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समाजजर्मनी

बांझपन के इलाज की बेहतर सुविधाएं मांगती जर्मन महिलाएं

हेलेन व्हीटल
१७ फ़रवरी २०२४

जर्मनी में हर छह में से एक महिला को बांझपन की समस्या है. गर्भधारण में मददगार दवाएं भी सबको उपलब्ध नहीं हैं. सरकार इसके लिए कानून में बदलाव लाने की बात करती है लेकिन इसे लेकर विशेषज्ञ बहुत आशावादी नहीं हैं.

फर्टीलिटी क्लिनिक का विकल्प कइयों की पहुंच से बाहर है
फर्टीलिटी क्लिनिक का विकल्प कइयों की पहुंच से बाहर हैतस्वीर: Science Photo Library/imago images

"वह दिन मेरी जिंदगी के सबसे भयानक पलों में से एक है,” यह कहना है गर्भधारण की कोशिश करने वाली एक महिला मैरियट का. वह कहती हैं कि बिना चिकित्सकीय मदद के गर्भधारण करने की नाकाम कोशिश के बाद मैं अपने सबसे अच्छे दोस्त के घर में उसके बच्चे के साथ जमीन पर बैठकर छह घंटे तक रोई.

मैरियट जब 30 साल के आसपास थी तब उन्हें अपनी दोनों अंडाशयों से सिस्ट (पथरी) निकलवाने के लिए ऑपरेशन करवाना पड़ा. उस समय उन्हें अंदाजा नहीं था कि इसके कारण उनके अंडाशय में अंडों की संख्या में गिरावट होने लगेगी. 36 वर्ष की आयु में ब्रेकअप के बाद मैरियट को अचानक गर्मी महसूस होने लगी. जांच में प्रीमेच्योर ओवेरियन इन्सफिशिएंसी और पेरीमेनोपॉज की समस्या का पता चला.

मैरियट बताती है कि इसके बाद गर्भधारण के लिए उनका सफर संघर्षों और अन्याय की स्थिति से भरा रहा. जर्मनी में किसी अकेली महिला के लिए गर्भधारण करना बेहद मुश्किल है क्योंकि जर्मनी में प्रचलित स्वास्थ्य बीमा योजनाओं में केवल शादीशुदा जोड़ों को बांझपन के इलाज के लिए और केवल तीन चक्र के फर्टिलिटी ट्रीटमेंट कराने के लिए 50 फीसदी तक की छूट मिलती है. गैर शादीशुदा अकेली महिला के लिए ऐसा कोई नियम नहीं है.

मैरियट कहती हैं, "मेरी समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर करता है कि मैं शादीशुदा हूं या नहीं."तस्वीर: Tessa Walther/DW

मैरियट बताती हैं कि उनके पहले फर्टिलिटी डॉक्टर ने उनके कहा कि "जाओ और अलग-अलग लोगों के साथ संबंध बनाने की कोशिश करो.” उनको यह नागवार गुजरा. उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि 18 सालों तक स्वास्थ्य बीमा पर खर्च और कई तरह के टैक्स भरते रहने के बाद भी उनकी स्वास्थ्य समस्या का कोई हल नहीं था. वह कहती हैं, "मेरी समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर करता है कि मैं शादीशुदा हूं या नहीं."

दो साल पहले मैरियट ने बांझपन का इलाज करवाना शुरू किया, लेकिन इसके लिए उन्हें हर खर्च खुद ही वहन करना पड़ रहा था. दवा और इंजेक्शन से लेकर अल्ट्रासाउंड और खून की जांच, यहां तक की फर्टिलिटी क्लिनिक से मिलने वाले पत्र के स्टांप के लिए भी उन्हें ही पैसे देने पड़ते थे.

एक प्रकरण याद करते हुए वह बताती हैं कि जब वह सर्जिकल गाउन पहन कर सर्जरी के लिए इंतजार कर रही थीं तभी बेहोशी के डॉक्टर सिरिंज में दवा और क्रेडिट कार्ड मशीन के साथ उनके सामने आए. वह कहती हैं, "उन्होंने मुझसे पैसों की मांग की. मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा हो रहा है."

