ब्लैक होल की तस्वीर के साथ अमेरिका की कंप्यूटर साइंटिस्ट केटी बाउमैन दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गईं. बाउमैन की ही तरह और भी कई महिलाओं ने विज्ञान जगत में अपना योगदान दिया है लेकिन उन्हें पहचान नहीं मिली.
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सदियों से महिलाओं ने विज्ञान के क्षेत्र में बहुत योगदान दिया है लेकिन महिला वैज्ञानिकों को कभी वो सम्मान नहीं मिला जिसकी वे हकदार थीं. मिसाल के तौर पर, क्या आप जानते हैं कि इतिहास में दर्ज पहली महिला डॉक्टर कौन थीं? प्राचीन मिस्र की पेसेशेट. करीब 2600 ईसा पूर्व में उन्होंने चिकित्सा का काम किया और सौ से ज्यादा दाइयों को प्रशिक्षण दिया.
इसी तरह एक बेबिलॉनियन टैबलेट पर मिले 1200 ईसा पूर्व के शिलालेख से पता चलता है कि टापुति-बेलाटेकालिम दुनिया की पहली केमिस्ट यानी रसायनशास्त्री थीं. वह इत्र बनाना जानती थीं. इसके अलावा उन्होंने तरल पदार्थों को साफ करने यानी डिसटिलेशन के लिए एक उपकरण भी बनाया था. इसके आधुनिक स्वरूप आज भी काम में आते हैं.
फिर सन 400 में अलेक्जेंड्रिया की हाइपेशिया, यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्र और खगोल-विज्ञान पर लेक्चर देने वाली दुनिया की पहली महिला बनीं. हाइपेशिया एक गणित की विद्वान थीं जिनकी ईसाई कट्टरपंथियों की भीड़ ने जान ले ली थी. इतिहास की किताबों में उनकी हत्या तो दर्ज है लेकिन उनकी उपलब्धियां नहीं.
प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट्स असेसमेंट ने 72 देशों के करीब साढ़े पांच लाख स्टूडेंट्स के बीच सर्वे के बाद बताया है कि साइंस की पढ़ाई सबसे अच्छी कहां होती है.
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नंबर 8. वियतनाम
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नंबर 7. कनाडा
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नंबर 6. मकाऊ, चीन
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नंबर 5. फिनलैंड
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नंबर 4. ताईवान
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नंबर 3. एस्टोनिया
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नंबर 2. जापान
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नंबर 1. सिंगापुर
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ऐसी ही एक और मिसाल हैं ब्रिटेन की गणितज्ञ एडा लवलेस, जो अपने समय में तो प्रसिद्ध नहीं थीं लेकिन कंप्यूटर साइंस के प्रथम अन्वेषकों में से थीं. 1843 में उन्होंने पहली बार आधुनिक डिजिटल कंप्यूटर का पहला एलगोरिदम "एनेलिटिकल इंजन" बना लिया था. उन्हें दुनिया की पहली प्रोग्रामर भी कहा जाता है.
1903 में मैरी क्यूरी को रेडियोएक्टिविटी पर अपने बड़े काम के लिए पहचान मिली. पोलिश मूल की क्यूरी को भौतिक विज्ञान में साझा नोबेल और बाद में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार मिला. वे नोबेल से सम्मानित की जाने वाली दुनिया की पहली महिला थीं. हालांकि ऑस्ट्रिया की वैज्ञानिक लिजे माइटनर ने परमाणु विखंडन की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन उन्हें नोबेल नहीं दिया गया.
ब्रिटिश रसायनशास्त्री रोजालिंड फ्रेंकलिन के साथ भी ऐसा ही हुआ. उन्होंने डीएनए अणु की संरचना की पहचान के लिए जरूरी पहली एक्स-रे तस्वीर बनाई थी. दरअसल नोबेल पुरुस्कारों के 118 साल के इतिहास में विज्ञान के क्षेत्र में केवल तीन प्रतिशत पुरस्कार ही महिलाओं को दिए गए हैं. जर्मनी की बात करें तो केवल एक महिला, क्रिस्टियाने न्युसलाइन-फॉलहार्ड को फलों में लगने वाले कीड़ों की आनुवांशिकी पर शोध के लिए नोबेल मिला है.
साल 2018 में कनाडा की डॉना स्ट्रिकलैंड 55 साल में पहली ऐसी महिला बनीं जिन्हें भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल मिला. उन्हें पल्स्ड लेजर पर किए गए काम के लिए नोबेल से सम्मानित किया गया था. अब उम्मीद है कि अमेरिका की केटी बाउमैन को ब्लैक होल की पहली तस्वीर तैयार करने में मिली सफलता के लिए नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा. इसके बाद भी विज्ञान जगत में महिलाओं को प्रोत्साहित करते रहना होगा.
आंद्रेयास नॉयहाउस/आईबी
कब और कैसे हुई नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत?
जानिए, कब और कैसे हुई नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत?
हर साल स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में 10 दिसंबर को रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र, अर्थशास्त्र, साहित्य एवं विश्व शांति के क्षेत्र में इसे दिया जाता है. और जानिए इस पुरस्कार के बारे में.
