वुल्फ्स लेर यानी भेड़िए की मांद यानी हिटलर का अनोखा बंकर
२२ जुलाई २०२२पूर्वी प्रशिया दूसरे विश्व युद्ध के खात्मे तक, जर्मन राइष का सबसे पूर्वी प्रांत हुआ करता था. उसी के एक सघन जंगल में अडोल्फ हिटलर ने अपना खुफिया सैन्य मुख्यालय बनाया था. जिसे वुल्फ्स लेर यानी भेड़िए की मांद का नाम दिया गया था. पोलैंड में केत्रीजिन नाम के एक छोटे से कस्बे में स्थित, हवा भी न घुस सके, इस तरह से बंद और जबर्दस्त सुरक्षा से लैस ये भूमिगत इमारत 1940 और 1944 के बीच बनायी गयी थी. इसमें 50 बंकर, 70 बैरक, दो हवाई पट्टियां और एक रेलमार्ग स्टेशन भी था. हिटलर, उसके सचिव मार्टिन बोरमान और सेना प्रमुख हरमान ग्योरिंग के पास अपने निजी बंकर थे और एक राजकीय अतिथियों के लिए आरक्षित था.
कंक्रीट के इन बंकरों की दीवारें पांच से सात मीटर मोटी थी. सघन सुरक्षा वाले बहिष्कृत जोन थे, अनगिनत गश्ती चौकियां थी और वुल्फ्स लेर में रहने वाले कई हजार सैनिकों और नागरिकों की सुरक्षा के लिए दस किलोमीटर तक बारूदी सुरंगे बिछाई गई थीं.
टूर के गाइड लुकस पोलुबिन्स्की हमारे ग्रुप को बताते हैं, "ये नाम अडोल्फ से आया था जिसका मतलब अभिजात जर्मन में नोबल वुल्फ यानी कुलीन भेड़िया होता है." हिटलर को ये बात पसंद आई और वुल्फ उसका छिपा हुआ नाम बन गया. हिटलर का अपना मुख्यालय पूरी तरह से छद्मआवरण वाला था. हवा से उनकी शिनाख्त हो पाना असंभव था. ऊंचे विशालकाय पतझड़ी पेड़ और जाल, उस ठिकाने को छिपाए रखते थे. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अडोल्फ हिटलर ने इतना समय कहीं और नहीं बिताया था – करीब 830 दिन वो भेड़िए की मांद में रहा था.
बाहर से हिटलर का बंकर मिस्र के एक प्राचीन मकबरे की तरह दिखता है. हिटलर इस मकबरे में रहता था, वहीं काम करता और सोता था. पोलुबिन्स्की के मुताबिक, "लगता था कि उसके चारों ओर सात मीटर मोटी कंक्रीट की दीवारें उसे बाहर की दुनिया से अलग रखती थीं और उसका पागलपन उन दीवारों के बीच कैद था."
ठिकाने पर कुदरत का दावा बहाल
जब तत्कालीन सोवियत संघ की सेना, रेड आर्मी नजदीक पहुंची तो जर्मनी की संयुक्त सेना ने 24 जनवरी 1945 को ये क्वार्टर विस्फोट में उड़ा दिए. लेकिन विशालकाय इस्पाती इमारतें पूरी तरह से नष्ट नहीं हो पाई थीं. युद्ध के बाद, स्थानीय लोग मलबे से अपने काम की सामग्रियां निकाल ले गए लेकिन कंक्रीट के विशाल ब्लॉक अभी भी जंगल में पड़े हैं, उन पर फर्न और मॉस उग आई हैं.
बारूदी सुरंगें भी साफ की गईं और 1959 से टूरिस्टों का यहां आने का सिलसिला शुरू हो गया. करीब 80 साल बाद, आगंतुक उस जगह के माहौल को अब भी महसूस कर सकते हैं जहां हिटलर, उसके जनरलों और मार्शलों ने न सिर्फ अभियानों की योजनाएं बनाई थीं बल्कि विस्तार से यहूदियों के संहार की चर्चा भी की थी.
कुछ समय के लिए एक टूर ऑपरेटर ने सैलानियों को टैंकों पर बैठने की अनुमति दे दी और एयर गनों से खेलने दिया. लेकिन पोलुबिन्स्की के मुताबिक ये तरीका संभावित आगंतुकों को रास नहीं आया. 2017 से वुल्फ्स लेर राज्य प्रबंधन के दायरे में आ गई. करीब तीन लाख लोग हर साल यहां आते हैं, इनमें पोलैंड के लोग भी हैं और दुनिया भर के सैलानी भी.
बंकर के अवशेषों में दाखिल होना मना है. फिर भी कुछ सैलानी बचे हुए गलियारों में जा उतरते हैं. पोलुबिन्स्की बताते हैं कि, "कई लोगों को चोटें आ गईं, फिर हमें निकालना पड़ा उन्हें." अपने ग्रुप को वो बार बार ताकीद करते हैं कि कृपया "निर्धारित रास्ते पर ही चलें."
उन सीलन भरे नम गलियारों में उतरने की मेरी कोई इच्छा नहीं है. इतनी मोटी दीवारों से घिरा होना तो बड़ा दमनकारी महसूस होगा.
हिटलर की हत्या की 42 कोशिशें
इलाके के भीतर कुछ कदम चलकर मुझे क्लाउस शेन्क ग्राफ फॉन श्टाउफेनबर्ग के सम्मान में बना एक स्मृति पट्ट दिखा. 20 जुलाई 1944 को कर्नल श्टाउफेनबर्ग ने हिटलर को बम से उड़ाने की कोशिश की थी. हमला नाकाम रहा. लुकस पोलुबिन्स्की बताते हैं कि "हिटलर पर ये पहला प्राणघातक हमला नहीं था." तानाशाह पर कम से कम 42 हमले हुए थे. एक कामयाब हमला, दुनिया को बचा लेता, मैंने मन ही मन सोचा.
