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क्या चीन की अर्थव्यवस्था कभी भी अमेरिका से आगे निकल पाएगी

निक मार्टिन
१३ जुलाई २०२४

दशकों से चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए है, लेकिन कोरोना महामारी, रियल एस्टेट संकट और बुजुर्ग आबादी से उसे काफी नुकसान पहुंचा है.

चीन की आर्थिक शक्ति
घरेलू खपत को बढ़ा कर चीन निर्यात पर निर्भरता घटाना चाहता हैतस्वीर: Daniel Berehulak/Getty Images

दशकों से नीति निर्माता और अर्थशास्त्री यह अनुमान लगा रहे हैं कि चीन अमेरिका से आगे निकलकर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. उनका कहना है कि क्या होगा जब सबसे गतिशील और उत्पादक अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका को एक पार्टी शासन वाला चीन पीछे छोड़ देगा? दरअसल, चीन के पास 75 करोड़ से अधिक कामगार हैं. 

2008-09 के वित्तीय संकट के बाद से, कई वर्षों तक अमेरिका और यूरोप में विकास दर कम रही. इस संकट के बाद से ही यह अनुमान लगाया जा रहा है कि चीन आने वाले समय में अमेरिका को पीछे छोड़ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. महामंदी के तौर पर जाने जाने वाले इस संकट से पहले, चीन के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में कम से कम पांच वर्षों तक दोहरे अंक में वृद्धि देखने को मिली. इस संकट के बाद भी, चीन की अर्थव्यवस्था में सालाना 6 से 9 फीसदी की वृद्धि जारी रही. हालांकि, कोरोना महामारी के आते ही इसमें ठहराव आ गया.  

महामारी की वजह से सख्त लॉकडाउन लगाया गया और अर्थव्यवस्था ने घुटने टेक दिए. चीन के लिए संकट का दौर यही नहीं खत्म हुआ. उसका रियल एस्टेट क्षेत्र भी बड़े संकट में फंस गया. चीनी अर्थव्यवस्था के पहिये को बढ़ाने में इस क्षेत्र का अहम योगदान रहा है. अपने चरम पर, चीन की अर्थव्यवस्था में रियल एस्टेट का एक तिहाई योगदान था. 

चीन ने 2020 में यह सीमा तय कर दी कि प्रॉपर्टी डेवलपर्स कितना कर्ज ले सकते हैं. इससे कई कंपनियां दिवालिया हो गईं. एक अनुमान के मुताबिक, 2 करोड़ से अधिक अधूरे या देरी से बने घर नहीं बिक सके. नतीजा यह हुआ कि आज चीन में कई जगहों पर दूर-दूर तक मकान तो दिखते हैं, लेकिन इनमें कोई नहीं रहता. ये भूतिया इलाके चीन के रियल एस्टेट सेक्टर की बदहाली को बयान करते हैं.  

लगभग उसी समय, पश्चिम के साथ व्यापार संबंधों में गिरावट ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में वृद्धि को धीमा कर दिया. दशकों तक चीन के वर्चस्व को बढ़ावा देने के बाद, 2010 के दशक के अंत तक, अमेरिका ने चीन की आर्थिक और सैन्य महत्वाकांक्षाओं को रोकने के लिए अपनी नीति बदल दी. 

भारी मुश्किल में फंसा चीन का रिएल एस्टेट सेक्टरतस्वीर: CFOTO/picture alliance

क्या चीन की अर्थव्यवस्था अपने चरम पर पहुंच गई है?

चीन की अर्थव्यवस्था में इतना तेजी से बदलाव आया कि लगभग एक साल पहले एक नया शब्द सामने आया: ‘पीक चाइना'. इस सिद्धांत के मुताबिक, चीन की अर्थव्यवस्था अब कई संरचनात्मक समस्याओं से जूझ रही है. जैसे, भारी कर्ज, उत्पादकता में कमी, कम खपत और बुजुर्गों की बढ़ती आबादी. इन कमजोरियों के साथ-साथ ताइवान को लेकर भू-राजनीतिक तनाव और पश्चिम के साथ व्यापार से अलग होने की वजह से, इस बात की अटकलें लगाई जाने लगीं कि चीन की दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की महत्वाकांक्षा पूरी होने में देर हो सकती है या शायद ये कभी पूरी ही न हो.

