पोलैंड में गर्भवती महिला की मौत के बाद कानून पर विवाद
३ नवम्बर २०२१
पोलैंड में लगभग पूरी तरह अबॉर्शन पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के कारण हुई पहली संभावित मौत के बाद देशभर में प्रदर्शनकारी गुस्से में हैं. हालांकि सरकार ने इन दोनों बातों में संबंध होने से इनकार किया है.
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मंगलवार को पोलैंड की राजधानी वॉरसा में कॉन्स्टिट्यूशनल ट्राइब्यूनल के सामने प्रदर्शनकारियों ने मोमबत्तियां जलाकर प्रदर्शन किया. ये लोग पिछले साल लागू किए गए उस कानून का विरोध कर रहे हैं, जिसे यूरोप का सबसे सख्त अबॉर्शन कानून माना जाता है.
हाल ही में एक महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया था क्योंकि उसके गर्भ में द्रव्य की कमी थी. चिकित्सा अनाचार के मामलों की विशेषज्ञ वकील योलांटा बड्जोवस्का ने मीडिया को बताया कि डॉक्टरों ने उस महिला का अबॉर्शन करने के बजाय भ्रूण के मर जाने का इंतजार किया. बाद में उस महिला की मौत हो गई.
तस्वीरों मेंः मेरा शरीर मेरी मर्जी
मेरा शरीर, मेरी मर्जी
‘माई बॉडी माई चॉइस’ जैसे नारे लिखीं तख्तियां हाथों में लिए हजारों महिलाओं ने अमेरिका के 600 शहरों में प्रदर्शन किए.
तस्वीर: Lindsey Wasson/REUTERS
अपने शरीर पर अधिकार मांगतीं महिलाएं
अमेरिका के वॉशिंगटन में हजारों महिलाएं सड़कों पर उतरीं और अमेरिका में अबॉर्शन के अधिकारों के समर्थन में प्रदर्शन किया.
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टेक्सस कानून का विरोध
अमेरिका के टेक्सस में गर्भधारण के छह हफ्ते बाद गर्भपात कराने पर बैन लगा दिया गया है. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून को रोकने की अपील की है और कहा है कि इससे महिलाओं के संवैधानिक अधिकार का हनन होता है.
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हार्टबीट बिल
टेक्सस के एक नये कानून के तहत प्रेग्नेंसी के छह सप्ताह बाद गर्भपात कराना मना है. टेक्सस के इस नये गर्भपात कानून को "हार्टबीट बिल” नाम दिया गया है.
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अबॉर्शन
अबॉर्शन
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सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही दोबारा शुरू होनी है. वहीं इस कानून पर अंतिम फैसला हो पाएगा.
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क्यों खतरनाक है कानून
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस कानून की वजह से "टेक्सस में गर्भपात कराने वाले मरीजों में से 85 प्रतिशत को देखभाल नहीं मिल पाएगी" और कई गर्भपात क्लिनिक बंद भी हो जाएंगे.
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गर्भपात अपराध
19 मई को पारित किया गया कानून एक तरह से विचित्र भी है क्योंकि यह हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वो छह हफ्तों की समय सीमा के बाद गर्भपात कराने वाली महिला की मदद करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकें.
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छह हफ्ते नाकाफी हैं
ऐसा अक्सर गर्भ के छह सप्ताह पूरा होने पर पता चलने लगता है. कभी कभी यह समय आने तक महिलाओं को गर्भ का पता भी नहीं चलता.
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कानून के समर्थक भी
वैसे कानून का समर्थन करने वालों की भी कमी नहीं है. हालांकि रविवार के प्रदर्शन के विरोध में कुछ ही ऐसे लोग नजर आए जिन्होंने ‘अबॉर्शन हत्या है’ जैसे नारे लगाए.
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सोमवार को कुछ प्रदर्शनकारियों को टीवी सीरीज ‘हैंडमेड्स टेल' जैसे लाल चोगे पहने देखा गया था. यह एक प्रतीकात्मक विरोध था क्योंकि इस टीवी सीरीज में एक ऐसा समाज दिखाया गया है जिसमें महिलाओं का सिर्फ प्रजनन के लिए प्रयोग किया जाता है.