हिटलर ने बार बार बच निकलने को एक शुभ संकेत की तरह लिया. लेकिन वो चौकन्ना था. वुल्फ्स लेर जैसे अभेद्य किले में आने वाले आगंतुकों की तलाशी ली जाती थी. मैंने पाया कि कर्नल श्टाउफेनबर्ग का बम लेकर हिटलर तक पहुंच जाना करीब करीब चमत्कार ही रहा होगा.
हिटलर बम से सिर्फ इसलिए बच गया क्योंकि वो एक लकड़ी की बैरक में हुआ था. वो और उसका सैन्य स्टाफ सैन्य हालात पर चर्चा के लिए जमा हुआ था जिसमें श्टाउफेनबर्ग को भी बुलाया गया था. कर्नल ने उससे पहले कई बार बंकर में बम ले जाने की कोशिश की थी लेकिन हर बार आखिरी क्षण में उसे अपना इरादा टालना पड़ता था. लेकिन इस बार श्टाउफेनबर्ग बम से भरे एक ब्रीफकेस को हिटलर के नजदीक ओक की बनी मेज के नीचे रखने में सफल रहा. लेकिन किसी ने उसे पांव से एक तरफ खिसका दिया क्योंकि वो रास्ते में आ रहा था. इस एक हरकत से हिटलर की जिंदगी बच गई. और ये भी एक तथ्य है कि गर्मियों की तपिश के चलते खिड़कियां खुली थीं और इस वजह से धमाके का दबाव बाहर की ओर था. चार अधिकारी मारे गए थे, हिटलर को थोड़ा खरोंचे आईं. अगर वो बैठक बंकर में होती तो हिटलर संभवतः मारा जाता.
श्टाउफेनबर्ग बहाना बनाकर कमरे से चला गया था. हिटलर की मौत का उसे पक्का यकीन था, लिहाजा क्रांति को अंजाम तक पहुंचाने के लिए वो बर्लिन को निकल गया. लेकिन उसी रात वो और उसके साथ साजिश के सहयोगी गिरफ्तार कर लिए गए और सबको फांसी पर लटका दिया गया.
मैं सोचती हूं कि मित्र देशों ने नाजी आतंक को खत्म करने के लिए वुल्फ्स लेर पर हमला क्यों नहीं किया. बात इतनी सी है कि बंकर थे ही इतने विशालकाय इतने भारीभरकम, पोलुबिन्स्की बताते हैं. "1943 की गर्मियों से ही ब्रिटेन और अमेरिका को शायद ये पता था कि वुल्फ्स लेर जैसी कोई चीज अस्तित्व में थी लेकिन उनका ध्यान इमारतों की ओर नहीं था- वे बस हिटलर को पकड़ना चाहते थे. और उन्हें ये नहीं पता था कि उस ठिकाने में वो कब रहेगा." इसके अलावा टूरिस्ट गाइड पोलुबिन्स्की ने ये भी तर्क दिया कि उस समय के विमानों में पूर्वी प्रशिया तक उड़ान भरने और बम गिराकर वापस इंग्लैंड लौट आने की रेंज नहीं थी.
पोलुबिन्स्की ने समझाया कि, हिटलर ने पूर्वी प्रशिया का ठिकाना इसीलिए चुना था क्योंकि वो न सिर्फ एक बढ़िया हाइडआउट था बल्कि सबसे बढ़कर बात ये थी कि वो रूस की सीमा से ज्यादा दूर नहीं था. 22 जून 1941 को उसने वुल्फ्स लेर से ही सोवियत संघ पर हमले का आदेश दिया था.
माउरवाल्ड का एंबर कक्ष?
कुछ किलोमीटर दूर, शंकुधारी वनों की सघन हरीतिमा में आर्मी हाई कमान ने अपना मुख्यालय बनाया था, उसका नाम था- माउरवाल्ड. वुल्फ्स लेर से उलट ये बंकर नष्ट नहीं किए गए. सीलन भरे, दमन कक्षों में बड़ी बड़ी आकृतियां रखी गई हैं. आगंतुक यहां आकर एक पनडुब्बी की नकल को देखकर हैरानी में पड़ सकते हैं और घोर अचरज में प्रसिद्ध एंबर कक्ष की नकल को भी निहार सकते हैं जो एंबर पैनलों से सुसज्जित है.
प्रशिया के राजा फ्रेडेरिक विलियम प्रथम ने मूल एंबर चैंबर, जार पीटर महान को 1716 में अपनी दोस्ती के प्रतीक के रूप में भेंट किया था. वो दोनों देशों के बीच गठबंधन का प्रतीक भी था. जार ने चैंबर को सेंट पीट्सबर्ग स्थित अपने महल में रखवाया था. लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान नाजी सैनिकों ने उसे चुरा लिया और आज तक कोई नहीं जानता वो कहां है.
उस वक्त पूर्वी प्रशिया डिस्ट्रिक्ट के हेड एरिख कोश का मानना था कि वो बेशकीमती और अद्भुत कक्ष माउरवाल्ड में हो सकता है. युद्ध के बाद, उन्हें फांसी नहीं दी गई क्योंकि अधिकारियो को उम्मीद थी कि वो उस एंबर कक्षर के रहस्यमय ठिकाने के बारे में बता देंगे. लेकिन वो चुप रहे. माउरवाल्ड की बार बार तलाशी ली जाती रही, हालिया तलाशी 2017 में हुई लेकिन अभी तक कुछ पता नहीं चला.
रिपोर्टः सुजाने कोर्ड्स