हालांकि, इस पूरे मसले पर चीन की रेनमिन यूनिवर्सिटी के चोंगयांग इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल स्टडीज के वांग वेन ने डीडब्ल्यू को बताया कि पीक चाइना एक ‘मिथक' है. चीन का कुल आर्थिक उत्पादन 2021 में अमेरिका के उत्पादन के करीब 80 फीसदी तक पहुंच गया है. 

वांग ने कहा कि अगर चीन ‘अंदरूनी स्थिरता और बाहरी शांति' बनाए रखेगा, तो चीनी अर्थव्यवस्था जल्द ही अमेरिका से आगे निकल जाएगी. उन्होंने कहा, "चीन के गांवों में रहने वाले लाखों लोग अब शहरी इलाकों में रहना चाहते हैं, जहां कमाई और जीवन स्तर बहुत बेहतर है. चीन में शहरीकरण की दर सिर्फ 65 फीसदी है. अगर भविष्य में यह 80 फीसदी तक भी पहुंचती है, तो इसका मतलब है कि 20 से 30 करोड़ लोग शहरी क्षेत्रों में रहने चले जाएंगे. इससे अर्थव्यवस्था में काफी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी. 

अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद चीन अब खुद सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण बढ़ाने में जुटा हैतस्वीर: picture alliance / Chu Baorui / Costfoto

उत्पादन क्षमता में नहीं हो रही बढ़ोतरी

कई अन्य अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जिन समस्याओं ने ‘पीक चाइना' की कहानी को जन्म दिया, वे कई सालों से बन रही थी. टोरंटो यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर लॉरेन ब्रांट ने डीडब्ल्यू को बताया, "काफी ज्यादा उत्पादन क्षमता की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था 2000 के दशक की शुरुआत में तेजी से बढ़ी.” 1978 में तत्कालीन चीनी राष्ट्रपति डेंग शियाओपिंग के शासन में सुधार और खुलेपन की नीतियों की शुरुआत हुई थी. इसके बाद अगले तीन दशक में, जीडीपी में बढ़ोतरी के लगभग 70 फीसदी हिस्से के लिए उत्पादकता का योगदान रहा.

चीनी अर्थव्यवस्था की विशेषज्ञ ब्रांट कहती हैं, "वित्तीय संकट के बाद से उत्पादन क्षमता कम हो गई. अब यह 2008 से पहले की तुलना में शायद एक-चौथाई रह गई है.” 

चीन पर नजर रखने वालों को उम्मीद थी कि अगले हफ्ते चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की अहम बैठक में कई अल्पकालिक आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए बड़े प्रोत्साहन उपायों का प्रस्ताव रखा जाएगा. हालांकि, अब उन्हें लगता है कि चीन इसके बजाय एडवांस और ग्रीन टेक्नोलॉजी जैसे कुछ क्षेत्रों में आगे बढ़ने पर ध्यान देगा. साथ ही, पेंशन और निजी क्षेत्र को भी बढ़ावा देगा. 

चीन का कुल कर्ज इसकी जीडीपी के 300 फीसदी से ज्यादा हो गया है यानी तीन गुना हो गया है. इसका एक बड़ा हिस्सा स्थानीय सरकारों के पास है. लगातार 12 महीनों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट आ रही है. सिर्फ 2024 के पहले पांच महीने में ही 28.2 फीसदी की गिरावट आई है. नई तकनीकों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए भारी निवेश के बावजूद, चीन के कुछ व्यापारिक साझेदार चीनी आयातों पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. 

ब्रांट ने डीडब्ल्यू को बताया, "यह एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसने अनुसंधान और विकास के साथ-साथ लोगों और उच्च स्तरीय बुनियादी ढांचे पर बहुत अधिक निवेश किया है. हालांकि, इसका उस तरह से लाभ नहीं उठाया जा रहा है जिससे अर्थव्यवस्था में वृद्धि बनाए रखने में मदद मिल सके.”

चीन की इलेक्ट्रिक कारों पर यूरोप में कई तरह की पाबंदियांतस्वीर: AFP

शी जिनपिंग के सत्ता में बने रहने से उम्मीद के विपरीत नतीजे

राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शासन में चीन ने उद्योगों के सरकारी स्वामित्व के माध्यम से अर्थव्यवस्था के अधिक केंद्रीकरण की ओर कदम बढ़ाया है. चीन के नेताओं ने फैसला किया कि विकास की अगली लहर घरेलू खपत पर आधारित होगी, जिससे देश को विदेशी निर्यात पर कम निर्भर रहना पड़ेगा. 

