वैज्ञानिकों ने पहली बार एक ग्रह को उसके सितारे द्वारा निगल लिए जाने की घटना को देखा. ग्रह ने संघर्ष किया लेकिन सूर्य ने उसे निगल लिया और फिर डकार भी ली.
रात के वक्त मिल्की वे आकाशगंगातस्वीर: picture-alliance/Bildagentur-online/Tetra Images
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शायद कभी पृथ्वी के साथ भी ऐसा ही होगा. सूरज उसे निगल जाएगा. वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के इस भविष्य की झलक अंतरिक्ष में देखी जब बूढ़ा हो चुका एक सितारा बृहस्पति जितने विशाल ग्रह को निगल गया. निगलने के बाद उसने कुछ उगला भी जो अलग-अलग तरह के पदार्थ थे.
बुधवार को शोधकर्ताओं ने बताया कि यह सितारा रेड जाइंट यानी लाल दानव बनने के अपने शुरुआती दौर में है. यह चरण किसी भी सितारे की आयु का अंतिम दौर होता है, जब उसकी हाइड्रोजन खत्म हो जाती है और वह फैलना शुरू कर देता है. जैसे-जैसे सितारा बड़ा हुआ, उसका दायरा एक ग्रह तक पहुंच गया और ग्रह उसके भीतर समा गया.
कभी यह सितारा हमारे सूरज के आकार का हुआ करता था और उसका प्रकाश भी सूर्य जैसा ही था. यह सितारा हमारी आकाश गंगा मिल्की वे में पृथ्वी से करीब 12 हजार प्रकाश वर्ष दूर है. एक प्रकाश वर्ष उतनी दूरी होती है, जितनी प्रकाश किरण एक साल में तय कर सकती है. यानी करीब 9.5 खरब किलोमीटर. यह सितारा दस अरब साल यानी सूर्य से करीब दोगुनी उम्र का है.
लाल दानव बन गया था सितारा
लाल दानव बन जाने के बाद सितारे अपने वास्तविक व्यास से सौ गुना ज्यादा फैल सकते हैं और इस दौरान वे आसपास के तमाम ग्रहों को निगल जाते हैं. वैज्ञानिकों ने पहले लाल दानवों को दूसरे सितारे निगलते तो देखा था लेकिन यह पहली बार था कि उन्होंने किसी ग्रह को इस तरह निगले जाते देखा.
ऑरोरा बोरिएलिस: आकाश में चमत्कार
ऑरोरा हर बार हमें मोहित कर लेती हैं. हाल ही में एक सौर तूफान ने दुनिया के ऐसे इलाकों में आकाश में रंगीन कलाकृतियां बिखेर दीं, जहां अमूमन इन्हें कम ही देखा जाता है. देखिए ऐसी ही कुछ इलाकों में ली गईं दुर्लभ तस्वीरें.
तस्वीर: SANKA VIDANAGAMA/AFP
हरी लालटेन
हाल ही में अमेरिकी राज्य वॉशिंगटन के वाश्टुकना कस्बे में रात को आसमान जहरीले हरे रंग का हो गया. रविवार 30 अप्रैल को अमेरिकी मौसम एजेंसी एनओएए ने सौर तूफान के बारे में आगाह किया था जो रात के आसमान में इस चित्रकारी का जिम्मेदार था. यूरोप और एशिया में भी कई स्थानों से ऑरोरा के देखे जाने की खबरें आईं.
तस्वीर: Ted S. Warren/AP Photo/picture alliance
रात को सूर्यास्त?
रात की ये घटनाएं ध्रुवीय इलाकों में असामान्य नहीं हैं, लेकिन जर्मन बॉल्टिक सागर के द्वीप यूजडोम पर ये एक यादगार नजारा बन गए. रात के आसमान में ये चमकीले रंग तब बनते हैं जब सौर हवाओं के बिजली से चार्ज हो चुके कण वायुमंडल की ऊपरी सतहों से टकराते हैं.
तस्वीर: Christian Grube/IMAGO
उत्तर में ही नहीं
यह दिलचस्प नजारा सिर्फ उत्तर में ही नहीं बल्कि धरती के दक्षिणी हिस्सों में भी देखा जाता है. तथाकथित उत्तरी रोशनी (ऑरोरा बोरिएलिस) के अलावा दक्षिणी रोशनी (ऑरोरा ऑस्ट्रालिस) भी होती है, जिसे ऑस्ट्रेलिया की एलेस्मेयर झील के पास ली गई इस तस्वीर में देखा जा सकता है.
तस्वीर: SANKA VIDANAGAMA/AFP/Getty Images
बर्लिन में प्रकाश प्रदूषण
बर्लिन में इन रंगों की बस एक झलक ही देखी जा सकी क्योंकि वहां प्रकाश प्रदूषण बहुत ज्यादा है. फिर भी आने वाले सालों में आपको आसमान की तरफ और ज्यादा देखना चाहिए क्योंकि विशेषज्ञों का कहना कि मौजूदा सौर चक्र 2024 और 2025 में अपनी चोटी पर पहुंचेगा और तब रोशनी फैलाने वाले इन कणों का विस्फोट बढ़ जाएगा.
तस्वीर: Jörg&Nicole Krauthöfer/IMAGO
जुड़े हुए मिथक
फिनलैंड में उत्तरी रोशनी असामान्य नहीं है. लेकिन जब तक इनके वैज्ञानिक कारण की खोज नहीं हुई थी तब तक इनके इर्द-गिर्द कई मिथक थे. स्कैंडिनेविया के मूल निवासी 'सामी' लोग इस रहस्यमयी रोशनी में बुरी किस्मत और आत्माएं देखते थे. इनके दिखाई देने पर वो बच्चों को घर से बाहर निकलने से मना कर देते थे और मौन हो कर तब तक इंतजार करते थे जब तक आत्माएं फिर से शांत नहीं हो जाती थीं.
तस्वीर: ALEXANDER KUZNETSOV/AFP
रात का इंद्रधनुष
इंग्लैंड के उत्तर-पूर्वी तट पर व्हिटली बे में सेंट मेरीज लाइटहाउस ऑरोरा बोरिएलिस के इंद्रधनुषीय रंगों के आगे चमक रहा है. रोशनी में हरे, लाल और कभी कभी बैंगनी से लेकर नीले रंग दिखाई देते हैं. रोशनी की तीव्रता में कमी की वजह से रंग हर किसी को अलग भी दिख सकते हैं. (उलरिके शुल्ज)
एमआईटी कावली इंस्टिट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स में शोधकर्ता डॉ. किशाले डे कहते हैं कि अब से करीब पांच अरब वर्ष बाद सूर्य लाल दानव बनेगा तो बुध, शुक्र और आखिर में पृथ्वी को निगल जाएगा. डे ने इस परिघटना पर एक शोध पत्र लिखा है जिसे नेचर पत्रिका ने प्रकाशित किया है.
इस शोध पत्र में डॉ. डे बताते हैं कि जिस ग्रह को निगला गया, वह ‘हॉट जुपिटर' श्रेणी का ग्रह था. यह हमारे सौर मंडल के ग्रह बृहस्पति जैसा ही था, लेकिन वह अपने सितारे के कहीं ज्यादा करीब था. शायद इसका आकार बृहस्पति से कुछ गुना बड़ा था और यह अपने सितारे की परिक्रमा एक दिन में पूरी कर लेता था. जैसे-जैसे सितारा फैलता गया, ग्रह उसके और करीब होता गया.
