विनाशकारी एलियन प्रजातियों से जंग हार रहा है इंसान
५ सितम्बर २०२३
फसलों और वनों की बर्बादी, बीमारियों और इकोलॉजी को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-पतंगों की संख्या पहले से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रही है और इंसान उनके खिलाफ जंग हारता नजर आ रहा है.
चूहे एक खतरनाक एलियन जीव हैंतस्वीर: blickwinkel/IMAGO
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इस साल जनवरी में आर्मी वर्म कीट ने भारत में मक्के की फसल पर कहर बरपाया. इससे पहले पिछले साल अमेरिकन सुंडी का हमला हुआ था. ऐसे हमले अक्सर होते हैं और सैकड़ों एकड़ खड़ी फसल एकाएक बर्बाद हो जाती है.
एक ताजा शोध बताता है कि एलियन प्रजाति कहे जाने वाले ये हमलावर कीट अपनी आबादी को पहले से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ा रहे हैं और इंसान उनसे मुकाबला नहीं कर पा रहा है.
इस कारण हर साल लगभग 400 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है, जो डेनमार्क या थाईलैंड की पूरी जीडीपी के बराबर है. यूएन कन्वेंशन ऑन बायोडाइवर्सिटी के वैज्ञानिकों का एक पैनल मानता है कि नुकसान इस अनुमान से कहीं ज्यादा है.
क्या चूहे और इंसान रह सकते हैं साथ, पेरिस देगा जवाब
चूहों को गंदगी और बीमारी से जोड़ा जाता है. उन्हें हटाने की कितनी भी कोशिश करो, चूहे लौट आते हैं. तो क्या हमें चूहों के प्रति नजरिया बदलना चाहिए? पेरिस में गहन मंथन चल रहा है कि क्या इंसान और चूहे साथ-साथ नहीं रह सकते!
तस्वीर: J. Eaton/blickwinkel/AGAMI/picture alliance
चूहों से त्रस्त पेरिस
पेरिस में इंसानों से ज्यादा चूहे रहते हैं. 2022 में एक फ्रेंच टीवी शो में बताया गया कि दुनिया में चूहों की भरमार वाले टॉप 5 शहरों में पेरिस चौथे नंबर पर है. अनुमान था कि पेरिस में करीब 60 लाख चूहे हैं. जबकि इंसानों की आबादी लगभग 21 लाख है. जुलाई 2022 में फ्रेंच नेशनल मेडिसिन अकेडमी ने एक चेतावनी भी जारी की थी, जिसमें चूहों के कारण सेहत से जुड़े खतरे और बीमारियां फैलने की आशंका जताई गई थी.
तस्वीर: Wayne Lawler/Australian Wildlife Conservancy
हड़ताल में और बढ़ गए चूहे
दुनिया के ज्यादातर महानगरों की तरह पेरिस भी चूहों की बड़ी आबादी से जूझ रहा है. मार्च-अप्रैल में जब नई पेंशन योजना के विरोध में पेरिस में हड़ताल हुई, तब कूड़ा उठाने वाले भी काम पर नहीं आए. शहर में कचरे का ढेर जमा हो गया. एक वक्त तो करीब 10 हजार टन तक कचरा जमा था. हफ्तों तक कचरा साफ नहीं होने के कारण चूहों की मौज आ गई और उनकी आबादी में भी इजाफा हुआ.
तस्वीर: Thomas Padilla/AP/picture alliance
मांग उठी कि चूहों का कुछ करो
स्वास्थ्य से जुड़े जोखिमों के मद्देनजर बड़ी चिंता थी. पेरिस के कई जिलों के मेयरों ने पेरिस की मेयर आन इदेलगो से कुछ कदम उठाने को कहा. अब इसी क्रम में पिछले हफ्ते पेरिस की उप-मेयर ने काउंसिल ऑफ पेरिस की बैठक में बताया कि मेयर इदेलगो की सलाह पर अब प्रशासन ने एक समिति बनाने का फैसला किया है, जो इस संभावना को खंगालेगी कि क्या इंसान और चूहे साथ-साथ नहीं रह सकते.