कानून पर बहस
अस्पताल का कहना है कि डॉक्टरों और नर्सों ने महिला की जान बचाने के लिए हर संभव कोशिश की. 30 वर्षीय इस महिला की मौत अपनी गर्भावस्था के 22वें सप्ताह में हुई. इजाबेला नाम की इस महिला की मौत तो सितंबर में ही हो गई थी लेकिन यह मामला सार्वजनिक बीते शुक्रवार किया गया.
प्रजनन अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि पोलैंड में अबॉर्शन कानून के कारण यह पहली मृत्यु है. हालांकि नए कानून के समर्थकों का कहना है कि महिला की मृत्यु का कारण कानून ही है, ऐसा पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता और कानून विरोधी कार्यकर्ता हालात का फायदा उठा रहे हैं. कानून विरोधी कार्यकर्ताओं ने वॉरसा और कराकाव के अलावा कई जगह प्रदर्शन किए.
जिस अस्पताल में इजाबेला की मौत हुई, उसने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा कि उसे महिला की मृत्यु का अफसोस है और वे इस दुख में शामिल हैं. महिला की एक बेटी और है, जो अब अपने पिता के पास है.
कमाई के मामले में अपने पतियों से भी पीछे हैं महिलाएं
पति-पत्नी की आय में अंतर पर किए गए एक वैश्विक अध्ययन में सामने आया है कि दुनिया में कहीं भी महिलाएं अपने पतियों के बराबर नहीं कमा पा रही हैं. अध्ययन आईआईएम बैंगलोर के शोधकर्ताओं ने किया है.
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45 देश, 43 सालों की अवधि
परिवारों के अंदर आय में लैंगिक असमानता पर पहले वैश्विक सर्वे के लिए 45 देशों के 1973 से लेकर 2016 तक के डेटा का अध्ययन किया गया. आईआईएम बैंगलोर के हेमा स्वामीनाथन और दीपक मलघन ने यह शोध किया.
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हर उम्र के जोड़े शामिल
यह डाटा 18 से 65 साल की उम्र के हेट्रोसेक्सुअल जोड़ों वाले 28.5 लाख परिवारों का था. डाटा इकट्ठा किया लाभकारी संस्था लक्समबर्ग इनकम स्टडी (एलआईएस) ने.
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पूरी दुनिया का एक ही हाल
शोधकर्ताओं ने देशों को सामान्य रूप से व्याप्त विषमता और परिवारों के अंदर असमानता की कसौटियों पर परखा. उन्होंने पाया कि लैंगिक असमानता सभी देशों में, हर कालखंड में और गरीब हो या अमीर सभी परिवारों में मौजूद है. एक देश भी ऐसा नहीं है जहां महिलाओं की आय उनके पतियों के बराबर हो.
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नॉर्डिक देश भी पिछड़े
उत्तरी यूरोप के नॉर्डिक देशों में यूं तो दुनिया में सबसे कम लैंगिक असमानताएं हैं, लेकिन वहां भी हर जगह परिवार की आय में पत्नी की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत से कम पाई गई.
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क्यों कम कमा पाती हैं महिलाएं
इसके कई कारण वैश्विक हैं. पुरुषों को पारम्परिक रूप से रोजी-रोटी कमाने वालों और महिलाओं को गृहिणियों के रूप में देखा जाता है. कई महिलाओं को मां बनने के बाद काम से अवकाश लेना या काम छोड़ देना पड़ता है. कार्यस्थलों में एक जैसे काम के लिए आज भी कई स्थानों पर महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम पैसे मिलते हैं.
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घर के अवैतनिक काम
आज भी घर के अवैतनिक काम और परिवार का ख्याल रखना महिलाओं की जिम्मेदारी माना जाता है. रिपोर्ट ने कहा कि ख्याल रखने का अवैतनिक काम "महिलाओं को श्रमिक बल में प्रवेश करने, बने रहने और तरक्की करने से रोकने वाला मुख्य अवरोधक है."
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कम आय के नुकसान
शोधकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं की कम आय की वजह से परिवार में लैंगिक असंतुलन भी होता है. महिलाओं के पास बचत कम होती है, वो कम संपत्ति अर्जित कर पाती हैं और बुढ़ापे में पेंशन के रूप में भी उनकी कमाई कम ही रहती है.
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अच्छी आय के फायदे
बतौर गृहिणी महिलाओं का योगदान अदृश्य है जबकि नकद आय दिखती है. पारिवारिक आय में ठोस नकद का योगदान करने वाली महिलाओं का एक विशेष दर्जा होता है, वो आत्मनिर्भर होती हैं और परिवार के अंदर वो अपनी बात कह सकती हैं. आय बढ़ने से उनकी क्षमता बढ़ती है और वो एक शोषण भरी स्थिति से खुद को निकाल भी सकती हैं.
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आशा की एक किरण
हालांकि 43 सालों की इस अवधि में परिवारों के अंदर की असमानता में 20 प्रतिशत गिरावट देखी गई है. दुनिया के अधिकांश हिस्सों में श्रमिक वर्ग में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है, महिलाओं के अनुकूल कई नीतियां बनी हैं और लैंगिक फासला कम हुआ है.
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लंबा सफर बाकी है
इसके बावजूद यह फासला अभी भी बहुत बड़ा है और अभी भी इसे कम करने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है. शोधकर्ताओं का कहना है कि सरकारों को और बेहतर नीतियां लाने की जरूरत है, कंपनियों को और महिलाओं को नौकरी देने की जरूरत है और जो कामकाजी महिलाओं को घर का अवैतनिक काम करने और परिवार का ख्याल रखने के लिए दंड देना बंद करने की जरूरत है.
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दक्षिणी पोलैंड के इस काउंटी अस्पाल ने कहा, "जो चिकीत्सीय प्रक्रिया अपनाई गई, उसका एकमात्र मकसद मरीज और भ्रूण की सेहत और जीवन की सुरक्षा थी. डॉक्टरों और नर्सों ने मरीज और उसके बच्चे के लिए एक मुश्किल लड़ाई लड़ी और अपनी हर संभव कोशिश की.”
सत्ताधारी पार्टी की एक मुख्य सदस्य मारेक सुस्की ने कहा कि इस मामले का कोर्ट के फैसले से कोई संबंध नहीं है. सरकारी टीवी पर सुस्की ने कहा, "चिकीत्सीय गलतियां होती हैं. दुर्भाग्य से अब भी मांओं की डिलीवरी में मौत होती है. लेकिन इसका ट्राइब्यूनल के फैसले से कोई संबंध निश्चित तौर पर नहीं है.”
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डरने लगे हैं डॉक्टर
कानून विरोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि सैद्धांतिक रूप से महिला का अबॉर्शन तभी हो जाना चाहिए था जब गर्भ के कारण उसकी जान को खतरा हुआ लेकिन अबॉर्शन कानून के कारण अब डॉक्टर डरने लगे हैं.
इंटरनेशनल प्लान्ड पैरंटहुड फेडरेशन की आइरीन डोनाडियो ने कहा, "जब कानून बहुत दमनकारी हों और डॉक्टरों पर पांबदियां लगाते हों तो वे कानून की व्याख्या में और ज्यादा कठोरता बरतते हैं ताकि निजी तौर पर खुद किसी खतरे में ना पड़ जाएं.”
परिवार नियोजन के तरीके
09:25
नया कानून लागू होने से पहले पोलैंड में महिलाएं तीन परिस्थितियों में अबॉर्शन करा सकती थीं. पहला तब, जबकि गर्भ ठहरने की वजह बलात्कार जैसा कोई अपराध हो. दूसरा यदि महिला की जान खतरे में हो. और तीसरा, भ्रूण में गंभीर विकृतियां हों.
पोलैंड की रूढ़िवादी सत्ताधारी पार्टी के प्रभाव में कॉस्टिट्यूशनल ट्राइब्यूनल ने पिछले साल फैसला दिया कि विकृतियो के कारण होने वाले अबॉर्शन वैध नहीं हैं. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अब अगर भ्रूण के बचने की संभावना ना हो तो डॉक्टर अबॉर्शन करने के बजाय उसके स्वयं ही मर जाने का इंतजार करते हैं.