युद्धों से भरे मानव इतिहास में ऐसे मौके कम ही आते है जब किसी ताकतवर देश का नेता माफी मांगते हुए घुटने टेक दे. 50 साल पहले जर्मन चांसलर विली ब्रांट ने पोलैंड जाकर ऐसा कर दिया.
वारसॉ में घुटनों के बल बैठे विली ब्रांटतस्वीर: Imago/Sven Simon
विज्ञापन
7 दिसंबर 1970 का दिन. पोलैंड में वारसॉ घेटो मेमोरियल के सामने तत्कालीन जर्मन चांसलर विली ब्रांट. मेमोरियल उन यहूदियों की याद में बनाया गया है, जिन्हें हिटलर के शासन के दौरान जर्मन सेना ने कत्ल किया. घेटो कही जाने वाली पोलैंड की उस बस्ती में हजारों यहूदी मारे गए. मेमोरियल पर फूल अर्पित करने के बाद विली ब्रांट कुछ कदम पीछे हटे और फिर उन्होंने घुटने टेक दिए. उनका सिर झुक गया. ब्रांट करीब एक मिनट तक यूं ही बैठे रहे.
इसके बाद वह धीरे से खड़े हुए. फोटोग्राफरों की भीड़ लगातार उनकी तस्वीरें खींच रही थी. ब्रांट के चेहरे पर रुआंसी के भाव थे. इस दौरान जर्मन रेडियो की कवरेज में एनाउंसर ने कहा,"जर्मन चांसलर ने वारसॉ घेटो के स्मारक के सामने अभी जो कुछ किया है, अकथनीय अपराधों की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने का ऐसा जर्मन संकेत मैंने इससे पहले शायद ही कभी देखा है."
माफी का असर और आयाम
अपने संस्मरण में ब्रांट ने लिखा, "जर्मन इतिहास के नर्क का सामना और उन लाखों लोगों की हत्या का बोझ, मैंने वहीं किया जो निशब्द होने पर इंसान करते हैं."
अगले दिन दुनिया भर के अखबारों में यह तस्वीर थी. विली ब्रांट की इस माफी को जर्मन चेतना की माफी कहा गया. नाजी जर्मनी के जुल्म सह चुके पोलैंड की सरकार भी हैरान थी. व्रोक्लॉ यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर क्रजिस्टॉफ रुखनिवित्स कहते हैं, "उस घटना से पहले तक जर्मन हमेशा शैतान थे. उन्हें बदला लेने वाले और युद्ध के भूखे के तौर पर देखा जाता था."
प्रोफेसर रुखनिवित्स आगे कहते हैं, "तभी अचानक एक जर्मन चासंलर अपने घुटनों पर बैठकर प्रायश्चित का इशारा करता है."
जर्मन राजनीति में भी सोशल डेमोक्रैट चांसलर ब्रांट के इस कदम से तूफान आ गया. विली ब्रांट फाउंडेशन की इतिहासकार क्रिस्टीना मेयर कहती हैं, "उस वक्त भी ज्यादातर जर्मन नाजियों द्वारा किए गए युद्ध अपराधों के लिए माफी मांगने को तैयार नहीं थे." 1970 के एक सर्वे ने बताया कि हर दूसरे जर्मन नागरिक ने ब्रांट के घुटने टेकने की आलोचना की. उसे एक अतिशयोक्ति भरा कदम बताया.
वारसॉ संधि पर हस्ताक्षर करते विली ब्रांट (बाएं) और तत्काली पोलिश राष्ट्रपतितस्वीर: picture alliance/dpa
मील का पत्थर
1970 में जर्मनी के पूर्वी पड़ोसी देश पोलैंड की यात्रा के दौरान ब्रांट ने वारसॉ संधि पर भी हस्ताक्षर किए. इन दस्तखतों के साथ ही दूसरे विश्व युद्ध के बाद खोए इलाके को पश्चिमी जर्मनी (जर्मन एकीकरण से पहले) ने आधिकारिक रूप से पोलैंड का अंग मान लिया. इस संधि को पश्चिमी जर्मनी की कंजर्वेटिव पार्टियों ने खारिज कर दिया. धुर दक्षिणपंथियों ने तो विली ब्रांट को "राष्ट्रद्रोही" कह डाला.
लेकिन ब्रांट ओडरय नाइजे लाइन को जर्मनी और पोलैंड का बॉर्डर मान चुके थे. इसके बाद जर्मनी और पोलैंड के संबंधों में गर्माहट का दौर शुरू हुआ.
दो यूरो के सिक्के में विली ब्रांट का मेमोरियल दौरातस्वीर: BVA/Künstler: Bodo Broschat, Berlin/Foto: Hans-Jürgen Fuchs, Stuttgart
लेकिन कई जख्म आज भी हरे
पोलैंड की सत्ताधारी राष्ट्रवादी पार्टी पीआईएस के नेता आर्कादिउत्स मुलार्कजिक कहते हैं, "दूसरे विश्व युद्ध में करीबन यहूदियों के बराबर ही पोलिश लोग मारे गए. लेकिन आज भी इस्राएल और अमेरिका में रहने वाले यहूदी मुआवजे के हकदार हैं, लेकिन पोलिश नहीं."
अनुमान है कि दूसरे विश्व युद्ध में 60 लाख पोलिश नागरिक मारे गए. इनमें से करीब 30 लाख यहूदी थे. हिटलर के शासन के दौरान यूरोप में कुल 60 साल यहूदी मारे गए.
मुआवजे को लेकर पोलैंड के कई नेता आज भी जर्मनी की आलोचना कहते हैं.