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प्रॉजेक्ट आर्मागेडन
इसका लक्ष्य है, चूहों की जनसंख्या काबू करना. साथ ही, चूहों से जुड़े पूर्वाग्रहों को खत्म करने की कोशिश करना ताकि लोग चूहों के साथ बेहतर तरीके से रह पाएं. इसकी फंडिंग फ्रांस की सरकार करेगी. पेरिस इस योजना में पार्टनर की भूमिका में है. शोध किया जाएगा कि इंसान और चूहे किस हद तक साथ रह सकते हैं. सबसे कारगर तरीके तलाशने के साथ यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि उपाय पेरिस के लोगों के लिए असहनीय ना हों.
तस्वीर: J. Eaton/blickwinkel/AGAMI/picture alliance
राजनैतिक मुद्दा बने चूहे
उप-मेयर के इस ऐलान की आलोचना भी हुई. पेरिस के 17वें प्राशासनिक जिले के मेयर ने चूहों से निपटने के इस नरम रुख की आलोचना की. इससे पहले 2017 में पेरिस करीब 17 लाख यूरो की लागत वाली चूहा योजना लाया था. इसमें बड़े स्तर पर जहर देकर चूहों को मारने का अभियान चलाना शामिल था.
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पशु अधिकार संगठनों ने किया स्वागत
जानवरों के अधिकारों पर काम करने वाले संगठनों ने प्रशासन के रुख में बदलाव का स्वागत किया है. पैरिस एनिमल्स जूपोलिस नाम का एक संगठन, जो कि जानवरों के साथ होने वाली क्रूरता का विरोधी और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का समर्थक है, ने कहा कि चूहों की समस्या से निपटने के मौजूदा तरीके अप्रभावी और क्रूर हैं. ऐसे में नए तरीकों को आजमाना जरूरी है.
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पूर्वी अफ्रीका में विक्टोरिया झील के पानी को दूषित करने से लेकर प्रशांत में पक्षियों की प्रजातियों को खत्म करते सांप और चूहे या जीका वायरस, डेंगू और पीला बुखार जैसी बीमारियां फैलाने वाले मच्छरों तक दुनिया के लगभग हर हिस्से में इन एलियन प्रजातियों का कहर बरप रहा है.
हजारों प्रजातियां, असंख्य जीव
ताजा शोध में वैज्ञानिकों ने ऐसे 37,000 हानिकारक कीटों की सूची बनायी है. शोध बताता है कि ये जीव अपने मूल स्थानों से दूर-दूर तक पहुंच चुके हैं और इनकी आबादी तेजी से बढ़ रही है. 1970 के मुकाबले अब इन एलियन जीवों द्वारा पहुंचाया गया नुकसान कई गुना तक बढ़ चुका है.
रिपोर्ट कहती है, "आर्थिक विस्तार, आबादी और जलवायु परिवर्तन इन कीटों के हमलों की संख्या और प्रभाव दोनों को और बढ़ाएगी.” रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में बहुत कम देश इन हमलों को झेलने के लिए तैयार हैं. सिर्फ 17 फीसदी देश ऐसे हैं जहां इस तरह के हमलों के बारे में कानून या नीतियां हैं.
इन कीटों को एलियन प्रजाति इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका मूल जन्म कहीं और होता है और वे लक्ष्य करके या फिर गलती से दूसरी जगहों पर पहुंच जाते हैं. लेकिन रिपोर्ट कहती है कि जब ये कीट दुनिया के किसी हिस्से पर हमला करते हैं, तो उनकी वजह इंसानी गतिविधियां ही होती हैं.
फसलों की रक्षा में बत्तखों की सेना
वाइन के लिए मशहूर दक्षिण अफ्रीका के शहर स्टेलेनबॉश में बत्तखों का इस्तेमाल फसलों की सुरक्षा के लिए किया जा रहा है.
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विनयार्ड की रक्षक बत्तख
दक्षिण अफ्रीका के स्टेलेनबॉश में ये बत्तखें काम पर लगी हैं एक विनयार्ड में. वैरनूख्त लो वाइन एस्टेट के एमडी कोरियस विसर कहते हैं, “हम इन बत्तखों को विनयार्ड-सैनिक कहते हैं.”
तस्वीर: Esa Alexander/REUTERS
500 बत्तख
इन बत्तखों का काम है फसलों को कीड़े-मकौड़ों आदि से सुरक्षित रखना. विसर के यहां करीब 500 बत्तख इस काम में लगी हैं.
