संयुक्त राष्ट्र की 75वीं जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विशेष अधिवेशन की वर्चुअल बैठक को संबोधित किया. मोदी ने संस्था में सुधारों पर जोर दिया और भारत की भूमिका को रेखांकित किया.
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नरेंद्र मोदी ने 4 मिनट के वीडियो संदेश में संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा कि वह विश्वसनीयता के संकट से जूझ रहा है. मोदी ने इस पर गौर करने का आग्रह किया. संयुक्त राष्ट्र की 75वीं जयंती पर वीडियो संदेश के जरिए उच्च स्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा, "आज हम एक-दूसके से जुड़ी हुई दुनिया में रहते हैं. हमें एक सुधारवादी बहुपक्षीय मंच की जरूरत है, जो आज की हकीकत को दर्शाता हो. सभी हितधारकों को आवाज उठाने का मौका दे, समकालीन चुनौतियों का हल और मानव कल्याण पर केंद्रित होना चाहिए."
मोदी ने पूर्व रिकॉर्डेड संदेश में ये बातें कही जो संयुक्त राष्ट्र के विशेष अधिवेशन में प्रसारित हुआ. उन्होंने कहा, "हम व्यापक सुधारों के बिना पुराने ढांचे के साथ आज की चुनौतियों का मुकाबला नहीं कर सकते हैं. संयुक्त राष्ट्र विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रहा है."
मोदी 180 से अधिक अन्य देशों के नेताओं की पंक्ति में 104वें नंबर पर भाषण देने आए. भारतीय प्रधानमंत्री के भाषण से पहले संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरूमूर्ति ने स्वागत भाषण दिया. मोदी की ओर से बहुपक्षीय सुधारवाद का आग्रह ऐसे समय में अहम है जब भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गैर स्थायी सदस्य के रूप में दो साल के लिए चुना गया है. भारत का यह कार्यकाल एक जनवरी 2021 से शुरू होने जा रहा है.मोदी संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन को वीडियो संदेश के जरिए 26 सितंबर को भी संबोधित करेंगे.
संयुक्त राष्ट्र ने इस साल जून में अपनी 75वीं वर्षगांठ को कोरोना वायरस के मद्देनजर भव्य पैमाने पर नहीं मनाया. 26 जून, 1945 को सैन फ्रांसिस्को में यूएन चार्टर पर लगभग 50 देशों ने हस्ताक्षर किए थे.
इस बीच संयुक्त राष्ट्र महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने कहा है कि यूएन अमेरिका की मांगों के आधार पर ईरान पर प्रतिबंधों का समर्थन नहीं करेगा जब तक कि उसे सुरक्षा परिषद से हरी झंडी नहीं मिल जाती.
उधर, जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा, "संयुक्त राष्ट्र तभी प्रभावी हो सकता है जब उसके सदस्य एकजुट हों." नई कोशिशों की गुजारिश करते हुए, मैर्केल ने कहा, "हमारी पहुंच में जो भी है वो सब करना होगा."
मैर्केल ने आगाह किया "कई बार सदस्य देश अपने हितों को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र को अपने आदर्शों से पीछे रहने के लिए मजबूर करते हैं." उन्होंने कहा कि जिस उद्देश्य से कार्य करना चाहिए होता वह नहीं हो पाता है.
मैर्केल ने आगे कहा, "लेकिन जिन्हें लगता है कि वे अकेले बेहतर चल पाएंगे वे गलत हैं. हमारी भलाई तभी है जब हम हर चीज को साझा करे...हमारा दर्द भी...हम एक दुनिया हैं."
डॉनल्ड ट्रंप डब्ल्यूएचओ को मिलने वाली राशि रोक रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी के लिए यह बहुत बड़ा झटका होगा क्योंकि सबसे ज्यादा धन उसे अमेरिका से ही मिलता है. जानिए अमेरिका के बाद किस किस का नंबर आता है.
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असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन
डब्यलूएचओ को दो तरह से धन मिलता है. पहला, एजेंसी का हिस्सा बनने के लिए हर सदस्य को एक रकम चुकानी पड़ती है. इसे "असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन" कहते हैं. यह रकम सदस्य देश की आबादी और उसकी विकास दर पर निर्भर करती है.
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वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन
दूसरा है "वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन" यानी चंदे की राशि. यह धन सरकारें भी देती हैं और चैरिटी संस्थान भी. अमूमन यह राशि किसी ना किसी प्रोजेक्ट के लिए दी जाती है. लेकिन अगर कोई देश या संस्था चाहे तो बिना प्रोजेक्ट के भी धन दे सकता है.
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दो साल का बजट
डब्यलूएचओ का बजट दो साल के लिए निर्धारित किया जाता है. 2018-19 का कुल बजट 5.6 अरब डॉलर था. 2020-21 के लिए इसे 4.8 अरब डॉलर बताया गया है. आगे दी गई सूची 2018-19 के आंकड़ों पर आधारित है.
असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन - 81 लाख डॉलर; वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन - 7.8 करोड़ डॉलर; कुल - 8.6 करोड़ डॉलर
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15. चीन
असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन - 7.6 करोड़ डॉलर; वॉलंटरी कॉन्ट्रीब्यूशन - 1 करोड़ डॉलर; कुल - 8.6 करोड़ डॉलर. अमेरिका और जापान के बाद सबसे बड़ा असेस्ड कॉन्ट्रीब्यूशन चीन का ही है. (स्रोत: डब्ल्यूएचओ)