दुनिया की पांच परमाणु शक्तियों ने सोमवार को एक विरला कदम उठाते हुए ऐसा बयान जारी किया जिसने शांति में दुनिया का भरोसा मजबूत किया. पूर्व और पश्चिम के भेद मिटाते हुए ये पांच परमाणु शक्तियां पहली बार इस तरह साथ आईं.
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अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और चीन ने एक साथ मिलकर कहा कि परमाणु युद्ध ना जीता जा सकता है और ना लड़ा जाना चाहिए. साझा बयान में कहा गया, "हम इस बात को पूरी शिद्दत के साथ मानते हैं कि ऐसे (परमाणु) हथियारों का और प्रसार रोका जाना चाहिए. परमाणु युद्ध जीता नहीं जा सकता और कभी लड़ा नहीं जाना चाहिए.”
यह बयान तब जारी हुआ है जबकि परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) की ताजा समीक्षा को कोविड-19 के कारण बाद के लिए टाल दिया गया है. यह समीक्षा 4 जनवरी को होनी थी लेकिन सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों ने इसे साल बाद में करने के लिए स्थगित कर दिया. एनपीटी 1970 में अस्तित्व में आई थी.
निरस्त्रीकरण का वचन
पांचों ताकतों ने कहा, "परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच युद्ध को टालना और रणनीतिक खतरों को कम करना हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी है.”
सिर्फ 6 देशों के पास हैं परमाणु पनडुब्बियां
आकुस समझौते के तहत ऑस्ट्रेलिया में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी बनाई जाएगी. इसके तैयार हो जाने पर वह सातवां ऐसा देश बन जाएगा जिसके पास परमाणु पनडुब्बी है. अब तक यह क्षमता हासिल कर चुके देश हैं..
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
ऑस्ट्रेलिया होगा 7वां देश
2016 की इस तस्वीर में फ्रांसीसी पनडुब्बी है जो ऑस्ट्रेलिया को मिलनी थी. अब फ्रांस की जगह वह अमेरिका से परमाणु पनडुब्बी लेकर सातवां देश बन जाएगा. बाकी छह देशों में भारत भी है. लेकिन सबसे ज्यादा पनडुब्बियां किसके पास हैं? अगली तस्वीर में जानिए...
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Blackwood
अमेरिका
अमेरिका के पास सबसे ज्यादा 68 परमाणु पनडुब्बियां हैं. इनमें से 14 ऐसी हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकती हैं.
तस्वीर: Amanda R. Gray/U.S. Navy via AP/picture alliance
रूस
रूस के पास 29 परमाणु पनडुब्बियां हैं जिनमें से 11 में बैलिस्टिक मिसाइल से हमला करने की क्षमता है.
तस्वीर: Peter Kovalev/TASS/dpa/picture alliance
चीन
चीन के पास 12 परमाणु पनडुब्बियां हैं जिनमें से आधी ऐसी हैं जो बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकती हैं. बाकी छह परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां हैं.
तस्वीर: Imago Images/Xinhua/L. Ziheng
ब्रिटेन
ब्रिटेन 11 परमाणु पनडुब्बियों के साथ इस सूची में चौथे नंबर पर है. उसकी 4 पनडुब्बियां बैलिस्टिक मिसाइल दागने की क्षमता रखती हैं.
तस्वीर: James Glossop/AFP/Getty Images
फ्रांस
फ्रांस के पास भी बैलिस्टिक मिसाइल दाग सकने वाली चार परमाणु पनडुब्बियां हैं. हालांकि उसकी कुल पनडुब्बियों की संख्या 8 है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/DCNS Group
भारत
भारत इस सूची में एक पनडुब्बी के साथ शामिल है. भारत की परमाणु ऊर्जा संपन्न यह पनडुब्बी मिसाइल भी दाग सकती है.