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इंडियन रनर
ये इंडियन रनर बत्तख हैं जिन्हें जोंक और घोंघे खाना बहुत पसंद है. इसलिए वे दिनभर अंगूर की बेलों के बीच घूमती हैं और खोज-खोज कर इन कीटों का सफाया करती हैं.
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आकार-प्रकार
विसर कहते हैं, “ये बत्तख मटक-मटक कर नहीं, बल्कि सीधी चलती हैं. उनकी लंबी गर्दन उन्हें खाना खाने में मदद करती है और वे पत्तों के बीच से भी भोजन उठा लेती हैं.”
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कुदरती कीटनाशक
वे कुदरती कीटनाशक हैं, इसलिए अंगूर की बेलें पेस्टिसाइड आदि से मुक्त रहती हैं और उत्पाद ज्यादा स्वस्थ पैदा होता है. इनका एक और फायदा है.
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पर्यटन में बढ़ावा
विसर कहते हैं कि इन बत्तखों से फार्म में रौनक बनी रहती है और पर्यटकों को इन्हें देखने में खूब मजा आता है. इसलिए वे पर्यटन बढ़ाने में भी मददगार हो गई हैं.
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वैज्ञानिकों ने कहा है कि इन प्रजातियों का इतनी तेजी से विस्तार इस बात का सबूत है कि मानवीय गतिविधियों ने बहुत तेजी से कुदरती व्यवस्था को बदला है. इन बदलावों के कारण पृथ्वी अब नये भूगौलिक समय-काल में पहुंच गयी है, जिसे एंथ्रोपोसीन नाम दिया गया है.
दुनियाभर में उदाहरण
इन जीवों के कारण होने वाले नुकसान बड़ा उदाहरण पूर्वी अफ्रीका की विक्टोरिया झील है, जो एक वक्त में 90 फीसदी तक काई से ढक गयी थी. इस कारण जलीय जीवन तो प्रभावित हुआ ही, यातायात से लेकर पनबिजनी परियोजना तक को नुकसान हुआ. माना जाता है कि रवांडा में इस कीट को लाने वाले बेल्जियम के लोग थे. रवांडा पर राज कर रहे बेल्जियम अफसरों ने अपने घरों की बगिया में इन्हें उगाया था, जो 1980 के दशक में कागरा नदी में पहुंच गया.
इसी तरह 19वीं सदी में अंग्रेज अपने साथ खरगोश लेकर न्यूजीलैंड पहुंच गये थे. वे शिकार और भोजने के लिए खरगोश लेकर गये थे जिनकी आबादी इतनी तेजी से बढ़ी कि द्वीपीय देश के लिए उन्हें संभालना मुश्किल हो गया. फिर उन्हें खत्म करने के लिए स्टोटा लाये गये. लेकिन उन शिकारी जीवों ने खरगोशों के बजाय आसान शिकार जैसे कि छोटे स्थानीय पक्षियों और कीवियों को निशाना बनाया. इस कारण पक्षियों की कई प्रजातियां खत्म हो गईं. अब न्यूजीलैंड इन जीवों को खत्म करने के लिए अभियान चला रहा है.
बहुत बार इन एलियन प्रजातियों का दूसरी जगहों पर पहुंचना किसी हादसे की वजह से भी होता है. जैसे कि वे मालवाहक जहाजों के जरिये दूसरी जगहों पर पहुंच जाते हैं. कई बार पर्यटकों के सामान में भी वे विदेशों में पहुंच जाते हैं. मसलन भूमध्य सागर में अब बाहरी पौधों और मछलियों की भरमार हो गयी है. लायनफिश या घातक काई जैसे ये जीव लाल सागर से स्वेज नहर के रास्ते भूमध्य सागर में पहुंच गये.
मुश्किल है लड़ाई
यूएन की रिपोर्ट कहती है कि खत्म हो चुकीं पौधों और जीवों की प्रजातियों में के विनाश में से 60 फीसदी में एलियन कीटों ने अहम भूमिका निभायी है. वे ग्लोबल वॉर्मिंग, प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र के विनाश के भी कारण बने हैं. मसलन, पिछले महीने अमेरिका के हवाई में लगी जंगलों की आग की बड़ी वजह एक सूखी घास थी, जो दशकों पहले मवेशियों को खिलाने के लिए आयात की गयी थी. अब वह घास आस-पास पड़े खाली खेतों में फैल चुकी है.