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क्या मिलता है?
पुरस्कार पाने वाले हर व्यक्ति को करीब साढ़े चार करोड़ रुपये की राशि मिलती है. साथ ही 23 कैरेट सोने से बना 200 ग्राम का पदक और प्रशस्ति पत्र भी दिया जाता है. पदक के एक ओर नोबेल पुरस्कारों के जनक अल्फ्रेड नोबेल की छवि, उनके जन्म तथा मृत्यु की तारीख लिखी होती है. वहीं दूसरी ओर यूनानी देवी आइसिस का चित्र, रॉयल एकेडमी ऑफ साइंस स्टॉकहोम तथा पुरस्कार पाने वाले व्यक्ति की जानकारी होती है.
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कब हुई शुरुआत?
नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत 10 दिसंबर 1901 को हुई थी. उस समय रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, चिकित्सा शास्त्र, साहित्य और विश्व शांति के लिए पहली बार यह पुरस्कार दिया गया था. उस वक्त बतौर पुरस्कार करीब साढ़े पांच लाख रुपये की राशि दी जाती थी. नोबेल पुरस्कार की स्थापना स्वीडन के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक व डायनामाइट के आविष्कारक डॉक्टर अल्फ्रेड नोबेल की वसीयत के आधार पर 27 नवंबर 1895 को की गई थी.
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वसीयत में क्या
इन पांचों क्षेत्रों में विशिष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों के नाम का चयन करने के लिए डॉ नोबेल ने अपनी वसीयत में कुछ संस्थाओं का उल्लेख किया था. 10 दिसंबर 1896 को वे दुनिया से विदा हो गए पर रसायन, भौतिकी, चिकित्सा, साहित्य व विश्व शांति के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वालों के लिए अथाह धनराशि छोड़ गए.
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कौन थे अल्फ्रेड नोबेल?
अल्फ्रेड नोबेल विश्व के महान आविष्कारक थे. अपने जीवन में उन्होंने विभिन्न आविष्कारों पर कुल 355 पेटेंट कराए थे. उन्होंने रबड़, चमड़ा, कृत्रिम सिल्क जैसी चीजों का आविष्कार करने के बाद डायनामाइट का आविष्कार कर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया. डायनामाइट के आविष्कार के बाद ही सुरक्षित विस्फोटक के जरिए भारी-भरकम चट्टानों को तोड़कर सुरंगें व बांध बनाने तथा रेल की पटरियां बिछाने का कार्य संभव हो पाया था.
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एक उद्योगपति भी थे
नोबेल सिर्फ एक आविष्कारक ही नहीं बल्कि एक उद्योगपति भी थे. 21 अक्टूबर 1833 को जन्मे अल्फ्रेड की मां एंडीएटा एहसेल्स धनी परिवार से थी और अल्फ्रेड के पिता इमानुएल नोबेल एक इंजीनियर तथा आविष्कारक थे. उन्होंने स्टॉकहोम में अनेकों पुल एवं भवन बनाए थे. हालांकि जिस साल अल्फ्रेड का जन्म हुआ था, उसी साल उनका परिवार दिवालिया हो गया. इसके बाद पूरा परिवार स्वीडन छोड़कर रूस के पीटर्सबर्ग शहर में जा बसा.
पीटर्सबर्ग में नोबेल परिवार ने कई उद्योग स्थापित किए, जिनमें से एक विस्फोटक बनाने का कारखाना भी था. अल्फ्रेड 17 साल की उम्र में ही स्वीडिश, फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन, रूसी भाषाएं सीख चुके थे. युवावस्था में वह अपने पिता के विस्फोटक बनाने के कारखाने को संभालने लगे. 1864 में कारखाने में अचानक एक दिन भयंकर विस्फोट हुआ और उसमें उनका छोटा भाई मारा गया.
अल्फ्रेड भाई की मौत से बहुत दुखी हुए और उन्होंने विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए कोई आविष्कार करने की ठान ली. आखिरकार उन्हें डायनामाइट का आविष्कार करने में सफलता मिली. उन्होंने 20 देशों में अपने करीब 90 कारखाने स्थापित किए. आजीवन कुंवारे रहे अल्फ्रेड की साहित्य और कविताओं में भी गहरी रुचि थी और उन्होंने कई नाटक, कविताएं और उपन्यास भी लिखे लेकिन रचनाओं एवं कृतियों का प्रकाशन नहीं हो पाया.
तस्वीर: Imago/bonn-sequenz
कहा अलविदा
10 दिसंबर 1896 को अल्फ्रेड दुनिया से विदा हो गए. 1866 में डायनामाइट का आविष्कार कर उसका पेटेंट हासिल करके अल्फ्रेड बहुत अमीर हो गए थे. डायनामाइट उपयोगी साबित हुआ लेकिन डायनामाइट के दुरुपयोग की आशंका के चलते अल्फ्रेड खुद भी इस आविष्कार से खुश नहीं थे और इससे कमाई सारी धनराशि से नोबेल पुरस्कार शुरू करने की घोषणा की.(आईएएनएस/एए)