तस्वीर: Reuters/S. Andrade
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बयान के मुताबिक सभी देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि वे राष्ट्रीय स्तर पर उन उपायों को मजबूत करेंगे जिनसे परमाणु हथियारों का अनधिकृत या अनैच्छिक प्रयोग ना हो. बयान में संधि की उस धारा पर भी प्रतिबद्धता जताई गई जिसके तहत सभी देश भविष्य में पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए वचनबद्ध हैं. साझा बयान में कहा गया है, "हम धारा 6 सहित एनपीटी के प्रति हमारी बाध्यताओं के प्रति वचनबद्ध हैं.”
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 191 देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. इस संधि का एक प्रावधान कहता है कि हर पांच साल पर इसकी समीक्षा होनी चाहिए.
क्यों अहम है यह बयान?
हाल के दिनों में चीन और रूस दोनों के साथ पश्चिमी ताकतों का तनाव बढ़ा है, जिस कारण यह बयान आश्वस्त करने वाला माना जा रहा है. रूस और चीन के साथ अमेरिका का तनाव शीत युद्ध के बाद अब तक के चरम पर है. खासतौर पर रूस द्वारा यूक्रेन सीमा पर बड़े सैन्य जमावड़े के बाद दोनों शक्तियों की ओर से आक्रामक बयानों के चलते तनाव बढ़ गया था.
रूस को आशंका है कि यूक्रेन के रूप में नाटो शक्तियां उसकी सीमा पर अपनी हथियारबंदी बढ़ाना चाहती हैं. उधर अमेरिका और अन्य पश्चिमी ताकतों को लग रहा है कि रूस अपनी प्रसारवादी नीतियों के तहत यूक्रेन पर हमला करने की तैयारी कर रहा है. 10 जनवरी को रूस और अमेरिका के बीच जेनेवा में एक बातचीत होनी है जिसमें यूरोपीय सुरक्षा पर चर्चा होगी.
उधर चीन के साथ अमेरिका का तनाव भी जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद से लगातार बढ़ रहा है. चाहे वह व्यापारिक आक्रामकता हो या ताइवान को लेकर तनाव, अमेरिका ने कई बार ऐसे बयान दिए हैं जिन्हें चीन ने ‘शीत युद्ध जैसी मानसिकता' बताया.
बढ़ रही है दुनिया में परमाणु हथियारों की संख्या
दुनिया में 1990 के बाद से परमाणु हथियारों में लगातार हो रही कमी अब रुक रही है. परमाणु अस्त्रों वाले देश अपने हथियारों के भंडार का आधुनिकीकरण कर रहे हैं जिससे हथियारों की संख्या में बढ़ोतरी के संकेत मिल रहे हैं.
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शीत युद्ध के बाद
शोधकर्ताओं ने कहा है कि शीत युद्ध के अंत के बाद से 1990 के बाद के दशकों में परमाणु हथियारों की संख्या में लगातार कमी आ रही थी, लेकिन अब यह स्थिति बदल रही है. यह कहना है स्वीडन के संस्थान सिपरी में एसोसिएट सीनियर फेलो हांस क्रिस्टेनसेन का.
तस्वीर: Getty Images
हथियारों का खतरा काम
क्रिस्टेनसेन के अनुसार यह स्थिति शीत युद्ध के समय कहीं ज्यादा गंभीर थी. 1986 में दुनिया में 70,000 से भी ज्यादा परमाणु हथियारों के होने का अनुमान था.
तस्वीर: picture-alliance/CPA
आज कितने हैं हथियार
इस समय परमाणु हथियारों वाले नौ देश हैं - अमेरिका, रूस, यूके, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया. सिपरी के मुताबिक 2021 में इनके पास कुल मिलाकर 13,080 हथियार हैं. संस्थान के मुताबिक पिछले साल इन देशों के पास कुल 13,400 हथियार थे.
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असल में गिरावट नहीं
सिपरी का कहना है कि यह असल में संख्या में गिरावट नहीं है, क्योंकि इन हथियारों में पुराने वॉरहेड भी हैं जिन्हें नष्ट कर दिया जाना है. अगर इन्हें गिनती से बाहर कर दिया जाए, तो परमाणु हथियारों की कुल संख्या एक साल में 9,380 से बढ़ कर 9,620 हो गई है.