धरती को तबाह कर रहे हैं जहरीले कीटनाशक
खेती में कीटनाशकों का खूब इस्तेमाल होता है. विषैले रसायनों से भरे इन कीटनाशकों का हमारे भोजन, स्वास्थ्य, हवा और पानी पर गंभीर असर पड़ रहा है.
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जहर की चपेट में कामगार
दुनिया में हर साल कीटनाशकों के जहर से बीमार होने के 38 करोड़ से भी अधिक मामले सामने आते हैं. इनमें सबसे ऊपर है एशिया. फिर अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का नंबर आता है. कीटनाशकों का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर किसान या कामगार छिड़काव के दौरान सुरक्षित रखने वाले कपड़े और मास्क भी नहीं पहनते हैं.
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गंभीर बीमारियां
निकारागुआ के चिचिगाल्पा में कई पुरुषों को किडनी की गंभीर बीमारी है. गन्ने की खेतों में छिड़के जाने वाले पेस्टीसाइड्स इसकी वजह हैं. दुनिया भर में पीने के पानी और फूड चेन में कीटनाशकों का मिलना आम हो चुका है. कई शोध साबित कर चुके हैं कि इन कीटनाशकों के कारण भी कैंसर समेत कई बीमारियां फैल रही हैं.
तस्वीर: Alvaro Fuente/NurPhoto/picture alliance
खतरे में जैव विविधता
अनचाहे कीटों और पौधों को मारने के लिए कीटनाशक और अन्य रसायन छिड़के जाते हैं. लेकिन इनकी चपेट में उस इलाके के सभी कीट और पौधे जाते हैं. मधुमक्खियों और चिड़ियों पर भी कीटनाशकों का बुरा असर देखा गया है. लंबे समय तक ऐसा होने पर उस इलाके से कीटों और पौधों की कई प्रजातियां उजड़ जाती हैं.
आंतों के फायदेमंद बैक्टीरिया पर हमला
एक अहम शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि केले के फूलों से रस चूसने वाले चमगादड़ों की आंत में अच्छे बैक्टीरिया घट गए. इनके उलट आहार के लिए जंगल पर निर्भर चमगादड़ों की आंत में ऐसे सूक्ष्मजीवों की संख्या अच्छी खासी थी. आंतों के अच्छे बैक्टीरिया इंसान और जानवरों के स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभाते हैं
तस्वीर: T. Douma/blickwinkel/picture-alliance
खतरनाक कीटनाशकों के निर्यात पर रोक?
घातक रसायनों से बचाव के मामले में भारत के खेतों में काम करने वाले लोग यूरोप के मुकाबले पीछे हैं. यूरोप में कुछ बेहद जहरीले कीटनाशकों का इस्तेमाल करने पर बैन है, लेकिन यूरोपीय निर्माता बायर और बीएएसएफ को ऐसे जहरीले रसायनों का निर्यात करने की छूट है.
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बिना रसायानों के खेती
रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए अब कई देशों में ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. खेती के इस सैकड़ों साल पुराने तरीके में कीटों, पक्षियों और पशुओं के साथ मिलकर स्वस्थ ईकोसिस्टम बरकरार रखा जाता है. भारत और नेपाल में गोमूत्र, गोबर और नीम का इस्तेमाल सदियों पुराना है. (ओएसजे/आरपी)
तस्वीर: DW/Wolf Gebhardt
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पिछले साल दिसंबर में जैव विविधता की सुरक्षा के लिए एक वैश्विक संधि हुई थी, जिसमें एलियन प्रजातियों को 2030 तक आधा कर देने का लक्ष्य रखा गया था. रिपोर्ट कहती है कि इस विनाश को रोकने के लिए तीन मुख्य तरीके हो सकते हैं. पहला है बचाव, उसके बाद जड़ से विनाश. और जब ये काम ना करें तो नियंत्रण.
आमतौर पर इन जीवों को नष्ट करने की कोशिशें नाकाम रही हैं. जैसे कि छोटे द्वीपों से चूहों को खत्म करने की कोशिशें लगभग विफल रही हैं.