01 सितंबर, 1939 को अडोल्फ हिटलर के आदेश पर जर्मन सेना ने पोलैंड पर हमला किया. 08 मई, 1945 तक यूरोप के देश एक दूसरे से लड़ते रहे. जानिए कब क्या हुआ.
तस्वीर: AP
1939
पहली सितंबर के दिन जर्मनी ने पोलैंड पर हमला किया. पोलैंड के सहयोगियों फ्रांस और ब्रिटेन ने जर्मनी के खिलाफ तीन सितंबर को युद्ध का ऐलान किया.
अप्रैल 1940
अप्रैल 1940 में जर्मन सेना डेनमार्क की ओर बढ़ी और नॉर्वे पहुंचने के लिए इस देश को प्लेटफॉर्म बनाया. वहां से जर्मनी को युद्ध के लिए जरूरी कच्चा माल मिलता था. ब्रिटेन इस आपूर्ति को रोकना चाहता था, इसलिए उसने नॉर्वे सेना भेजी. लेकिन जून में नॉर्वे में भी सहयोगी देशों ने घुटने टेक दिए.
लक्जेम्बर्ग
10 मई को जर्मन सेना ने नीदरलैंड्स, बेल्जियम और लक्जेम्बर्ग पर हमला किया. इसके बाद सेना ने पेरिस का रुख किया. 22 जून के दिन फ्रांस ने हाथ खड़े कर दिए. और फ्रांस दो हिस्सों में बंटा. एक हिटलर के राज का हिस्सा और दूसरा विषी फ्रांस जहां जनरल पेटां का शासन था.
तस्वीर: picture alliance/akg-images
ब्रिटेन का रुख
इसके बाद हिटलर ने ब्रिटेन का रुख किया. उसके बमों ने कोवेंट्री जैसे शहरों को तहस नहस कर दिया. साथ ही उत्तरी फ्रांस और दक्षिणी इंग्लैंड के बीच हवाई लड़ाई भी हुई. ब्रिटेन की रॉयल एयर फोर्स ने जर्मन विमानों को ध्वस्त कर दिया. 1941 की शुरुआत में जर्मन हवाई हमले काफी कम हो गए.
तस्वीर: Getty Images
1941
इंग्लैंड में हवाई मार खाने के बाद हिटलर ने ब्रिटेन के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों की ओर रुख किया. इसके बाद उत्तरी अफ्रीका, बाल्कान, सोवियत संघ और फिर युगोस्लाविया पर भी हमला किया गया.
तस्वीर: picture-alliance/akg-images
1942
शुरुआत में रेड आर्मी ने ज्यादा कार्रवाई नहीं की. लेकिन रूस पर चढ़ाई ने जर्मनी की हालत खराब कर दी. भारी नुकसान और मुश्किलों से जर्मनी का हमला कमजोर हुआ. हिटलर के हाथ में करीब करीब पूरा यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और सोवियत संघ के कुछ हिस्से थे. लेकिन साल 1942 निर्णायक साबित हुआ.
तस्वीर: Getty Images
यातना शिविर
इटली की मदद से जर्मनी ने उत्तरी अफ्रीका में ब्रिटिश सेना पर जीत हासिल की लेकिन बाद में जर्मनी ढीला पड़ा. इधर पूर्वी इलाकों में हिटलर ने आउश्वित्स जैसे यातना गृह बना लिए थे. करीब 60 लाख लोग हिटलर के नस्लभेद का शिकार हुए.
तस्वीर: Yad Vashem Photo Archives
1943
उस साल जर्मनी के खिलाफ खड़ी सेनाएं मजबूत हुईं. और लड़ाई में रुख पलटने का प्रतीक स्टालिनग्राड बना. इस शहर के लिए लड़ाई में जर्मनी का उत्साह कमजोर हुआ. उत्तरी अफ्रीका में जर्मन और इटैलियन सैनिकों की हार के बाद मित्र देशों के लिए इटली का रास्ता खुला था.
तस्वीर: picture alliance/akg
1944
रेड आर्मी ने जर्मनी की सेना को पछाड़ना शुरू किया. युगोस्लाविया, रोमानिया, बुल्गारिया, पोलैंड, एक एक कर सारे सोवियत संघ के पास चले गए. छह जून को अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और दूसरे देशों की सेना उत्तरी अफ्रीका की नॉर्मैंडी में उतरी. 15 अगस्त को पश्चिमी मित्र देशों ने दक्षिणी फ्रांस पर जवाबी हमला किया. 25 अगस्त के दिन पैरिस को जर्मन कब्जे से छुड़ा लिया गया.
तस्वीर: Getty Images
1944-45
1944-45 की सर्दियों में जर्मन सेना ने हमला करने की कोशिश की लेकिन पश्चिमी देश इस हमले को रोकने में कामयाब रहे. धीरे धीरे वे पश्चिम और पूर्व की ओर से जर्मन साम्राज्य की ओर बढ़े.
तस्वीर: imago/United Archives
1945
08 मई, 1945 को नाजी जर्मनी ने बिना किसी शर्त घुटने टेक दिए. 30 अप्रैल को हिटलर ने खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली ताकि कोई उसे गिरफ्तार न कर सके. यूरोप के अधिकतर शहर छह साल के युद्ध के बाद मलबे में तब्दील हो चुके थे. दूसरे विश्व युद्ध में करीब पांच करोड़ लोग मारे गए. जनरल फील्ड मार्शल विल्हेल्म काइटेल ने मई 1945 को बर्लिन में संधिपत्र पर हस्ताक्षर किए.