दुनिया में घटे बाल श्रमिक, पर नहीं पूरा हुआ 2025 का लक्ष्य
१३ जून २०२५
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने गुरुवार को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के मौके पर एक संयुक्त रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 में बाल श्रमिकों की अनुमानित संख्या 16 करोड़ थी, जो अब कम होकर 13.8 करोड़ हो गई है.
यह कमी बाल कल्याण के लिहाज से अच्छी खबर है, क्योंकि 2000 में आईएलओ ने अनुमान लगाया था कि 24.55 करोड़ बच्चे श्रमिक के तौर पर काम कर रहे थे. नई रिपोर्ट में लगभग 50 फीसदी की यह कमी बाल श्रम उन्मूलन के लिए काम कर रहे लोगों के भीतर नई उम्मीद जगा रही है, खासकर इसलिए क्योंकि इन वर्षों के दौरान दुनिया में बच्चों की आबादी 23 करोड़ बढ़ चुकी है.
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आईएलओ के मुताबिक, खतरनाक काम यानी खनन, उद्योग या कृषि क्षेत्रों में काम करने वाले 5 से 17 वर्ष की उम्र के बच्चों की संख्या 2020 में 7.9 करोड़ थी, जो 2025 में कम होकर 5.4 करोड़ हो गई है. हालांकि, आईएलओ का कहना है कि चाहे कितने भी सकारात्मक अनुमान लगाए जाएं, बाल श्रम को पूरी तरह से खत्म होने में अभी भी कई दशक लग जाएंगे.
अफ्रीका में बनी हुई हैं चुनौतियां
पूरी दुनिया में मौजूद बाल श्रमिकों में से करीब दो-तिहाई यानी 8.66 करोड़ उप-सहारा अफ्रीका में हैं.
यूनिसेफ में बाल संरक्षण की क्षेत्रीय सलाहकार नानकली मकसूद ने डीडब्ल्यू को बताया, "बाल श्रम की दर में कमी हुई है. यह 2020 में 24 फीसदी थी, जो अब 2024 में 22 फीसदी पर आ गई है. हालांकि, इस क्षेत्र में हमारे सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है तेजी से बढ़ती जनसंख्या. इसलिए, तेजी से बढ़ती आबादी के कारण, कुल संख्या में कोई खास कमी नहीं आई है."
मकसूद के लिए चिंता की सबसे बड़ी बात यह है कि बाल श्रमिकों में सबसे ज्यादा संख्या छोटे बच्चों यानी 5 से 11 वर्ष की उम्र के बच्चों की है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "हम घरेलू स्तर पर, विशेष रुप से ग्रामीण इलाकों में गरीबी को खत्म नहीं कर पा रहे हैं. जब तक हमारे पास उन घरों और परिवारों को गरीबी से बाहर निकालने की राजनीतिक इच्छा शक्ति नहीं होगी और आर्थिक मदद नहीं दी जाएगी, तब तक हम बाल श्रम से जुड़ी समस्या खत्म नहीं कर पाएंगे."
इसके अलावा, मकसूद का मानना है कि बाल श्रम से निपटने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना सबसे जरूरी है. इसके तहत, न सिर्फ नए स्कूल बनाए जाने चाहिए, बल्कि अभिभावकों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे अपने बच्चों को स्कूल भेजें. इसके साथ ही, बाल श्रम से जुड़ी गतिविधियों को रोकने के लिए कानूनों को और भी सख्ती से लागू किया जाना चाहिए.
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि खनन और कृषि जैसे खतरनाक क्षेत्रों में श्रम विभाग की जांच को और कड़ा किया जाए. इसके अलावा, आपूर्ति श्रृंखला (यानी, प्रोडक्ट बनने से लेकर ग्राहक तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया) में जवाबदेही भी तय की जाए. मकसूद ने डीडब्ल्यू को बताया, "हमारे अधिकांश देशों में कानून हैं, लेकिन उन कानूनों का पालन सही तरीके से नहीं किया जाता है. बाल श्रम जैसी समस्याओं के लिए जिम्मेदार मंत्रालयों के पास, अधिकांश समय सबसे कम बजट होता है."
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मेडागास्कर स्थित यूनिसेफ कार्यालय की प्रमुख लीजा जिमरमन के अनुसार, इस देश में 5 से 17 साल के बच्चों में से 47 फीसदी बच्चे बाल श्रम की चपेट में हैं. यह आंकड़ा उप-सहारा अफ्रीका के अन्य हिस्सों की तुलना में बहुत ज्यादा है.
जिमरमन ने डीडब्ल्यू को बताया, "लड़कियों की तुलना में लड़के बाल श्रम की चपेट में ज्यादा आते हैं. साथ ही, शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाके के बच्चे इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं और खासतौर पर गरीब परिवारों के बच्चे. मेडागास्कर में 32 फीसदी बच्चे वास्तव में खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं, इसलिए यह बाल श्रम का सबसे खराब रूप है."
जलवायु परिवर्तन के कारण बाल मजदूरों को ज्यादा परेशानी
मेडागास्कर के लोग मुख्य रूप से खेती पर निर्भर हैं. उन्हें जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. जैसे, कभी भयंकर सूखा तो कभी विनाशकारी चक्रवात. जिमरमन ने डीडब्ल्यू से कहा, "जलवायु संबंधी आपदाएं परिवारों और बच्चों को काम करने, नए तरह के काम करने, और ज्यादा खतरनाक काम करने के लिए मजबूर कर देती हैं.”
