विदेशों में बुजुर्गों की देखरेख की नौकरी मिलना होगा मुश्किल
१४ अक्टूबर २०२५
दुनियाभर में केयर वर्कर्स की भारी मांग है. दुनिया के कई विकसित देशों में बुजुर्गों की संख्या में तेज इजाफा हो रहा है. बहुत से भारतीय इस काम में लगे हुए हैं. और कई अन्य इसकी ट्रेनिंग ले रहे हैं. वर्ष 2030 तक दुनिया में हर 6 में से एक व्यक्ति की उम्र 60 वर्ष या उससे अधिक होगी. पारिवारिक ढांचे में बदलाव और केयर वर्क की बढ़ी जरूरत के चलते इस क्षेत्र में मांग लगातार बढ़ रही है. ऐसे में विकसित देशों जैसे इस्राएल, जापान, जर्मनी, कनाडा और ब्रिटेन में देखभाल करने के लिए प्रशिक्षित सहायकों की बड़ी संख्या में जरूरत है. कई बुजुर्गो को नियमित देखभाल और चिकित्सा सहायता की आवश्यकता होती है. लेकिन इन विकसित देशों में युवा आमतौर पर देखभाल से जुड़ा काम करना नहीं चाहते. ऐसी स्थिति को देखते हुए कम या मध्यम आय वर्ग वाले देशों के कर्मचारी इस रोजगार की ओर आकर्षित होते हैं.
विदेशों में नौकरी की चाह रखने वाले बहुत से भारतीयों को भी केयर वर्क से जुड़ी नौकरियां आकर्षित करती हैं. हालांकि अब इन नौकरियां पर खतरा मंडरा रहा है. दरअसल इनमें से कई देशों में दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी पार्टियां आप्रवासियों को मुद्दा बनाए हुए हैं. उनका मानना है कि देश की असल पहचान का बचाव और सुरक्षा तब तक नहीं हो सकती जब तक बाहरी लोगों पर काबू ना किया जाए. इस से उन भारतीयों के लिए भी मुश्किलें बढ़ गई हैं जो विदेश जाकर केयर वर्क से जुड़ी नौकरियां करना चाहते हैं.
विदेश में केयर वर्क की नौकरियों का काफी क्रेज
देखभाल सहायकों की आवश्यकता तब होती है जब कोई व्यक्ति उम्र, बीमारी या शारीरिक असमर्थता के कारण अपनी स्वयं की देखभाल नहीं कर पाता. ये सहायक मरीजों की व्यक्तिगत देखभाल करते हैं. जिसमें रोजमर्रा की गतिविधियों जैसे नहलाना, भोजन कराना, दवाइयां देना, कपड़े बदलवाना और चलने‑फिरने में सहायता करना शामिल होता है.
देखभाल सहायकों को इंफेक्शन कंट्रोल, बीपी मापने, सीपीआर देने, चोक रेस्क्यू, ग्लूकोमीटर और थर्मामीटर जैसे बेसिक मेडिकल उपकरणों के उपयोग का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. ताकि आपात स्थितियों में वो उस व्यक्ति को प्राथमिक सहायता दे सकें, जिसकी उन्हें देखभाल करनी है. इसके अलावा, वे मरीज के खानपान और पोषण का भी ध्यान रखते हैं. हालांकि केयर वर्कर का काम नर्स और हॉउस हेल्प से अलग से होता है.
केरल के गार्डियन एंजेल इंस्टीट्यूट ऑफ केयरगिविंग के सेंटर मैनेजर मनुमोन के.जी इस अंतर को स्पष्ट करते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि देखभाल सहायक नर्स की तरह मेडिकल ट्रीटमेंट नहीं देते. वे ना ही हाउस हेल्प की तरह घर के घरेलू कामों में शामिल होते हैं. उनकी भूमिका विशेष रूप से मरीज की व्यक्तिगत देखभाल करना है. भारत में इस काम के लिए ₹18,000 से ₹30,000 मिलते हैं. जबकि विदेश में देखभाल सहायक की सैलरी एक लाख रूपए तक होती है.
मनुमोन के.जी कहते हैं, "भारतीय अकसर ज्यादा घंटे काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं. वे कम वेतन पर काम करने को तैयार रहते हैं. भारत और विदेश में इसकी लोकप्रियता और मांग के चलते केयर वर्क के लिए प्रशिक्षण देने वाले कई संस्थान खुल चुके हैं. ये विशेष रूप से पंजाब और दक्षिण भारत में हैं. इस तरह के कोर्स में डिप्लोमा हासिल करने के लिए कम से कम 10वीं पास होना जरुरी है. ये कोर्स 6 महीने से एक साल तक के होते हैं. पढ़ाई के साथ प्रैक्टिकल इंटर्नशिप भी कराई जाती है. विदेश में काम करने के लिए वहां की भाषा भी सीखनी पड़ती है."
भारत में भी डिमांड बढ़ी
नेशनल स्किल्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएसडीसी) वर्ष 2027 से हर वर्ष एक लाख देखभाल सहायकों को विकसित देशों में भेजने की योजना बना रहा है. ये वो देश होंगे जहां बुजुर्गों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है. एनएसडीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वेद मणि तिवारी ने इस वर्ष फरवरी में हुई एक कॉन्फ्रेंस में कहा था कि इस्राएल ने 5,000 स्वास्थ्य कर्मियों की मांग की है. जबकि जर्मनी और जापान जैसे देशों की ओर से भी स्वास्थ्य कर्मियों की मांग लगातार आ रही है.
