भारत में गलत दिशा में ड्राइविंग के कारण हर साल हजारों सड़क हादसे हो रहे हैं. तेज गति से होने वाले हादसों के बाद गलत दिशा में ड्राइविंग के कारण सबसे अधिक लोग सड़कों पर मारे जाते हैं.
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दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर मंगलवार की सुबह हुए भीषण हादसे में एक ही परिवार के 6 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई. गलत दिशा से आ रही स्कूल बस की एक कार से सीधी टक्कर हुई. हादसा इतना भीषण था कि कार के परखच्चे उड़ गए और बस को भी काफी नुकसान पहुंचा.
इस हादसे की तस्वीरें सीसीटीवी कैमरे में भी कैद हुई, जिसमें दोनों गाड़ियों की सीधी टक्कर देख लोग सहम उठे हैं. बस करीब आठ किलोमीटर तक गलत दिशा में दौड़ती रही और सामने से आ रही कार से टकरा गई. कार चालक ने आखिरी पल में टक्कर से बचने की कोशिश लेकिन वह सफल नहीं रहा.
सवाल उठ रहे हैं कि बस इतनी दूर तक गलत दिशा में कैसे चलती रही और क्यों किसी पुलिसकर्मी की उस पर नजर नहीं गई. यह इस तरह का एकलौता मामला नहीं है. भारत में आए दिन गलत दिशा में गाड़ी चलाने से इस तरह के हादसे पेश आते हैं.
सड़क सुरक्षा ताक पर
यातायात नियमों की अनदेखी और ट्रैफिक पुलिस द्वारा इस तरह के उल्लंघन पर नरम कार्रवाई भी हादसे का कारण बन रहे हैं. हजारों लोग इस तरह के हादसे में मारे जाते हैं या फिर गंभीर रूप से घायल होते हैं.
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में तेज गति के बाद सड़क पर होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण गलत दिशा में या यातायात के प्रवाह के विपरीत गाड़ी चलाना है. ऐसे यातायात अपराधों के कारण 2017 और 2021 के बीच लगभग 43,000 लोग मारे गए.
उड़ने वाली कार
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साल 2021 में गलत दिशा में ड्राइविंग के कारण 21,491 दुर्घटनाएं हुईं जिनमें 20,351 लोग घायल हुए. वहीं इसी साल इस तरह के हादसों में 8,122 लोगों की जान चली गई.
आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में 29,148 दुर्घटनाएं गलत दिशा में ड्राइविंग के कारण हुईं जिनमें 9,527 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा. उस साल इस तरह के हादसों में 30,124 लोग घायल हुए.
सड़क परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट "भारत में सड़क दुर्घटनाएं" से पता चलता है कि गलत दिशा में ड्राइविंग के कारण होने वाली मौतों का प्रतिशत बहुत अधिक है. रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय राजमार्गों, जिनमें एक्सप्रेसवे भी शामिल हैं, वहां पर गलत दिशा में गाड़ी चलाने की रिपोर्टें आईं.
उदाहरण के लिए 7,332 में से 44 प्रतिशत ऐसी मौतें राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुईं और 2021 में 35 प्रतिशत सड़क हादसे एनएच नेटवर्क पर गलत दिशा में ड्राइविंग के कारण हुए. सरकार ने 2022 की रिपोर्ट अब तक जारी नहीं की है.
बिना ड्राइवर वाले ट्रक स्वीडन की सड़कों पर दौड़े
स्टॉकहोम के दक्षिण में 40 टन वजन लेकर एक ट्रक और ट्रेलर ने सड़कों का रास्ता नाप लिया. ड्राइविंग सीट पर ड्राइवर जरूर था लेकिन उसके हाथ स्टीयरिंग व्हील पर नहीं थे बस नजरें ये देख रही थीं कि ट्रक कैसे चल रहा है.
