1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भूमि कटाव: नाव पर ही जन्म और मृत्यु

१३ जुलाई २०२२

भूमि कटाव के कारण बांग्लादेश की शाहिदा बेगम के परिवार की जमीन पानी में डूब गई. उनके पास जमीन तो नहीं है लेकिन वह किसी तरह से नाव पर ही जिंदगी बिताती हैं. एक पूरा समुदाय नाव पर ही जीवन बिता रहा है.

तस्वीर: DW/M. Zahidul Haque

शाहिदा बेगम को याद नहीं है कि भूमि कटाव के कारण परिवार के किसी सदस्य ने शायद ही अपना जीवन जमीन पर बिताया होगा. बेगम कहती हैं, "अपने पिता और दादा की तरह मैं भी एक नाव में पैदा हुई थी. मैंने अपने बड़ों से सुना है कि हम जमीन पर बने घरों में रहते थे." बांग्लादेश की रहने वाली 30 साल की बेगम ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि उनके खानदान के लोग कभी मेघना नदी के किनारे रहते थे.

बेगम के मुताबिक बढ़ते समुद्र के स्तर और भूमि कटाव ने उनके बुजुर्गों के घरों और जमीनों को जलमग्न कर दिया और उन्हें नावों में घर बनाने के लिए मजबूर किया. बेगम का समुदाय अब 'मंता' के नाम से जाना जाता है, जो बांग्लादेश की दो प्रमुख नदियों पर तैरती छोटी नावों में घर बनाकर रहता है.

इस तरह से जीना किसी चुनौती से कम नहीं है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का बढ़ता स्तर और भूमि कटाव ऐसे कारक हैं जिन्हें कुछ लोग ऐसे घरों को स्थायी विकल्प के रूप में देखने लगे हैं.

कश्मीर में भुनी मछली का काम चौपट

03:39

This browser does not support the video element.

सिर्फ मौत से धरती पर जगह मिलती है

सिर्फ मौत ही इस समुदाय के लोगों को धरती पर ला सकती है. बेगम का कहना है कि किसी की मृत्यु होती है तो उसके शव को इस्लाम के मुताबिक दफनाने के लिए जमीन पर लाया जाता है.

सोहराब मांझी कहते हैं, "हम मृतकों को न तो नदी में बहाते हैं और न ही जलाते हैं." मांझी कहते हैं मंता लोग कभी किसान और मछुआरे थे लेकिन फिर मेघना का स्तर बढ़ गया और आसपास की जमीन नदी में मिल गई. उनके पास अब कोई स्थायी पता नहीं है, जिससे वे राज्य की कई सेवाओं का लाभ उठाने में असमर्थ हैं.

वैश्विक जलवायु परिवर्तन का असर अब लोग सीधा महसूस कर रहे हैं. बांग्लादेश प्रमुख प्रभावित देशों में से एक है. इस दक्षिण एशियाई देश का भूगोल और जलवायु ऐसी है कि यह बारिश और बाढ़ से ज्यादा प्रभावित है. बांग्लादेश में हाल के सालों में प्राकृतिक आपदाएं आने की दर भी बढ़ी है.

मछुआरे नावों पर रहकर थक चुके हैं. 58 वर्षीय मछुआरे चान मियां कहते हैं वह जमीन पर घर बनाना चाहते हैं. वो कहते हैं, "यहां हमारे लिए कुछ भी नहीं है. मैं चाहता हूं कि मेरी अगली पीढ़ी शिक्षा हासिल करे और समुदाय की बेहतरी के लिए कुछ व्यावहारिक काम करे."

सिलचर की भयानक बाढ़ क्या इंसानों की गलती है

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के प्रमुख गौहर नदीम ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि पूरे बांग्लादेश में अनुमानित तीन लाख लोग नाव पर बने घरों में रहते हैं, यह संख्या हर दिन बढ़ रही है.

विशेषज्ञों का कहना है कि बांग्लादेश में बढ़ते समुद्र के स्तर और भूमि कटाव में वृद्धि जारी रहेगी इसलिए सरकार को इन मुद्दों के समाधान के लिए व्यावहारिक कदम उठाने होंगे. ढाका में डेल्टा रिसर्च सेंटर के प्रमुख मोहम्मद अजीज के मुताबिक, "नदी का कटाव एक अल्पकालिक समस्या नहीं है. आपको निर्णय लेना होगा."

मांझी कहते हैं कि मंता परिवार के सदस्य दिन में 12 घंटे मछली पकड़ने का काम करते हैं, जिसे बाद में तटीय मछली बाजारों या फिर अन्य मछुआरों को बेचा जाता है.

दर्जनों मंता परिवारों को सरकारी कार्यक्रमों के तहत मकान भी दिए गए हैं. मकान मिलने के बाद पहचान पत्र पाने का यह पहला कदम होता है. लेकिन 38 साल की जहांआरा बेगम ने सरकारी मदद को ठुकरा दिया क्योंकि उनका घर काम वाली जगह से बहुत दूर था.

'पहले हम नदी को जानते थे': दस साल में आठ बार घर बना चुके हैं लोग

जहांआरा कहती हैं, "घर हमारे मछली पकड़ने वाले इलाके से बहुत दूर है. वहां पहुंचने में समय लगता था. इसलिए हमने इसे स्वीकार नहीं किया."

28 साल की अस्मा बानो कहती हैं, "मैं अब पानी पर नहीं रहना चाहती हूं. यहां मेरे बच्चों का भविष्य नहीं है." तीन बच्चों की मां अस्मा का जन्म मेघना नदी में एक नाव पर हुआ था और वह वहीं पली बढ़ी. अस्मा कहती हैं, "अगर मेरे बच्चों को शिक्षित किया जा सकता है, तो उन्हें कम से कम इस कठिन जिंदगी से छुटकारा मिल जाएगा."

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें