विकसित देशों में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ज्यादा शिक्षित हैं, लेकिन उन्हें वेतन पुरुषों से कम मिलता है. साथ ही राजनीति और बड़ी कंपनियों में नेतृत्व के स्तर पर भी उनकी हिस्सेदारी कम है.
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पेरिस स्थित थिंक टैंक ऑर्गेनाइजेशन फॉर इकोनोमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) का कहना है कि कनाडा, जापान और नॉर्वे से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक युवा महिलाएं पुरुषों के मुकाबले औसतन 15 प्रतिशत कम कमाती हैं जबकि वे पुरुषों से ज्यादा पढ़ी लिखी हैं.
ओईसीडी का कहना है कि पिछले एक दशक के दौरान कामकाजी माता पिताओं के लिए बेहतर नीतियों, वेतन में अंतर को पाटने और पारदर्शिता बढ़ाने और वरिष्ठ पदों पर महिलाओं को लाने की कोशिशों के बावजूद वेतन में अंतर लगातार बना हुआ है. ओईसीडी के महासचिव एंजेल गुरिया ने एक बयान में कहा, "लैंगिक असमानता को पाटने की दिशा में हर देश की अपनी बाधाएं हैं. हालात को बदलने के लिए हमें रूढियों, नजरियों और व्यवहार को मद्देनजर रखते हुए सरकारी नीतियों में बड़े बदलाव करने होंगे."
ओईसीडी की रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चों के जन्म के कारण महिलाओं के करियर में अकसर एक ठहराव आ जाता है. इसके अलावा उनके दफ्तरों में भेदभाव भी होता है. इन सब कारणों की वजह से वह पुरुषों जितना नहीं कमा पाती हैं.
बराबर मौकों का लक्ष्य अब भी औरतों से दूर
वैसे तो आदमी और औरत के बीच असमानता पूरी दुनिया में दिखती है लेकिन उसमें भी कुछ इलाके आगे तो कुछ काफी पीछे हैं. महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और राजनैतिक प्रतिनिधित्व में हुई प्रगति के कारण काफी सुधार आया है.
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स्कूल के दरवाजे खुले
यूनेस्को के अनुसार सन 1990 में दुनिया की करीब 60 फीसदी लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता था. 2009 में यह संख्या घटकर 53 फीसदी रह गई.
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कहां हुआ सबसे ज्यादा सुधार
स्कूल जाने के आंकड़ों में सबसे अधिक सुधार पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में हुआ है. केवल 20 सालों में वहां स्कूल से बाहर रह गई लड़कियों की संख्या 70 फीसदी से घट कर 40 फीसदी हो गई.
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उच्च शिक्षा में महिलाएं आगे
कई विकसित देशों, सेंट्रल और ईस्टर्न यूरोप, ईस्ट एशिया और पैसिफिक, लैटिन अमेरिका और नॉर्थ अफ्रीका में पुरुषों से अधिक महिलाएं उच्च शिक्षा लेती हैं. जबकि दुनिया के कुल अनपढ़ों में 60 फीसदी महिलाएं हैं.
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नौकरी नहीं करतीं
नौकरी की उम्र वाली विश्व भर की केवल आधी महिलाएं ही या तो नौकरी करती हैं या उसकी तलाश में हैं. यूएन के आंकड़े बताते हैं कि इसके मुकाबले करीब 77 फीसदी आदमी कामकाज में सक्रिय हैं.
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सबसे कामकाजी महिलाएं कहां
सब सहारा अफ्रीका में करीब 64 फीसदी महिलाएं कामकाजी हैं. मिडिल ईस्ट, नॉर्थ अफ्रीका में 75 फीसदी पुरुषों के मुकाबले केवल 22 फीसदी महिलाएं कामकाजी हैं. दक्षिण एशिया में मात्र 30 प्रतिशत औरतें कामकाजी हैं.
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आमदनी में बड़ा अंतर
यूएन की मानें तो वैश्विक स्तर पर महिलाओं की औसत आमदनी पुरुषों से 23 फीसदी कम है. दक्षिण एशिया में यह अंतर 33 प्रतिशत है तो मिडिल ईस्ट में 14 फीसदी. इस गति से महिला-पुरुष की आय के बराबर होने में 70 साल लग जाएंगे.
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निचले पायदान पर सबसे ज्यादा
विकसित देशों में निचले स्तर के काम में 71 फीसदी और विकासशील देशों की 56 फीसदी महिलाएं लगी हैं. प्रबंधन के स्तर पर विकसित देशों की 39 और विकासशील देशों की 28 प्रतिशत महिलाएं हैं. केवल 18.3 प्रतिशत बिजनेस ही महिलाओं के नेतृत्व वाले हैं.
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बेगार का काम
आईएलओ के आंकड़े दिखाते हैं कि औसत रूप से महिलाएं घर के काम, बच्चों-बुजुर्गों की देखभाल में पुरुषों के मुकाबले ढाई गुना अधिक मुफ्त काम करती हैं. दुनिया की कुल वर्कफोर्स की 40 फीसदी महिलाएं हैं. पार्ट टाइम काम करने वालों में 57 फीसदी महिलाएं हैं.
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राजनैतिक प्रतिनिधित्व
2015 में विश्व के कुल सांसदों में 22 फीसदी महिलाएं थीं. 1995 में यह संख्या मात्र 11.3 फीसदी थी. हालांकि इसमें क्षेत्रीय विभिन्नताएं खूब हैं. जनवरी 2015 के आंकड़े देखें तो केवल 17 फीसदी महिला मंत्री थीं और उनमें भी ज्यादातर को स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे सामाजिक मंत्रालय ही सौंपे गए थे.
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कार्यस्थल से जुड़े मुद्दों के अलावा बच्चों की परवरिश में माता पिता की असमान जिम्मेदारियों, राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व ना होने और महिलाओं को लेकर दकियानूसी सोच भी लैंगिंक असमानता को खत्म करने की राह में रोड़ा हैं. लेकिन जिन देशों में ओईसीडी ने सर्वे किया, सभी जगह महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकना सबसे बड़ी प्राथमिकता पाया गया.
गुरिया कहते हैं, "इन असामनताओं को काफी पहले ही दूर कर लिया जाना चाहिए था. कोई वजह नहीं है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीति क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से पीछे रहें." वह कहते हैं, "घर, काम और सार्वजनिक जीवन में महिला और पुरुषों का पूरा पूरा योगदान रहे, इसके लिए लैंगिक समानता बहुत जरूरी है. इससे समाज का भी भला होगा और अर्थव्यवस्थाओं का भी."
रिपोर्ट कहती है कि अगर 2025 तक महिला और पुरुषों के वेतन में अंतर को 25 फीसदी भी कम कर लिया जाता है तो ओईसीडी के 35 सदस्य देशों में आर्थिक विकास की संभावनाएं बहुत बेहतर होंगी. थिंकटैंक के मुताबिक अगर महिला और पुरुष उद्यमियों की संख्या बराबर होती तो वैश्विक जीडीपी में 2 प्रतिशत बढोत्तरी की उम्मीद की जा सकती है जो 1.5 ट्रिलियन डॉलर के आसपास होगी. गुरिया कहते हैं, "हमें लैंगिक समानता को हकीकत में तब्दील करना होगा."
एके/आईबी (रॉयटर्स)
सबसे ज्यादा असमानता कहां है?
हाल ही में एक रिपोर्ट आई कि भारत में आधी से ज्यादा दौलत एक फीसदी लोगों के पास है. लेकिन भारत सबसे असमान देश नहीं है. क्रेडिट सुईस की रिपोर्ट बताती है कि किस देश में एक प्रतिशत लोगों के पास कितनी दौलत है.