पश्चिम बंगाल में चुनाव नतीजों के करीब डेढ़ महीने बाद अब पूर्व मेदिनीपुर जिले की कुछ महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर टीएमसी कार्यकर्ताओं पर सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया है.
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पश्चिम बंगाल में पहले विधानसभा चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और सत्ता की दावेदार के तौर पर उभरी बीजेपी के आक्रामक अभियान ने सुर्खियां बटोरी थीं. चुनाव नतीजों के बाद राज्य के विभिन्न इलाकों में शुरू हुई हिंसा का मुद्दा सुर्खियों में रहा था. अब यह हिंसा तो काफी हद तक थम गई है लेकिन राज्य की कुछ महिलाओं की ओर से टीएमसी कार्यकर्ताओं पर सामूहिक बलात्कार के आरोप में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद बंगाल एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है.
इन महिलाओं ने विधानसभा चुनाव के बाद टीएमसी कार्यकर्ताओं की ओर से जारी हिंसा के दौरान अपने साथ सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया है. उन्होंने इस मामले की जांच सीबीआई या एसआईटी से कराने की मांग की है. इससे पहले बीते महीने भी बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं के परिजनों ने चुनाव बाद की हिंसा के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी. अदालत ने उस पर राज्य सरकार से भी रिपोर्ट मांगी थी. अब ताजा मामले में पीड़िताओं ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने ऐसे मामलों में या तो शिकायत दर्ज ही नहीं की या फिर हल्की धाराओं में दर्ज की है.
नाती के सामने बलात्कार
इन महिलाओं में शामिल पूर्व मेदिनीपुर जिले की खेजुरी विधानसभा क्षेत्र की एक 60 वर्षीय महिला ने याचिका में कहा है कि चुनाव के नतीजे आने के बाद टीएमसी के पांच कार्यकर्ता चार मई की रात को जबरन उनके घर में घुस गए और उनके छह साल के नाती के सामने सामूहिक बलात्कार किया. महिला के अनुसार 4 और 5 मई के बीच देर रात हुई इस घटना में उन्होंने घर की सभी कीमती चीजें भी लूट लीं. महिला ने अपनी याचिका में कहा है कि पड़ोसियों ने अगले दिन बेहोशी की हालत में पाकर उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया. महिला के मुताबिक पुलिस ने इस मामले की शिकायत दर्ज करने से भी इंकार कर दिया.
महिला का कहना है कि खेजुरी विधानसभा सीट पर बीजेपी की जीत के बावजूद सौ से ज्यादा टीएमसी कार्यकर्ताओं की भीड़ ने तीन मई को उनके घर को घेर लिया था और घर को बम से उड़ाने की धमकी भी दी थी. इस घटना के बाद उनकी बहू ने अगले दिन ही घर छोड़ दिया था.
महिलाओं को क्यों नहीं है अपने ही शरीर पर अधिकार?
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि दुनिया में 50 प्रतिशत महिलाओं को अपने ही शरीर पर अधिकार नहीं है. महिलाएं ऐसा लंबे समय से महसूस करती रही हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष ने इसे पहली बार उठाया है.
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अपने शरीर पर स्वायत्ता
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की इस रिपोर्ट में पहली बार महिलाओं के अपने ही शरीर पर स्वायत्ता की कमी के विषय को संबोधित किया है गया. अध्ययन का शीर्षक है "मेरा शरीर मेरा अपना है" और इसमें 57 देशों में महिलाओं के हालात पर रोशनी डाली गई है.
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हर दूसरी महिला पर है प्रतिबंध
रिपोर्ट के अनुसार चाहे यौन संबंध हों, गर्भ-निरोध हो या स्वास्थ्य सेवाओं को हासिल करने का सवाल, इन 57 देशों में लगभग 50 प्रतिशत महिलाओं को कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है.
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कोई और लेता है फैसले
रिपोर्ट के लिए इन देशों में महिलाओं पर लगे उन प्रतिबंधों का अध्ययन किया गया है जो महिलाओं को बिना किसी डर के अपने शरीर से संबंधित फैसले लेने से रोकते हैं. कई प्रतिबंधों का नतीजा यह भी होता है कि महिलाओं के शरीर से जुड़े फैसले कोई और ले लेता है.
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महिलाओं के खिलाफ हिंसा
रिपोर्ट में इन 57 देशों में महिलाओं पर अंकुश लगाने के लिए बलात्कार, जबरन वंध्यीकरण या स्टेरलाइजेशन, कौमार्य परीक्षण और जननांगों को अंगभंग करने जैसे हमलों के बारे में भी बताया गया है.
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व्यापक असर
यूएनएफपीए ने कहा है कि शरीर पर स्वायत्ता की इस कमी की वजह से महिलाओं और लड़कियों को गंभीर क्षति तो पहुंचती ही है, इससे आर्थिक उत्पादकता भी कम होती है और स्वास्थ्य प्रणाली और न्यायिक व्यवस्था का खर्च भी बढ़ता है.
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कानून भी नहीं देता साथ
रिपोर्ट में 20 ऐसे देशों के बारे में बताया गया है जहां ऐसे कानून हैं जिनकी मदद से कोई बालात्कारी पीड़िता से शादी करके कानूनन सजा से बच सकता है. रिपोर्ट में 43 ऐसे देशों के बारे में भी बताया गया है जहां शादीशुदा जोड़ों के बीच बलात्कार को लेकर भी कोई कानून नहीं है. इसके अलावा 30 से भी ज्यादा ऐसे देश हैं जहां महिलाओं के घर से बाहर आने जाने पर तरह-तरह के प्रतिबंध हैं.
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सिर्फ आधे देशों में हैं सेक्स एजुकेशन
रिपोर्ट के मुताबिक अध्ययन किए गए देशों में से सिर्फ 56 प्रतिशत देशों में व्यापक सेक्स एजुकेशन उपलब्ध कराने को लेकर कानून या नीतियां हैं. यूएनएफपीए की निदेशक नटालिया कनेम कहती हैं, "इसका सारांश यह है कि करोड़ों महिलाओं और लड़कियों का अपने ही शरीर पर हक नहीं है. उनकी जिंदगी दूसरों के अधीन है." - एएफपी
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नाबालिग लड़की का भी आरोप
इसके अलावा अनुसूचित जनजाति की एक 17 साल की नाबालिग लड़की ने भी इसी आरोप में शीर्ष अदालत की शरण ली है. उसने अपनी याचिका में कहा है कि बीती नौ तारीख को टीएमसी के लोगों ने उसके साथ बलात्कार कर उसे जंगल में फेंक दिया था. उसके बाद अगले दिन टीएमसी के नेताओं ने पुलिस में इस घटना की शिकायत की स्थिति में पूरे परिवार को जान से मारने की धमकी दी थी. उस युवती ने भी इस घटना की जांच सीबीआई या एसआईटी से कराने की अपील की है.
इससे पहले 18 मई को भी सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच की मांग वाली एक याचिका पर पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया था. चुनाव के बाद हुई हिंसा में बीजेपी के दो कार्यकर्ताओं की हत्या के आरोप में उनके परिजनों की ओर से याचिका दाखिल की गई थी. इसमें एक महिला ने आरोप लगाया था कि टीएमसी ने लोगों ने उसकी आंखों के सामने कुल्हाड़ी से पति की हत्या कर दी थी.
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सरकार को बदनाम करने के लिए?
इस बीच राज्य में चुनाव बाद की हिंसा पर टीएमसी और बीजेपी के बीच आरोप-प्रत्यारोप लगातार तेज हो रहा है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का आरोप है कि चुनाव बाद हुई हिंसा में पार्टी के कम से कम 38 लोगों की हत्या की जा चुकी है और दर्जनों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया है. उनका आरोप है कि अब भी पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ता टीएमसी के आतंक की वजह से घर छोड़ कर दूसरी जगहों पर रह रहे हैं.
लेकिन टीएमसी ने इन आरोपों को निराधार बताया है. पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष कहते हैं, "बीजेपी अपनी चुनावी हार पचा नहीं पा रही है. इसलिए वह सरकार को बदनाम करने के लिए ऐसे निराधार आरोप लगा रही है. चुनावी नतीजों के बाद उसी ने फर्जी वीडियो और तस्वीरों के सहारे दंगे भड़काने का प्रयास किया था."
राजनीतिक पर्यवेक्षक प्रोफेसर समीरन पाल कहते हैं, "हिंसा और रेप के मामलों में कितनी सच्चाई है, यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा. लेकिन यह तय है कि बीजेपी यहां राज्य सरकार और टीएमसी को कठघरे में खड़ा करने का कोई भी मौका नहीं चूक रही है. राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर लगातार सरकार को घेरते रहे हैं."
इन देशों में कानून के सहारे सजा से बच जाते हैं रेपिस्ट
यूएन की एक रिपोर्ट के अनुसार 2021 में भी कई ऐसे देश हैं जहां बलात्कारी अगर पीड़िता से शादी कर लें तो वे सजा से बच सकते हैं. इस कानून के आलोचक इसे "मैरी योर रेपिस्ट" कानून कहते हैं. डालते हैं एक नजर ऐसे कुछ देशों पर.
तस्वीर: Mohammad Ponir Hossain/REUTERS
रूस
रूस की दंड संहिता के अनुच्छेद 134 के अनुसार अगर बलात्कार के दोषी सिद्ध हुए पुरुष की उम्र 18 वर्ष है और पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम, तो वह पीड़िता से शादी करने पर बलात्कार की सजा से मुक्त हो सकता है. हालांकि कानून ऐसा विकल्प केवल पहली बार अपराध करने वालों को देता है.
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थाईलैंड
थाईलैंड में शादी बलात्कार के लिए एक समझौता माना जाता है. अगर अपराधी 18 वर्ष से ज्यादा उम्र का है और पीड़िता 15 वर्ष से ऊपर है और उसने सेक्स संबंध के लिए "सहमति" दी थी या अदालत विवाह की अनुमति देती है तो भी बलात्कारी सजा से बच सकता है.
तस्वीर: Lauren DeCicca/Getty Images
वेनेजुएला
वेनेजुएला के पीनल कोड में अगर बलात्कारी पीड़िता से कानूनी रूप से शादी कर ले तो वह बलात्कार की सजा से बच सकता है. सामाजिक कार्यकर्ता इसके खिलाफ कहते रहे हैं कि इस कानून से महिलाओं के खिलाफ बलात्कार जैसे अपराध को अंजाम देने को बढ़ावा मिलता है.
तस्वीर: Ariana Cubillos/AP/picture alliance
कुवैत
कुवैत की दंड संहिता के अनुच्छेद 182 में भी बलात्कार के दोषियों के लिए सजा से बचने का प्रावधान है, अगर वह उस महिला से शादी कर ले जिसका उसने बलात्कार किया था. इस कानून को 1960 में लागू किया गया था.
तस्वीर: Yasser Al-Zayyat /Getty Images/AFP
फिलीपींस
सन 1997 में फिलीपींस में रिपब्लिक एक्ट या एंटी रेप लॉ लागू किया गया था. इस कानून के अनुच्छेद 266-D के अनुसार अगर रेपिस्ट पीड़िता से कानूनी तौर पर शादी कर लेता है तो सजा माफ हो सकती है.
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इराक
इराक की दंड संहिता के अनुच्छेद 398 के अनुसार अगर बलात्कारी पीड़ित से कानूनी रूप से शादी कर लेता है, तो वह बलात्कार की सजा से बच सकता है. यह कानून 1969 में लागू किया गया था. मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे निरस्त करने की मांग करते रहे हैं.
तस्वीर: Ahmad al-Rubaye/Getty Images/AFP
बहरीन
बहरीन की दंड संहिता के अनुच्छेद 353 के तहत बलात्कारियों को सजा से छूट मिल सकती है अगर वे पीड़िता से शादी कर लें. इस कानून को 1976 में लागू किया गया था. हालांकि संसद ने 2016 को इसे समाप्त करने के लिए मतदान किया, लेकिन सरकार अभी भी इसका विरोध कर रही है.