तस्वीर: Olaf Döring/imago images
खुद से चलने वाला ट्रक
यह ट्रक अपने आप चलता है और एक बहुत अनुभवी ड्राइवर को सिर्फ यह देखने के लिए बिठाया गया था कि अचानक से कोई असहज स्थिति या समस्या आ जाये तो उसे संभाला जा सके.
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP
पहली बार में 300 किलोमीटर का सफर
सामान के साथ ऑटोनोमस ट्रक ने पहली बार में 300 किलोमीटर का सफर तय किया जो स्वीडन के दक्षिण में सोडर्तालजे और जोनकोपिंग के बीच की दूरी है.
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP
दिखने में आम ट्रक जैसा
बाहर से दिखने में यह ट्रक आम ट्रक जैसा ही है बस इसकी छत पर कई कैमरे लगे हैं. इसके साथ ही दोनों तरफ दो सेंसर हैं जो किसी एंटेना के जैसे नजर आते हैं. ट्रक के अंदर डैशबोर्ड में कुछ स्क्रीन जुड़ गई हैं. बाकी तारों का जाल एक कंप्यूटर से जुड़ा है जो पैसेंजर सीट के पीछे रखा है.
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP
स्केनिया का ट्रक
स्वीडन की ट्रक बनाने वाली कंपनी स्केनिया ऑटोनोमस यानी खुद से चलने वाली गाड़ियां बनाने वाली अकेली कंपनी नहीं है. हालांकि यूरोप में व्यापारिक सामान की ढुलाई के लिए ऐसे ट्रकों का इस्तेमाल करने वाली यह पहली कंपनी बन गई है.
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP
डाटा प्रोसेसिंग
ट्रक को हर तरह की परिस्थिति के लिए तैयार किया गया है और डाटा को लगातार अपडेट किया जाता है. खासतौर पर ऐसी जगहों के लिए जहां कई रास्ते आकर मिलते हैं या फिर अचानक से कोई कार के सामने आने की परिस्थिति के लिए सेंसरों को हर बार कैलिब्रेट किया जाता है.
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP
सफर पर नजर
पहली यात्रा में इंजीनियर गोरान जालिद भी ड्राइवर के साथ पैसेंजर सीट पर बैठे थे और उनकी नजरें अपने लैपटॉप पर टिकी थीं जहां उन्हें ट्रक के कैमरों से वीडियो और साथ ही टेक्स्ट में वो जानकारियां मिल रही थीं जो गाड़ी के पास पहुंच रही थीं. एक दूसरे स्क्रीन पर ट्रक, सड़क और उसके आसपास की गाड़ियां दिख रही थीं.
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP
कैमरा, सेंसर, जीपीएस और कई तकनीकों का संगम
ट्रक कई सेंसरों और जीपीएस से मिलने वाली सारी जानकारी के साथ ही कई अलग अलग तकनीकों को जोड़ कर अपने रास्ता तय करता है. इसमें कई तकनीकें बैकअप के तौर पर भी लगाई गई हैं. जब भी ट्रक कुछ अप्रत्याशित करता जैसे कि ब्रेक लगाना तो जालिद उससे जुड़ी जानकारी नोट कर रहे थे.
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP
बाधाएं अब भी हैं
बिना ड्राइवर ट्रक चलाने की तैयारी तो हो गई है लेकिन अब भी कई तकनीकी और कानूनी बाधाएं हैं. बिना सेफ्टी ड्राइवर के इन्हें सड़कों पर उतारने में दिक्कतें हैं. फिर भी उम्मीद है कि इस दशक के आखिर या फिर अगले दशक की शुरुआत तक इनका कारोबारी इस्तेमाल शुरू होगा. हालांकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का माल ढुलाई में हर जगह इस्तेमाल में बहुत वक्त लगेगा.
