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विवादयूक्रेन

यूक्रेन ने अपने सारे परमाणु हथियार रूस को क्यों दिए

ओंकार सिंह जनौटी
१५ फ़रवरी २०२२

1993 तक अमेरिका और रूस के बाद सबसे ज्यादा परमाणु हथियार यूक्रेन के पास थे. लेकिन बेहतर रिश्तों की चाह में यूक्रेन ने एटमी हथियार का सारा जखीरा रूस को दे दिया. ताजा विवाद केै बीच इन परमाणु हथियारों का जिक्र फिर हो रहा है.

बेलारूस में रूसी सेना
तस्वीर: picture alliance/dpa/Russian Defence Ministry

शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने यूक्रेन में एटम बम और उन्हें ढोने वाली  मिसाइलें तैनात की थीं. यूक्रेन तब उसका हिस्सा हुआ करता था. सुरक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक उस वक्त यूक्रेन में करीब 5000 परमाणु हथियार तैनात थे. 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद पश्चिम और रूस के संबंध सुधरने लगे. सोवियत संघ के सदस्य रहे देश आर्थिक रूप से बेहद कमजोर हो चुके थे. उन्हें पश्चिम के आर्थिक व कारोबारी सहयोग की दरकार थी और बदले में शांति व लोकतंत्र का रास्ता चुनना था. रूस समेत ज्यादातर देश इस राह पर निकल पड़े. उसी दौर में यूक्रेन ने परमाणु हथियारों को खत्म करने की तैयारी शुरू कर दी. कीव और मॉस्को दोनों को उम्मीद थी कि इस फैसले से आपसी रिश्ते अच्छे बने रहेंगे.

हालांकि कई जानकारों ने उसी समय ये कह दिया था कि यूक्रेन जल्दबाजी कर रहा है. सोवियत दौर में न्यूक्लियर बेस के कमांडर रह चुके वोलोदिमीर तोबुल्को बाद में यूक्रेन के सांसद बने. 1992 में यूक्रेनी संसद में उन्होंने कहा कि खुद को परमाणु हथियार मुक्त देश घोषित करना जल्दबाजी होगी. तोबुल्को को तर्क था कि लंबी दूरी की मारक क्षमता के साथ कुछ परमाणु हथियार होने चाहिए, ये विदेशी आक्रमण को रोकने के काम आएंगे. अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर रह चुके जॉन मेयर्सहाइमर ने 1993 में एक आर्टिकल लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि परमाणु हथियारों के बिना यूक्रेन, रूस के आक्रामक रुख का शिकार बन सकता है. उस वक्त ऐसी चेतावनी देने वाले लोगों की संख्या भी बहुत कम थी और ऐसे लोगों को शांति विरोधी की तरह भी देखा जाने लगा था. खुद तोबुल्को के तर्कों को यूक्रेन में भरपूर समर्थन नहीं मिला.

सुरक्षा गारंटी पर बुडापेस्ट मेमोरंडम

इसी प्रक्रिया के दौरान 5 दिसंबर 1994 को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका के नेता मिले. इन नेताओं ने बुडापेस्ट मेमोरंडम ऑन सिक्योरिटी अश्योरेंस पर हस्ताक्षर किए. छह पैराग्राफ के इस मेमोरंडम में बहुत स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान की स्वतंत्रता, संप्रभुता और मौजूदा सीमाओं का सम्मान किया जाएगा. विदेशी शक्तियां इन देशों की क्षेत्रीय संप्रुभता या राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए कभी खतरा नहीं बनेंगी.

मेमोरंडम के चौथे प्वाइंट में यह जिक्र था कि अगर परमाणु हथियारों वाला कोई देश यूक्रेन, बेलारूस और कजाखस्तान के लिए खतरा बनेगा तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद इन देशों की मदद करेगी. लेकिन यह सिर्फ मेमोरंडम था, इसे कानूनी रूप से बाध्य संधि में नहीं बदला गया. यूक्रेन को बस यह दिलासा दिया गया कि वह चिंता बिल्कुल न करे. मई 1996 आते आते यूक्रेन ने सारे परमाणु हथियार रूस भेज दिए.

मेमोरंडम के 20 साल बाद

2013-2014 आते आते मेमोरंडम का यही कागज यूक्रेन और उसे भरोसा दिलाने वालों को चिढ़ाने लगा. यूक्रेनी राजधानी कीव में देश को यूरोपीय संघ में शामिल कराने की मांग कर रहे नागरिकों के विरोध में रूस समर्थक यूक्रेनियों ने भी प्रदर्शन शुरू कर दिया. रूस समर्थक देश के पूर्वी इलाके में ये प्रदर्शन करने लगे, जहां रूसी मूल के लोगों का बहुमत रहता है.

कुछ ही हफ्तों के भीतर प्रदर्शन हिंसक होने लगे. रूस पर आरोप लगने लगे कि वह प्रदर्शनकारियों को हथियार दे रहा है. संघर्ष के बीच मार्च 2014 में रूस ने क्रीमिया को अपने कब्जे में ले लिया. तब से लेकर अब तक यूक्रेन और रूस का विवाद आए दिन नए जोखिम छू रहा है.

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