हेग की अंतरराष्ट्रीय अदालत के आदेश पर बांग्लादेश में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों ने खुशी जताई है. अदालत ने गुरुवार को अपने आदेश में म्यांमार से कहा कि वह रोहिंग्या लोगों का नरसंहार रोकने के लिए कदम उठाए.
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मुस्लिम बहुल अफ्रीकी देश गांबिया ने 57 देशों वाले इस्लामिक सहयोग संगठन की तरफ से आईसीजे में रोहिंग्या समुदाय पर म्यामांर में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ पिछले साल नवंबर में याचिका दायर की थी. अगस्त 2017 में रोहिंग्या लोगों के खिलाफ म्यांमार की सेना की कार्रवाई के बाद सात लाख से ज्यादा लोग भागकर बांग्लादेश चले गए थे. बौद्ध बहुल म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को देश का नागरिक नहीं माना जाता. वे अपने साथ व्यापाक पैमाने पर भेदभाव के आरोप लगाते हैं.
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि म्यांमार की सेना पश्चिमी प्रांत रखनाइन में रोहिंग्या मुसलमानों का जातीय सफाया कर रही है. इस मामले पर सुनवाई करते हुए अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) ने गुरुवार को एक अहम आदेश में म्यांमार से कहा कि रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार और अत्याचार रोकने के लिए तुरंत कदम उठाए जाएं. पिछले साल म्यामांर की नेता आंग सान सू ची भी भी अदालत में पेशी के लिए आई थीं और उन्होंने नरसंहार के आरोपों से इनकार किया था.
दूसरी तरफ, अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले को बांग्लादेश में रह रहे शरणार्थी अपनी पहली जीत बता रहे हैं. उन्होंने अदालत के आदेश को जानने के लिए मोबाइल फोन का सहारा लिया. 34 साल के मोहम्मद नूर कहते हैं, "पहली बार हमें कुछ न्याय मिला है. पूरे रोहिंग्या समुदाय के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है." वहीं म्यांमार में मौजूद रोहिंग्याओं ने फोन पर बताया कि उन्हें उम्मीद है कि आदेश के बाद म्यांमार पर हालात सुधारने का दबाव बनेगा.
रखाइन प्रांत में रह रहे रोहिंग्या नेता तिन ओंग ने कहा कि उन्हें सुरक्षा की जरूरत है. रोहिंग्या के खिलाफ हिंसा के बाद से ही वे ही कैंप में रहने को मजबूर हैं. आईसीजे ने म्यांमार को निर्देश दिया है कि वह किसी भी हालत में रोहिंग्या मुसलमानों की सुरक्षा की गारंटी दे. फैसले के वक्त अदालत में मौजूद रोहिंग्या अधिकार कार्यकर्ता यासमीनुल्लाह कहती हैं, "इसके लिए हम लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे थे. इंसान के रूप में सभी को समान पहचान मिलनी चाहिए." वह फिलहाल कनाडा में रहती हैं और रोहिंग्या लोगों के अधिकारों के लिए लड़ रही हैं.
अदालत ने म्यांमार से तब तक हर छह महीने पर रिपोर्ट सौंपने को भी कहा, जब तक यह मामला पूरी तरह खत्म नहीं हो जाता. अफ्रीकी देश गांबिया ने म्यांमार पर 1948 की नरसंहार संधि का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है. आईसीजे ने कहा, "1948 की नरसंहार संधि के तहत म्यांमार को अपनी शक्ति के मुताबिक रोहिंग्या को बचाने के लिए सभी उपाय अपनाने होंगे."
वैसे अदालत का अंतिम फैसला आने में सालों लग सकते हैं. लेकिन आईसीजे के शुरुआती आदेश बाद यह कहा जा रहा है कि अदालत के पास इसे लागू करवाने का कोई तरीका नहीं है. ऐसे में, संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य सुरक्षा परिषद से कह सकता है कि वह अदालत के फैसले को लागू किए जाने की निगरानी करे.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने भी अदालत के इस आदेश का स्वागत किया है. संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, "यूएन चार्टर के मुताबिक म्यांमार अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय को मानने के लिए बाध्य है और हमें भरोसा है कि म्यांमार उसका पालन करेगा."
इस बीच, म्यांमार के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि वह इस फैसले पर "ध्यान देंगे." साथ ही उसने कहा, "कुछ मानवाधिकार संगठनों ने रखाइन प्रांत की गलत तस्वीर पेश की और बिना सबूत म्यांमार की निंदा की, जिससे देश के कई द्विपक्षीय संबंध प्रभावित हुए हैं."
एए/एके (रॉयटर्स)
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार के पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी लगभग दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. आइए जानते हैं, कौन हैं रोहिंग्या लोग.