तस्वीर: Jonathan Nackstrand/AFP
ड्राइवरों की नौकरी पर खतरा
बिना ड्राइवरों के ट्रक चलने लगेंगे तो ट्रक ड्राइवरों की नौकरी खतरे में पड़ जायेगी जो पूरी दुनिया में एक बहुत आम नौकरी है. हालांकि ट्रक बनाने वाले कह रहे हैं कि इसे ड्राइवरों की कमी को पूरा करने के लिए बनाया गया है. इंटरनेशनल रोड ट्रांसपोर्ट यूनियन के मुताबिक दुनिया में फिलहाल 26 लाख ट्रक ड्राइवरों की कमी है.
तस्वीर: Olaf Döring/imago images
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ऐसे उल्लंघन दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर हुई दुर्घटना की तरह अधिक घातक हो जाते हैं क्योंकि कई एक्सप्रेसवे पर गति सीमा 120 किमी प्रति घंटे तक है. जब वाहन इतनी तेज गति से चल रहे हों तो ड्राइवरों को प्रतिक्रिया करने के लिए केवल कुछ सेकंड मिलते हैं.
ऐसे उल्लंघन शहरों और अन्य शहरी क्षेत्रों से गुजरने वाले राजमार्गों पर अधिक होते हैं और उल्लंघन करने वाले कमजोर प्रवर्तन और एक मजबूत राजमार्ग पुलिस व्यवस्था के अभाव के कारण छूट जाते हैं.
जानकार कहते हैं कि वीडियो स्ट्रीम और सेंसर सिस्टम की मदद से इस तरह के उल्लंघन को रोका जा सकता है. इस तरह की तकनीक की मदद से तेज गति, जिग-जैग ड्राइविंग और गलत दिशा में ड्राइविंग को रियल टाइम में पकड़ा जा सकता है और पैट्रोलिंग टीम को समय रहते अलर्ट किया जा सकता है.
कोलकाता की कई सड़कों पर साइकिल क्यों नहीं चला सकते?
दुनिया अब पर्यावरण के अनुकूल साइकिलों की ओर मुड़ रही है. कोलकाता एक अपवाद है. यहां कई सड़कों पर साइकिल नहीं चला सकते. लेकिन क्यों...
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
कोलकाता साइकिल फ्रेंडली क्यों नहीं है
कोलकाता को साइकिल फ्रेंडली शहर कतई नहीं कहा जा सकता. न्यूटाउन, सॉल्ट लेक के बाहर, शहर में कहीं और साइकिल चलाने को प्रोत्साहित नहीं किया जाता है. बल्कि कोलकाता में कई सड़कों पर साइकिल एक तरह से प्रतिबंधित है. साइकिल को रोकने के लिए पुलिस ने ट्रैफिक साइन लगाए हैं.
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नहीं है साइकिल लेन
अगर आप सोचें कि आप शहर में आराम से साइकिल चला लें तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. शहर की सड़कें पतली हैं और यहां बड़ी गाड़ियों का कब्जा है. बस, टैक्सी और दो पहिया वाहन साइकिल सवार को जगह नहीं देते या फिर कई जगहें तो साइकिल के लिए नो एंट्री वाले साइन बोर्ड लगे हैं.
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कहां जाए साइकिल वाले
कोलकाता की कई सड़कों पर इस तरह के बोर्ड लगे हुए हैं. ऐसे साइन बोर्ड का मतलब है कि आप यहां साइकिल लेकर नहीं जा सकते हैं. शहर के कई लोग साइकिल का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि उनके पास मोटरसाइकिल या कार खरीदने के पैसे नहीं है. लेकिन पर्यावरण के लिए लाभदायक चीज की यहां कोई कदर नहीं है.
तस्वीर: Satyajit Shaw/DW
कुछ जगह माहौल अलग
न्यूटाउन का नव विकसित उपनगर एक अपवाद है. साइकिल के लिए यहां अलग लेन है. साइकिल रखने की जगह भी है. एक आधुनिक साइकिल किराए पर लेने की व्यवस्था भी है.