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भारत को भी लपेटे में ले लेगी सरपट दौड़ती महंगाई?

अविनाश द्विवेदी
२२ दिसम्बर २०२२

पूरा साल भारत में जबरदस्त महंगाई का साल था. लेकिन अब दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों को सरपट दौड़ती महंगाई या स्टैगफ्लेशन का डर सता रहा है. यह है क्या, जिसके दुष्चक्र में फंसने पर अर्थव्यवस्थाएं बुरी तरह तबाह हो जाती हैं?

Indien Symbolbild Bevölkerungsdichte
तस्वीर: Rajesh Kumar Singh/AP/picture alliance

दूध के दाम इस साल चार बार बढ़ चुके हैं. गैस सिलेंडर हों या सब्जियां सबके दामों में आग लगी हुई है. महंगाई का सिर्फ भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में यही हाल है. जाहिर है, दुनिया भर के केंद्रीय बैंक भी इससे परेशान हैं. क्योंकि ज्यादातर देशों में महंगाई को नियंत्रण में रखने की जिम्मेदारी उनके केंद्रीय बैंक पर ही होती है.

वैसे अलग-अलग देशों में महंगाई का सहनीय स्तर भी अलग-अलग होता है. जैसे भारत में रिजर्व बैंक ने महंगाई का सहनीय स्तर 6 फीसदी रखा हुआ है, वहीं अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने इसे 2 फीसदी रखा है. यानी महंगाई इस स्तर से ज्यादा होगी, तभी वो इसे कम करने का प्रयास करेंगे.

कमाई की ग्रोथ से जुड़ी है महंगाई की ग्रोथ

केंद्रीय बैंक इस सहनीय स्तर को देश की जीडीपी में होने वाली ग्रोथ और लोगों की कमाई में होने वाली बढ़ोतरी के हिसाब से तय करते हैं. माने जिस देश में लोगों की कमाई में हर साल औसतन जितनी बढ़ोतरी हो रही होती है, उसके हिसाब से तय किया जाता है कि वहां के लोग अगले साल कितनी महंगी चीजें खरीद पाएंगे.

अर्थशास्त्रियों के इस समझदारी भरे रवैये के बावजूद वर्तमान महंगाई ने उन्हें मुश्किल में डाल रखा है. उन्हें डर सता रहा है क्योंकि उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही. कभी थोड़ी कम हो भी रही है, तो कुछ ही दिनों में फिर पलटी मार जा रही है.

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जिद्दी महंगाई का डर बढ़ता जा रहा

महंगाई का इस रवैये के चलते अर्थशास्त्रियों को स्टैगफ्लेशन का डर सता रहा है. स्टैगफ्लेशन जिद्दी महंगाई होती है, जिसे अर्थशास्त्र की किताबों में सरपट दौड़ती महंगाई के नाम से भी जाना जाता है.

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्र की प्रोफेसर मनीषा मेहरोत्रा कहती हैं कि स्टैगफ्लेशन में महंगाई तो एक चुनौती होती है लेकिन बेरोजगारी भी इसकी एक प्रमुख चुनौती होती है. इसमें महंगाई का एक ऐसा दुष्चक्र चलने लगता है, जिसमें बैंकों का ब्याज दरें बढ़ाकर महंगाई को नियंत्रित करने का प्रयास हमेशा सफल नहीं होता.

सामान के साथ महंगाई का भी आयात

डॉ मेहरोत्रा के मुताबिक वर्तमान में पूरी दुनिया में महंगाई एक साथ बढ़ी हुई है और ऐसे में आयातित महंगाई भी महंगाई बढ़ा रही है. यानी चीन से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक आइटम हों, कतर से आने वाली सीएनजी या सऊदी अरब से आने वाला कच्चा तेल, सभी भारत में पहले से बढ़ी महंगाई की आग में घी डालने का काम कर रहे हैं.

इलाहाबाद में ऐड कंपनी चलाने वाले व्यवसायी अजय कुमार ने हाल ही में कुछ कैमरे खरीदे, वे कहते हैं, "यह कैमरे दो साल पहले की कीमत के मुकाबले बहुत महंगे हैं. महंगाई ने हमारी लागत बहुत बढ़ा दी है. जाहिर है हमें अब ग्राहकों के लिए भी कीमतें बढ़ानी पड़ रही हैं."

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सेंट्रल बैंक ऐसे घटाता है महंगाई

दुनिया पर मंडराते इस स्टैगफ्लेशन के खतरे के बीच दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ाकर महंगाई नियंत्रित करने का काम कर रहे हैं. दरअसल ब्याज दरों और महंगाई में छत्तीस का आंकड़ा होता है. जब ब्याज दरें बढ़ाई जाती हैं तो लोन लेना भी महंगा हो जाता है. इससे लोग कम लोन लेते हैं और मार्केट में कम पैसा पहुंचता है. जिससे लोग कम सामान खरीदते हैं तो डिमांड घट जाती है और इससे महंगाई भी धीरे-धीरे कम होने लगती है.

लेकिन जब महंगाई जरूरत से ज्यादा बढ़ी हो और सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित हों तो ब्याज दरें घटाने का भी कोई असर नहीं होता. हाल ही में भारत में भी ऐसा देखा गया. जब रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें बढ़ाकर महंगाई नियंत्रित करने का प्रयास किया लेकिन विफल रहा. इसके बाद सरकार ने उससे जवाब मांग लिया कि ऐसा क्यों हुआ. हालांकि सरकार ने विपक्ष की मांग के बावजूद रिजर्व बैंक की ओर से जवाब में भेजी गई रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है.

ऐसे में भारत में भी स्टैगफ्लेशन का डर लोगों को सता रहा है. हालांकि पिछले महीने महंगाई में कुछ कमी आई है लेकिन अभी भी जानकारों को इसके फिर बढ़ जाने का डर है. वैसे इस बीच जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से पूछा गया कि क्या भारत में स्टैगफ्लेशन आ सकता है? तो उन्होंने इससे साफ इनकार कर दिया.

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