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इस्राएल-हमास संघर्ष से प्रभावित होगी भारतीय अर्थव्यवस्था?

मुरली कृष्णन
७ नवम्बर २०२३

भारतीय अर्थव्यवस्था की सफलता की कहानी चर्चा में रही है लेकिन मध्य-पूर्व में चल रहे संघर्ष ने तेल की सप्लाई और कीमतों को लेकर भूराजनीतिक चिंताएं जगा दी हैं.

इंडियन ऑयल का पंप
जानकार कहते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की सेहत तेल कीमतों से जुड़ी हुई हैतस्वीर: Prakash Singh/AFP/Getty Images

इस्राएल-हमास संघर्ष को लेकर भारत में चिंताएं हैं कि इसका असर तेल की कीमतों पर होगा. भारत दुनिया में तेल का तीसरा सबसे बड़ा ग्राहक और आयातक है. भारत ने 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरु होने के बाद से रूसी तेल सप्लाई बढ़ाई है लेकिन अब भी बड़ी मात्रा में तेल मध्य-पूर्व से ही आयात किया जाता है.

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल से सितंबर के बीच भारत का 44 फीसदी तेल आयात मध्य-पूर्व से था. अक्टूबर में वर्ल्ड बैंक के इंडिया डेवलपमेंट अपडेट का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की विकास दर 6.3 फीसदी रहेगी जो पिछले साल 7.2 फीसदी थी.

ताजा विवाद भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गर्म हवाएं लेकर आएगा. जिसकी वजह से तेल की कीमतें बढ़ेंगी, नतीजतन खाने का सामान और अन्य वस्तुएं महंगी होंगीतस्वीर: Alemenew Mekonnen/DW

वस्तुओं की कीमतें

जानकार चिंता जाहिर करते हैं कि ताजा विवाद भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए गर्म हवाएं लेकर आएगा. जिसकी वजह से तेल की कीमतें बढ़ेंगी, नतीजतन खाने का सामान और अन्य वस्तुएं महंगी होंगी.

हालांकि वस्तुओं की कीमतों से जुड़ी वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में पाया गया कि इस्राएल-हमास संघर्ष का असर सीमित होगा अगर यह बढ़ता नहीं है लेकिन इसके उलट कीमतों का भविष्य अंधकारमय नजर आता है अगर संघर्श और गहराता है. रिपोर्ट के मुताबिक यह संघर्ष शुरु होने से अब तक, तेल की कीमतों में छह फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आइईए) ने भी चेतावनी दी थी कि बाजार "जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ रहा है एकदम खूंटी पर टंगे हैं." मध्य-पूर्व के हालात को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है और सबकुछ बहुत तेजी के साथ बदल रहा है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान बहुत बारीकी से इस बात पर होगा कि इस क्षेत्र में तेल की धार पर क्या जोखिम मंडरा रहा है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर मध्य-पूर्व में संघर्ष बढ़ता है तो विकासशील देशों में नीति नियामकों को कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे जो महंगाई बढ़ने के स्थिति में काम आ सकें, इसमें खाद्य सुरक्षा से जुड़े कदम भी शामिल हैं.

अगर मध्य-पूर्व में संघर्ष बढ़ता है तो विकासशील देशों में नीति नियामकों को कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे जो महंगाई बढ़ने के स्थिति में काम आ सकेंतस्वीर: ingimage/IMAGO

तेल की कीमतों से महंगाई

वित्त वर्ष 2024 के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक ने कच्चे तेल की कीमतें 85 डॉलर प्रति बैरल और रुपए का एक्चेंज रेट यानी विनिमय दर, डॉलर के मुकाबले 82.5 रुपए रहने का अनुमान लगाया है.

रिजर्व बैंक का कहना है कि तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत का उछाल महंगाई में 30 बेसिस पाइंट की तेजी ला सकता है. अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि इस संकट के बढ़ने की स्थिति में भारत को होने वाली तेल सप्लाई संकट में पड़ सकती है.

" दुनियाभर में तनाव बढ़ेगा और सप्लाई में दिक्कतें पैदा होंगी और यह केवल कच्चे तेल के संबंध में नहीं है. अगर ऐसा होता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा. कीमतें बढ़ते रहने की वजह से निर्यात गिर सकता है और भारतीय रुपया और कमजोर हो सकता है. इससे बैलेंस ऑफ पेमेंट यानी भुगतान संतुलन बिगड़ेगा और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आएगी."

हालांकि भारत में कोर इंफ्लेशन यानी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव से जुड़ी महंगाई दर सितंबर में 4.6 प्रतिशत के साथ काबू में रही है. हालांकि तेल की कीमतों में उठा-पटक महंगाई और विकास दर के अनुमानों को प्रभावित कर सकती है.

​​​​भारत कई दूसरे देशों जैसे गयाना, कनाडा, गैबॉन, ब्राजाली और कोलंबिया से तेल आयात करने पर विचार कर रहा है.तस्वीर: Prakash Singh/AFP/Getty Images

नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर, लेखा चक्रवर्ती कहती हैं कि तेल की ऊंची कीमतें महंगाई को बढ़ाएंगी और भारत का करेंट अकाउंट डेफिसिट यानी चालू खाता घाटा भी बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा.

फिलहाल, सरकारी कंपनियां बढ़ी कीमतों के असर को सोख लेंगी, भले ही इससे उन्हें कारोबारी नुकसान हो. भारत कई दूसरे देशों जैसे गयाना, कनाडा, गैबॉन, ब्राजाली और कोलंबिया से तेल आयात करने पर विचार कर रहा है. भारत ने रूस से तेल खरीद में भारी बढ़त कर ही दी है.

अक्टूबर में रूसी कच्चा तेल भारत के कुल आयात का 35 फीसदी था, जिसके बाद इराक से 21 फीसदी और सउदी अरब से 18 फीसदी तेल आयात किया गया. ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विषय के शोधकर्ता संजय जैन ने डीडब्ल्यू से कहा, "इसका दूरगामी असर अभी देखना बाकी है.आपूर्ति में होने वाली कोई रूकावट या उतार-चढ़ाव भारत के ऊर्जा क्षेत्र को निश्चित तौर पर प्रभावित करेगी. लेकिन बड़ा जोखिम राजनीतिक हो सकता है और सरकार को नाजुक संतुलन बनाने की जरूरत होगी."

 

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