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पेड़ बचाने के लिए सड़क और अदालती लड़ाई लड़ रहे हैं शहरवासी

१० अक्टूबर २०१९

भारत के कई शहर घनी आबादी वाले हैं. शहर के लोग तेजी से बढ़ती गर्मी और बाढ़ के बढ़ते खतरे के बीच हरी जगहों को बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं. शहरवासी इन हरे जगहों को महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय के रूप में देख रहे हैं.

Indien Mumbai | Abolzung am Aarey Forest
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times/S. Bate

मुंबई में मेट्रो रेल परियोजना के तहत ट्रेनों के पार्किंग शेड के लिए आरे कॉलनी के जंगलों में 2700 पेड़ काटे जाने हैं. पेड़ काटने से रोकने लिए पर्यावरण प्रेमियों ने मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की लेकिन कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार कर दिया. कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद सैकड़ों की संख्या में पदर्शनकारी आरे पहुंचे और पेड़ों से चिपक रोने लगे. यह एक ऐसी भावनात्मक घटना थी जो मुंबई के लोगों के बीच काफी कम देखने को मिलती है. पुलिस ने कई प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार भी किया जो अपने 'शहर का फेफड़ा' माने जाने वाले पेड़ों को बचाने निकले थे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में पेड़ काटने से रोकने के लिए याचिका दायर की गई. सोमवार को कोर्ट ने 21 अक्टूबर तक पेड़ काटने पर रोक लगा दी है.

दक्षिण भारत के शहर बेंगलुरू में रहने वालों ने एक फ्लाईओवर के निर्माण के लिए सैकड़ों पेड़ों की कटाई के विरोध में प्रदर्शन किया था. वहीं सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर अरावली पर्वत श्रृंखला में रियल इस्टेट विकसित करने के लिए ब्रिटिश शासन में बने कानून को निरस्त करने की मांग की गई है. दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च थिंक टैंक की शोधार्थी कांची कोहली कहती हैं, "जलवायु परिवर्तन का खामियाजा सबसे पहले गांव के लोगों ने भुगता. अब शहर के लोग भी बाढ़, वायु प्रदूषण और पानी की समस्या झेल रहे हैं. लोगों को महसूस हो चुका है कि समस्याओं की एक वजह हरियाली और पेड़-पौधों की कमी है. और इसे बचाने के लिए वे सड़क से लेकर अदालत तक की लड़ाई लड़ रहे हैं."

विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि 2050 तक दुनिया की करीब 70 प्रतिशत आबादी शहरों में रहने लगेगी. खासकर एशिया और अफ्रीका में. यहां रहने वाले लोग बढ़ते तापमान का खामियाजा भुगतेंगे. पर्यावरणविदों के अनुसार एशिया में तेजी से विकसित होते शहरों में हरियाली कम हो रही है. तापमान में वृद्धि के साथ-साथ बाढ़ आने की घटनाएं भी बढ़ रही है. इसकी वजह से मुंबई से लेकर मनीला तक सैकड़ों लोगों की जान जा रही है. मुंबई में पेड़ बचाने को लेकर कई याचिका दायर करने वाले एक्टिविस्ट जोरू बाथेना ने कहा, "हम यह नहीं कह रहे हैं, एक भी पेड़ मत काटो. हम केवल यह कह रहे हैं कि पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं है क्योंकि पर्याप्त संख्या में पेड़ ही नहीं हैं. पर्यावरण की कीमत पर ही विकास क्यों होना चाहिए."

तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee

नुकसान ही नुकसान

स्विटजरलैंड के क्रोथर लैब में काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि 2050 तक दुनिया के 20 फीसदी बड़े शहर 'अज्ञात' जलवायु परिस्थितियों का सामना करेंगे. तापमान बढ़ने की वजह से सूखे और बाढ़ की स्थिति बढ़ेगी. उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों जैसे कि दक्षिण एशिया के शहरों में इसका ज्यादा प्रभाव दिखेगा. साल 2015 में भारत के दक्षिणी हिस्से के शहर चेन्नई में बाढ़ की वजह से करीब 300 लोगों की मौत हुई थी. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सायंस के अनुसार मुंबई में 1970 के दशक में 35 प्रतिशत इलाका हरा भरा और पेड़-पौधों से घिरा हुआ था लेकिन अब यह 13 प्रतिशत से भी कम हो चुका है. जबकि किसी भी क्षेत्र के एक तिहाई हिस्से में पेड़-पौधे होने चाहिए.

भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए 2030 तक दो करोड़ 60 लाख हेक्टेयर परती भूमि का इस्तेमाल पेड़ लगाने व अन्य कार्यों के लिए करने की बात कही है. साथ ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों के इस्तेमाल की बात कही है. पारिस्थितिकी, विकास और अनुसंधान केंद्र में विश्लेषक चेतन अग्रवाल कहते हैं, "शहरी क्षेत्रों में हरे भरे स्थानों के नुकसान की भरपाई कहीं और पेड़ लगाने से नहीं हो सकती है. शहरों में हरे भरे स्थानों के कम होने से पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हुआ है. बड़ी संख्या में लोग यहां रह रहे हैं और पेड़-पौधे से मिलने वाले लाभ से वंचित हैं. उन्हें शुद्ध हवा नहीं मिल रही है. इसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ रहा है."

बढ़ती गर्मी और बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए एथेंस से लेकर सियोल तक बड़े शहरों में पेड़ लगाए जा रहे है. इसका उद्देश्य लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर मनाना है. संयुक्त राष्ट्र ने एशिया और अफ्रीका के शहरों में वायु गुणवत्ता को सही करने, बाढ़ और तापमान में कमी करने तथा भूमि कटाव को रोकने के लिए शहरों में जंगल लगाने की योजना बनाई है. 

तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times/P. Thakur

धूल भरी आंधी

सरकार के अनुसार वनों की कटाई, ज्यादा खेती और सूखे के कारण भारत के लगभग 30% भूमि का क्षरण हुआ है. अरावली की पहाड़ी इसका प्रमाण है, जो चार राज्यों में 700 किलोमीटर की दूरी तक फैला हुआ है. भारत में पर्यावरण से संबंधित कानूनों की कमी है. इस वजह से बेरोकटोक वनों की कटाई, अवैध निर्माण और खनन हो रहा है. इससे मरुस्थलीकरण, झीलों का सूखना, और लगातार धूल भरी आंधी चल रही है. दिल्ली रिज अरावली पर्वत श्रृंखला का एक हिस्सा है. यह शहर के जहरीले धुएं को सोखने का काम करती है.

फरवरी महीने में हरियाणा ने निर्माण और खनन के लिए अरावली में हजारों एकड़ वन भूमि का इस्तेमाल करने के लिए पंजाब भूमि संरक्षण अधिनियम 1900 में संशोधन किया था. इस वजह से दिल्ली और हरियाणा के गुरुग्राम में काफी प्रदर्शन हुआ. कुछ दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक पर्यावरणविद द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए इसे 'चौंका देने वाला' बताया था. कोर्ट ने कहा था कि हरियाणा सरकार जंगलों को बर्बाद कर रही है. कोर्ट की इजाजत के बिना नए कानून को लागू नहीं किया जा सकता है.

अग्रवाल कहते हैं, "अरावली में होने वाले नुकसान की वजह से जल और जंगली जीवों के आश्रय पर प्रभाव पड़ रहा है. इससे दिल्ली और अन्य जगहों पर वायु प्रदूषण में इजाफा होगा." शहरों में बढ़ती जनसंख्या की वजह से मकान और अन्य आधारभूत संरचनाओं के निर्माण के लिए जमीन की आवश्यकता होती है. जमीन के लिए हरे-भरे क्षेत्रों को खाली किया जाता है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने कहा, "हम आरे में एक भी पेड़ नहीं काटना चाहते हैं लेकिन विकास भी जरूरी है. जितने पेड़ काटे जा रहे हैं, उसकी भरपाई के लिए हम और ज्यादा पेड़ लगाएंगे."

आरआर/एमजे (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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