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तैनात हथियार भी बढ़े
सिपरी के मुताबिक अलग अलग सेनाओं के पास तैनात परमाणु हथियारों की संख्या भी एक साल में 3,720 से बढ़ कर 3,825 हो गई. इनमें से करीब 2,000 हथियार "इस्तेमाल किए जाने की उच्च अवस्था" में रखे गए हैं, यानी ऐसी अवस्था में कि जरूरत पड़ने पर उन्हें कुछ ही मिनटों में चलाया जा सके.
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आधुनिकीकरण
हांस क्रिस्टेनसेन का कहना है कि इस समय पूरी दुनिया में काफी महत्वपूर्ण पैमाने पर परमाणु कार्यक्रमों का आधुनिकीकरण हो रहा है और परमाणु हथियारों वाले देश अपनी सैन्य रणनीतियों में परमाणु हथियारों का महत्व बढ़ा रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Frey
रूस और अमेरिका की भूमिका
रूस और अमेरिका के पास दुनिया के कुल परमाणु हथियारों का 90 प्रतिशत से भी ज्यादा भंडार है. क्रिस्टेनसेन का कहना है दोनों ही देश परमाणु हथियारों को ज्यादा महत्व दे रहे हैं. उनका मानना है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप इसी रणनीति को आगे बढ़ा रहे थे और नए राष्ट्रपति जो बाइडेन भी काफी स्पष्ट रूप से संदेश दे रहे हैं कि वो भी इसे जारी रखेंगे.
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तैयार हथियार
अमेरिका और रूस दोनों पुराने वॉरहेड को लगातार हटा रहे हैं लेकिन दोनों के पास पिछले साल के मुकाबले करीब 50 और हथियार हैं जो 2021 की शुरुआत में "क्रियाशील तैनाती" की अवस्था में थे. - एएफपी
तस्वीर: picture alliance / dpa
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रूस और चीन दोनों ने सुरक्षा परिषद के इस बयान का स्वागत किया है. रूस ने उम्मीद जताई कि इस बयान से वैश्विक स्तर पर तनाव घटाने में मदद मिलेगी. रूसी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया, "हम उम्मीद करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के मौजूदा मुश्किल हालात में ऐसे राजनीतिक बयान अंतरराष्ट्रीय तनाव का स्तर घटाने में मददगार साबित होंगे.”
चीन के विदेश मंत्रालय ने भी इस बयान को आपसी विश्वास बढ़ाने वाला बताया. चीनी उप विदेश मंत्री मा जाओक्शऊ के हवाले से देश की सरकारी समाचार एजेंसी ने लिखा है कि यह वचन "परस्पर विश्वास और बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा की जगह सामंजस्य और सहयोग बढ़ाने में मदद करेगा.”
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बाकी चार देशों का क्या?
परमाणु यद्ध जीता नहीं जा सकता, यह विचार सोवियत संघ के नेता मिखाइल गोर्बाचेव और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन ने 1985 में पेश किया था. जेनेवा सेंटर फॉर सिक्यॉरिटी पॉलिसी में अप्रसार प्रमुख मार्क फिनाउद कहते हैं, "यह पहली बार जब इन पांचों ताकतों ने उस विचार को दोहराया है. गैर-परमाणु शक्ति संपन्न देशों और सामाजिक संस्थाओं की लगातार मांग के बाद उन्होंने आगे कदम बढ़ाया है और उस विचार की ओर लौटे हैं.”
वो बम जिसने अमेरिका को सुपरपावर बनाया
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एनपीटी चीन, फ्रांस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका को ही परमाणु शक्ति के रूप में मान्यता देती है जबकि भारत और पाकिस्तान भी परमाणु हथियार विकसित कर चुके हैं. इसके अलावा यह भी माना जाता है कि इस्राएल के पास भी परमाणु हथियार है. तीनों ने ही एनपीटी पर दस्तखत नहीं किए हैं जबकि एक अन्य परमाणु संपन्न देश उत्तर कोरिया ने 2003 में इस संधि से खुद को बाहर कर लिया था.