लगातार तीन नौकरियां करने और बार-बार गर्भधारण के नाकाम प्रयास के बाद मैरियट को कुछ समय के लिए इन सभी से खुद को दूर करना पड़ा ताकि वह नए विकल्प तलाश सकें. वह बताती हैं उन छह महीनों ने मुझे यकीनन तोड़ दिया. मेरे पास उस समय के दर्द, मेहनत और पीड़ा को दिखलाने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है. यहां तक कि मुझे अब अवसाद से बाहर निकालने के लिए एंटी डिप्रेसेंट दवा खानी पड़ रही है और मुझ पर 13 हजार यूरो (14 हजार डॉलर) का कर्ज भी चढ़ गया है.

जर्मनी में पुरानी और भेदभावपूर्ण कानूनी स्थिति

यूरोप में गर्भधारण को लेकर मरीजों के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था फर्टिलिटी यूरोप के अनुसार, जर्मनी में गर्भधारण के लिए यूरोप का सबसे पुराने और प्रचलन से बाहर के नियम लागू हैं.

स्वास्थ्य प्रणाली के तहत कुछ राज्यों में समलैंगिक और अविवाहित जोड़ों को सब्सिडी दी जाती है लेकिन यह नियम में शामिल नहीं है बल्कि अपवाद है. जर्मनी में सेरोगेसी और और अंडदान प्रतिबंधित है. फर्टिलिटी यूरोप की प्रमुख क्लाउडिया कोर्डिक ने डीडब्ल्यू को बताया कि जर्मनी में तीन फीसदी से भी कम बच्चे गर्भधारण के इलाज के माध्यम से जन्म लेते हैं. क्रोएशिया में यह संख्या पांच प्रतिशत और डेनमार्क में दस फीसदी है. वह कहती हैं, "इसकी वजह से माता-पिता बन सकने वाले दंपत्ति इस खुशी से अछूते रह रहे हैं क्योंकि या तो वह इसका खर्च नहीं उठा सकते हैं या फिर इस बात के लिए शर्म महसूस करते हैं कि उन्हें इलाज के लिए खर्च की सुविधा नहीं दी जा रही."

फर्टिलिटी यूरोप की प्रजनन उपचार नीतियों के लिए एटलस रैंकिंग मैं सर्वश्रेष्ठ और बेहद खराब की स्थिति के बीच जर्मनी 69 प्रतिशत के साथ मध्यम श्रेणी में है. यह ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, इटली, लात्विया और नॉर्थ मेसेडोनिया के बराबर है. सिर्फ बेल्जियम, फ्रांस, इस्राएल और नीदरलैंड्स ही इस रैंकिंग में सबसे आगे हैं.

फर्टिलिटी यूरोप की प्रमुख सलाहकार अनीता फिनकैम ने कहा, "यूरोप की कई देशों में निम्न शिशु जन्म दर की शिकायतें हैं, लेकिन वहां पर बच्चों की चाह रखने वाले लोगों के समर्थन में दीर्घकालिक योजना नहीं है." उनका मानना है कि जर्मनी में नियामक व्यवस्था भेदभावपूर्ण हैं. जो खर्च उठाने में सक्षम हैं वे विदेश चले जाते हैं. बाकी लोग चिकित्सकीय निगरानी के अभाव में असुरक्षित तरीकों के लिए मजबूर होते हैं.

फिनकैम ने डीडब्ल्यू से कहा, "मुझे हैरानी है भी और नहीं भी कि लोग अब भी यूक्रेन जा रहे हैं, जहां पर युद्ध चल रहा है क्योंकि वहां पर सरोगेसी की सुविधा मिल रही है. वह कहती हैं जो लोग सच में बच्चों की चाहत रखते हैं और सरकारी सहायता से वंचित हैं, वह असुरक्षित तरीके अपना रहे हैं, जैसे कैजुअल सेक्स या सिरिंज में भरे हुए स्पर्म से खुद गर्भाधान की कोशिश करना, क्योंकि इन कोशिशें के लिए क्लीनिक में या तो अनुमति नहीं है या फिर यह बहुत महंगी प्रक्रिया है.

