शरणार्थी आज भी झेल रहे हैं कोलोन सेक्स अटैक के नतीजे
१६ दिसम्बर २०१६
पिछले एक साल में जर्मनी में शरणार्थियों के प्रति नफरत बढ़ती नजर आ रही है. कोलोन में 31 दिसंबर 2015 की रात ने सब बदल दिया.
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कोलोन में 31 दिसंबर 2015 की रात कुछ लड़कियों पर यौन हमले हुए. लड़कियों का आरोप है कि ये हमले करने वाले लोग विदेशी मूल के थे. पुलिस ने बताया कि करीब 1200 शिकायतें आईं जिनमें से 500 से ज्यादा यौन हमलों की थीं. इस घटना ने पूरे देश को दहला दिया और शरणार्थियों के समर्थन में बह रही सहानुभूति की बयार को उलट दिया. देश का माहौल एकदम बदल गया. जगह जगह से शरणार्थियों के विरोध की आवाजें सुनाई देने लगीं. शरणार्थियों के विरोधी लोग जो हाशिये पर थे, ताकतवर होकर केंद्र में आ गए. अब इस घटना को एक साल होने को आया, लेकिन इसके नतीजे आज भी महसूस किए जा सकते हैं.
जानिए, सबसे ज्यादा किससे डरते हैं यूरोपीय
क्या है यूरोपीय लोगों की चिंता
यूरोपीय संघ के एक सर्वे में पता चला कि किस बात को लेकर यूरोपीय लोग सबसे ज्यादा चिंतित हैं.
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मौसम, 5%
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जलवायु परिवर्तन, 6%
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महंगाई, 7%
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दुनिया पर यूरोपीय संघ का प्रभाव, 7%
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अपराध, 9%
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बेरोजगारी, 15%
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खराब वित्तीय स्थिति, 16%
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आर्थिक हालात, 19%
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आतंकवाद, 39%
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शरणार्थी, 48%
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पश्चिमी जर्मनी के शहर कोलोन के मशहूर चर्च के पास ही यह घटना हुई थी. वहां खड़ीं दो लड़कियां सारा और लॉरा कहती हैं कि उस घटना का असर आज भी है. 25 साल की सारा बताती हैं, "उस घटना के बाद से सभी शरणार्थियों को शक की निगाह से देखा जाने लगा. यह बहुत गलत बात है लेकिन सच यही है." सारा की 20 वर्षीया दोस्त लॉरा भी सहमत हैं. वह कहती हैं कि उन्हें खुद डर लगने लगा था. लॉरा के शब्दों में, "ऐसा हुआ था. घटना तो हुई थी. और उसे आप भुला तो नहीं सकते. अब विदेशियों के खिलाफ नफरत पहले से कहीं ज्यादा है."
कोलोन के उस हमले ने जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल को भी आलोचनाओं के घेरे में ला दिया था. कभी शरणार्थियों के लिए दरवाजे और बाहें खोलने वाली मैर्केल इस काम के लिए तारीफ बटोरा करती थीं. लेकिन इस एक घटना ने उनकी लोकप्रिय नीति को डुबो दिया और खुद उनकी लोकप्रियता को भी. 2017 में देश में चुनाव होने हैं और अंगेला मैर्केल लगातार चौथी बार चांसलर बनने के लिए मैदान में हैं लेकिन इन चुनावों पर 2015 की उस घटना का साया भी होगा. मैर्केल की शरणार्थी नीति को नापसंद करने वाली पार्टियां कोलोन की घटना का इस्तेमाल कर रही हैं.
देखिए, घर से बेघर होकर बुलंदी छूने वाले लोग
घर से बेघर हुए पर बुलंदियों पर पहुंचे
अपने देश से भागे और दर-दर भटकते लोगों को दुनिया शरणार्थी कहती है. चलिए मिलवाते हैं आपको 10 ऐसे लोगों से जो शरणार्थी थे लेकिन संगीत, अभिनय, विज्ञान और राजनीति के क्षेत्र में वे बुलंदियों तक पहुंचे.
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मारलेने डिट्रीश
जर्मन गायिका और अभिनेत्री डिट्रीश नाजी जर्मनी को छोड़ कर अमेरिका गई थीं और 1939 में उन्होंने वहां की नागरिकता ली. वो एक अहम शरणार्थी शख्सियत थीं जिसने हिटलर के खिलाफ खुलकर बोला. उन्होंने कहा था, "वो जर्मन पैदा हुई हैं और हमेशा जर्मन रहेंगी."
