इंटरनेट खुला तो कश्मीरी युवाओं की राहें खुल गईं
१९ दिसम्बर २०२२भारतीय फैशन डिजाइनर सायरा त्रांबू का सपना था कि एक दिन उनका अपना ऑनलाइन ब्रैंड होगा. इंटरनेट के लगातार बंद होते रहने के कारण उनका यह सपना पूरा नहीं हो पा रहा था क्योंकि कश्मीर में भारतीय अधिकारी अक्सर इंटरनेट बंद कर देते हैं. आखिरकार पिछले साल जब भरोसेमंद और तेज रफ्तार इंटरनेट कनेक्शन स्थापित हुआ तो त्रांबू ने अपने डिजाइन इंस्टाग्राम पर बेचने शुरू किए. यह उन कई स्टार्टअप कंपनियों में से एक है, जो भारतीय कश्मीर में महिलाओं द्वारा इंटरनेट की उपलब्धता के कारण शुरू किए गए हैं.
27 वर्षीय त्रांबू बताती हैं, "मेरे लिए तो इंटरनेट का मतलब ही जीवन है. इससे ना सिर्फ मुझे आत्मनिर्भर होने और अच्छा पैसा कमाने में मदद मिली है, बल्कि दूसरों के लिए रोजगार के मौके भी पैदा हुए हैं.” त्रांबू के वर्चुअल स्टोर पर 40 हजार फॉलोअर्स हैं. उनके यहां तीन महिलाएं काम करती हैं जो पारंपरिक कढ़ाई आदि का काम करती हैं.
जब इंटरनेट नहीं था
2019 में भारत ने संविधान में बदलाव कर कश्मीर की स्वायत्तता खत्म कर दी थी और उसे दो संघीय क्षेत्रों में बांट दिया गया है. इसके फलस्वरूप विशाल विरोध प्रदर्शन हुए जिन्हें दबाने के लिए सरकार ने इलाके में संचार सुविधाएं बंद कर दीं. फरवरी 2021 तक इंटरनेट सुविधाएं लगभग पूरी तरह बंद रहीं. उसके बाद 4जी मोबाइल डाटा सेवाएं शुरू की गईं. समाजसेवी संस्था सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के मुताबिक 2017 के बाद से 2022 में इंटरनेट बंद करने की सबसे कम घटनाएं हुई हैं.
कश्मीर में अब पाकिस्तान नहीं चीन से लड़ रहा है भारत
भारतीय कश्मीर में बेहतर इंटरनेट सेवाओं का लाभ उन स्थानीय युवाओं को हुआ है जो सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स में सक्रिय हैं. इनमें बहुत सी महिलाएं हैं जिनके पास पहले घर से बाहर निकलने की वजह से काम करने के मौके कम थे. इन स्टार्टअप कंपनियों को निवेशक भी मिल रहे हैं.
कश्मीर की पहली स्थानीय कूरियर कंपनी फास्टबीटल एक ऐप के जरिए अपना काम करती है. इसे 31 वर्षीय शेख समीउल्लाह ने शुरू किया है. वह बताते हैं, "हमें कर्फ्यू और बर्फ की आदत है. हम उग्रवाद और गोलीबारी के बीच बड़े हुए हैं. इंटरनेट हमारे व्यापार के लिए ऑक्सीजन है.”
बेहतर हुई स्थिति
इस साल कश्मीर में 1.6 करोड़ पर्यटक आए हैं जो 1947 में भारत के आजाद होने के बाद से सबसे ज्यादा है. कोविड महामारी की पाबंदियां खत्म होने से और घाटी में हालात सामान्य होने से पर्यटन बढ़ा है लेकिन इलाके में रोजगार की स्थिति अब भी बहुत अच्छी नहीं है. थिंकटैंक सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक वहां बेरोजगारी दर 24 फीसदी है जो राष्ट्रीय औसत से तीन गुना है. इसकी एक बड़ी वजह निजी उद्योगों का ना होना मानी जाती है.
स्टार्टअप कंपनियों में निवेश करने वाले निवेशक और उद्योगपति कहते हैं कि क्षेत्रीय भौगोलिक स्थिति तो एक चुनौती है ही, लेकिन इंटरनेट की स्थिति बेहतर होने से अब संभावनाएं सुधरी हैं.
जरीन नाम से फूड बिजनेस करने वाले 25 साल के सैयद फाएज कादरी कहते हैं, "हैदराबाद और बेंगलुरू जैसी जगहों पर स्टार्टअप खुल रहे हैं लेकिन हिमालयी क्षेत्रों में चुनौतियों को पहचानने और हल करने के लिए हिम्मत चाहिए.”
कादरी की कंपनी स्थानीय किसानों के साथ मिलकर काम करती है. वह जाफरान को देशभर के रेस्तराओं और ई-कॉमर्स उद्योगों को सप्लाई करते हैं. वह कहते हैं कि उग्रवादियों से मुठभेड़ों से लेकर उत्पादों को ताजा रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज जैसी सुविधाओं की कमी जैसे चुनौतियों से उन्हें दो-चार होना पड़ता है.
सबको फायदा
इंटरनेट की सुविधा से जरीन के संस्थापकों को इतना फायदा हुआ कि वे कोविड महामारी के दौरान लॉकडाउन में काम करते रहे और नये ग्राहकों को आकर्षित करने में सफल रहे. जैसे ही परिवहन पर लगीं पाबंदियां हटीं, वे अपना पहला ऑर्डर सप्लाई करने को तैयार थे.
उद्योग और निवेशक दोनों ही कहते हैं कि नये स्टार्टअप नयी नौकरियां पैदा कर रहे हैं. वे उनके उत्पादों के लिए नये बाजार खोज रहे हैं और विवादों से घिरे क्षेत्र में विकास की राह खोल रहे हैं. फास्टबील के 1,200 से ज्यादा ग्राहक हैं. इनमें से बहुत सी महिलाएं हैं जो ऑनलाइन अपने उत्पाद बेच रही हैं. अगर पहाड़ों में उन्हें अच्छी इंटरनेट सेवा ना मिले कूरियर्स को अपनी जगहों तक पहुंचने में मुश्किल होती है और तब अक्सर पार्सल दफ्तर लौट आते हैं.
इसका हल यह निकाला गया कि 4जी ऐप को बदलकर 2जी कर दिया गया जो अब बिना इंटरनेट के भी काम करती है. समीउल्लाह कहते हैं, "हम इंटरनेट से चलने वाली एक ऐसी कंपनी के जरिए पैसा बना रहे हैं, जो उस इलाके में काम करती है जहां इंटरनेट ऊपर-नीचे होता रहता है. इससे लोगों को भरोसा हुआ है कि अगर हम निवेश पा सकते हैं, तो उन्हें भी निवेश मिल सकता है.”
वीके/एनआर (रॉयटर्स)