भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बनने जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 15 नवंबर 2022 को दुनिया की जनसंख्या आठ अरब का आंकड़ा पार कर लेगी.
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वर्ल्ड पॉपुलेशन क्लॉक के मुताबिक इस वक्त दुनिया की आबादी 7.96 अरब है. इसमें चार करोड़ लोग और जुड़ते ही, ग्लोबल आबादी 8 अरब हो जाएगी. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 15 नवंबर 2022 तक ऐसा हो जाएगा. जनसंख्या पर आई यूएन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में भारत चीन की पीछे कर दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा.
यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस कहते हैं, "यह इस बात का रिमाइंडर है कि हमें अपने ग्रह की हिफाजत की साझा जिम्मेदारी लेनी है और यह पल बता रहा है कि हम एक दूसरे के प्रति अपनी वचनबद्धता को लेकर पिछड़ रहे हैं." यूएन के मुताबिक 1950 के बाद पहली बार वैश्विक जनसंख्या में सबसे कम रफ्तार से वृद्धि देखी जा रही है.
वैश्विक जनसंख्या के इस रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का दबाव सीधे तौर पर प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ेगा. आबादी जितनी बढ़ेगी, उसी अनुपात में भोजन, आवास और ऊर्जा की मांग भी ऊपर जाएगी. जलवायु परिवर्तन से जुड़े आंकड़े बता रहे हैं कि बीते 50 साल में इंसानी आबादी ने अंधाधुंध तरीके से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया है.
आकार के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े देश
क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया 15 सबसे बड़े देशों के पास पूरे ग्लोब की आधी से ज्यादा जमीन है. भारत इस सूची में सातवें नंबर पर है. देखिए टॉप 15 लिस्ट.
धरती पर इंसानी आबादी सिर्फ 8 अरब पर नहीं रुकेगी. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2050 तक वैश्विक आबादी 9.7 अरब हो जाएगी. 2080 के दशक में पृथ्वी पर 10.4 अरब इंसान होंगे. सन 2100 से आबादी बढ़नी बंद होने लगेगी. हो सकता है कि उसके बाद यह कम भी होने लगे.
वैश्विक आबादी बढ़ने के पीछे प्रजनन दर के अलावा और भी कई फैक्टर हैं. आर्थिक समृद्धि के चलते कई देशों में प्रसव के दौरान होने वाली मौतें घटी हैं. दवाओं और स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता के कारण कई देशों में औसत आयु बढ़ रही हैं.
विकसित देशों के बाद अब कई विकासशील देशों में जन्मदर में गिरावट आने लगी है. यूएन की रिपोर्ट में कुछ एशियाई और अफ्रीकी देशों के लिए चेतावनी भी छुपी है. आने वाले दशकों में दुनिया की आधी से ज्यादा आबादी आठ देशों में रहेगी. इन देशों में भारत, पाकिस्तान, फिलीपींस, मिस्र, डीआर कॉन्गो, इथियोपिया, नाइजीरिया और तंजानिया शामिल हैं. क्षेत्रफल के लिहाज से इन आठ देशों का कुल भूभाग अकेले रूस से भी छोटा है.
प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर नजर रखने के लिए दुनिया में हर साल अर्थ ओवरशूट डे निकाला जाता है. यह दिन बताता है कि हर वर्ष कितनी तेजी से साल भर में इस्तेमाल किए जाने वाले प्राकृतिक संसाधन खत्म हुए हैं. 2005 से लगातार ओवरशूट डे जुलाई और अगस्त में आ रहा है.
धरती से धीरे-धीरे गायब होते जा रहे हैं ये प्राकृतिक संसाधन
जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जनसंख्या का दबाव पृथ्वी पर बढ़ता जा रहा है. इसके चलते प्राकृतिक संसाधनों की कमी होती जा रही है. जानिए ऐसे प्राकृतिक संसाधनों के बारे में जो हर साल खत्म होते जा रहे हैं.
