हैं कि एक दिन डॉलर का प्रभुत्व फीका पड़ जाएगा. वो कहते हैं, "आखिरकार सभी साम्राज्य एक न एक दिन ढह ही जाते हैं. लेकिन फिलहाल यह सारी बातचीत प्रतीकात्मक और राजनीतिक ही है. जो भी बदलाव हम देख रहे हैं वो बहुत ही कम और धीमा होगा.”

यूक्रेन युद्ध से प्रेरित

जिन विशेषज्ञों से डीडब्ल्यू ने बात की, वो सभी इस बात पर सहमत हैं कि मध्य पूर्व के देश अन्य मुद्राओं के इस्तेमाल की जो धमकी दे रहे हैं उसके दो कारण हैं.

उनका कहना है कि पहला कारण यूक्रेन-रूस युद्ध से जुड़ा हुआ है. मैकडावेल कहते हैं कि इस बहस का सबसे अहम हिस्सा रूस पर लगाए गए प्रतिबंध हैं. इस बारे में वो अपनी पुस्तिक "बकिंग द बक: यूएस फाइनेंशियल सैंक्शंस एंड द इंटरनैशनल बैकलैश अगेंस्ट द डॉलर ” में काफी कुछ कहते हैं.

वो कहते हैं, "अमेरिका अपनी विदेश नीति के हथियार के रूप में डॉलर का जितना ही उपयोग करता है, उसके विरोधी उतना ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूसरी मुद्राओं की ओर बढ़ेंगे.”

अलहसन कहते हैं, "आजकल मध्य पूर्व और एशिया के कई देशों में रूसी मुद्रा खूब जा रही है. निश्चित तौर पर इनमें वो देश हैं जिन्होंने अमेरिकी या यूरोपीय प्रतिबंधों को न मानने या फिर उन्हें न लागू करने का विकल्प चुना है.”

लेकिन क्या रूस पर लगे प्रतिबंधों को और कड़ा किया जाना चाहिए, और यदि उन पर भी सेकंडरी सैंक्शन्स लगा दिए गए तब तो इनसे बच पाना कठिन हो जाएगा. दूसरे, प्रतिबंध न सिर्फ रूस को ही प्रभावित कर रहे हैं बल्कि उन देशों या व्यापारिक लोगों को भी एक तरह से दंडित कर रहे हैं जो प्रतिबंधित देश के साथ काम कर रहे हैं.

वेनेजुएला का एक और काला सोना

03:01

This browser does not support the video element.

कोई भी व्यक्ति या देश जो अमेरिका या यूरोपीय संघ के साथ व्यापार करना चाहता है, सेकंडरी सैंक्शन्स के बाद उसके लिए ऐसा करना मुश्किल हो जाएगा.

मैकडॉवेल कहते हैं, "इसलिए अमरीकी प्रतिबंधों से चिंतित सरकारें इससे निकलने के बारे में तेजी से सोच रही हैं, भले ही वो इसके लिए अभी तक तैयार नहीं हैं या फिर डॉलर से दूर जाने की नहीं सोच रहे हैं.”

तेल व्यापार को खतरा

अलहसन एक दूसरे कारण की बात करते हैं कि कुछ मध्य पूर्व के देश डॉलर से दूर क्यों जाना चाहते हैं, "मुझे लगता है कि रूसी हितों को लक्ष्य करके अमेरिका वैश्विक तेल बाजार के नियमों को फिर से तय करने की कोशिश कर रहा है और सऊदी अरब को यह एक रणनीतिक खतरा लग रहा है.”

मार्च में सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुलअजीज बिन सलमान ने कहा था कि यदि सऊदी तेल निर्यात पर कोई भी देश प्राइस कैप लगाने की कोशिश करता है, जैसा कि रूस के साथ किया गया था, तो उनका देश उसके साथ व्यापारिक संबंध नहीं रहेगा. एक दिन बाद ही, अल्जीरिया के ऊर्जा मंत्री ने एक खतरनाक मिसाल की आशंका जताते हुए उसी बयान को दोहराया.

इटली के फ्लोरेंस में यूरोपियन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट में आर्थिक नीति की प्रोफेसर मारिया डेमेर्त्जिस एक आर्थिक थिंक टैंक ब्रूगेल में सीनियर फेलो भी हैं. वो कहती हैं कि यही कारण है कि डॉलर से दूर होने की संभावना यह बताती है कि प्रतिबंध लंबे समय तक जारी रहेंगे.

ओलिव ऑइल: क्यों बिगड़ रहा है तेल का खेल

02:28

This browser does not support the video element.

लेकिन यह रातों रात नहीं होगा. वो कहती हैं कि, यदि कुछ देश अमेरिकी डॉलर को बाइपास करना भी चाहते हैं, तो भी डॉलर-संचालित सिस्टम द्वारा बनाया गया सेटलमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर को बदलना कहीं ज्यादा कठिन है.

बैंकिंग को एक हथियार के रूप में लेना

डेमेर्त्जिस कहती हैं, "यदि आप भारत हैं और आप चिली को कोई चीज बेचना चाहते हैं, तो बहुत संभव है आप यह व्यापार डॉलर में ही करेंगे. लेकिन आप ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं करेंगे कि आप डॉलर में किसी उत्पाद का मूल्य आसानी से तय कर सकेंगे. बल्कि आप ऐसा इसलिए भी करेंगे क्योंकि ट्राजैक्शन सेटल करने के लिए जो अमेरिकी डॉलर इंफ्रास्ट्रक्चर है, आप उसका इस्तेमाल कर रहे हैं. सेटलमेंट, एक अकाउंट से पैसे लेकर दूसरे अकाउंट में डालने की एक कानूनी प्रक्रिया है.”

वो कहती हैं कि ऐसा करने के लिए भरोसेमंद इफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है और अमेरिका ऐसा दशकों से कर रहा है. वो कहती हैं, "ऐसा करने के लिए विशाल कानूनी और शासकीय प्रभाव होना चाहिए. मसलन, क्या चिली भारत के कानूनी ढांचे को मंजूरी देगा? यहां तक कि जहां दो केंद्रीय बैंक द्विपक्षीय सेटलमेंट करते हैं, वहां तक पहुंचना भी टेढ़ी खीर है.”

डेमेर्त्जिस कहती हैं कि वास्तव में अमेरिका और यूरोप ने रूस के केंद्रीय रिजर्व बैंक की उन संपत्तियों को जब्त कर लिया है जो उनके प्रभाव क्षेत्र में आती हैं. ऐसा करके इन लोगों ने केंद्रीय बैंक को भी एक हथियार बना डाला है और शायद अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया है.

अलहसन कहते हैं, "मध्य पूर्व में अमेरिका को लेकर एक चिंता की भावना है और यहां तक कि रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय व्यापार और वित्त को हथियार बनाने संबंधी यूरोपीय संघ की अभूतपूर्व कोशिशों को लेकर भी. इसीलिए मध्य पूर्व के देश एक बहुध्रुवीय ग्लोबल वर्ल्ड की तैयारी कर रहे हैं जहां वे डॉलर के क्षेत्र के भीतर और बाहर बेहतर काम कर सकें.”

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें