घरेलू हिंसा की शिकार बहू सास-ससुर के घर पर रह सकेंगी
आमिर अंसारी
१६ अक्टूबर २०२०
एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला को सास-ससुर के मालिकाना हक वाली संपत्ति में रहने का अधिकार है. सु्प्रीम कोर्ट ने बहू को रिहाइश का अधिकार दे दिया है.
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सु्प्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "किसी भी समाज का विकास महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उन्हें बढ़ावा देने की क्षमता पर निर्भर करता है." सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि घरेलू हिंसा की शिकार बहू को अपने सास-ससुर के साथ घर पर रहने का हक है. जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और मुकेश कुमार शाह की बेंच ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि घरेूल हिंसा कानून के तहत बहू को अपने पति के माता-पिता के घर या संपत्ति में रहने का अधिकार है. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि परिवार की साझा संपत्ति और घर में भी घरेलू हिंसा की शिकार पत्नी को हक मिलेगा. तीन जजों की बेंच ने "शेयर्ड हाउसहोल्ड" (साझा घर) की परिभाषा की व्याख्या करते हुए कहा घरेलू हिंसा कानून के अनुच्छेद 2 (एस) के तहत साझा घर की परिभाषा सिर्फ यही नहीं है कि वह घर जो संयुक्त परिवार का हो जिसमें पति भी एक सदस्य है या जिसमें पीड़ित महिला के पति का हिस्सा है.
बेंच ने कहा कि देश में घरेलू हिंसा से पीड़ित कुछ महिलाएं हर दिन किसी न किसी रूप में हिंसा का सामना करती हैं. ऐसी स्थिति में एक महिला अपने जीवनकाल में एक बेटी, एक बहन, एक पत्नी, एक मां, एक साथी या एक अकेली महिला के रूप में हिंसा और भेदभाव को खत्म करने के चक्र से खुद से समझौता करती है. कोर्ट ने कहा एक महिला पति के रिश्तेदारों के घर पर भी रहने की मांग कर सकती जहां वह अपने घरेलू संबंधों के कारण कुछ समय के लिए रह चुकी हो.
महिलाओं के प्रति अपराध में 7 प्रतिशत की वृद्धि
एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2019 में भारत में महिलाओं के प्रति अपराध 7.3 प्रतिशत बढ़ गए. करीब 31 प्रतिशत मामलों के लिए महिला के किसी ना किसी जानने वाले को ही जिम्मेदार पाया गया. और क्या कहते हैं आंकड़े?
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बिगड़ते हालात
2018 के मुकाबले 2019 में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में बढ़ोतरी दर्ज की गई. 2018 में महिलाओं के खिलाफ हुए 3,78,236 अपराधों के मुकाबले 2019 में 4,05,861 अपराध दर्ज किए गए. प्रति एक लाख महिलाओं पर अपराध की दर 62.14 दर्ज की गई, जो 2018 में 58.8 प्रतिशत थी. सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए (59,853) और असम में प्रति एक लाख महिलाओं पर सबसे ज्यादा अपराध की दर दर्ज की गई (177.8).
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प्रतिदिन 87 बलात्कार
2019 में भारत में बलात्कार के कुल 31,755 मामले दर्ज किए गए, यानी औसतन प्रतिदिन 87 मामले. सबसे ज्यादा मामले राजस्थान में दर्ज किए गए (5,997). उत्तर प्रदेश में 3,065 मामले और मध्य प्रदेश में 2,485 मामले दर्ज किए गए. प्रति एक लाख आबादी के हिसाब से बलात्कार के मामलों की दर में भी राजस्थान सबसे आगे है (15.9 प्रतिशत), लेकिन उसके बाद स्थान है केरल (11.1) और हरियाणा का (10.9).
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परिचित था हमलावर
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 30.9 प्रतिशत मामलों के आरोपी पति या उसके रिश्तेदार जिम्मेदार पाए गए. कुल मामलों में 21.8 प्रतिशत मामले महिला की मर्यादा को भंग करने के इरादे से किए गए हमले के, 17.9 प्रतिशत अपहरण के और 7.9 प्रतिशत बलात्कार के थे.
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दहेज संबंधी अपराध भी जारी
आंकड़ों में स्पष्ट नजर आ रहा है कि देश में दहेज से संबंधित अपराध अभी भी हो रहे हैं. उत्तर प्रदेश में दहेज की वजह से उत्पीड़न के कुल 2,410 मामले दर्ज किए गए और बिहार में 1,210.
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तेजाब से हमले
2019 में पूरे देश में कुल 150 एसिड अटैक के मामले दर्ज किए, जिनमें से 42 उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए और 36 पश्चिम बंगाल में.
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दलित महिलाओं का बलात्कार
राजस्थान में सबसे ज्यादा दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले दर्ज किए गए (554), लेकिन उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी स्थिति ज्यादा अलग नहीं है. उत्तर प्रदेश में 537 मामले सामने आए और मध्य प्रदेश में 510. प्रति एक लाख आबादी पर दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों की दर में 4.6 प्रतिशत के साथ केरल सबसे आगे है. उसके बाद 4.5 प्रतिशत के साथ मध्य प्रदेश और राजस्थान का स्थान है.
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साल 2006 के फैसले में दो जजों की बेंच ने कहा था कि पीड़ित पत्नी सिर्फ एक साझा घर में निवास के अधिकार का दावा करने की हकदार है, जिसका मतलब सिर्फ पति के द्वारा किराये पर लिया घर या संयुक्त परिवार से जुड़ा घर होगा जिसमें पति एक सदस्य है.
सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला उस याचिका पर आया जिसमें एक महिला के ससुर ने हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने बहू के पक्ष में फैसला सुनाया था और कहा था भले ही बहू तलाक की प्रक्रिया में हो उसे ससुराल में निवास का अधिकार है. ससुर ने अपनी दलील में कहा था कि बेटे का घर में कोई हिस्सा नहीं है क्योंकि उन्होंने खुद संपत्ति अर्जित की है. महिला ने अपने पति पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाया था और तलाक की प्रक्रिया जारी है.
सु्प्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि देश में घरेलू हिंसा बड़े पैमाने पर जारी है और हर रोज कई महिलाएं किसी न किसी रूप में हिंसा का सामना करती हैं.
शहर हो या गांव, महिलाओं पर ही है घर का सारा बोझ
भारत में लोग समय कैसे बिताते हैं इस विषय पर सरकार ने पहली बार एक सर्वेक्षण कराया है. सर्वे में यह साबित हो गया है कि शहर हो या गांव, महिलाएं आज भी हर जगह चारदीवारी के अंदर ही सीमित हैं.
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कैसे बिताते हैं समय
सर्वेक्षण जनवरी से दिसंबर 2019 तक 5,947 गांवों और 3,998 शहरी इलाकों में कराया गया. इसमें 1,38,799 परिवारों ने भाग लिया, जिनमें छह साल से ज्यादा उम्र के 4,47,250 लोगों से सवाल पूछे गए.
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अपना ख्याल रखने में बिताते हैं ज्यादा वक्त
दिन के 24 घंटों में पुरुष और महिलाएं दोनों सबसे ज्यादा समय अपना ख्याल रखने में बिताते हैं. पुरुष उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त रोजगार और उससे जुड़ी गतिविधियों में बिताते हैं और महिलाएं उसके बाद सबसे ज्यादा वक्त बिना किसी वेतन के घर के काम करने में बिताती हैं.
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रोजगार में महिलाओं की भागीदारी कम
सर्वे में पूरे देश में सिर्फ 38.2 प्रतिशत लोगों को रोजगार में व्यस्त पाया गया. ग्रामीण इलाकों में यह दर 37.9 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 56.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 19.2 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर 38.9 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 59.8 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 16.7 प्रतिशत है.
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उत्पादन में महिलाएं आगे
अपने इस्तेमाल के लिए सामान के उत्पादन में देश में सिर्फ 17.1 प्रतिशत लोग लगे हुए हैं. ग्रामीण इलाकों में यह दर 22 प्रतिशत है, जिसमें से पुरुषों की भागीदारी 19.1 प्रतिशत है और महिलाओं की 25 प्रतिशत. शहरी इलाकों में दर सिर्फ 5.8 प्रतिशत है, जिसमें पुरुषों की भागीदारी 3.4 प्रतिशत है और महिलाओं की भागीदारी 8.3 प्रतिशत है.
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घर के काम करने में पुरुष बहुत पीछे
बिना किसी वेतन के घर के काम करने में ग्रामीण इलाकों में पुरुषों की भागीदारी सिर्फ 27.7 प्रतिशत है और महिलाओं की 82.1 प्रतिशत. शहरों में पुरुषों की भागीदारी है 22.6 प्रतिशत और महिलाओं की 79.2 प्रतिशत. ग्रामीण इलाकों में पुरुषों ने इन कामों में औसत एक घंटा 38 मिनट बिताए जब कि महिलाओं ने पांच घंटे एक मिनट. शहरी इलाकों में पुरुषों ने एक घंटा और 34 मिनट दिए जबकि महिलाओं ने चार घंटों से ज्यादा समय दिया.
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दूसरों की देख-भाल भी ज्यादा करती हैं महिलाएं
बिना किसी वेतन के दूसरों की देख-भाल करने में भी महिलाएं पुरुषों से कहीं ज्यादा आगे हैं. ग्रामीण इलाकों में यह सिर्फ 14.4 प्रतिशत पुरुष करते हैं जबकि महिलाओं का प्रतिशत 28.2 है. शहरी इलाकों में इसमें पुरुषों की भागीदारी 13.2 प्रतिशत है और महिलाओं की 26.3 प्रतिशत.
तस्वीर: Catherine Davison
पूजा-पाठ और लोगों से मिलने पर विशेष ध्यान
91.3 प्रतिशत भारतीय पूजा-पाठ, लोगों से मिलने और सामुदायिक गतिविधियों में शामिल होते हैं. इसमें ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में 90 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं और पुरुषों दोनों की भागीदारी है. ग्रामीण इलाकों में इन पर पुरुष एक दिन में औसत दो घंटे और 31 मिनट और महिलाएं दो घंटे और 19 मिनट बिताती हैं. शहरी इलाकों में महिलाएं और पुरुष दोनों ही इन पर एक दिन में औसत दो घंटे और 18 मिनट बिताते हैं.