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इनका कोई देश नहीं
रोहिंग्या लोगों का कोई देश नहीं है. यानी उनके पास किसी देश की नागरिकता नहीं है. रहते वो म्यामांर में हैं, लेकिन वह उन्हें सिर्फ गैरकानूनी बांग्लादेशी प्रवासी मानता है.
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सबसे प्रताड़ित लोग
म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध लोगों और सुरक्षा बलों पर अक्सर रोहिंग्या मुसलमानों को प्रताड़ित करने के आरोप लगते हैं. इन लोगों के पास कोई अधिकार नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र उन्हें दुनिया का सबसे प्रताड़ित जातीय समूह मानता है.
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आने जाने पर भी रोक
ये लोग न तो अपनी मर्जी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं और न ही अपनी मर्जी काम कर सकते हैं. जिस जगह वे रहते हैं, उसे कभी खाली करने को कह दिया जाता है. म्यांमार में इन लोगों की कहीं सुनवाई नहीं है.
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बंगाली
ये लोग दशकों से रखाइन प्रांत में रह रहे हैं, लेकिन वहां के बौद्ध लोग इन्हें "बंगाली" कह कर दुत्कारते हैं. ये लोग जो बोली बोलते हैं, वैसी दक्षिणपूर्व बांग्लादेश के चटगांव में बोली जाती है. रोहिंग्या लोग सुन्नी मुसलमान हैं.
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जोखिम भरा सफर
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि 2012 में धार्मिक हिंसा का चक्र शुरू होने के बाद से लगभग एक लाख बीस हजार रोहिंग्या लोगों ने रखाइन छोड़ दिया है. इनमें से कई लोग समंदर में नौका डूबने से मारे गए हैं.
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सामूहिक कब्रें
मलेशिया और थाइलैंड की सीमा के नजदीक रोहिंग्या लोगों की कई सामूहिक कब्रें मिली हैं. 2015 में जब कुछ सख्ती की गई तो नावों पर सवार हजारों रोहिंग्या कई दिनों तक समंदर में फंसे रहे.
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इंसानी तस्करी
रोहिंग्या लोगों की मजबूरी का फायदा इंसानों की तस्करी करने वाले खूब उठाते हैं. ये लोग अपना सबकुछ इन्हें सौंप कर किसी सुरक्षित जगह के लिए अपनी जिंदगी जोखिम में डालने को मजबूर होते हैं.
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बांग्लादेश में आसरा
म्यांमार से लगने वाले बांग्लादेश में लगभग आठ लाख रोहिंग्या लोग रहते हैं. इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं जो म्यांमार से जान बचाकर वहां पहुंचे हैं. बांग्लादेश में हाल में रोहिंग्याओं को एक द्वीप पर बसाने की योजना बनाई है.
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आसान नहीं शरण
बांग्लादेश कुछ ही रोहिंग्या लोगों को शरणार्थी के तौर पर मान्यता देता है. वो नाव के जरिए बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करने वाले बहुत से रोहिंग्या लोगों को लौटा देता है.
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दर ब दर
बाग्लादेश के अलावा रोहिंग्या लोग भारत, थाईलैंड, मलेशिया और चीन जैसे देशों का भी रुख कर रहे हैं.
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सुरक्षा के लिए खतरा
म्यांमार में हुए हालिया कई हमलों में रोहिंग्या लोगों को शामिल बताया गया है. उनके खिलाफ होने वाली कार्रवाई के जवाब में सुरक्षा बलों का कहना है कि वो इस तरह के हमलों को रोकना चाहते हैं.
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मानवाधिकार समूहों की अपील
मानवाधिकार समूह म्यांमार से अपील करते हैं कि वो रोहिंग्या लोगों को नागरिकता दे और उनका दमन रोका जाए.
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कानूनी अड़चन
म्यांमार में रोहिंग्या लोगों को एक जातीय समूह के तौर पर मान्यता नहीं है. इसकी एक वजह 1982 का वो कानून भी है जिसके अनुसार नागरिकता पाने के लिए किसी भी जातीय समूह को यह साबित करना है कि वो 1823 के पहले से म्यांमार में रह रहा है.
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आलोचना
रोहिंग्या लोगों की समस्या पर लगभग खामोश रहने के लिए म्यांमार में सत्ताधारी पार्टी की नेता आंग सान सू ची की अक्सर आलोचना होती है. माना जाता है कि वो इस मुद्दे पर ताकतवर सेना से नहीं टकराना चाहती हैं. सू ची हेग को अंतरराष्ट्रीय अदालत में रोहिंग्या मुसलमानों के नरसंहार से जुड़े आरोपों का सामना करने के लिए जाना पड़ा है.