मेडागास्कर के सूखे दक्षिण-पश्चिमी इलाकों के कुछ गांवों में लोग अब खेती की जगह या उसके साथ-साथ अभ्रक की खुदाई का काम करने लगे हैं. रूस और भारत के बाद मेडागास्कर अभ्रक का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में तेजी आई है, क्योंकि इस खनिज का इस्तेमाल अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में किया जाता है.
जिमरमन ने बताया, "इसके बाद ज्यादातर बच्चों को अपने परिवार का भरण-पोषण करने और खाने के लिए खदानों में जाना पड़ता है." इन समुदायों में अभ्रक खनन का काम अक्सर पूरा परिवार मिलकर करता है, जिसमें बड़े-बुजुर्गों से लेकर छोटे बच्चे तक शामिल होते हैं. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के शोधकर्ताओं को यह भी बताया कि अगर उनके परिवार के सदस्य काम न करें, तो उनके पास खाने के लिए पैसे नहीं होंगे.
परंपरागत समस्या बन गया है बाल श्रम
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन बाल मजदूरी को ऐसे काम के तौर पर देखता है जो बच्चों से उनका बचपन, सम्मान, क्षमता और विकास छीन लेता है, खासकर उनकी स्कूली शिक्षा. वहीं, अफ्रीका के कई समुदायों के बीच बाल श्रम को लेकर अपनी अलग सोच है. वे खुद तय करते हैं कि कौन सा काम बाल श्रम है और कब बच्चों का काम करना जरूरी हो जाता है.
घाना विश्वविद्यालय की शोधकर्ता लिडिया ओसेई ने घाना के समाज की कई बातों को गहराई से समझने का प्रयास किया है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "बाल श्रम एक बड़ी समस्या है, लेकिन हमने इसे हल करने के लिए बेहतर प्रयास नहीं किए हैं."
पश्चिमी अफ्रीका में खनन, कृषि और घरेलू कामों में बाल श्रम पर विशेष रूप से ध्यान दिया जा रहा है. घाना में कोको की खेती और अनौपचारिक खनन में बाल श्रम की खबरें आम हैं.
ओसेई ने डीडब्ल्यू से कहा, "मुझे नहीं लगता कि कोई भी माता-पिता चाहेंगे कि उनका 8 साल का बच्चा खदान पर जाए, जहां उसे चोट लगने या घायल होने का खतरा हो. हालांकि, उनकी परंपरा के मुताबिक यह माना जाता है कि बच्चे को परिवार चलाने में हाथ बटाना चाहिए, इसलिए वे अपने बच्चों को इन छोटे-मोटे खदानों पर ले जाते हैं."
मजदूरी के चक्रव्यूह में फंसे करोड़ों बच्चे
अक्सर खदानों के मालिक बच्चों को उनके माता-पिता के साथ काम करने की अनुमति देकर बाल श्रम को बढ़ावा देते हैं. इसमें छोटे बच्चों को चीजें छांटने या ऐसी संकरी जगहों पर चढ़ने का काम दिया जाता है जहां बड़े लोग नहीं पहुंच पाते. ओसेई ने डीडब्ल्यू को बताया, "आमतौर पर, युवा लोगों को नकद भुगतान नहीं मिलता. बल्कि उन्हें काम के बदले पत्थर या खनिज दिए जाते हैं. कम उम्र के ये मजदूर इसे शोषण नहीं मानते क्योंकि उन्हें जो मिलता है, वे उसे 'काफी' समझते हैं. यही कारण है कि यह व्यवस्था आज भी जारी है."
अन्य समुदायों की तरह, बच्चों के स्कूल न जा पाने और कम उम्र में ही काम पर लगने का असर सिर्फ लंबे समय में ही दिखाई देता है. इसलिए, आईएलओ और यूनिसेफ का कहना है कि उप-सहारा अफ्रीका की सरकारों को ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए जो बाल श्रम के इस दुष्चक्र को तोड़ सकें.
जिंदगी जीने की जद्दोजहद
दरअसल, अर्जेटीना की राजधानी ब्यूनस आयर्स में 2017 में संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सम्मेलन में दुनिया भर के देशों ने 2025 तक बाल मजदूरी को पूरी तरह खत्म करने का संकल्प लिया था. हालांकि, इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका.
2025 तक बाल श्रम को पूरी तरह खत्म न कर पाने की निराशा तो है, फिर भी मकसूद का कहना है कि कई मोर्चों पर प्रगति हो रही है. उनके मुताबिक, बाल श्रम रोकने के लिए नए कानून बनाए जा रहे हैं और पूरे अफ्रीका में शिक्षा के मौके बढ़ रहे हैं, खासकर लड़कियों के लिए. मकसूद कहती हैं कि जैसे-जैसे उप-सहारा अफ्रीका की अर्थव्यवस्थाएं मजबूत होंगी, सभी समुदायों को बेहतर अवसर मिलने की उम्मीद बढ़ेगी.
मकसूद ने डीडब्ल्यू को बताया, "परिवार बस अपनी जिंदगी किसी तरह जीने की कोशिश कर रहे हैं. वे बच्चों से काम इसलिए नहीं करा रहे हैं कि वे बुरे लोग हैं, बल्कि इसलिए करा रहे हैं कि उन्हें जीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. अगर हम उन्हें कोई बेहतर विकल्प दें, तो इस बात की काफी ज्यादा संभावना है कि वे अपने बच्चों को काम पर नहीं भेजेंगे."