हालांकि, चीन की अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से बढ़ी है, लेकिन कई सामाजिक योजनाएं उतनी तेजी से नहीं बढ़ पाई हैं. ब्रांट कहती हैं, "जो उपभोक्ता अब कम लागत वाली स्वास्थ्य देखभाल सुविधा, शिक्षा और सरकार से मिलने वाले पेंशन पर भरोसा नहीं कर सकते वे अपनी बचत का ज्यादा हिस्सा खर्च करने से कतराते हैं. संपत्ति की कीमतों में गिरावट की वजह से उनकी घरेलू संपत्ति में 30 फीसदी तक की कमी आई है.”

वह आगे कहती हैं, "सुधार की शुरुआत के पहले दो या तीन दशकों के दौरान स्थानीय सरकारों के पास कई तरह के फैसले लेने की गुंजाइश होती थी. चीन को स्वायत्तता, स्वतंत्रता और प्रोत्साहनों से बहुत लाभ हुआ. साथ ही, निजी क्षेत्र को मिले प्रोत्साहन से भी अर्थव्यवस्था में वृद्धि देखने को मिली थी. हालांकि, मौजूदा नेतृत्व की वजह से अब सारे फैसले एक ही जगह से लिए जा रहे हैं. ऐसे में पहले की तरह का माहौल वापस आना मुश्किल दिख रहा है.”

2000 के दशक के अंत में, चीनी अर्थव्यवस्था का लगभग दो-तिहाई हिस्सा निजी क्षेत्र का था, लेकिन पिछले साल की पहली छमाही तक यह हिस्सा घटकर 40 फीसदी रह गया. सरकार की ओर से संचालित और मिश्रित स्वामित्व वाले क्षेत्र का दायरा काफी बढ़ गया है. फॉर्च्यून पत्रिका की प्रमुख वैश्विक कंपनियों की रैंकिंग की सूची में सबसे अधिक चीन की कंपनियां शामिल हैं, लेकिन ये कंपनियां अमेरिकी कंपनियों की तुलना में बहुत कम मुनाफा हासिल कर पाती हैं. इनका औसत प्रॉफिट मार्जिन 4.4 फीसदी है. जबकि, अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का औसत मुनाफा 11.3 फीसदी है. 

अब हरित भविष्य पर भी फोकस कर रहा है चीनतस्वीर: HPIC/dpa/picture alliance

क्या चीन नया जापान है?

ऐसी आशंका जताई जा रही है कि इन सभी वजहों से चीन की अर्थव्यवस्था जापान की राह पर जा सकती है. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान की अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ी. दशकों तक यह वृद्धि जारी रही. शेयर बाजार और रियल एस्टेट में भारी उछाल आया. उस दौरान कुछ अर्थशास्त्रियों ने यह अनुमान लगाया था कि जापान दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में अमेरिका से आगे निकल जाएगा. हालांकि, 1992 में यह बुलबुला फट गया और जापान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई. तब से जापान अपनी अर्थव्यवस्था को पुराने दौर में लौटाने में सफल नहीं हो पाया है. 

इस बीच, चीनी अर्थशास्त्रियों का कहना है कि देश का औद्योगिक सकल घरेलू उत्पाद पहले से ही अमेरिका के मुकाबले दोगुना है. पिछले साल जीडीपी में 5.2 फीसदी की वृद्धि हुई थी, जो अमेरिकी विकास दर से दोगुनी से भी ज्यादा थी. क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के मामले में चीन की अर्थव्यवस्था 2016 में ही अमेरिका से आगे निकल गई थी.

वांग ने डीडब्ल्यू को बताया, "पिछले 45 सालों में चीन के विकास को कई आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा है. हालांकि, 30 साल पहले की मंदी, 20 साल पहले के उच्च कर्ज और 10 साल पहले के आवास संकट की तुलना में मौजूदा समस्या ज्यादा गंभीर नहीं है.”

क्या चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था की अगुवाई के लिए वाकई तैयार है?

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