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जल ही जीवन है
पृथ्वी के कुछ हिस्सों पर पीने के लिए ताजा पानी आसानी से उपलब्ध है. लेकिन यह बहुत कीमती है. दुनिया में जितना पानी है उसमें सिर्फ 2.5 प्रतिशत ही ताजा पानी है. और इसका आधा हिस्सा बर्फ के रूप में है. उपलब्ध ताजा पानी का 70 प्रतिशत हिस्सा खेती के लिए इस्तेमाल होता है. अनुमान के मुताबिक 2050 तक दुनिया का दो-तिहाई हिस्सा पानी की कमी का सामना करेगा
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जमीन अब सोना बन गई है
जमीन के पीछे सारी दुनिया पागल है. लेकिन जैसे-जैसे दुनिया की जनसंख्या बढ़ रही है, उपलब्ध जमीन कम होती जा रही है. बार-बार आने वाली प्राकृतिक आपदाएं इस समस्या को और बढ़ा देती हैं. जिन देशों की जनसंख्या ज्यादा है वहां खेती के लिए कम जगह रह गई है. जैसे चीन और सऊदी अरब अफ्रीका में जमीन की तलाश कर रहे हैं. जमीन अब नया सोना बन गई है.
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जीवाश्म ईंधन के भी बचेंगे अवशेष
जीवाश्म ईंधन लाखों सालों तक अवशेषों के जमीन में दबे रहने का बाद बनता है. लेकिन जिस तरह अब जीवाश्म ईंधन यानी डीजल, पेट्रोल, कैरोसीन, गैस सबका दोहन हो रहा है उस हिसाब से इन ईंधनों के अवशेष ही रह जाएंगे. इन्हें दोबारा बनाया भी नहीं जा सकता है. ऐसे में जिन देशों की अर्थव्यवस्था सिर्फ जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है उनके लिए ये बड़ी चुनौती है. साथ ही इसका एक अच्छा विकल्प भी तलाशना होगा.
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कोयले से दूरी बनाने का समय
जीवाश्म ईंधन की तरह कोयला भी है. जर्मनी जैसे विकसित देश भी अभी कोयले का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे उनका कोयले का भंडार खत्म होता जा रहा है. पोलैंड में लिग्नाइट कोयले का भंडार 2030 तक खत्म हो जाने का अनुमान है. हार्ड कोल थोड़े ज्यादा समय तक मौजूद रहेगा. लेकिन बहुत ज्यादा समय तक नहीं. इसलिए इन देशों को जल्दी ही कोयले से दूरी बनानी होगी चाहे ऐसा करना अच्छा लगे या नहीं.
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मिट्टी हर जगह या कहीं नहीं
अगर हम रेगिस्तान में खड़े हैं तो असीमित मिट्टी लगती है. लेकिन प्राकृतिक मिट्टी का उत्पादन बेहद धीमे होता है. मिट्टी एक नव्यकरणीय स्रोत है लेकिन जिस तरह नए निर्माण कार्यों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है, धरती को नई मिट्टी बनाने का समय ही नहीं मिल पा रहा. पूर्वी अफ्रीका जैसी विकासशील जगहों पर जहां जनसंख्या के 2050 तक दोगुना हो जाने का अनुमान है, वहां मिट्टी की भी कमी हो सकती है.
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खत्म होती प्रजातियां
जीव-जंतुओं के प्रति लापरवाह तौर-तरीकों के चलते कई सारी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर आ गई हैं. जानवरों को इंसान अपने लिए संसाधन की तरह मान रहा है. इसके चलते पैंगोलिन, गेंडे, वकीटा और समुद्री घोड़े खत्म होने की कगार पर पहुंच गए हैं. अगर ऐसे ही इंसान अपने मतलब के लिए इन्हें मारते रहे तो ये जल्दी ही पृथ्वी से गायब हो जाएंगे. और इनके गायब होने से मानव को भी खतरा पैदा हो जाएगा.
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और सबसे कीमती चीज: समय
सारी चीजें धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं. अगर समय रहते कुछ नहीं किया गया तो मुश्किल पैदा हो जाएगी. लेकिन एक चीज जो अभी भी हमारे पास है वो है समय. बहुत सारा लेकिन बहुत कीमती. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अगले 12 साल में जलवायु परिवर्तन को रोकने के उपाय कर लिए गए तो इसे रोका जा सकता है. लेकिन अगर हम ऐसे ही संसाधनों का इस्तेमाल करते रहे तो कुछ करने के लिए समय नहीं बचेगा.
रिपोर्ट- इरेने बनोस रुइज