ग्रह ने संघर्ष किया
शोधकर्ताओं में शामिल हार्वर्ड-स्मिथोसनियन सेंटर फॉर एस्ट्रोफिजिक्स के डॉ. मॉर्गन मैक्लॉयड कहते हैं, "ग्रह टुकड़ों में अपने सितारे के अंदर इस तरह गिरा जैसे उपग्रह पृथ्वी के वातावरण में गिरते हैं. यह जितना गहरा गया, उसके अंदर जाने की रफ्तार उतनी ही ज्यादा बढ़ती गई. इस तरह जो कक्षा करोड़ों, अरबों सालों से टिकी हुई थी, उसी ने उसे सितारे के भीतर धकेल दिया. अचानक सूर्य ने इस सितारे को इतनी तेजी से निगला कि हमें ऊर्जा की लहर नजर आई, जो खाने के बाद ली गई डकार जैसी थी. परिणामस्वरूप गर्मी ने ग्रह को तहस-नहस कर दिया और सब कुछ सितारे के भीतर समा गया.”
यूएई ने लीं मंगल के चांद डेमोस की सबसे करीबी तस्वीरें
लाल ग्रह मंगल के चांद की अब से पहले इतनी साफ और करीबी तस्वीरें कभी नहीं देखी गईं. यूएई के अंतरिक्ष यान अमाल ने ये तस्वीरें भेजी हैं जो 2020 में अंतरिक्ष में छोड़ा गया था.
तस्वीर: UAE Space Agency/AP/picture alliance
करीब से देखिए, मंगल का चांद डेमोस
मंगल ग्रह के चांद को इतनी पास से पहले कभी नहीं देका गया था. पिछले महीने यूएई का अमाल यान मंगल के उपग्रह डेमोस से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर था.
तस्वीर: UAE Space Agency/AP/picture alliance
छोटा सा चांद
अमाल, जिसका अर्थ होता है, उम्मीद, डेमोस के दूसरी तरफ भी गया. मंगल के इस चांद का आकार ऊबड़-खाबड़ है. इसका कुल आकार 15X12X12 किलोमीटर ही है.
तस्वीर: UAE Space Agency/AP/picture alliance
फोबोस से दूर
मंगल का अन्य चांद फोबोस आकार में डेमोस से दोगुना बड़ा है. उसके बारे में इंसान को डेमोस से ज्यादा पता है. वह मंगल से सिर्फ 6,000 किलोमीटर की दूरी पर है.
तस्वीर: NASA/UPI/IMAGO
अब डेमोस की बारी
डेमोस की मंगल से दूरी करीब 23 हजार किलोमीटर है. इस मिशन की प्रमुख वैज्ञानिक हेसा अल-मातरूशी कहती हैं कि अब तक फोबोस पर ही ध्यान रहा है, अब डेमोस की बारी है.
तस्वीर: NASA/JPL/USGS
मंगल का टुकड़ा
नयी तस्वीरों का अध्ययन कर वैज्ञानिकों ने कहा है कि यह कोई उल्कापिंड नहीं है, जैसा कि अब तक माना जाता रहा है बल्कि हो सकता है यह मंगल का ही टुकड़ा हो.
तस्वीर: Viking Project/USGS/NASA
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शोधकर्ताओं ने उस सितारे के अन्य ग्रहों को देखा तो नहीं है लेकिन वे कहते हैं कि अन्य ग्रह भी मौजूद हो सकते हैं. डॉ. डे बताते हैं, "ऐसा नहीं कि ग्रह ने अपने बचाव में संघर्ष नहीं किया. हमें मिले आंकड़े बताते हैं कि निगले जाने से पहले ग्रह के गुरुत्वाकर्षण ने सितारे की सतह को काटने का प्रयास किया था. लेकिन सितारा हजारों गुना ज्यादा विशाल है और ग्रह ज्यादा कुछ कर नहीं सका.”
डॉ. मैक्लॉयड कहते हैं कि यह सोचना ही विनम्रता से भर देता है कि हमारे ग्रह का भी एक दिन यही हश्र होगा. उन्होंने कहा, "हम इतने छोटे हैं कि पृथ्वी को निगलने के बाद सूर्य डकार तक नहीं लेगा, जैसा कि हमने इस सितारे पर देखा. जब सूर्य पृथ्वी को निगलेगा तो उसे कोई फर्क तक नहीं पड़ेगा.”