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हेनरी किसिंजर
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विद्वान और अमेरिका के 56वें विदेश मंत्री. लेकिन उनका जन्म जर्मन राज्य बवेरिया में हुआ था और उन्हें भी नाजी अत्याचारों से बचने के लिए 1938 में जर्मनी छोड़ना पड़ा था.
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मेडलीन अलब्राइट
अलब्राइट अमेरिकी विदेश मंत्री बनने वाली पहली महिला हैं और 1997 से 2001 तक इस पद पर रहीं. उनका जन्म आधुनिक समय के चेक गणराज्य में हुआ था. जब 1948 में वहां सरकार पर कम्युनिस्टों का नियंत्रण हो गया तो उनके परिवार को भाग कर अमेरिका जाना पड़ा.
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अलबर्ट आइंसटाइन
सापेक्षता के सिंद्धांत के लिए मशहूर जर्मन यहूदी नोबेल विजेता अलबर्ट आइंसटाइन 1933 में अमेरिका के दौरे पर थे जब यह साफ हो गया कि वो वापस नाजी जर्मनी नहीं लौट सकते हैं.
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जॉर्ज वीडनफेल्ड
ब्रिटिश यहूदी लेखक वीडनफेल्ड का जन्म 1919 में विएना में हुआ था. लेकिन जब नाजियों ने ऑस्ट्रिया को अपना हिस्सा बना लिया तो वो लंदन चले गए. उन्होंने अपनी एक प्रकाशन कंपनी भी खोली और इस्राएल के पहले राष्ट्रपति के चीफ ऑफ स्टाफ भी रहे.
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बेला बारटोक
20वीं सदी के हंगेरियन संगीतकार बेला बारतोक यहूदी नहीं थे लेकिन वो नाजीवाद के उभार और यहूदियों पर होने वाले अत्याचारों के विरोधी थे. 1940 में उन्हें अमेरिका जाना पड़ा.
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मिलोस फोरमैन
मशहूर फिल्म निर्देशक मिलोस फोरमैन को 1968 की प्राग क्रांति के बाद चेकोस्लोवाकिया छोड़ कर अमेरिका का रुख करना पड़ा. उन्होंने दो विश्व विख्यात और ऑस्कर प्राप्त फिल्में "वन फेलो ओवर द कूकूज नेस्ट" (1975) और "अमादेओस" (1984) बनाईं.
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इसाबेल अलेंदे
चिली के राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे का 1973 में तख्तापलट किया गया और इस दौरान उनकी मौत भी हो गई. तब उनकी भतीजी इसाबेल को भाग कर वेनेजुएला जाना पड़ा. बाद में वो अमेरिका में बस गईं और लेखिका के तौर पर उन्हें बहुत शोहरत मिली.
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मिरियम मकेबा
मिरियम मकेबा जिन्हें मामा अफ्रीका के नाम से भी जाना जाता है. वो अमेरिका के दौरे पर थी जब दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने रंगभेदी सरकार के खिलाफ अभियान चलाने के लिए उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया था और इस महान गायिका को अमेरिका में बसना पड़ा.
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सिटिंग बुल
टाटांका इयोटेक यानी सिटिंग बुल अमेरिकी इतिहास में सबसे मशहूर मूल निवासी नेताओं में से एक थे. अमेरिकी सरकार की नीतियों के खिलाफ लड़ने वाले सिंटिंग बुल को 1877 से 1881 तक शरणार्थी के तौर पर कनाडा में रहना पड़ा था.
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कोलोन रिफ्यूजी काउंसिल नाम संस्था के निदेशक क्लाउस-उलरिच प्रोलेस कहते हैं, "ऐसा नहीं था कि कोलोन की घटना ने कुछ नया शुरू कर दिया. असल में जो पहले से हो रहा था, कोलोन की घटना ने उसी सोच को रफ्तार दे दी." 27 साल के सीरियाई शरणार्थी साखर अल-मोहम्मद कहते हैं कि उस घटना के बाद मूड एकदम बदल गया था. साखर ने एक अभियान शुरू किया, जिसका नाम है सीरियंस अगेंस्ट सेक्सिज्म. अपने इस अभियान के जरिए वह कहना चाहते हैं कि शरणार्थी भी जर्मन महिलाओं के साथ खड़े हैं. लेकिन प्रोलेस कहते हैं, "राजनीतिक तौर पर तो उस घटना की सजा सारे शरणार्थियों को मिली."
2016 में जर्मनी में लगभग तीन लाख शरणार्थी आए हैं, 2015 के करीब नौ लाख शरणार्थियों से कहीं कम.