एनएसडीसी इन कर्मचारियों की भाषा सीखने में मदद करने के लिए भारत में रूसी, इटैलियन, कोरियन और फ्रेंच सहित अन्य भाषाओं के नए प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने की कोशिश भी कर रहा है.
सिर्फ विदेशों में ही नहीं भारत के महानगरों में भी देखभाल सहायकों की जरूरत बढ़ी है. मुंबई और कोलकाता में देखभाल सहायकों की मांग सबसे ज्यादा है. केयर विद्या अकादमी, हैदराबाद और झारखंड में देखभाल सहायकों को प्रशिक्षण देती है. अकादमी के मैनेजर सोहेल खान डीडब्लू को बताते हैं कि कॉरपोरेट सेक्टर में काम करने वाले लोगों के बीच देखभाल सहायकों की मांग तेजी से बढ़ रही है. अच्छी सैलरी वाले ऑफिस में काम करने वाले लोगों के बीच इन सहायकों की काफी मांग है. काम के कारण वे घर पर मौजूद नहीं रह पाते. बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के लिए वे सहायक को रखते हैं.
मुंबई में 60 साल से अधिक के लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. यहां देखभाल सहायकों को औसतन ₹1000 प्रतिदिन मिल जाते हैं. हालांकि ज्यादातर लोग अक्सर केवल आधे दिन के लिए सहायक रखते हैं, लेकिन उन्हें पूरी सैलरी मिलती है. वहीं महिलाओं की शिक्षा और नौकरी में भागीदारी बढ़ने से कोलकाता जैसे नगरों में भी देखभाल सहायकों की जरूरत बढ़ी है. हैदराबाद जैसे महानगरों से विदेश जाकर बस रहे लोगों को अपने माता-पिता की देखभाल के लिए इनकी जरूरत है.
केयर विद्या अकादमी के मैनेजर सोहेल खान बताते है कि देखभाल सहायकों को विदेश जाने में दिक्कतें आती हैं. कई देशों जैसे फ्रांस जाने के लिए फ्रेंच भाषा जानना जरूरी होता है. फिर इस कोर्स को करने वाले अधिकतर स्टूडेंट सिर्फ 12वीं पास होते हैं. उनमें आत्मविश्वास और कम्युनिकेशन स्किल की कमी होती है, जो विदेश में काम करने के लिए जरूरी होती है.
विदेश में भारतीय देखभाल सहायकों को आ सकती है दिक्कत
अब विदेश में काम करने जा रहे देखभाल सहायकों को आप्रवासी नीतियों का शिकार भी होना पड़ रहा है. बड़ी संख्या में भारतीय कर्मचारी विदेशों में काम कर रहे हैं. आंकड़े बताते है भारत से लगभग 1.76 लाख स्वास्थ्य सेवा पेशेवर अमेरिका में काम कर रहे हैं. यह कुल अमेरिकी हेल्थ केयर फोर्स का लगभग 7 फीसदी है.
पंजाब के पटियाला में बने गुरु नानक स्किल सेंटर में एडवाइजर लखबीर कौर, डीडब्लू को बताती हैं कि पंजाब, केरल और उत्तर भारत से कई लोग विदेश काम करने जाना चाहते हैं. विदेश में स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से उपलब्ध नहीं होती. जैसे कनाडा में हेल्थ सेक्टर में पेशेंट केयर असिस्टेंट की कमी है. भारतीय देखभाल सहायक इस कमी को पूरा करते हैं.
दक्षिणपंथी ताकतों के बढ़ते प्रभाव और इससे बढ़ते प्रवासी-विरोधी रुख ने अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप और जापान जैसे देशों में भारतीय देखभाल सहायकों सहित प्रवासी कामगारों की नौकरियों और काम की स्थिति को प्रभावित किया है. अमेरिका ने H-1B वीजा नियम सख्त कर वीजा पाने और रिन्यू कराने को मुश्किल बना दिया है.
जापान में राष्ट्रवादी पार्टी सेनसेटो ने ‘जापान फर्स्ट' का नारा दे इस साल जापान के ऊपरी सदन में कई सीटें हासिल कर लीं. अब यह पार्टी देखभाल सहायक के तौर पर काम कर रहे आप्रवासियों की संख्या कम करना चाहती है. जबकि जापान में बुजुर्गों की संख्या लगातार बढ़ रही है. जापान की कुल जनसंख्या वर्ष 2070 तक एक-तिहाई घटकर लगभग 8.7 करोड़ रह जाएगी. इसमें 65 वर्ष से अधिक उम्र के 40 फीसदी लोग होंगे. आंकड़ों के मुताबिक, बुजुर्गों की देखभाल के काम के लिए चार खाली पदों पर अब भी एक ही सहायक मिल पाता है. ऐसे में अगर विदेशी देखभाल सहायक औप कम होंगे तो देखभाल के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ सकते हैं, जो परिवारों और सरकार दोनों को भारी पड़ सकता है.
ब्रिटेन में भी कंजर्वेटिव और लेबर दोनों पार्टियों ने विदेशी वीजा नियम कड़े किए हैं. कुछ दिन पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने भारत का दौरा किया था. इस दौरान उन्होंने कहा कि वो भारत के साथ वीजा समझौते पर विचार नहीं कर रहे. बल्कि उन्होंने इसे और कड़ा करने का संकेत दिया है. ऐसे में विदेश जाकर देखभाल सहायक का काम करने वाले भारतीयों की संख्या आने वाले दिनों में कम भी हो सकती है.