सरोगेसी और अनुदान के जल्द आ सकते हैं निर्देश

जर्मनी में 2021 से सेंटर लेफ्ट पार्टी सोशल डेमोक्रेट (एसपीडी), ग्रीन्स और नवउदारवादी फ्री डेमोक्रेट (एफडीपी) की गठबंधन सरकार है. सत्ता संभालने के बाद इस सरकार ने सन 1990 के भ्रूण संरक्षण अधिनियम की समीक्षा करने पर सहमति बनाई. यह नियम प्रजनन संबंधी दवाओं की सुलभता और सरोगेट और डोनर एग से जुड़ा है.

गठबंधन के इस समझौते में यह कहा गया कि वे निःसंतान लोगों को बिना किसी चिकित्सकीय पहचान, वैवाहिक स्थिति और यौन पहचान के बेहतर सुविधाएं मुहैया करवाना चाहते हैं. उनके एजेंडे में आयु विस्तार (महिलाओं के लिए 25 से 40 और पुरुषों के लिए 25 से 50 वर्ष तक) और इलाज के लिए पूरे खर्च का वहन करना शामिल है. इस सहमति के दो साल बाद सरकार ने प्रजनन स्वास्थ्य आयोग की स्थापना की. आयोग की संस्तुतियों का प्रकाशन अप्रैल में होना है.

योखेन टाउपिज जर्मनी के मानहाइम विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य कानून और चिकित्सा नैतिकता के विशेषज्ञ और आयोग के सदस्य हैं. वह जर्मनी के कानून को प्राचीन बताते हैं और कहते हैं कि यह लोगों को प्रजनन चिकित्सा की पहुंच से दूर कर रहा है जो कई अन्य देशों में लंबे समय से उपलब्ध है.

टाउपिज ने डीडब्ल्यू को बताया कि मौजूदा नियमों के पीछे परिवार की पुरातन छवि जुड़ी हुई है जिसमें एक पारंपरिक विवाहित जोड़ा है जबकि जर्मनी में अब समलैंगिक विवाह भी हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि बदलाव लाने के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी है जिससे नियमों में परिवर्तन के लिए दबाव बढ़ाया जा सकता हो. वह कहते हैं, "मैंने अभी तक सरकार की ओर से बांझपन के इलाज पर किसी कंक्रीट योजना के बारे में नहीं सुना जो इलाज से जुड़ी वित्त पोषण की परेशानियों पर काम कर सके और इस स्थिति को बदल सके."

विदेशों में इलाज की तलाश

मैरियट कहती हैं कि अगर पैसों का मुद्दा नहीं होता तो वह अपने खुद के अंडों को वापस पाने के लिए लगातार कोशिश करतीं, लेकिन अनिश्चित और वित्तीय बोझ के कारण यह नहीं हो सकता. उन्होंने बच्चा गोद लेने की संभावनाएं भी तलाशीं, लेकिन यह भी उतना ही मुश्किल रहा क्योंकि प्रतीक्षा सूची काफी लंबी है और सिस्टम ऐसा है जो ऐसे विवाहित जोड़ों को सबसे ज्यादा वरीयता देता है जिनमें दोनों ही व्यक्ति कमाते हों.

इसके बजाय उन्होंने डेनमार्क के फर्टिलिटी क्लिनिक का विकल्प चुना जहां वह डोनर एग वालों की प्रतीक्षा सूची में हैं. हाल ही में उन्होंने क्राउड फंडिंग अभियान भी शुरू किया जिससे वह अपने इलाज के लिए लगभग 10 हजार यूरो जुटा चुकी हैं.

तमाम मुश्किलें और पीड़ा झेलने के बावजूद वह बच्चे की संभावना को लेकर आशान्वित हैं. हालांकि यहां तक पहुंचने की यात्रा बेहद चुनौतीपूर्ण रही. वह कहती हैं कि मुझे ऐसा महसूस होता है कि कानूनी और नैतिक विकल्प को चुनने की मुझे सजा मिल रही है. वह चाहती हैं कि जो सुविधा विवाहित जोड़ों को मिलती है वही अकेली महिला को भी मिल सके. मैरियट कहती हैं कि महिलाओं के स्वास्थ्य को हमेशा ही नजरअंदाज किया जाता है, चिंताजनक यह है कि अब तक ऐसा हो रहा है.

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